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गुरुवार, जून 10, 2010

चर्चा मंच--180 (पं.डी.के.शर्मा “वत्स”)

image ज्ञानियों सलाम, नमस्ते, राम-राम के बाद निवेदन है कि सेवक आप लोगों की सेवा में चन्द अपने द्वारा पढी गई पोस्टों के लिंक लेकर उपस्थित हुआ है. उम्मीद करता हूँ कि आप लोगों को पसन्द आएंगें……अगर पसन्द न भी आए तो कोई बात नहीं.समझ लेंगें कि हमारी आपकी पसन्द मेल नहीं खा रही…खैर आप लोग पढिए और न भी पसन्द आए तो कम से वाह! वाह्! बहुत सुन्दर! तो कर ही दीजिएगा..झूठ-मूठ ही सही :) हमारा भी मन रह जाएगा :) 
देव कुमार झा बता रहे हैं श्रेष्ठ कौन: राम, रावण या बालि...
राम...आखिर इन दो अक्षरों की महत्ता आखिर क्या है....आज शाम मित्रों के साथ होने वाली ऐसे ही बकर बकर में भगवान राम का ज़िक्र हो आया. यार मेरी समझ में एक बात कभी नहीं आई की आखिर राम का राजनीतिकरण क्यों हो गया.... जब कोई आदमी गिरता है तो दूसरा यह कहेगा ना ओह्ह राम राम चोट लग गई, या फ़िर सामान्य सम्बोधन.... राम-राम भैया कैसे हो.... कोई यह कहता है क्या सोनिया सोनिया कैसे हो... या फ़िर मनमोहन मनमोहन कैसे हो..... कोई यह कहेगा क्या की आडवाणी आडवाणी कैसे हो..... यार राम को राम रहनें दो और बिना फ़ज़ूल की बातों में राम के नाम को ना घसीटो.... राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और समस्त मानव जाति के लिए प्रेरक तत्व हैं।
शिक्षा और आत्मविकास----सुश्री रंजना सिँह
image जबतक परिवार समाज का आस्तित्व इस धरती पर है,किसी भी धर्म पंथ के अनुयायी समाज के लिए यह प्रासंगिक रहेगा. इनकी शिक्षाओं में आज भी वह शक्ति है जो समाज को दिशा दिखा मनुष्यमात्र का नैतिक उत्थान कर सकती है.यह अलग बात है कि पूर्वाग्रह ग्रस्त हमारी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकार इन से सम्बंधित पुस्तकों को पूर्णतः एक धर्म विशेष की पूजा पाठ संबंधी पुस्तकें ठहरा इन्हें पाठ्यक्रम से बाहर रखना ही श्र्येकर मानती है...
देसिल बयना - 33 : हुआ ब्याह करेगा क्या.…….श्री करण समस्तीपुरी
उफ़...! गाँव दिश तो बड़ी गर्मी है। हालांकि पले-बढे तो वही में मगर अब उ बात तो रहा नहीं न....! सुनते हैं, गिलोबल वारमिन (ग्लोबल वार्मिंग) गांवो तक पहुँच गया। पहुंचेगा नहीं....? ससुर गाछ-विरिछ सब काट दिहिस, माटी-भित्ति, चार-फूस के घर तोर-तार के पक्का पीट दिहिस। अब उ गर्मी सोखे सो कौन...? तो आदमिये सब झरकता है। शहर में तो बिजली पंखा से देह का धाह बुझाता है मगर गाँव में बिजली नदारद तो हथ-पंखा कितना झले...!
आईये मनोविज्ञान और व्यवहार शास्त्र के फर्क को समझें!----श्री अरविन्द मिश्र
जिन्हें मनोविज्ञान विषय का पल्लव ग्राही (सतही ) ज्ञान  है वे यही समझते रहते हैं कि मनोविज्ञान केवल और केवल मनुष्य के व्यवहार का पूरी पृथकता में किया जाने वाला अध्ययन है जबकि यह सही नहीं है.
खेदजनक यह है कि  बहुत से लोग इन अधुनातन ज्ञान विज्ञान की प्रवृत्तियों से आज के इस सूचना प्रधान युग में भी अलग थलग बने हुए हैं जिनमे या तो उनका पूर्वाग्रह है या फिर वे अच्छे अध्येता नहीं है.ऐसे लोग समाज के लिए बहुत हानिकर हो सकते हैं-ज्ञान गंगा को कलुषित करते हैं और भावी पीढ़ियों को भी गुमराह कर सकते हैं-इनसे सावधान रहने की जरूरत है

हिंदू वेदों को इतना अत्यधिक महत्त्व क्यों देते हैं?--श्री सौरभ अत्रैय
(लेख थोड़ा दीर्घ है किन्तु अतिरिक्त समय में पढ़े अवश्य विशेष तौर पर हिन्दू लोग क्योंकि उन्हें अपने धर्म के मूल को तो जानना चाहिये कम से कम)                                                                                                  
हिंदू धर्म में वेदों का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है.सभी हिंदू धार्मिक ग्रन्थ अपनी बातों को प्रमाणित करने के लिये शब्द प्रमाण के अन्तर्गत वेदों को सर्वोपरि स्थान देते हैं. किन्तु आज अधिकतर लोगो का मानना है कि इन वेदों को किसी पूर्वकाल में मनुष्यों ने समयानुसार अपने ज्ञान के अनुरूप लिखा था जिनमें कुछ बात सही हैं और कुछ गलत. कुछ हिंदू लोग मानते हैं वेद ईश्वरकृत ज्ञान है. अब इनमें ऐसा क्या लिखा है जो कुछ लोग गलत और कुछ लोग इनको सम्पूर्ण सत्य मानते हैं.
इज्जतदार आम आदमी----पं.डी.के.शर्मा “वत्स”
वह उदास और परेशान सा मेरे पास आया.उसके चेहरे पर घबराहट के चिन्ह स्पष्ट दिखलाई पड रहे थे. मैने पूछा "क्या हुआ! ये इतने घबराए हुए से क्यूं हो?"
बोला" देख नहीं रहे, चारों तरह क्या हो रहा है. हत्याएं, लूट-खसोट, भुठमेड और गुण्डागर्दी का नंगा नाच हो रहा है.अपने मोहल्ले मे तो आज सुबह पुलिस फाईरिंग भी हुई थी और अब पुलिस सारे मोहल्ले की तलाशी लेती घूम रही है. अब क्या करें?"
जीवन उर्जा का क्रीडा स्थल: तनाव न पालें-------श्री जयन्ती जैन
image हमारा जीवन ऊर्जा की बहती नदी समान है। हमारी सारी क्रियाएं, सोच व भावों का आधार ऊर्जा है। मनुष्य इन ऊर्जाओं का जोड़ है। जीवन ऊर्जाओं का खेल है।सफलता असफलता बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। यह हमारी सोच पर निर्भर है। अन्यथा सब ऊर्जा का अभिव्यक्तिकरण है। इसलिए यहाँ पाने-खोने की कोई बात नहीं है। जीत-हार,मेरा-तेरा, प्यार-घृणा,सब ऊर्जा पथ है।
भविष्य बहुत उज्ज्वल है, चच्चा !! [एक नेता की कहानी, उसी की जुबानी]श्री दिवाकर मणि
imageरामलुभाया चच्चा,प्रणाम।
खुश रहो गुणगोबर, क्या हाल-चाल है? आजकल ना तो दिखाई देते हो, और ना ही सुनाई पड़ते हो, क्या बात है? और तोहरे चेहरा पर ई खुशी टपक रही है, एकर का राज है?
अरे बात-वात कुछो ना है, चच्चा? जब से पिछला पंचायत चुनाव हारा हूं, तबसे खलिहरे चल रहा था, तो सोचा कि समाजसेवा में और आगे बढ़ने के लिए कुछो अऊर टरेनिंग-वरेनिंग ले ली जाए।

दर्द की इक दुकाँ खोल ली मैंने !  अरे! मैने नहीं भाई  अपने गौदियाल जी ने ये दुकान खोली है :)
झंझटों की पोटली मोल ली मैंने,
ब्लोगिंग जीवन में घोल ली मैंने,
गम खरीदता हूँ,खुशियाँ बेचता हूँ,
दर्द की इक दुकाँ खोल ली मैंने !


सुबह-शाम कंप्यूटर पर जमे रहकर,                                  
वक्त कट जाता है,खुद में रमे रहकर,                                  
फुर्सत के हिस्से का परिश्रम बेचकर,                                   
यह चीज बड़ी ही अनमोल ली मैंने!

ये चिराग़ कैसा है--माधव तिवारी


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ये चिराग़ कैसा है
जो तूफ़ानों से नहीं डरता
इसे कोई समझाए
यहां सबको रौशन जहां
हासिल नहीं होता
ये चिराग़ कैसा है
जिससे अंधेरा भी नहीं दूर होता
कौन समझाए
क़ाग़जों की आग में
इंसाफ़ मयस्सर नहीं होता
प्री-टेक्निक युग की खुदाई--डा.पवन मिश्र
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नीम का पेड़
छोटे -छोटे शालिग्राम
कुए का ठंडा पानी
और  पीपल की नरम छांह
सुबह का कलेवा
'अग्गा राजा दुग्गा दरोगा'
गन्ने का रस और दही
साथ में आलू की सलोनी
गेरू और चूने से
लिपे पुते   घर में
आँगन और तुलसी
दरवाजे की देहरी
ताख में रखा दिया
उजास का पहरिया
बाबा की झोपड़ी
और मानस की पोथी
गज़ल- रंग- ए – दुनिया
डा.अजमल खान
देख  बाग़-ए- बहार   है दुनिया
चमचमाता निखार है दुनिया ।
कौन जाने किसे मिले क्या क्या
एक खुला सा बज़ार है दुनिया ।
जेब में नोट और दिल खाली
वाह क्या माल दार है दुनिया ।
क्यों ज़रा भी सुकूं नहीं दिल में
देख तो लालाज़ार है दुनिया ।
मैं लड़की होने की सजा पा रही हूँ .....
सुश्री काव्यमंजुषा “अदा”
'इज्ज़त' 'आबरू'
ये महज
शब्द नहीं हैं
नकेल हैं,                                     
जिनसे बंधा है मेरा वजूद                      
ये कील हैं,                                  
जिनसे टंगा है मेरा मन

हर शोक झूठापंकज
हर कष्ट अब स्वीकार है
जैसे मिली कोई खुशी
कौन अपना है यहां
किससे कहें हैं क्यों दुखी
वेदना के कंटकों को
यूं ही अब सहना पडेगा
आप ही अब दर्द अपना
विष घूंट सा पीना पडेगा

कार्टून:- आप समझ रहे हैं न मैं क्या कह रहा हूं ?काजल कुमार
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अब जाकर वामपंथियों की हवा निकली!इरफान
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उधार के रंगों से सपने हसीन नहीं होते रवीश कुमार
गंडक
मेरे होने की साक्षी
सिर्फ तुम्हीं हो
तुम्हारी ही लहरों से बच कर आया था
जब उसने दुपट्टे से खींच लिया था
एक मन्नत भी मांगी तुमसे
सर पे भंवर पड़े हैं इसके
ये फिर डूबेगा लहरों में
बचा लेना इसको सपनों से
तब भी रंग लिया था अपने सपनों को
किनारे पर खड़े होकर
पांव धोती सुहागिनों के आलते से
तब तुम्हीं ने कहा था
मिट्टी का बना है इसका मन
कभी धूल की तरह उड़ता है
कभी बारिश की तरह रोता है
कहीं किसी किनारे जमा होकर
फिर मिट्टी बन जाता है

हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं...दिलीप


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जहाँ किया मन हवस मिटा ली             
नाम बन गया है बस गाली...               
झुंड बना कर घूम रहे हैं....                 
लोभी अवसर ढूँढ रहे हैं...                     
मन नंगा तन पे लत्ते हैं...                        
हाँ भैया हम तो कुत्ते हैं..                     
रात जागते और नाचते...                    
टेढ़ी दुम के साथ भागते...                       
बातों मे तो भौंक रहे हैं...                       
ऊँची ऊँची छौंक रहे हैं...                       
डरते ज्यों सूखे पत्ते हैं...                           
हाँ भैया हम तो कुत्तेहैं...
                         
पद की गरिमा घटी बढ़ा काम वासना रोग...!!! (कार्टून)अजय सक्सेना
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कार्टून :ये गैस वाला आइडिया सही है उस्ताद!!!कीर्तीश भट्ट्
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सारे अच्‍छे लिंक्स के लिए आभार !!

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  2. बहुत बढ़िया चर्चा की है पण्डित जी आपने!

    आभार!

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  3. बहुत ही शानदार चर्चा शर्मा जी।

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  4. बहुत बढ़िया चर्चा की है पण्डित जी आपने!आप का बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं

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