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सोमवार, जून 07, 2010

कुछ नये कुछ पुराने रंग्………………………चर्चा मंच 176


चर्चाकारा -------------वन्दना गुप्ता
दोस्तो,
आज की चर्चा में कोशिश की है की ज्यादातर कुछ नए ब्लॉगर साथियों की पोस्ट ली जाएँ और सभी पोस्ट एक से बढ़कर एक हैं .............हालांकि पुराने साथियों को भी नहीं छोड़ सकती थी इसलिए उनका होना भी उतना ही जरूरी है .उम्मीद करती हूँ आपको ये प्रयास पसंद आएगा.

एक परित्यक्ता को सांत्वना

   क्यों सहती हो ?कल कल बहती नदी यहाँ पर मंद पवन भी कुछ कहती है | फिर साँसों के रथ पर सवार हो कर, तुम गुमशुम सी क्यों रहती हो | थोड़ा सा ग़म बाँट लो तू भी तुम इतना ग़म क्यों सहती हो |तुमने उसको अपना माना,पर उसने, उसको अपना जाना जिसने….
दिल की बातें Sunil Kumar

सत्य की उपलब्धि के नाम पर – कविता – रवि कुमार

सत्य की उपलब्धि के नाम पर ( a poem by ravi kumar, rawatbhata) सत्य कहते हैं ख़ुद को स्वयं उद्‍घाटित नहीं करता सत्य हमेशा चुनौती पेश करता है अपने को ख़ोज कर पा लेने की और हमारी जिज्ञासा में अतृप्ति भर देता है कहते हैं सत्य बहुत ही विरल है उसे खोजना अपने आप…..
सृजन और सरोकार
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तुम मुझको, मैं तुम्हें सुलाऊँ

तुम मुझको, मैं तुम्हें सुलाऊँ भाग्य रूठ कर कहीं पड़ा हो जग, बिसरा कर दूर खड़ा हो तेरे नयनों की बाती से मन का दीप जलाऊँ तुम मुझको, मैं तुम्हें सुलाऊँ जब अनजाने भय से मन धड़के कहीं कोई पत्ता न खड़के नींद कहे मैं हुई पराई, वापस कभी ना आऊँ तुम मुझको, मैं….."अभिनन्दन"

सूरज नगर की छत पर

सूरज नगर की छत पर ठिठका खड़ा है -देख रहा है गलियों को चलते दम भरते कुचलते खोते लड़ते उलझते शायद ये मिलेगी किसी सड़क से जहाँ सभ्य-सुसंस्कृत मौलश्री की कनातें अमलतास की पीली गरिमा से गुज़रते कोई मोड़ होगा और मंजिलों का सब्र खुला आकाश होगा !ये गलियाँ ठिठकी देख….मौलश्री

इलाज....

सुनो मुन्ना को बहुत तेज़ बुखार है कहीं से दवा-दारू का इंतिजाम करों,कहां से करू अभी तो फूटी कौड़ी भी नहीं है मेरे पास,जाकर मालिक से ही क्यों नहीं मांग लाते हो ,अभी तो लाया था बडी मुश्किल से गाली देने के बाद 100 रू दिये थे फिर कैसे जाउ तो क्या हमारे बेटे…-आचार्य

काश...मैं इक लडकी होता...

काश...मैं इक लडकी होता...समाज मुझे घृणा की नज़रों से तो देखता...लेकिन...मुझे मिलती हर शख्स से सहानुभूति...जानता हूँ कि इस सहानुभूति की आड में....हजारों नज़रें हर पल मेरे भक्षण का षणयंत्र रचती...लेकिन...मैं फिर भी खुश होता...खुश होता मैं प्रेम भरी ललचाई

एक छोटी बच्ची और उसका फूलों का गुलदस्ता..

बात आज शाम की है, जब मैं ऑफिस से वापस घर आ रहा था.एक ऐसी बात हुई जो वैसे तो कोई बड़ी नहीं लेकिन मैं बड़ी देर तक सोचता रहा.पता नहीं ये बात ब्लॉग पे पोस्ट करनी चाहिए या नहीं लेकिन मैं पोस्ट कर रहा हूँ.मैं रहता हूँ बैंगलोर में और यहाँ ऐ.सी. वोल्वो बस बहुत
मेरी बातें
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क्रोध अनलिमिटेड...खुशदीप

एक शख्स अपनी नई कार को पॉलिश से चमका रहा था...तभी उसके चार साल के बेटे ने एक नुकीला पत्थर उठा कर कार पर कुछ उकेर दिया...शख्स ने नई कार का ये हाल देखा तो क्रोध से पागल हो गया...उसने गुस्से के दौरे में ही बच्चे के हाथों पर कई बार मारा...वो ये भी भूल गया जब…देशनामा
खुशदीप सहगल

हाँ वह परमेश्वर का प्रतीक थी....-देव

एक छोटी बच्ची....अठखेलियाँ कर रही थी...खेल रही थीएक गुब्बारे सेकभी ऊपर उछाल देतीकभी उसे उठाने दौड़ पड़तीकभी पापा को खींचतीकभी चाचू को खींचती....कभी जोर जोर से चिल्लातीतो कभी एकदम चुप हो जाती....उसके खेल में कितनी सजीवता थी...उसके प्रेम में कितनी आत्मीयता…मेरी दुनिया मेरा जहां...

कविता : तुम कहो … बस एक बार…

चलते-चलते हर राह, हर मोड पर कभी किसी ने कुछ कहा, कुछ पूछा ।हर बात पर, जगह जगह टोका गयाकभी नाम, तो कभी बदनाम हुआ ।जीता रहा, बस एक इस इच्छा सेकाश, कभी तुम भी कुछ कहो ।अधिकार से कभी, कुछ पूछोकभी तो किसी बात पर, टोक दो ।मुझ से कोई तो, सवाल करोकभी तो, मुझसे….

Deepak Kumar "Abhimanyu

“व्यञ्जनावली-चवर्ग” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

"च""च" से चन्दा-चम्मच-चमचम!चरखा सूत कातता हरदम!सरदी, गरमी और वर्षा का, बदल-बदल कर आता मौसम!! "छ""छ" से छतरी सदा लगाओ!छत पर मत तुम पतंग उड़ाओ!छम-छम बारिश जब आती हो, झट इसके नीचे छिप जाओ!! "ज""ज" से जड़ और लिखो जहाज!सागर पार करो तुम आज!पानी पर सरपट चलता....
“व्यञ्जनावली-टवर्ग” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

और एक कविता बुन ली ...

और एक कविता बुन ली पन्ना पन्ना खंगाले शब्दकोष सारेमिले नही फिर भीखो गए जो शब्द सारे दूर हाथ बांधे खड़े कैसे भांप ली ना जाने अव्यक्त होने की छटपटाहट दो शब्द रख दिए चुपचाप मेरी बंजर हथेली पर पुलकित हुई नम हथेली परनेह की ऊष्मा सेकुकुरमुत्ते से कई और शब्द उग….गीत मेरे ......

आप उदास क्यों है?

आप उदास क्यों हैं? नौकरानी फुलमतिया अपनी मालकिन खंजन को उदास देखकर पूछती है, “आप उदास क्यों है? ” मालकिन खंजन नौकरानी फुलमतिया को अपने उदास होने का राज़ बताती है, “तुम्हारे साहब अपने ऑफिस की टाइपिस्ट से प्यार करने लगे हैं।” मालकिन खंजन की बात सुन नौकरानी

नहीं आया पत्र

   यह एक बीते हुए ज़माने की कविता है. पत्रों के ज़माने की. एक ज़माने मे पत्र हमारी जिंदगी का हिस्सा हुआ करते थे. मोबाइल और ई-मेल रहित वो दुनिया संजीदगी, अपनेपन और संवेदनाओं से परिपूर्ण हुआ करती थी जब हम कलम उठा कर अपनी हैण्ड रायटइंग मे अपने किसी अपने को….उलझन

मधुबाला -----नैसर्गिक सुन्दरता

मधुबाला -----नैसर्गिक सुन्दरता ये पेंटिंग वत्सल और उसके दोस्त सुमित  ने मिलकर बनाई है ........अपने कमरे की दीवार  पर स्केल और पेन्सिल की मदद से............वत्सल के अनुसार उन दोनों ने ये पेंटिंग २-३ दिन में कुल १२-१४ घंटे का समय देकर बनाई…मेरे मन की
शाम भी ढलने को थी मन हो रहा था बोझिल मेरा तो सोचा क़ि क्यूँ ना जाऊं समुंदर के तट पर और वहाँ डूब रहे सूरज को, निहारूं देर तक, खेलूँ ताजी हवा के संग फिर मैं वहाँ गया भी| पर अरे ये क्या, यहाँ तो मेरा नाम लिखा है किसी ने इस रेत के घरौंदे के पास, जो कि बनाया…..राष्ट्र सर्वोपरि sanu shukla
वक्त के निर्दयी थपेड़ों ने, कैसा परिवर्तन कर दिया, जो तूफानों में भी जलता था, वो दिया आज बुझा दिया...
तुम्हें फूल का खिलना भाता मुझे सुहाता मुरझाना, तुम्हें न भाते साश्रु नयन मुझको न सुहाता मुस्काना ! तुम पूनम की सुघर चाँदनी पर बलि-बलि जाते साथी, मुझको शांत अमावस्या का भाता यह सूना बाना ! उदित सूर्य की स...
posted by Rakesh at seep ka sapna -
चिड़िया आज बैचन है मन नहीं किसी बात का न तो घोंसले को सजाया है न ही वो उडी है न पेड़ और पत्तों से फलों से फूलों से कोई बात की है आकाश मनुहार कर कर थक गया है धरती बार बार आवाजें देती है वो है उदास चुप चाप ...
प्राप्त सूचना के अनुसार छत्तीसगढ में कुत्तो का महा ब्लोगर सम्मेलन होने वाला है. गब्बर-- नाच बसंती नाच वीरु -- नहीं बसंती तुम इन कुत्तों के सामनें मत नाचना बसंती-- परन्तु मेरे सईया मैंने तो सुना है कि सार...
*आज २.३० को में गांव में जनगणना का कार्य कर के घर जाते वक्त * *यामुना आवर्धन नहर के पुल से गुजर रहा था* *मेने देखा की दो लोग बहाव में बहे जा रहे है * *उन में एक बच्चा था और दूसरा आदमी जिस के हाथ से यह बच्चा...
आज के लिए बस इतना ही...........!
अब आज्ञा चाहती हूँ...............!!

21 टिप्‍पणियां:

  1. वन्दना जी!
    इस सुन्दर और मनमोहक चर्चा के लिए बधाई!
    --
    बहुत ही बढ़िया लिंक सजाए हैं आज तो चर्चा में!

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  2. वंदना जी धन्यवाद स्वीकारें बहुत सुंदर चिट्ठा चर्चा.....बढ़िया पोस्ट मिली...

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  3. वंदना,
    अच्छी चर्चा और अच्छे लिंक्स....सुन्दर चर्चा के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बहुत आभार वंदना जी...मेरी रचना को चर्चा-मंच मे शामिल करने के लिए...

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  5. सुंदर, सजी हुई, ताज़ी हवा सी चर्चा।

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  6. बहुत बढ़िया चर्चा रहा!

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  7. बहुत बहुत आभार वंदना जी..

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  8. रचना को चर्चा-मंच मे शामिल करने के लिए.बहुत बहुत आभार

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  9. prabhavi charcha. kuchh links padhe hue the...aur kuchh jo nazar se nikal gaye the dubara yaha dekhne ko mile. aabhaar.

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  10. वंदना जी , चर्चा में बहुत कुछ मिला पढ़ने योग्य .
    लिंकों का अच्छा संयोजन रहा .
    आभार

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  11. वंदना जी , चर्चा विविध आयामों को समेटे हुए रही .
    लिंकों को खूब सजाया आपने !
    आभार

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  12. संजय कुमार7 जून 2010 को 9:52 pm बजे

    आदरनीय, आप कल की चर्चा में आपने प्रिय कवि खत्री जी की कविता जिस पर आप कमेन्त करके आये हैं अवश्य सामिल करें,

    ताकि आप, आपका परिवार और आपके स्कूल के छात्र भी आपकी काव्य परख से परिचित हो सकें

    आप भी कवि हैं, श्री खत्री भी कवि हैं आप दोनों की कला को नमस्कार..

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  13. बढिया एवं विस्तृ्त चर्चा!
    आभार्!

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  14. अच्‍छी प्रस्‍तुति, कई पोस्‍ट यहीं आकर पढ़ी गयी। आभार।

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