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बुधवार, जून 30, 2010

“चर्चा मंच” (200वाँ अंक)

आप सबके स्नेह और आशीष से
"चर्चा मंच" सतत् रूप से चलते हुए
आज अपनी 200वीं पायदान पर
पहुँच गया है!
भविष्य में भी आपका प्यार
हमारे चर्चाकार साथियों को
मिलता रहेगा!
इन्हीं कामनाओं के साथ-
आपका सद्-भावी-
 डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक 
www.blogvani.comब्लॉगवाणी आज न जाने किस समस्या से जूझ रहा है? कुछ दिनों पहले भाई समीर लाल जी ने किसी पोस्ट पर कमेंट किया था कि सिरिल के पिता मैथिली जी अस्वस्थ हैं! उसके बाद कोई सूचना नही मिली!
सभी ब्लॉगर हृदय से यह कामना करते हैं कि आदरणीय मैथिली शरण गुप्त जी जल्दी से स्वस्थ हों और “ब्लॉगवाणी” फिर से अपने जीवन्तरूप में हम सबके मध्य में आये!
ब्लॉगवाणी के ठप्प हो जाने से सबसे कठिन समस्या का सामना करना पड़ रहा है चर्चाकारों को! क्योंकि ब्लॉगवाणी भारतीय ब्लॉगों का सबसे बढ़ा अग्रीगेटर रहा है!
इस समय हम लोग निर्भर हैं ब्लॉग-जगत के एक बड़े और तकनीकीरूप से  महत्वपूर्ण एग्रीगेटर “चिट्ठा-जगत्” पर! चिट्ठाजगत“चिट्ठा-जगत्” पर सक्रियता क्रमांक के साथ बहुत से तकनीकी विजेट लगे होने के कारण यह देर से खुल पाता है! एक पृष्ठ पर मात्र 25 ही पोस्ट होती हैं! यदि चिट्ठाजगत के स्वामियों से अनुरोध भी करें कि अक पृष्ठ  पर 50 पोस्ट कर दीजिए तो मेरे विचार से दिक्कत यह हो जायेगी कि 25 पोस्ट खुलनें में ही जब समय लग जाता है तो 50 पोस्ट खुलने में तो और भी ज्यादा समय लगेगा!
“चिट्ठा-जगत्” का आभार!
“ब्लॉगवाणी” का इन्तज़ार!!
Albelakhatri.com

क्यों री रचना ? कहाँ हैं तुम्हारे सब नापसन्दीलाल ? - क्यों री रचना ? क्या हुआ ? कहाँ गये तुम्हारे सब नापसंदीलाल ? ब्लोगवाणी के साये में ही जी रहे थे क्या ? ब्लोगवाणी के अभाव में मर गये क्या सब ? बस ? इतन...
आइए  वर्तमान परिवेश को
दृष्टिगत् रखते हुए बिना किसी भूमिका के
आपको कुछ अद्यतन पोस्टों की
ओर ले चलता हूँ-
बुरा भला

इंतज़ार ...इंतज़ार ...इंतज़ार और इंतज़ार - 40 साल से अटका पड़ा है लोकपाल बिल - लोकपाल विधेयक पिछले 40 साल से संसद में पारित नहीं हो सका है और राजनीतिक पार्टियां इसके लिए एक दूसरे पर दोषारोपण कर रही हैं। कर्नाटक के मशहूर लोकायुक्त एन ...
उल्टा चश्मा

pdf file को words में बदले | - pdf file को words में आप इस छोटे से सॉफ्टवेर की मदद से बहुत ही आसानी से बदल सकते है | डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करे |
' हया '

मेरे पड़ौसी - पेड़, परिंदे और पुलिस - जी हाँ, मैं पेड़ों की, परिंदों की और पुलिस की पड़ौसन हूँ, दूसरे अल्फाज़ में ये सब मेरे पड़ौसी हैं. कैसे? वो ऐसे कि ओशिवरा पुलिस स्टेशन के ठीक पीछे मेरा घर ...
Albelakhatri.com

ये अदालत है ! अदालत है !! अदालत है !!! - चार अक्षर का एक शब्द जिसके चारों ओर चलती है चाण्डाल चौकड़ी और बीच में पलती है वकालत ! उस शब्द को कहते हैं अदालत ! अदालत !! अदालत !!! अ का आमन्त्रण ...
Gyan Darpan ज्ञान दर्पण

याद आते है दूरदर्शन के वे दिन - एक जमाना था जब दूरदर्शन के अलावा कोई दूसरा टी.वी. चेनल नहीं था और कुछ थे भी तो वे आम आदमी की पहुँच से दूर थे |आम आदमी को तो टी.वी पर प्रोग्राम देखने के लिए...

काव्य मंजूषा

तुम्हारा नाम लिखूँ...! - कभी सोचा ! तुम्हारा नाम लिखूँ नहीं भेजा कभी जिसको वो पैगाम लिखूँ ! जो यादें आकर के इन्हें रुला जाती हैं कहो तो इन आँखों को छलकता जाम लिखूँ ! लिए फि...
कर्मनाशा

रोहतांग पर क्षण भर (से थोड़ा अधिक) - *आज से बहुप्रतीक्षित रोहतांग टनल का निर्माण कार्य समारोहपूर्वक शुरू हो गया। यह सबसे लम्बी सुरंग होगी जो बनने जा रही है। लक्ष्य है कि २०१५ पर यह काम पूरा क...
वर्षा

तो क्या ख्याल है - एक ख्याल आया अभी-अभी। नौकरी की उकताहट, मन में क्रिएटिविटी के उडते बुलबलों के बीच। ख्याल की शुरुआत यहां से हुई कि मैं जहां रहती हूं पास में ही एक शॉपिंग क...
अविनाश वाचस्पति

संभवत: पूर्वघोषित आगरा-जयपुर ब्‍लॉगर मिलन हुआ ही नहीं होता (अविनाश वाचस्‍पति) - 18 जून 2010 की रात को अपने *भानजे वरुण गुप्‍ता के विवाहोपरांत आयोजित स्‍वागत-भोज* से लौटने में देरी के कारण सोना कम ही हो सका। पहले से तय कार्यक्रम के अन...
शरद कोकास

अभिनय करना अर्थात एक जन्म मे दूसरे जन्म को जीना है - रंगमंच की दुनिया इस दिखाई देने वाली दुनिया के भीतर होते हुए भी न दिखाई देने वाली एक अलग दुनिया होती है । अगर आपको रंगमंच के कलाकारों का जीवन ...
कबीरा खडा़ बाज़ार में

लो क सं घ र्ष !: भोपाल मामले से कुछ सीख - पूर्व मुख्य न्यायधीश उच्चतम न्यायालय - इस सम्बंध में कोर्ट के निर्णय से ऐसा लगता है कि भारत अब भी विक्टोरियन साम्राज्यवादी, सामन्ती दौर में है, और जो सोशलिस्ट सपनों से बहुत दूर है। उन वर्षों...
घुघूतीबासूती
  ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना.............................घुघूती बासूती - बहुत दिन से ब्लॉगवाणी चुप है। अपना कोई प्रिय चुप हो जाए तो कुछ समय तक तो हम यह सोचे रहते हैं कि व्यस्त होगा, कोई समस्या होगी, कुछ समय बाद स्वयं बोलने लगेगा...
simte lamhen 
सिम्बा और छुटकी.. - यह एक सच्चा किस्सा है. एक छोटी लडकी और उसका कुत्ता सिम्बा का ,जो German shepherd जाती का था. यह लडकी अपने दादा दादी ,माता, पिता तथा भाई बहनों समेत उनके खे...
मनोज
    -   देखो बह न जाएं कहीं ये अश्क के मोती - देखो बह न जाएं कहीं ये अश्क के मोती [image: मेरा फोटो]हरीश प्रकाश गुप्त देखो बह न जाएं कहीं ये अश्क के मोती। उद्वेगों के समन्दर में व्यथाओं का हु...

JAGO HINDU JAGO
उमर अबदुल्ला द्वारा सुरक्षाबलों का खुल कर विरोध करने से उतसाहित मुसलिम आलगाववादियों ने कई जगह सुरक्षाबलों पर हमला किया। -अबदुल्ला परिवार वो परिवार है जिसने नेहरू परिवार के सहयोग से कशमीर घाटी से हिन्दूओं का नमोनिशान मिटाया। अब जब कशमीरघाटी में हिन्दूओं की लगभग हर सम्मपति पर म..
मेरे मन की  
मित्र के साथ मुकदमा............................... जीत गई मै !!...............................(पक्का पता नही है ).......... - माननीय जज साहब , मुझ पर एक मित्र ----"*ब्लॉग* लिखने का *"ज्ञान"* उन्होंने ही दिया है,*" और फ़िर हमारा तो स्वभाव ही ऐसा है कि किसी का आभार व्यक्त करना हो तो...
इश्क-प्रीत-लव   
जीभ पलट गीत : पीतल के पतीले में पपीता पीला पीला - [image: http://www.abhivyakti-hindi.org/ss/images/papita.jpg] दो:- पीतल के पतीले में पपीता पीला पीला एक मदारी नेक मदारी आया लकड़ी टेक मदारी ढीला ढाला ..
जज़्बात  
निश्चल; निर्विकार मैं बजूका ...... - *[image: image]** * *मुझे तैनात किया गया* *फसलों को नष्ट करने वाले* *अनाहूत पशुओं से रक्षा के लिये;* *मुझे तैनात किया गया* *खेतों के ऊपजाऊपन को चुराने...
ललितडॉटकॉम  
जातिगत आधार पर जनगणना -वंचित को भी हक !!! - हमारा भारतीय समाज वैदिक काल में वर्णों के आधार पर बंटा हुआ था। लेकिन उस काल में वर्ण में परिवर्तन होता था। यह स्थाई नहीं थे। कार्य के आधार पर वर्ण परिवर्तन...
वीर बहुटी
- *श्री प्राण शर्मा जी की गज़लें* बहुत दिन हुये प्राण भाई साहिब की पुस्तक "गज़ल कहता हूँ" मिली। मगर कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते उस पर कुछ कह नही सकी। गज़ल ...
हास्यफुहार

गड्ढा - गड्ढा *एक दिन सबेरे-सबेरे खदेरन अपने मुहल्ले से बाहर एक गड्ढा खोद रहा था। उसी समय फाटक बाबू नित्य टहलने के क्रम में उस जगह से गुज़रे। **खदेरन को गड्ढा...
सरस पायस

बरखा रानी, आओ ना : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत - बरखा रानी, आओ ना! --------------------------------------------------------- झूम-झामकर, धूमधाम से हमको गले लगाओ ना! बरखा रानी, आओ ना! परेशान होकर गरमी सें भ...
सुज्ञ
    ईश्वर का पूनर्गठन!!!! - *आज अगर आपको अपनी धारणा के अनुसार ईश्वर को गढने का अवसर मिले तो आप कैसा ईश्वर गढेंगे? * ईश्वर की परिकल्पना तर्कपूर्ण,एवं मानव हीतार्थ है या नहिं? यथार्थ..
मानवीय सरोकार  
संस्कार-गीत -  जन्म-दिन, तीज-त्योहार, पदोन्ति, परीक्षा में सफलता आदि अवसरों पर अपने यहाँ बधाई संदेशों के आदान-प्रदान करने की बहुत पुरानी परंपरा रही है। आजकल शादी की वर्षगा...
Unmanaa
    दो बूँद - मेरे प्राणों की पीड़ा दो भागों में बँट कर के, बन कर आँसू छलक पड़ी है दो बूँदों में ढल के ! या आशा और निराशा के दो फल बन स्वयम् फले ये, अपनी गाथा को कहने गालों..
ज्योतिष की सार्थकता

क्या वास्तु निर्माण के जरिए भाग्य में बदलाव संभव है? - हमारी भारतीय हिन्दू संस्कृ्ति अपने आप में एक ऎसी विलक्षण संस्कृ्ति रही है,जिसका प्रत्येक सिद्धान्त ज्ञान-विज्ञान के किसी न किसी विषय से संबंधित हैं और जिसक...
अपने पिता की खोज कीजिये
| : लो क सं घ र्ष ! 
कम्पनियाँ हमेशा ग्राहक की जेब पर नज़र रखती है तथा नये-नये शिगूफ़े खिलाती हैं। खास तौर से युवा वर्ग की भावनाओं को भुनाती हैं। ‘वैलेनटाइन डे‘ के बाद अब ‘फादर्स डे‘ का क्रेज पैदा कर रहीं हैं। विज्ञान को आधार बना कर यह उकसावां दे रही हैं कि यदि असली पिता को पहचानना है तो डी0एन0ए0 टेस्ट कराइये। दिल्ली स्थित कम्पनी ‘इडियन बायोसेंसेस‘ तथा एक अन्य कम्पनी ‘पेटेरनिटी टेस्ट इंडिया‘ ने पितृत्व-परीक्षण के लिये 25 प्रतिशत तक डिस्काउंट देने की घोषणा की है। यह बाज़ार अब तेज़ी से बढ़ रहा है। विज्ञान के कुछ आविष ..
जिलत
| Author: PASHA | Source: Shayari, ghazals, nazms
तमाम एतिहात हम से किये गये, फिर भी दोस्त अपने राह चले गये.
मौन निमंत्रण मेरा.........
| Author: DR. PAWAN K MISHRA | Source: PACHHUA PAWAN
  मधुवन को भीनी खुशबू से
ताजा गुफ्तगू
Jun 29, 2010 | Author: सूर्य गोयल | Source: समाचार:- एक पहलु यह भी
*
सानिया नहीं सायना कहिये!!!!
Author: RAJNISH PARIHAR | Source: ये दुनिया है....
जब से सानिया मिर्ज़ा ने शादी करके खेल प्रेमियों का दिल तोडा है…
विधा दो प्रकार की होती है
  | Author: राजीव कुमार कुलश्रेष्ठ | Source: सतगुरु श्री शिवानन्द जी महाराज...परमहँस
विधा दो प्रकार की होती है । 1--अपरा--कहना , सुनना , देखना , लिखना , पढना , आदि भौतिक तत्वो के मध्य सब कुछ आदि । 2-- परा-- न वाणी के माध्यम से कही जाती है । न इन्द्रियों द्वारा देखी कही सुनी जाती है । और भौतिक से संगत नहीं करती । इसे " सहज योग " राज योग " राज विधा " ब्रह्म विधा " या गुहियम भेद भी कहा गया है । जो पराविधा का अभ्यास करता है । वह ग्यान तथा विग्यान दोनों को पाकर । विग्यान के परे जाकर परमात्मा का स्वरूप अनुभव करता है । जो अंतकरणः के सबसे भीतरी स्थान के समस्त ग्यान का आदिकरण है । ...
अन्त में दे्खिए ये कार्टून्स- 

कार्टून:- एक और वारेन एंडरसन........


Posted by chandrashekhar HADA


कार्टून : युवराज ने अफरीदी पर किताब लिखी थी क्या ??
 
Source: Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA
बामुलाहिजा >> Cartoon By Kirtish Bhatt
नमस्कार!
अगले बुधवार फिर भेंट होगी!



यह चर्चा पिछले बृहस्पतिवार को भी
कुछ देर के लिए प्रकाशित की गई थी!
लेकिन इसके तुरन्त बाद 
हमारे प्रिय साथी ने
अपनी चर्चा लगा दी थी !
उनकी भावनाएँ आहत न हों,
इसलिए मैंने उस समय 
यह चर्चा हटा दी थी!
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मैं अपने बुधवार के "चर्चा मंच"
के साथ ही
"श्री रावेंद्रकुमार रवि" द्वारा तैयार की गई,
यह चर्चा भी लगा रहा हूँ!
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आज "चर्चा मंच" पर हम आपको
एक और प्रतिभाशाली व्यक्तित्त्व से मिलवा रहे हैं!
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जिसका नाम है : पवन टून!
इनकी प्रतिभा का तेज तो इनके चेहरे से ही झलकता है!
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उनके कार्टूनों को देखकर आप उनकी प्रतिभा के क़ायल हो जाएँगे!
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सभी कार्टूनों पर उनके ब्लॉग के लिंक लगे हुए हैं!

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with my AIDS-TOON charactor
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पवन जी पटना (बिहार, भारत) में
दैनिक हिंदुस्तान अख़बार के लिए कार्टून बनाते हैं!
अब तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में
वे कार्टूनों को लेकर कई प्रयोग करते रहे हैं,
जो जन-जागरण से संबंधित हैं!
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मंगलवार, जून 29, 2010

साप्ताहिक काव्य मंच - ६ ( संगीता स्वरुप ) चर्चा मंच - 199

नमस्कार…आज है मंगलवार..काव्य प्रेमियों को काव्य चर्चा का था इंतज़ार…तो मैं ले आई हूँ कविताओं की भरमार ..पढ़ कर दीजिए आप अपने सुविचार…आज के इस मंच पर हर रंग की कविताओं का समायोजन है…कोशिश  है कि आपकी उम्मीदों पर खरी उतर सकूँ….इस मंच से उन सभी पाठकों को धन्यवाद देना चाहती हूँ जो नए लिंक्स पर पहुँच कर अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं.मेरे इस प्रयास की सार्थकता को बल मिलता है…
तो आज की चर्चा प्रारम्भ करते हैं घर की परिभाषा से….
 My Photoराज कुमार सोनी जी    बिगुल »  बजा कर  बता रहे हैं कि उनको कैसा      घर   चाहिए…

मकान बिकाऊ है
बस यही विज्ञापन देखकर
नहीं खरीदना है मकान
मुझे तो घर चाहिए... घर।

घर कि-
जिसमें कुछ जोड़ी सुंदर आंखे
करती हो मेरा इन्तजार
मेरा फोटोजितनी तीक्ष्ण धार इनके लेखों में है उतनी ही तेज धार इस व्यंग कविता में ….

झा जी कहिन   कि

सीता की दुविधा ऐसी जानी , हाय कैसी अटकी ब्लोगवाणी
बात नहीं ये बडी पुरानी ,
सुनिए जरा सब ज्ञानी ध्यानी ,


मणि रत्नम ने बुनी कहानी ,
राम सीता रावण की बानी
My Photoकुछ शब्द सजाये हैं मैंने एक एक कर..
पर देखिये कि कैसे महका रखा है अपना चमन…

तुम्हारी खुशबु..

कहा था ना तुमसे,
बाँहों में भर लो मुझे,
बिना मिले ही चली गईं तुम,
तुम्हारे कहे मुताबिक़,
रोज़ दाना डालता हूँ कबूतरों को,


मेरा फोटोमुक्ताकाश..  पर आनंद वर्धन ओझा जी का कहना है कि  
सारी हदें बढ़ने लगी हैं ..
गुमशुदा लाशें लहरों से ये कहने लगी हैं --
क्यों हवाएं आज परेशान-सी रहने लगी हैं
My Photoअशोक व्यास जी धरती माँ की बताई गोपनीय बात कह रहे हैं
सिर्फ अपने लिए जीने में सार नहीं है

लहर दर लहर
सागर भेज रहा है सीढियां
चलो, उठो गगन तक जाओ
हहरा कर
सुना रहा है सन्देश
जो छूट नहीं सकता, उसे अपनाओ
My Photoरघुनन्दन प्रसाद जी अपने गीत में कह रहे हैं कि इतिहास के चक्कर में भूगोल गँवा बैठे हैं    तुहिन   पर  आनंद लीजिए इस गीत   का …. 

इतिहास सवारे दुनियां का, अपना भूगोल गवां बैठे.
सुख दुःख में फर्क नहीं कोई, ऐसे मुकाम पर आ बैठे.
My Photo
सुधीर जी जीवन के पदचिन्ह » पर बता रहे हैं कि सबसे बड़ा शिल्पकार कौन है….


          नयनो से बड़ा होता कोई शिल्पकार नहीं




नयनो से बड़ा होता कोई शिल्पकार नहीं
गढ़ लेते हैं स्वप्न जिनका कोई आधार नहीं
My Photoसंवेदना संसार  में पढ़िए रंजना सिंह की कविता

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय !!!

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय,
मन मयूर उन्मत्त हो गया.
विदित हुआ मुझ में अनुपम सा,
सब कुछ प्रकृति प्रदत्त हो गया.
मेरा फोटोमुकेश कुमार सिन्हा जिंदगी की राहें  पर  दिल्ली की  खासियत बताते हुए कह रहे हैं कि 
ये दिल्ली है मेरी जान
ये दिल्ली है मेरी जान
चौड़ी सड़कें
फिर भी सरसराती
बी.एम.डब्लू.
के नीचे जाती मेहनतकश की जान




वाणी शर्मा गीत मेरे ....पर सन्देश दे रही हैं कि

मत रोको उन्हें ...उड़ने दो ...बहने दो .
मत रोको
उड़ने दो उन्हें
उन्मुक्त गगन में
मुक्त
निर्द्वंद्व , निर्भय , निरंकुश
छू आने दो व्योम के उस छोर को
जहाँ तलाश सकती हैं
वे अपना अस्तित्व
जान सकती हैं
अपने होने का मतलब ..
My Photo
Akanksha »  पर  आशाजी बता रही हैं कि क्या किया उन्होंने  
जब भी कोरा कागज देखा
..

जब भी कोरा कागज देखा ,
पत्र तुम्हें लिखना चाहा ,
लिखने के लिए स्याही न चुनी ,
आंसुओं में घुले काजल को चुना ,

My Photoलमहा -लमहा »  पर  प्रज्ञा जी खूबसूरत एहसासों को व्यक्त कर रही हैं    
आओ न  तुम पुल के पार
आओ ना तुम पुल के पार
जैसे हर हर नदी से होकर
आती छल छल धार
SDC11128


मनोज जी    मनोज  ब्लॉग पर  बता रहे हैं कि  क्या है बस उनका…..जानना है तो पढ़ें

… बस मेरा है!! 

मेरे उजालों ने
मुझको ही कैद किया
आपस की खुसर – पुसर
होता भयभीत मन

खामोश आवाज़

ब्लॉग पर अकस्मात द्वारा रची गयी गज़ल पढ़ें
याद....( ग़ज़ल)

इक रात यूँ ही बैठे तुम नज़र आई
कभी राहगीर तो कभी रहगुज़र बन आई
हम आज भी तेरा इंतज़ार करते हैं
तेरे हर ख्याल पे क्यों ये आँख भर आई

स्वार्थ   पर पढ़िए राकेश जी    द्वारा   रचित    कविता 

मन और देह के सत्य

देह का सत्य
हमेशा
मन का भी सत्य
नहीं होता।

जहाँ नजदीकी हो
और भय न हो खोने का
वहाँ पाने के लिये
मन पहले होता है,

"सच में

     पर ktheLeo की लिखी रचना पढ़िए

नसीब !

ज़िन्दगी अच्छी है,
पर अज़ीब है न?
जो बुरा है,
कितना लज़ीज़ है न?

गुनाह कर के भी वो सुकून से है,
अपना अपना नसीब है न?
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना \
ये  हैं साधना वेद जी की माताजी  ज्ञानवती सक्सेना (किरण ) ……… साधना जी की कृपा है जो उनकी सुन्दर रचनाएँ हम तक पहुंचा रही हैं…आज की कविता     जीवन पथ    में जीवन के हर रंग से परिचय कराया है…


जीवन है पथ , मैं पथिक सखे !
इस पथ में ममता की आँधी
चलती रहती अवदात सखे,
इस पथ में माया की सरिता
बहती रहती दिन रात सखे
My Photoअनामिका की सदाये. पर पढ़िए 
कर्मफल
आज अंतस के भीतर
कहीं गहरे में
झाँक कर देखती हूँ
और फिर
उस लौ तक पहुँचती हूँ
जो निरंतर जल रही है,
AAPKA HARDIK SAWAGAT HAIगोविन्द गोयल जी  नारदमुनि जी पर चुटकी लेते हुए कह रहे हैं सरकार का नियंत्रण है भी कहीं
पेट्रोल,डीजल
गैस पर अब
सरकारी नियंत्रण
नहीं,
My Photo
ऋतिका  के UnxploreDimensions... पर पढ़िए 
खामोश सूनी  चादर
दरमियान फ़ैल  गयी
"मेरे - तुम्हारे" के बेमानी  आयाम
बेवजह खींच  गयी
My Photoहम दिल्ली वाले तो चा रहे हैं की काश धूप बादल में छिप गयी होती  , और श्रद्धा जी  अपनी

भीगी ग़ज़ल  पर कह रही हैं कि 

-काश बदली से कभी धूप निकलती रहती

  काश बदली से कभी धूप निकलती रहती
ज़ीस्त उम्मीद के साए में ही पलती रहती
ज़ख्म कैसे भी हों भर जाते हैं रफ़्ता रफ़्ता
ज़िंदगी ठोकरें खा- खा के, संभलती रहती
अमृत  उपाध्याय  की    कशमकश   पर जानिये कि      लहरों से लौटकर.  कौन आ रहा है…

टकरा गए ख्वाब
इस बार,
समंदर की लहरों से
सीधे सीना तान कर,
चकनाचूर भी हो गए,
ना वक्त बचा पाया इन ख्वाबों को
ना परोस पाया कभी
मेरा फोटोशेफाली पांडे  नाम से इस हिंदी ब्लॉग जगत में कौन परिचित नहीं है…बहुत अच्छी व्यंगकार हैं ..

कुमाउँनी चेली    पर    माईकल जैक्सन की याद में  कुछ बयां कर रही हैं

दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको

मेरा फोटोउमड़त घुमड़त विचार  पर सूर्य कान्त जी  ने भूख पर नए अंदाज़ में विचार रखे हैं ..हर शख्स आज है भूखा
“भूख “ पर पढ़िए क्षणिकाएं
दिन रात की मेहनत, नहीं मिलता मेहनताना इतना
कि भर ले उदर अपना  खा के रूखा सूखा
गुजर रही है जिन्दगी, रह एक जून भूखा
मेरा फोटोमेरे जज्बात »  पर  के० एल० कोरी की गज़ल

फिर वो मौसम सुहाने याद आये


यूँ ही थे साथ जो गुजरे ज़माने याद आये
हमको फिर वो मौसम सुहाने याद आये
जख्मो की जब सौगात हुई नसीब अपने
तुम्हारे हाथों के मरहम पुराने याद आये

 काव्य मंजूषा    पर अदा जी   न जाने क्या क्या टटोल लेती हैं , और फिर कहती हैं कि   …. 

 

टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं ....

ख़यालों का आना-जाना था, किसी से किसी का सिला नहीं
ख़ुद पर ही कभी रंज हुए और कभी किसी से गिला नहीं
पत्तों का जब आग़ोश मिला, शबनमी नूर बस दमक उठा  
बदली में चाँद वो छुपा रहा, रौशन अब कोई काफ़िला नहीं
मेरा परिचय यहाँ भी है!लीजिए  पावस ऋतु का आगाज़  हो गया है… डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी की कविता पढ़िए और बादलों का स्वागत कीजिये  
“नभ में काले बादल छाये!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
बारिश का सन्देशा लाये!!  
नभ में काले बादल छाये!
IMG_1525
छम-छम बून्दें पड़ती जल की,  
ध्वनि होती कल-कल,छल-छल की,  
जग की प्यास बुझाने आये!  
नभ में काले बादल छाये! 

My Photo
चर्चा  के अंत में गिरीश पंकज  जी    साधो यह हिजड़ों का गाँव-१९   के माध्यम से सरकारी तंत्र  और राजनीति पर तीक्ष्ण  कटाक्ष कर रहे हैं ….

ये पट्ठा सरकारी है।
इसका चम्मच, उसका करछुल, बड़ी अजब बीमारी है।
बार-बार झुकता रहता है, यह पेटू-लाचारी है।
यहाँ झुका, फिर वहाँ झुकेगा, बड़ा बिज़ी अधिकारी है।
चर्चा की  समाप्ति पर एक नम्र निवेदन, कृपया इस मंच पर जिनकी रचनाएँ ली जाएँ वो आभार न प्रकट करें…आपने अच्छा लिखा इसलिए आप यहाँ हैं…और नए लोगों से परिचय कराना मेरा दायित्त्व है….अत: मेरे भार को न बढ़ाएं…आप सबकी आभारी रहूँगी…………तो चलिए फिर शुरू कीजिये अगले मंगलवार का इंतज़ार …….नमस्कार