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बुधवार, दिसंबर 23, 2009

"शेर, ताऊ और न्याय सियार का " (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-6
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-
आपने पिछले अंको मे पढा कि बावलीबूच ताऊ को बातों मे फ़ंसाकर
शेर ने अपने आपको पिंजरे से आजाद करवा लिया और पिंजरे से बाहर आते ही
ताऊ पर खाने के लिये टूट पडा. ...
"जड़,जंगल और रोड पर,गालिब रौब जहान।
गीदड़ के इक वार से,हारा शेर महान।।"
*बेलन महिमा -
1*** क्ल्ब की पार्टी से देर रात गए जब *दम्पत्ति* घर पधारे,
इससे पहले कि *बालम** *अपने जूते कपड़े उतारे,
*श्रीमतीजी* का प्रश्‍न आया, “त...
"बेलन ही तो खास है, नारी का हथियार।
डरते इससे शूरमा, जालिम इसकी मार।।"
ताजा कड़ियां- **सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25]
* *पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक…[आश्रय-24]
शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] क...
"अपराधी सब मुक्त हैं, बेकसूर बदहाल।
भारत का बिगड़ा गणित, बिगड़ गयी है चाल।।"
श्री समीर लाल की तृतीय पुरस्‍कार से संयुक्‍त तौर पर सम्‍मानित बाल कविता
चूं चूं, चीं चीं एक है चिड़िया-
चूं चूं करती चूं चूं करती चीं चीं करती नाम है उसक...
"चिड़िया रानी फुदक-फुदक कर,
मीठा राग सुनाती हो।
आनन-फानन में उड़ करके,
आसमान तक जाती हो।।

मेरे अगर पंख होते तो,
मैं भी नभ तक हो आता।
पेड़ों के ऊपर जा करके,
ताजे-मीठे फल खाता।।

जब मन करता मैं उड़ कर के,
नानी जी के घर जाता।
आसमान में कलाबाजियाँ,
करके सबको दिखलाता।।

सूरज उगने से पहले तुम,
नित्य-प्रति उठ जाती हो।
चीं-चीं, चूँ-चूँ वाले स्वर से ,
मुझको रोज जगाती हो।।

तुम मुझको सन्देशा देती,
रोज सवेरे उठा करो।
अपनी पुस्तक को ले करके,
पढ़ने में नित जुटा करो।।

चिड़िया रानी बड़ी सयानी,
कितनी मेहनत करती हो।
एक-एक दाना बीन-बीन कर,
पेट हमेशा भरती हो।।

अपने कामों से मेहनत का,
पथ हमको दिखलाती हो।।
जीवन श्रम के लिए बना है,
सीख यही सिखलाती हो।"

आज दोपहर को घुमते फ़िरते एक खबर पर नजर अटकी, पढी कुछ सोचा कि
इस का लिंक आप को भी दुं, लेकिन फ़िर उसे वही छोड दिया,
ओर अन्य खबरे पढ कर फ़िर ब्लांग पर लोट आया, क्योकि ब्लांग के बिना
अब सब सूना सूना लगता है, ओर अभी अनिल जी के ब्लांगअमीर धरती गरीब लोग पर गया
ओर उन का लेख पढा तो मुझे यह खबर याद आ गई, ओर
सोचा अब जरुर इस का लिंक आप सब को दुंगा त्रो पढिये
विनोद वर्मा जी का यह लेख... पहले से ही बिके हुए हैं बी बी सी के माद्यम से
"लिंक बढ़िया दे दिये हैं, पोस्ट के परिवेश में।
खूब मेहनत कर रहे हो तुम पराये देश में।।"
जागा रात भर, सोया न बिस्तर बेगाना मेरा,
हर करवट सदाएँ देता था सपना पुराना तेरा.
सोचा रात भर, वजहें तेरी बज़्म में आने की,
काश मुझको मालूम न होता ठिकाना ...
"रचना में बिखरे हुए, जीवन के पदचिह्न।
नींद स्वयं हैरान है, देख बिछौने भिन्न।।"
इस पृथ्‍वी पर मनुष्‍य का अवतरण भी तो अन्‍य जीवों की तरह ही हुआ होगा ,
जहां प्रकृति ने सभी पशु पक्षियों को सिर्फ अपनी आवश्‍यकता को पूरा करने के लिए आवश्‍यक ...
"नदी न पीती जल कभी, पेड़ न निज फल खाय।
बिकने फसल किसान की, बाजारों में जाय।।"
- कार में आगे बैठने पर सीट बेल्ट पहनना आवश्यक होता है।
कितना अच्छा होता कि पीछे की सीट पर भी यह आवश्यक होता।मैं
लगभग सदा पीछे की सीट पर बैठती हूँ और इसी कारण प...
"अब कार की पीछे की सीट पर भी सीट-बैल्ट होती हैं जी।"
४/५ साल हो गए इस घटनाको...
मै अपनी किसी सहेलीके घर चंद रोज़ बिताने गयी थी।
सुबह नहा धोके ,अपने कमरेसे बाहर निकली तो देखा,
उसकी सासुजी, खाने के मेज़ पे बैठ ,...
"संस्मरण अच्छा रहा, मिला बहुत गुण-ज्ञान।
देना वृद्धों को सदा. समुचित आदर मान।।"
- हालीना पोस्वियातोव्सका की बहुत सी कविताओं के अनुवाद
आप पहले भी पढ़ चुके हैं।
आज एक खास कविता,
इसमें पोलैंड की इस महान कवयित्री का जीवन और निजी अनुभव संसार त...
"सुन्दर-मनभावन रहा, कविता का अनुवाद।
मिलता है नवनीत तो मन्थन के ही बाद।।"
अंतरजाल में बडी तेजी से हिन्‍दी भाषा की बनती पैठ में
हिन्‍दी ब्‍लागों का योगदान अहम है.
अंतरजाल में अन्‍य भाषाओं की तुलना में हिन्‍दी चिट्ठों का भविष्‍य क्...
"ब्लाग-जगत है इक नशा, यह है मायाज़ाल।
व्यापकता का से है भरा, सचमुच अन्तरजाल।।"
*शहर के इन रेंगते वाहनों के बीच*
*शिनाख़्त करो खुद की*
*जीजिविषा से परे*
*हर पल डरे-डरे*
*मुट्ठी में रेत लिये*
*क्या तुम खुद ही के ख़िलाफ़ *
*खड़े नहीं ह...
"हो गया अस्तित्व है बौना हमारा।
खो गया परिदृश्य में परिवेश सारा।।"
अब इन चिट्ठों पर भी गौर फरमाइए-
पिछले भाग में पढ़ा :मकान मालकिन चाभी ले गयी,
और पूजा पर गौरव औरभी गरज पडा..पूजा से बोला ना गया..
बोलती भी तो उसकी कौन सुनता? उसने अपनी सास तथा जेठानी के म...
सुनने में अजीब लगता है पर यह सच है. खर्चो में कटौती की योजना के तहत
तमाम कम्पनियाँ एक सप्ताह के लिए अपने दफ्तर बंद कर रही है।
इस दौरान इन कार्यालयों में सि...
इन ज़ख्मों को हरा रखना मेरे दोस्त,
पीते जाना इनका दर्द..
मेरी खातिर,
तब तक जब तक कि मैं..
उन गोली, बन्दूक,
खंजर और तलवारों कि धारों को मोथरा न कर दूं..
मैं आ रहा हूं यमुनानगर
परन्‍तु यमुना तलाशने नहीं वो तो दिल्‍ली में भी नहीं है मिलती
न जाने क्‍यों खो गई है
यमुनानगर में कैसे मिलेगी ?
वैसे क्‍यों कहकर दे रह...
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श्रीनिवास अयंगर रामानुजन Srinivasa Iyengar Ramanujan
कभी कभी ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं जन्म लेती हैं
जिनके बारे में दुनिया आश्चर्य चकित रह जाती है।
श्रीनिवास अ...
कभी फुर्सत हो तो आना
करनी हैं कुछ बातें
जानना है कैसी होती है नज्मों की रातें.....
कैसे कोई नज़्म रूह बन जाती है और पूरे दिन,
रात की सलवटों में कैद हो जाती ह...
अभी अभी अजीज बरनी नाम के सज्जन के ब्लॉग की दो प्रविष्टियाँ पढ़ीं।
एक का नाम है "कसाब की जबान पर हेडली का नाम, सवाल बहुत बड़ा है"
और दूसरी है "२६/११ को मुंबई...
- एक पुरानी कविता जो अभी आप लोगों ने पढी नहीं है।
आज भी नया कुछ लिख नहीं पाई। तो इसे ही झेलले़ ।
*कविता*
मुझे मेरे दिल के करीब रहने दो न पोंछो आँख मेरी अश्क ब...
आप सभी का स्वागत करता हुं मै बेकार कुमार झुंण झुण वाला,
मेरी टीम ओर मेरी तरफ़ से आप सब को इस एक अति सुंदर दिन की बधाई,
मै बेकार, हमारे डाकटर साहब झटका जी ओ.........
*मद्रास पर फ्रांसिसियों का कब्जा*
14 सितंबर 1746 को मद्रास पर फ्रांसिसियों ने कब्जा कर लिया जो तीन वर्षों तक बना रहा।
वहाँ न्यायिक व्यवस्था निलंबित हो गई। 1..
गृहिणी की कविता - मन के भीतर उमड़-घुमड़ कुछ बादल
सघन ललक बरसन पर पछुआ की धार से छितर-बितर
कुछ टुकड़ा इधर कुछ खाँड़ उधर
घर के भीतर की खनखन कलरव बच्चों का कि अनबन ..
रूप की आभा - रूप की आभा दिसंबर के १७ वें दिन सायं जब लन्दन में
इस वर्ष का पहला हिमपात प्रारम्भ हुआ तो १८ की प्रातः तुरंत अपने कैमरे से
उसके चित्र लेने और उन्हें संजो...
हरा बैंगळुरू; भरा बैंगळुरू - विकास के पथ पर पेड़ो का अर्ध्य सबसे पहले चढ़ता है पर
बेंगळुरु में हरियाली का आदर सदैव ही किया जाता रहा है।
गूगल मैप पर देखिये तो शहर हरा भी दिखायी पड़ेगा ..
आज स्लॉग ओवर में मैं आपको एक *मल्लू* यानि *मलयाली आंटी* से मिलवाऊंगा...
कैसे आंटी ने सेक्रेट्री के जॉब के लिए इंटरव्यू का सामना किया...लेकिन उससे पहले कुछ ...
ब्लाग का महत्व मुझे आज समझ मे आ रहा है।
अभिव्यक्ति की असली आज़ादी सिर्फ़ यंही पर है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का ठेका लेने वाले अख़बारो की हालत देख कर तो सिर्फ़ रोया ...
*यह लेख जैसा कुछ समयांतर(जून 2008) में छपा* हिंदी में भुला देने या
उपेक्षा की हिंसक साहित्यिक राजनीति के शिकार हो जाने वाले बड़े कवियों में
एक असद ज़ैदी 20 ..
कुछ समय (साल कहें) पहले ‘आजकल’ पत्रिका में एक कविता पढ़ी थी,
जिसका सार यह था कि छात्रावास की लड़कियों के लिए ऊंची मजबूत दीवारें उठा दो
वरना किसी असभ्य राहग...
‘‘भोपाल गैसकांड इस देश की सरकारों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों की
गहरी सांठगांठ का नतीजा था।
कंपनियों की खुली तरफदारी और गुलामी का एक नया दौर इस कांड से शुरु ..
सर्दियों का मौसम , यानि शादियों का मौसम ।
शादियों का मौसम यानि परेशानियों का मौसम।
जी हाँ, दिल्ली की पौने दो करोड़ जनता और शादियों के लिए महज़ कुछ गिने चुने ..
कोटा से यात्रा पर रवाना होने के पहले ब्लागवाणी देखी तो
एंटीवायरस ने चेतावनी दी कि वायरस आ रहे हैं।
देखा तो स्रोत ब्लागवाणी है। तो क्या ब्लागवाणी पर ट्रॉजन..
आज के लिए बस इतना ही...!

15 टिप्‍पणियां:

  1. शास्त्री जी गागर मे सागर भर लाये आप तो।

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  2. बहुत मेहनत से तैयार की गयी है ये चर्चा .. इतने सुंदर प्रस्‍तुतीकरण के लिए बधाई !!

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  3. चर्चा का ये स्वरूप शास्त्रीय संगीत जैसा मुग्ध कर रहा है...

    जय हिंद...

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  4. रोचक चर्चा आपके प्रयास रंग ला रहे हैं
    चर्चा बेहद पसंद आई |

    प्रकाम्या

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  5. वाह इतनी जल्दी इतनी बडी चर्चा? बधाई

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  6. बहुत लाजवाब चर्चा . शुभकामनाएं शाश्त्रीजी को.

    रामराम.

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  7. बहुत ही बढिया है..चर्चा का ये स्वरूप!!!
    धन्यवाद्!

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  8. shastri ji........roj hi ek se badhkar ek shandar charcha laga rahe hain........badhayi.

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  9. इतनी सूक्ष्म,स्पष्ट चर्चा......फिर भी कहते हैं,'आज इतना ही'......ये है विनम्रता

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  10. शानदार ही नहीं जानदार भी.
    इतने पठनीय चिट्ठों की जानकारी वर्ना दुरूह कार्य है. सादर आभार.

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  11. सुन्दर। आप बहुत मेहनत कर ले रहे हैं शास्त्रीजी! चर्चा मुक्तक शानदार हैं।

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  12. कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं
    चर्चा करने वाले चर्चा का विषय बन रहे ...
    haa haa

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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