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मंगलवार, जनवरी 19, 2010

“हर कोई ब्लॉग सजाने लगा है” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक-34


चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"


आइए आज का "चर्चा मंच" सजाते हैं-

हर कोई ब्लॉग सजाने लगा है !!!!

हवाएं बदल रही हैं ,
रुख अपना,या कि,
मौसम का ही
मिज़ाज,गरमाने लगा है॥


जिन्हें कोफ्त होती थी,
हमारे पसीने की बू से,
हमें अब गले लगाते उन्हें,
इत्र का मजा आने लगा है ॥

शीर्षक से धोखा मत खा जाना जी
आपको इस पोस्ट पर लगे वाक्य की त्रुटियाँ खोजनी हैं-

महिला कवियित्री को मिला "प्रियदर्शिनी" पुरुस्कार
……"महिला कवियित्री सुश्री सरोज वाला को अपनी कविता "श्रृंगार-बर्षा" के लिए इस बर्ष का "प्रियदर्शिनी" पुरुस्कार दिया गया!"
क्या आप दिखा सकते हैं?

मिलिए हिन्दी के सबसे बड़े ब्लागर समीर लाल से - कनाडा में रहने के बाद भी मेरा दिल हिन्दुस्तान में बसता ह-

समीर लाल से मीडिया मंच के एडिटर लतिकेश शर्मा की ख़ास मुलाक़ात

ब्लॉग लिखनेवालों के बीच यु तो कई नाम लोकप्रिय है ,लेकिन एक ऐसा नाम है, जिनसे ब्लॉग लिखनेवाला शायद ही कोई शख्स वाकिफ़ ना हो . हम बात कर रहे 'उड़नतश्तरी' नाम से ब्लॉग लिखने वाले समीर लाल की . समीर रहते तो कनाडा में हैं ,लेकिन उनका दिल हिंदुस्तान में बसता है . मीडिया मंच की टीम अपने पाठकों को समीर लाल से मिलवाना चाहती थी . लेकिन इस रास्ते में कनाडा की दूरी आड़े आ रही थी . ऐसे में हमने समीर लाल के लिए मेल के ज़रिये सवाल लिख कर भेज दिए और उन्होंने उसका ज़वाब लिख कर हमें वापस मेल कर दिया ……………………….

सवाल- -कनाडा में आप ख़ाली समय किस तरह से बिताते है.

जवाब - खाली समय में घूमना फिरना, अलग अलग शहरों में जाना, मित्रों के साथ दावतें और मुलाकातें, परिवार के साथ समय गुजारना. फिर कुछ न कुछ नया कोर्स करते रहना और अपने ज्ञान में वृद्धि करते रहने का चस्का लगा हुआ है, तो वो जारी रहता है. बहुत सारे कोर्स कर डाले इन सालों में और बहुत कुछ सीखा कम्प्यूटर के बारे में.कुछ पत्रिकाओं के लिए तकनिकि लेखन भी करता हूँ. फिर बाकी समय ब्लॉग पर बिताना बहुत पसंद आता……………………….

सवाल -आप अपने परिवार के मेम्बेर्स के बारे में कुछ बताये .

ज़वाब -मैं, मेरी पत्नी, और एक बहु, दो बेटे. बड़े बेटे की पिछले साल ही शादी की है भारत जाकर. वो अपनी पत्नी के साथ इंग्लैण्ड में नौकरी कर रहा है और छोटा बेटा अमरीका में कम्प्यूटर सलाहकारी कर रहा है. हफ्ते दो हफ्ते में आ जाता है एक बार शनिवार इतवार के लिए……………………

आज ताऊ की कलम से निकली है एक कविता

का मजा लीजिए-


“कवि चोर करेलवी कैसे कहलायेंगे”

कवि सम्मेलन में उदघोषक बोला
अभी तक आपने सुना झुमरू देहलवी को
अब सुनिये चोर करेलवी को
चोर करेलवी मंच पर आये और बोले
"प्रभुजी मोरे अवगुण चित ना धरो"
जनता चिल्लाई...बंद करो..बंद करो.. माल चोरी का है...
साफ़ साफ़ रैदास जी का है

चोर करेलवी बोले
आपने बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया
ये रचना बिल्कुल रैदास जी की है.
रैदास जी अनपढ थे.
उनकी सारी रचनाओं को कलम बंद करने का काम
मेरे परदादा के ताऊ के ताऊ
और उनके परदादा के बडे ताऊजी किया करते थे
मुझे पूरा हक है इसे सुनाने का

अरे कई मदनलाल तो दूसरों की रचना
यूं की यूं की पूरी पेल देते है
और आप लोग आराम से झेल लेते हैं.
अरे भाईयों हम तो अपना नाम सार्थक कर रहे हैं
चोरी की रचना नही सुनायेंगे तो चोर करेलवी कैसे कहलायेंगे? ..........


सोनिया का त्याग मजबूरी थी और ज्योति बाबू का त्याग आदर्श


अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि ज्योति बसु को इतिहास किस तरह से याद करेगा। क्योंकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु के व्यक्तित्व बहुत सारे आयाम हैं। इनमें से किसी एक को केंद्र में रखकर ज्योति बसु का ख़ाका तैयार करना आसान नहीं है। ज्योति बसु के व्यक्तित्व, प्रशासन और पार्टी में में नेतृत्व क्षमता का आंकलन करना सहज नहीं है। लेकिन इतना तो तय है कि इतिहास के पन्नों में वो प्रधानमंत्री की कुर्सी ठुकरानेवाले पहले और आख़िरी राजनेता के तौर पर याद किए जाएंगे। वैसे प्रधानमंत्री की कुर्सी तो सोनिया गांधी ने भी ठुकराई। लेकिन उसकी तुलना ज्योति बसु से नहीं की जा सकती। क्योंकि सोनिया गांधी के…….

अब आप मिलिए सुमन जी से!
इनका कमेंट nice. इनकी पहचान है-

लो क सं घ र्ष !: अब पछताए क्या होत.......

By Suman

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी ने अमरीका से शिकायत की है कि एक तरफ अमरीका आतंकवाद के विरूद्ध जंग में उसे अपना सहयोगी मानता है तो वही दूसरी तरफ उसके शहरियों पर ड्रोन हमले भी होते रहते हैं जिसके कारण आम जनता में अमरीका व पाकिस्तानी सरकार के विरूद्ध क्रोध व कुण्ठा बढ़ती है परिणाम स्वरूप आतंकियों का जनसमर्थन बढ़ता है।
वाह जरदारी साहब मीठा-मीठा हक कड़वा-कड़वा थू......

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२०१० में कन्या राशी - कन्या राशी -इस राशि पर शनि का प्रभाव व संचार पुरे वर्ष रहेगा जिस वजह से गृह क्लेश,आर्थिक परेशानिया व खर्चो में कमी लगी रहेगी | राशी स्वामी के वर्षारंभ में ..

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किताबों की दुनिया - 22 - दोस्तों पिछली बार किताबों की दुनिया में आपकी मुलाकात *नासिर काज़मी* साहब की किताब से करवाई थी, उस किताब की खुमारी उतारने नहीं बल्कि बढाने के लिए मैं आपके स..

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* * *

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साल २०१०: वित्तीय साम्राज्यवादी खून-ख़राबा बढ़ेगा- त्रिनेत्र जोशी - पिछली कड़ी में वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा की बातें पढ़कर काफी हलचल मची. नीरज पासवान जी ने तो मुझे भी लपेटे में ले लिया और लिखा- 'आलोक धन्वा जी ने हिंदी के महान ...

लिखो यहाँ वहां

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लहरें

यूँ जिंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर - मुझे मालूम भी नहीं चला कब बाइक चलाना मेरे लिए बोलने या बात करने का पर्याय हो गया। जब मेरे शब्द मुझे बहुत परेशान करने लगते हैं, जब मुझे किसी से बात करने का बह..

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यही है वह जगह

राष्ट्रमण्डल खेल : कैसा इन्फ़्रास्ट्रक्चर ? किसके लिए ? : सुनील - पिछले भाग से आगे : यह कहा जा रहा है कि राष्ट्रमंडल खेलों के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर बन रहा है, वह बाद में भी काम आएगा। लेकिन किनके लिए ? निजी कारों को दौड़ा..

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नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के चौदह नंबर प्लेटफार्म पर सैकड़ों जूतों को स्कैन करता बारह साल का एक लड़का मेरे सामने रुका, "पॉलिश, साहब?" मेरे चेहरे और जूतों की र..

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कौन इन्कार कर सकता है...... कि बच्चों के समूह के साथ काम करते समय एक तरह के विशेष अनुशासन की आवश्यकता सदैव ही पड़ती है। आमतौर परअनुशासन बनाये रखने के नाम प..

देशनामा

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ले आया भईया मैं जान पर खेल कर सबूत...सुबह जो मैंने ब्रेकिंग न्यूज़ दी थी...उसका सबूत आप तक लाने के लिए बस ये समझ लीजिए मुझे *शेरसिंह *के मुंह में हाथ देना ..

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हम हिन्दुस्तानियों के लिए शायद यह खबर बहुत मामूली सी थी , इसलिए किसी ने इसे तबज्जो देना तो दूर, इस पर गौर करना भी मुनासिब नहीं समझा !…. ..

केवल कवियों के लिए--( कविता)

कविता जब श्‍याम रंग में उतरी,

कैसी थी वो सुकन्‍या सी क्वाँरी,

वो तन से कितना छरहरी बन जाती थी।

और कैसे छुई-मुई सी निरखती लगती थी।

…..
कार्टून : यहाँ देखती है बहनजी अपनी शकल !!

अदा

हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी ..


एक पुरानी ग़ज़ल :

हम बोलें क्या तुमसे के क्या बात थी
अजी रहने दो बातें बिन बात की
सहर ने शफ़क़ से ठिठोली करी है
शिकायत अंधेरों को इस बात की…….

तू कवि है तेरे घाव कैसे भर पाएंगे

तू कवि है तेरे घाव कैसे भर पाएंगे

टूटे रिश्ते बिखरे सम्बंध मांग रहे हैं जीवन की परिभाषा

उनके आकुल होठ नहीं समझते मेरे नयनों की भाषा

स्याह रात की खामोश उदासी लगती सदा आंसू झेलती
उसकी पीड़ा से छोटा लगता विंध्याचल का आंचल
जब भूख देती है दलीलें तो दर्द कैसे समझ पाएगा
तेरे आगे मर रहा है राष्ट्र तेरा तू कैसे सह पाएगा
अनजानी आशंकाएं, काटें और बाधाएं
ये सब मिलकर
मुश्किल तेरा जीना कर जाएंगे
तू कवि है तेरे घाव कैसे भर पाएंगे...

गठरी

"सर्दी में तुम आ जाओ---"

सर्दी में तुम आ जाओ लेकर कुछ गरमी ।
आँखों में कुछ शर्म,नमक जितनी बेशर्मी ॥
लाना वो मुस्कान मुझे व्याकुल जो कर दे ।
वही महकता बदन वही हाथों की नरमी ॥….



अब आज की चर्चा को

समाप्त करने की

आज्ञा दीजिए!

कल फिर कुछ चिट्ठों की

चर्चा लेकर आपकी सेवा में

उपस्थित हूँगा!

20 टिप्‍पणियां:

  1. इन लिंक्स के जरिए ब्लाग की दुनिया की उम्दा पोस्ट्स तक पहुँचा जा सकता है। एक उम्दा पुल आप रोज बनाते है। आभार !

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  2. सुन्दर सजावट के साथ बहुत बढ़िया चर्चा

    जवाब देंहटाएं
  3. कई अन्जानी पोस्ट्स तक पहुँचाया आपने
    आभार

    बी एस पाबला

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत जबरदस्त चर्चा..ढेर लिंक मिल गये...बहुत आभार. नियमित जारी रहें.

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर चिट्ठा चर्चा...बधाई शास्त्री जी!!

    जवाब देंहटाएं
  6. शाश्त्रीजी बहुत धन्यवाद, आपकी चर्चा तो चर्चा के साथ साथ पूरा अग्रि्गेटर का भी काम करती है.

    रामराम.

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  7. बहुत बढ़िया प्रस्तुति है.!
    बहुत सी पोस्टों को समेट लिया है आज चर्चा में.
    आभार.

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर चिट्ठा चर्चा...बधाई शास्त्री जी!!

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी ख़ूबसूरत लिंक सज गए हैं यहाँ . करीने से की गयी चर्चा .
    आभार .

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी चर्चा के माध्यम से समीरजी का interview पढ़ पाया !! आभार!!

    जवाब देंहटाएं
  11. चर्चा सजाने और उसे महत्त्वपूर्ण बनाने में मयंक जी सबसे अलग हैं!

    जवाब देंहटाएं
  12. Abhi kuchh samajhataa naheen
    sabhee ko saadar namaskaar karane aayaa hoon

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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