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शनिवार, मई 01, 2010

मांगने वाला कितना छोटा हो जाता है" (चर्चा मंच-139)



HCL में एक कंप्यूटर इंजिनियर के तौर पर पांच साल काम कर चुके नीलाभ वर्मा का उद्देश्य उन लोगों की मदद करना है जो अपनी मातृभाषा में तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना चाहते है. वे एक बहुत ही सरस एवं सरल भाषा मेंडिजिटल सर्किट के बारे में जानकारी दे रहे हैं। बताते हैं कि डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक, ऐसी प्रणाली है जो संकेतों को, एक निरंतर रेंज के बजाए एक असतत स्तर के रूप में दर्शाती है. 
डिजिटल सर्किट की तुलना एनालॉग सर्किट से करने से इसका एक लाभ है शोर के कारण बिना विघटन के सिग्नल को डिजिटली दर्शाया जा सकता है. 
कंप्यूटर नियंत्रित डिजिटल सिस्टम को सॉफ्टवेयर द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है जो कि हार्डवेयर को बदले बिना नए फंक्शन को जोड़ने की अनुमति देता है. और अक्सर इसे अद्यतन उत्पाद के सॉफ्टवेयर के द्वारा कारखाने के बाहर किया जा सकता है. 
सूचना का भंडारण एनालॉग की तुलना में डिजिटल प्रणाली में आसानी से कर सकते हैं. 
और भी ऐसी कई महत्वपूर्ण तकनीकी जानकारी से भरी इस पोस्ट को पढ़कर मुझ जैसे नौन टेकनिकल आदमी को भी लगा कि यह एक संग्रहणीय पोस्ट है, आप भी पढकर देखिए और इस ब्लॉगर की हौसला आफ़ज़ाई कीजिए जोतकनीकी ज्ञान हिंदी में दे रहा है।
imageपी.सी.गोदियाल जी एक आप-बीती सुना रहे हैं। हल्के-फुल्के जाम में उनकी गाडी करीब ३५-४० की स्पीड पर थी, कि अचानक उन्हें लगा कि उनके दाहिने पैर में कुछ हलचल हो रही है। करीब तीन मिनट बाद फिर वही हलचल हुई, और अचानक किसी जीव के उनके घुटने की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने का अहसास हुआ ! इस अचानक आई मुसीबत से कैसे निपटू यही सोच ही रहे थे कि उस जीव ने अपनी कंटीली टांगों से अपनी गति बढ़ा दी ! आव देखा न ताव, पैंट के बाहर से ही अपनी जांघ पर जनाव को धर धबोचे! मगर इस कुश्ती के दरमियान ध्यान बंट जाने से अपने आगे चल रही मारुती ८०० के बम्पर को हल्के से ठोक दिया ! 
अब आगे क्या हुआ आप ख़ुद ही पढ़ लीजिए। हां खुदा न करे , अगर यह कॉकरोच आपके घुस गया होता तो आप क्या करते ? गाड़ी चलाते वक़्त ऐसा वाक़या बड़ा ख़तरनाक होता है।

ब्लोगोत्सव-२०१० : आज का दिन कुछ खास है!

imageआज मिलिए एक ऐसे मनीषी से, जिनकी साहित्य साधना विगत छ: सात दशक से हिंदी साहित्य के प्रकाश-पथ पर आगे-आगे चल रही है और सारे स्वर-व्यंजन के साथ समय पीछे-पीछे चल रहा है ...! 
सांस्कृतिक शहर कोलकाता के हिन्दी के श्रेष्ठ गद्यशिल्पी पं० हजारी प्रसाद द्विवेदी के एक साधक शिष्य वर्षों से साहित्य साधना में लीन है....नाम है कृष्ण बिहारी मिश्र। पढ़िए उन्के विचार और पूरा साक्षात्कार।
वंदना जी की क्षणिकाएं पढ़िए 
नज़्म बना मुझे 

image
कागज़ पर उतार मुझे 
ख्वाहिश बना मुझे 
नज़रों में बसा मुझे 
तेरी चाहत का सिला बन जाऊँ 
बस एक बार पुकार मुझे 
*** *** 
ख्वाबों के सूखे दरख्तों पर 
आशियाँ बनाया नहीं जाता 
हर चाहने वाली सूरत को 
दिल का दरवाज़ा दिखाया नहीं जाता
राजभाषा हिंदी पर मिलिए आचार्य रुद्रट से काव्य शास्त्र पर चर्चा के अंतर्गत। 
काव्यशास्त्र के इतिहास में आचार्य वामन के बाद प्रसिद्ध आचार्य रुद्रट का नाम आता है। इनका एक नाम शतानन्द भी है। इस संदर्भ में आचार्य रुद्रट के एक टीकाकार ने इन्हीं का एक श्लोक उद्धृत किया हैः- 
शतानन्दपराख्येन भट्टवामुकसूनुना। 
साधितं रुद्रटेनेदं समाजा धीनतां हितम्।। 
आचार्य रुद्रट नौ रसों के स्थान पर दस रस मानते हैं। दसवें रस को ‘प्रेयरस’ के नाम से इन्होंने अभिहित किया है।
शोभना चौरे जी की अभिव्यक्ति पढ़िए गाजर घासकेimageमाध्यम से 
वो तो फैलती गई 
और पूरे बगीचे 
को लील गई 
खुश्की दे 
सो अलग | 
हर हरी चीज, 
सुकून 
नहीं देती ? 
ये जाना 
तब से ! 
मेरे अहं का 
विरोध करती हूँ 
तो अलग 
बैठा दी जाती हूँ 
और 
मेरे अहं का 
समर्थन 
करती हूँ 
तो 
गाजर घास 
बन जाती हूँ |
संतोष कुमार "प्यासा" की एक अच्छी, वैचारिक, चिन्तनीय और विचारोत्तेजक व्यंग के जरिये ,यथार्थ का चित्रण करती करती हुई आपके इस अच्छी संदेशात्मक और प्रेरक कविताप्रगति है या पतन? 
मानते हैं हर राह में तुमने सफलता पाई 
आसानीसे निपटलिया प्रगति पथपर जोभी मुश्किलआई 
नित नव विषय पर तुमने आविष्कार किया 
जड़ ज्ञान का तुमने खूब प्रचार किया 
मानते है चद्रमा परभी तुम विजय पताका फहरा आए 
पर शायद भूल गए विज्ञानं कितना व्याल है 
इसका वास्तविक रूप कितना विकराल है 
जरा सोंचो और बताओ की यह प्रगति है या पतन ? 
क्या सिर्फ़ इसी लिए है यह जीवन ? 
भूल गए हो ऋषि मुनियों के पवित्र वचन 
क्या करते हो कभी यम् नियम आशन और ब्रह्मचर्य का पालन ? 
क्या इतना कर के भी मिति है तुम्हारी आरजू क्या बुझी है तुम्हारी "प्यास" ? 
सभ्यता संस्कृति साहित्य आराधना भी है कुछ 
क्या तुम्हे इस बात का है अहसास ???? 
जरा सोंचो और बताओ की यह प्रगति है या पतन
हिमांशु पन्त कहते हैं “कुछ ग़ज़लों के बाद अब फिर से अपने पुराने ढर्रे पे लौट आया हूँ.. हाँ जी मेरे गीत मेरे दर्द.. असल मे जब आपके बहुत से बिखरे अरमान होते हैं तो उनको ना पा पाने का दर्द ही उन अरमानों को भुला देता है..” 
मधुशाला की मेजों पे, 
छलकते हुए कुछ गिलास, 
बहके से चंद मायूस लोग, 
और कुछ टूटी हुई आस, 
ऐसे ही बुझ जाती है अब, 
मेरे सूखे ह्रदय की प्यास. 
यादों की परछाइयों से, 
डरती हुई हर एक सांझ, 
नित्य रात के अंधेरों मे, 
घुटती हुई हर एक सांस, 
ऐसे ही बुझ जाती है अब, 
मेरे सूखे ह्रदय की प्यास.
राजकुमार ग्वालानी प्रस्तुत करते हैं पूरा होगा हमारा imageसपना
तेरी यादें साथ लिए जा रहे हैं हम 
करना न दिल से प्यार कभी कम।। 
हम तुम्हें दिल में बसाए रखेंगे हरदम 
तुम भी अपने दिल में हमें रखना सनम।। 
हमने जो खाई है प्यार की कसम 
याद रखना उसे मेरी जान हरदम।। 
कभी न कोई ऐसा काम करना 
प्यार को न अपने बदनाम करना।। 
बस तुम थोड़ा सा इंतजार करना 
पूरा होगा एक दिन हमारा सपना ।।
गत वर्ष आज ही के दिन डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने “शब्दों का दंगल” शुरू किया था:इस रचना के साथ- 
image
शब्दों के हथियार संभालो, 
सपना अब साकार हो गया। 
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, 
दंगल अब तैयार हो गया।। 
करो वन्दना सरस्वती की, 
रवि ने उजियारा फैलाया, 
नई-पुरानी रचना लाओ, 
रात गयी अब दिन है आया, 
गद्य-पद्य लेखनकारी में, 
शामिल यह परिवार हो गया। 
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, 
दंगल अब तैयार हो गया।।

आदत मुस्कुराने पर आमीन प्रस्तुत करते हैं आखिर,देश को क्या देंगे ?

imageकेतन,
केतन देसाई अध्यक्ष 
मेडिकल कोंसिल ऑफ़ इंडिया 
सीबीआई की रेड में 
घर से मिले 1800 करोड़ नगद 
डेढ़ टन सोना 
उम्मीद कई और करोड़ों की 
करोड़ों लेकर लगता था मुहर 
मेडिकल कोलेजों की मान्यता पर 
देशभर में खुले ऐसे संस्थान 
आखिर, देश को क्या देंगे? 
आप जानते हैं और मैं भी
विचार मिमांसा पर पढ़िए रश्मि प्रभा जी की कविता खैराती में खुद्दारी! 
खुद्दारी का पैबंद लगाया है 
खुद्दारी की इतनी चिप्पियाँ हैं 
कि लोग हुनर की दाद देने लगे हैं 
ये तो धागों की कमी थी 
तो जब जहाँ जैसा मिला 
उससे रफू कर दिया


My Photoएक मई.... मजदूर दिवस. श्रम की आराधना का दिन. पूजा का दिन. मई दिवस के अवसर पर पढिए गिरीश पंकज जी कि ग़ज़लमेहनत और पसीना। 
मुफ्तखोर सेठों का हँसना उनका क्या 
मेहनत और पसीना अपना उनका क्या 
हमने गढ़ी इमारत लेकिन क्या बोलें 
फुटपाथों पर हमको रहना उनका क्या 
दिन भर तोड़ा पत्थर लेकिन पाया क्या 
टूटन, कुंठा, आँसू बहना उनका क्या 
दौलत उनके पास पडी है शोषण की 
अपने हिस्से केवल छलना उनका क्या 
किसी ने बहुत पहले कहा था कि भारत के दुश्मन बहुत ही किस्मत वाले हैं इन्हें सिर्फ़ हथियार ही देना होता है , गद्दार नहीं ढूंढने पडते , जिनके हाथों में हथियार देकर देश को तोडने की साजिश रची जाती है । अभी हाल ही में फ़िर से एक बार माधुरी गुप्ता की गद्दारी के खुलासे ने यही बात सिद्ध कर दी। 
अजौ कुमार झा कहते हैं कि इस घटना ने आम जनता के मन में बहुत से सवाल खडे कर दिए हैं ।


मेरा फोटोशर्ट का सबक पढिए 
राजेश उत्‍साही का आलेख। 
इस बार जब यात्रा से लौटा तो सबसे पहले मैंने अपनी एक शर्ट के बटन दुरुस्त किए। यह शर्ट मैं घर में भी पहनता हूं और सफर में ट्रेन में सोते समय। इस शर्ट ने मुझे इस बार शर्मिन्दा कर दिया। पर इसने कुछ सवाल भी उठाए जो हमारी शिक्षा या संस्कार की तरफ भी इशारा करते हैं। कुछ दिनों पहले इस शर्ट का बीच का एक बटन टूट गया था।

"स्वयंसिद्धा" 
मेरा फोटोYogesh Sharma द्वारा रचित एक विचारोत्तेजक कविता।

जब से मचा बवंडर,तूफ़ान छाया जबसे,मल्लाह ने था छोड़ा,किनारे पे उसको तबसे, बेजान सी ज़मीं पर, औँधे वो जा गिरी थी, मुहं रेत में छिपाये, असहाय सी पड़ी थी, उम्मीद एक ही थी,मांझी पलट के आये, बाहों का दे सहारा,सागर में फिर ले जाये, मौंजे उफन रही

सपने शांति के पाले : विमलकुमार हेडा

नवगीत की पाठशाला
में प्रस्तुत है एक बेहतरीन नव गीत सपने शांति के पाले 
घाव गहरे हैं, 
बम विस्फोटों के छाले। 
फिर भी हमने, 
सपने शांति के पाले। 
चाहे जाए बाज़ार या शहर, 
या करे कोई कहीं भी सफ़र, 
हर पल रहती चौकन्नी नज़र, 
कहीं से न हो हमले की ख़बर, 
ढा न जाए कोई सिरफिरा क़हर। 
दहशतगर्दी के इस माहौल में - 
कैसे कोई 
शब्दों को गीतों में ढाले।

भारतीय स्त्रियों की परम्परा तो कुछ और ही है ! 
My Photoतीसरी आंख पर डा. मोहन लाल गुप्त बताते हैं कि 
उसे अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेना था! उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन चाहिये था! वह किसी पाकिस्तानी गुप्तचर से प्रेम करती थी! ये वे तीन कारण हैं जो इस्लामाबाद स्थित भारतीय दूतावास में नियुक्त भारतीय महिला राजनयिक ने एक–एक करके बताये हैं जिनके लिये उसने अपने देश की गुप्त सूचनायें शत्रुओं के हाथ में बेच दीं! ये सारे उत्तर एक ही ओर संकेत करते हैं कि यह महिला राजनयिक अत्यंत महत्वाकांक्षी है और दूसरों की अपेक्षा अधिक महत्व प्राप्त करने के लिये उसने भारत की सूचनायें शत्रुओं को दी हैं। 
प्रेम! राष्ट्रभक्ति! और बदला! भावनाओं के इस त्रिकोण में भारतीय स्त्रियों की परम्परा अलग रही है। राजस्थान के इतिहास की तीन घटनायें इस संदर्भ में उल्लेखनीय हैं।

सुवासित वक़्त

रश्मि प्रभा..जी की एक बेहतरीन रचना 

पतझड़ में गिरे शब्द
फिर से उग आए हैं
पूरे दरख़्त भर जायेंगे
फिर मैं लिखूंगी
पतझड़ और बसंत
शब्दों के
तो आते-जाते ही रहते हैं
जब सबकुछ वीरान होता है
तो सोच भी वीरान हो जाती है
सिसकियों के बीच बहते आंसुओं से
कोंपले कब फूट पड़ती हैं
पता भी नहीं चलता
मन की दरख्तों से
फिर कोई कहता है
कुछ लिखो
कुछ बुनो
ताकि गए पंछी लौट आएँ
घोंसला फिर बना लें
शब्दों के आदान-प्रदान के कलरव से
खाली वक़्त सुवासित हो जाये

और अंत में ….

रहिमन याचकता जहै, बड़े छोटे खै जात । 
नारायन हूं को भयो बावन आंगुर गात ।। 
पौराणिक दृष्टांत का एक सटीक उदाहरण देते हुए रहीम कहते हैं मांगने वाला कितना छोटा हो जाता है, विराट नारायण भी मांगते समय वामन हो जाते हैं ।

 टिप्पणियाँ:

रावेंद्रकुमार रवि,  May 1, 2010 1:19 AM  
बहुत बढ़िया चर्चा! 
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बहुत सही ढंग से चयनित लिंक लिए गए हैं!

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मेरा मन मुस्काया -
झिलमिल करते सजे सितारे! 
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संपादक : सरस पायस
शिवम् मिश्रा,  May 1, 2010 1:51 AM  
एक उम्दा चर्चा के लिए आभार !
sangeeta swarup,  May 1, 2010 1:52 PM  
बहुत बढ़िया लिंक दिए हैं..उम्दा चर्चा रही मनोज जी..
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक,  May 1, 2010 3:43 PM  
बहुत बढ़िया और परिश्रम से तैयार की गई चर्चा के लिए मनोज कुमार जी को बधाई!
आपकी चर्चा का शैड्यूल 3-40 अपराह्न कर दिया गया है!

5 टिप्‍पणियां:

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