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मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

“भगवान तू कुछ तो समझा कर...” (चर्चा मंच)

"चर्चा मंच" अंक - 120
चर्चाकारः डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक
आइए "चर्चा मंच" का प्रारम्भ करते हैं!
  Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के इस कार्टून से-
कार्टून:- भगवान तू कुछ तो समझा कर...
अरे हाँ आज टंकी अवरोहन का भाण्डाफोड़ यहाँ भी तो हुआ है-
ताऊ डॉट इन

टंकी अवरोहण का भंडाफोड़ : "ताऊ टीवी फ़ोड के न्यूज" द्वारा - दर्शकों को रमलू सियार का नमस्कार. ताऊ टीवी के खास खबरिया चैनल "टीवी फ़ोडके न्यूज चैनल" में मैं आपका स्वागत करता हूं और आज की गर्मागर्म स्टोरी पेश करता हूं...
और यहां पर भी तो एक टंकी है-
मयंक

“ये ज़िन्दगी के मेले…..” - “ब्लॉगिंग तो छोड़नी है लेकिन..” ** *उतर भी आओ अब तो साथ लगी सीढ़ी से!* * * ** * * *तुम्हें तो ब्लॉग की दुनिया अभी सजानी है!* * * *जी हाँ यह शाश्वत सत्य है..
बैशाखनन्दन प्रतियोगिता तो आजकल पूरे यौवन पर है-

ताऊजी डॉट कॉम

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : सुश्री रश्मि रविजा - प्रिय ब्लागर मित्रगणों, हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिताके लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं...
स्वप्न म़ंजूषा शैल “अदा” जी ने 
नारि में दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती के 
रूपों को प्रदर्शित किया है-
काव्य मंजूषा
मैं......दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती...

मैं !
अनादि काल से
दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती
बन कर जन्मती रही हूँ ,
करोड़ों सर
झुकते रहे
मेरे चरणों में,
और दुगुने हाथ
उठते रहे
मेरी गुहार को,……
पं.डी.के.शर्मा ”वत्स”  जी भी तो 
इधर की उधर कर रहे हैं-
देखिए तो सही इनकी एक छोटी सी गीतिका-
कुछ इधर की, कुछ उधर की
 यूँ चले जाना किसी का.......... - ध्यान में अपने निरन्तर मार्ग पर चलते हुए ही बीती कुछ सुनसान रस्ते की अन्धेरी रात राही कट गई कुछ राह तेरे साथ करते बात राही.......
के नये अंक में 
रावेंद्रकुमार रवि जी के 
कई नवगीत प्रकाशित हुए हैं-
अनुभूति में रावेंद्रकुमार रवि की रचनाएँ—
गीतों में-
ओ मेरे मनमीत
धूप की परछाइयाँ
नाम तुम्हारा
मेरा हृदय अलंकृत
मेरे मन महेश


धूप की परछाइयाँ

धूप की परछाइयाँ जिस दिन बनेंगी,आज
भूख मिटकर आँत में दीपक जलाएगी!
तुम्हारी याद आएगी!!……….
आज डॉ.टी.एस.दराल जी की 
वैवाहिक वर्षगाँठ तो है ही 
साथ ही उनकी आज 100वीं पोस्ट भी प्रकाशित हुई है! 
आपको तो हम यहीं से बधाई दे देते हैं! 
आप भी अपनी बधाइयाँ देना न भूलें-

अंतर्मंथन-
   बैसाखी के शुभ दिन १००वी पोस्ट और शादी की सालगिरह ---क्या इत्तेफाक है -- - लो जी आज हमारा भी *शतक* पूरा हो गया। *१ जनवरी २००९* को बनाये गए ब्लॉग को आज *एक साल , तीन महीनेऔर १३ दिन* हो गए हैं । *कछुए की चाल से चलते हुए , हमने भ...
व्योम के पार में मिलिए 
पहेलियों की चैम्पियन 
सुश्री अल्पना वर्मा जी से-

Vyom ke Paar...व्योम के पार
  भागें भी तो कब तक और कहाँ तक? - अनिश्चितता मतलब ‘कुछ भी निश्चित नहीं ‘... अपनी जड़ों से कट कर पौधा भी समय लेता है नयी ज़मीं पकड़ने में . इंसान में अपनी मिटटी से दूर हो कर भविष्य के प्रति जो अ...
 
और जज्बात में एम.वर्मा जी लाए हैं 
बिना तेल वाले तिल- 
आप इनको देखकर तिलमिला मत जाना!
My Photo
जज़्बात 
बिना तेल का तिल मिला ~~ - बेवजह तो नहीं वह रहा है - तिलमिला, उसके हिस्से बिना तेल का तिल मिला. **** वह रूठी थी मैनें तो उसे मना ली, पर इसके लिये मुझको तो ले जाना पड़ा ..
अरे वाह टंकी ही टंकी छाईं हैं 
आज तो ब्लॉग जगत पर-
देशनामा

सभी टंकी प्रेमियों के लिए पढ़ना ज़रूरी...खुशदीप - सुप्रभात... अगर लोग आपकी टांग खिंचाई करते हैं, आपको आहत करते हैं, या आप पर चिल्लाते हैं, परेशान मत होइए... बस इतना याद रखिए...हर खेल में शोर दर्शक मचाते ह...
पारुल जी की खूबसूरत रचना पढ़ने के लिए 
यहाँ तो आपको जाना ही पड़ेगा-
pukhraaj

- आज मुझे अपनी याद आई , कहाँ भूली थी खुद को , किसी किताब की दूकान में रखी उन तमाम किताबों के कवर पे लिखे सुनहरी नामों में , या शायद ग़ालिब की ग़ज..
उच्चारण पर श्रीमती अमर भारती के स्वर में 
सुनिए यह मधुर गीत-
उच्चारण
“  मातृभाषा की अल्पना!” (गीतकार-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) - *कल्पना का सूर्य मन पर छा गया है। अलख हमको भी जगाना आ गया है।। * *मातृभाषा की सजा कर अल्पना, रंग भरने को चली परिकल्पना, भारती के गान गाना आ गया है। अ...
अंधड़ में गुरू गोदियाल जी बता रहे हैं-
कुत्ते के खाने के दिवस को!
अंधड़ ! 
एवरी डॉग हैज इट्स डे ! - आज लिखने का कतई मूड नहीं है, एक अपनी पुरानी कविता दोबारा पोस्ट कर रहा हूँ , उम्मीद करता हूँ कि आप लोगो को पसंद आयेगी; *इक दिन वो भी दिन आयेगा, जब मेरी भी द...
अब जरा इन पर भी दृष्टिपात कर लीजिए-
यशस्वी
 
ऐसा होता है पत्थर मारने वाला मेला - मां वाराही का मंदिर कुमाउं के देवीधुरा स्थान में रक्षा बंधन के दिन पत्थर मारने वाला एक मेला मनाया जाता है जिसे बग्वाल कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि देवीधुरा..
बगीची

सम्‍मान से खेल - क्रिकेट के मैदान पर खेल ही टिकेगा - संदीप जोशी - संदीप जोशी ने दैनिक जनसत्‍ता में संपादकीय पेज पर प्रकाशित स्‍तंभ दुनिया मेरे आगे में लिखा है कि ... इमेज पर क्लिक करिए और पढि़ए उनके बेबाक विचार। दैनिक...
इयत्ता
 तुम कहां गए - रतन बतलाओ तुम कहां गए बरसों बाद भी तेरी यादें आती हैं नित शाम-सवेरे जब आती है सुबह सुहानी जब देते दस्तक अंधेरे कोना कोना देखा करता नजर नहीं तुम आते हो मन म..
simte lamhen
वो वक़्त भी कैसा था..... - कुछ रंगीन कपडे के टुकड़े ,कुछ धागे , और कल्पना के रंग ...इन के मेलजोल से मैंने बनाया है यह भित्ति चित्र...जब कभी देखती हूँ,अपना गाँव याद आ जाता है...
भीगी गज़ल
फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए - फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए खुद-ब-खुद गजलों में अफ़साने तुम्हारे आ गए रूह को आदाब दिल के, थे सिखाने पर तुले पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए...
bhartimayank
“उत्तर:आओ ज्ञान बढ़ाएँ:पहेली-28” (अमर भारती) - “आओ ज्ञान बढ़ाएँ:पहेली-27”का सही उत्तर है*महात्मा ज्योतिबा फुले * *रूहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली का * * * *केंद्रीय पुस्तकालय* [image: mjp copy]*पहेली के वि...
के.सी.वर्मा

चंद लम्हे ..उस मुलाकत के ...!!! - - चंद लम्हों की मुलाकात बनी सबब जिन्दगी की , - ता उम्र साथ मिलता तो क्या बात थी ।! - - संवर जाती सूरत मेरे आने वाले कल की , - हमेशा आफ़ताबे ..
मेरी भावनायें...

तूफ़ान और ख़ामोशी - तूफ़ान और ख़ामोशी मिलते हैं किसी जिद्दी बच्चे की मानिंद तूफ़ान सर पटकता है सारी चीजें इधर से उधर कर देता है पेड़ की शाखाओं को हिलाता है चिड़िया डरके घोंस...
साहित्य योग
खड़ी दोपहरी में देखा था उसको छत पर...... - खड़ी दोपहरी में देखा था उसको छत पर...... अम्बार दुःख का झूल रहा था आँखों में उसके..... एक हाथ में पानी का कटोरा दूसरे में उल्झी-अधूरी लकीरें तन काला कि ..
घुघूतीबासूती
सहज पके सो मीठा होय ? - समय के साथ बहुत सारी लोकोक्तियाँ व मुहावरे अपनी सार्थकता खो बैठे हैं या उन्हें पलट ही दिया गया है। बचपन से सुनते आए थे कि धीरे धीरे पका हुआ फल ही स्वाद होत..
एक बहुत ही बेहतरीन नज़्म यहाँ भी तो है-
स्वप्न मेरे................
नज़्म मेरी - कई बार गिरी कई बार उठी शब्दों के हाथों से निकली चिंदी चिंदी हवा में बिखरी पहलू में कई बार रुकी नज़्म मेरी मुझे मेरी नज़्म ने कहा मैं तेरे सामने ..
जब भी मैं स़ड़क पर निकलता हूं..
Apr 13, 2010 | Author: भारतीय नागरिक - Indian Citizen | Source: भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ऐसे दृश्य देखने को मिल ही जाते हैं. हर चौकी, थाने, परिवहन वालों के साथ दस्तूरी निभती रहती है. बदस्तूर चलता रहता है ये सिलसिला. हुक्मरान आंखे फेर लेते हैं .आईएस, IPS बनने वाला बनने से पहले सब देखता है, बनने के बाद भूल जाता है. जब कभी दुर्घटना होती है तो रस्म अदायगी के बतौर चार-छ: का चालान और डी-एम, एस-एस-पी,आर-टी-ओ के कड़कते बयान छप जाते हैं. इति श्री हो जाती है. इन बेचारों की मजबूरी है दो रुपये बचाने के लिये जान जोखिम में डालना, लेकिन इसे रोकने वालों की तनख्वाह तो एक लाख रुपये महीने तक है, फि .
सत्तर फीसदी हिस्से में फैल चुका है नक्सलवाद का कैंसर







पीले फूल
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर 
आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती 
संगीता स्वरुप जी की कविता. 
आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा... 

!!शुभागमन!!


आवश्यक काम आ पड़ा तो 
बिना किसी शोर-शराबे चले गये!
काम खत्म होते ही पुनः वापिस आ गये है
बुरा-भला लेकर भाई शिवम मिश्रा जी!
३१ मार्च २००९ जब closing के pressure ने जान सुखा हुयी थी 
तब बैठ हुएअचानक ही ख्याल आया क्यों ना एक ब्लॉग बनाया जाये 
जहाँ अपने मन की बातेलिखा करुगा या वह मुद्दे जिन से मैं प्रभावित होता हूँ 
उन पर अपनी राय दियाकरुगा ............
यहाँ बता दू कि जी हाँ मैं राय भी दे दिया करता हूँ कभीकभी......... 
क्या करू साहब आदत से मजबूर हूँ ) सो लीजिये जनाब बना लियागया "बुरा भला!







हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित करने वाला 
कोई आदेश नहीं है: सुप्रीम कोर्ट ने भी
 खाली हाथ लौटाया हिन्दी को
देश का संविधान लागू हुए 60 साल हो गए लेकिन देश की राष्ट्रभाषा क्या हो यह अभी तक तय नहीं। भले ही संविधान का अनुच्छेद 343 हिन्दी को 'देश की राजभाषा' घोषित करता हो लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसा कोई प्रावधान या आदेश रिकार्ड पर मौजूद नहीं है, जिसमें हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया हो। यह सिर्फ इसी देश में हो सकता है कि देश की राष्ट्रभाषा 'हिंदी' को अपना हक मांगने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़े। ..

चर्चा के अन्त में मनोज कुमार जी की



मस्ती का भी मजा लीजिए-



-- मनोज कुमार
कलकत्ता में वर्षा झट से आती है और जमके बरसती है। उस दिन भी ऐसा ही हुआ। डेली यात्री के हाथ में बांए कंधे पर बैग और दाएं हाथ में छाता आवश्‍यक सामग्री है। धर्मतल्ला पर बस से उतरते ही जोर की वर्षा शुरू हो गई। जब तक छाता खोलते थोड़ा बहुत भींग ही गए। पर इतनी मूसलाधार बारिश थी कि खुद को बचते बचाते फुटपाथ पर आश्रय लेना पड़ा। बहुत सारे लोग थे। एक दूसरे से चिपके पानी की बूंदो से खुद को बचाते। कुछेक महिलाएं भी थी, पानी की बूंदे तो उन्‍हें परेशान कर ही रही थी लोगों की नजरों एवं उनकी हरकतों से भी उन्‍हें खुद को बचाना होता था।
verona
तभी एक खूबसूरत शोड़षी पर नजर पड़ी। सावन के इस सुहाने मौसम में उसकी दुबली पतली काया पर पीत वस्‍त्र मानों सरसों के खेत में गुलाब का फूल। शायद उस दुकान के सामने की जगह में पचासों लोगों की घूरती निगाहें उसे विचलित कर रही थी। या और कोई विवशता थी, पता नहीं पर वह बार बार इधर उधर देख रही थी और कुछ क्षणोपरांत धीरे-धीरे सरकते – सरकते मेरे बगल में आ गई।........
……. मनोज
अपनी भावनाएं, और विचार बांट सकूं। 

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद, सर !
    वैसे भी आप का आशीर्वाद तो हमेशा ही मिला है मुझे.............बहुत बहुत आभारी हूँ आपका !

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  2. बहुत-बहुत धन्यवाद शास्त्री जी। अंदाज़, चर्चा का, बहुत ही अच्छा है।

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  3. विस्तृत और बढ़िया चर्चा....बहुत से नए लिंक्स मिले ....आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. शास्त्री जी! बहुत ही अच्छी चर्चा संजोई आपने....
    आभार्!

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  5. विस्तृत और बढ़िया चर्चा....
    बहुत बहुत आभार्!

    जवाब देंहटाएं
  6. बड़े क़रीने से सजी है आज की चर्चा भी. आपके कड़े परिश्रम को प्रणाम.

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुते सिलेसिलेवार चर्चा की अहि आपने. बधाई.

    रामराम.

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  8. इस विस्तृत चर्चा को पढ़कर आनंद आ गया ।
    आभार शास्त्री जी ।

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  9. good work,go ahead.PLEASE VISIT OUR SOCIAL MOVEMENT WEBSITE-http://www.hprdindia.org AND JOIN THIS MOVEMENT AS A FOUNDER MEMBER.

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  10. मेरे चिट्ठे की चर्चा के लिए आभार।
    घुघूतीबासूती

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  11. बहुत अच्‍छी चर्चा ..... Mujhe shaamil mkarne ka bahut bahut shukriya ...

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