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रविवार, जून 27, 2010

रविवासरीय चर्चा (२७.०६.२०१०)

 

वहुप्रतिक्षित परिकल्पना सम्मान की उद्घोषणा शीघ्र

नुक्कड़ पर रवीन्द्र प्रभात

जैसा कि आप सभी को विदित है कि विगत १५ अप्रैल को परिकल्पना पर ब्लोगोत्सव-२०१० की भव्य शुरुआत हुई थी । उल्लेखनीय है कि पहली बार इंटरनेट पर इसप्रकार का अनोखा प्रयोग हुआ है और यह उत्सव हिंदी ब्लॉग जगत के लिए कामयाबी की एक नयी परिभाषा गढ़ने में समर्थ हुआ है . ब्लोगोत्सव के समूचे परिदृश्य को लोकसंघर्ष पत्रिका द्वारा एक आकर्षक विषेशांक का स्वरुप प्रदान किया जा रहा है ताकि दस्तावेज के रूप में सुरक्षित रखा जा सके और इस उत्सव से जुड़े प्रतिभागियों को एक नया आयाम प्रदान किया जा सके .

नमन

मेरा फोटोएक प्रयास पर  वन्दना की प्रस्तुति                                                             

श्याम मोहन मदन मुरारी
राधे- राधे रटती प्यारी 
कृष्ण केशव कुञ्ज बिहारी
रमता जोगी बहता पानी 
आनंद कंद  मुरली धारी 
जमुना जी की महिमा न्यारी
गोविन्द माधव गिरिवरधारी 
खोजत -खोजत सखियाँ हारी 
आनंदघन अविनाशी त्रिभुवनधारी
कुञ्ज- कुञ्ज में बसे गिरधारी
नटवर नागर छैल बिहारी
रोम- रोम में रमे मुरारी
सुखधाम सुधासम कृष्ण मुरारी
कण -कण में रम रहे रमणबिहारी

माईकल जैक्सन की याद में

 

 

 

कुमाउँनी चेली पर शेफाली पाण्डे की लाजवाब प्रस्तुति                                   

मेरा फोटोमाईकल जैक्सन की याद में .....
दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको
चल !
मिलवाता हूँ ऐसे एक बन्दे से
आया है जो , धरती से आज
तेरी उदासी का, है उसके पास  इलाज
जिसको कहते हैं , अंगरेजी में फार्मर
हिन्दी में किसान
घूम रहा है जो 
गर्व से अपना सीना तान
तेरे गले से हैं गायब
सारे सुर और ताल
देख !
वह बेसुरा है फिर भी
छेड़ रहा है मीठी - मीठी तान

यार जुलाहे!!

 

 

My PhotoSamvedana Ke Swar par सम्वेदना के स्वर

की कबूर जयंती पर एक प्रस्तुति

एक जुलाहा, सूत के पतले धागों से एक चादर बिनता. टुकड़े टुकड़े धागों को ऐसी गाँठ लगाता कि पूरी चादर में गाँठ ढूँढे से भी न मिले. ज़िंदगी का ताना बाना बुनते बुनते कितनी गाँठें लग जाती हैं, जो दिखती भी हैं और खोले से खुलती भी नहीं. ऐसा ही एक जुलाहा तकरीबन सात सौ साल पहले हमारे बीच आया, एक तरकीब बताने, जिससे ज़िंदगी की चादर बिनते हुए कोई गाँठ दिखाई न दे और ये चादर जब उतरे तो मैली न हो, उसपर कोई दाग़ न रहे.

एक अनपढ़ इंसान जिसे वेद, क़ुरान का कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उसकी तकरीबन पाँच सौ वाणियाँ गुरु ग्रंथ साहिब में मौजूद हैं. नमन करते हैं हम कबीर को… आज जेठ माह की पूर्णिमा के दिन, उनकी जयंती पर.

गंगावतरण भाग-चार

12012010005मनोज पर मनोज कुमार

की प्रस्तुति जो गंगावतरण की 

समापन किस्त है, पढिए।

भगीरथ घर छोड़कर हिमालय के क्षेत्र में आए। इन्‍द्र की स्‍तुति की। इन्‍द्र को अपना उद्देश्‍य बताया। इन्‍द्र ने गंगा के अवतरण में अपनी असमर्थता प्रकट की। साथ ही उन्‍होंने सुझाया कि देवाधिदेव की स्‍तुति की जाए। भागीरथ ने देवाधिदेव को स्‍तुति से प्रसन्‍न किया। देवाधिदेव ने उन्‍हें सृष्टिकर्ता की आराधना का सुझाव दिया। क्योंकि गंगा तो उनके ही कमंडल में थी।

स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें

मेरा फोटोशब्द-शिखर पर आकांक्षा कह रही हैं

मादक पदार्थों व नशीली वस्तुओं के निवारण हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 7 दिसंबर, 1987 को प्रस्ताव संख्या 42/112 पारित कर हर वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस मानाने का निर्णय लिया. यह एक तरफ लोगों में चेतना फैलाता है, वहीँ नशे के लती लोगों के उपचार की दिशा में भी सोचता है.इस वर्ष का विषय है- ''स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें."

क्‍या प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद ही मूर्तियां पूजा करने योग्‍य होती है ??

My Photo गत्‍यात्‍मक चिंतन पर संगीता पुरी का कहना है कि

पैरों के महत्‍व के बारे में यह जानते हुए कि इसके बिना सही ढंग से जीवन जीया नहीं जा सकता , हम अपने शरीर में पैरों का स्‍थान सबसे निकृष्‍ट समझते हैं। शायद शरीर के सबसे निम्‍न भाग में होने की वजह से गंदा रहने और किटाणुओं को ढोने में इसकी मुख्‍य भूमिका होने के कारण ही पैरो को अछूत माना गया हो। पैरों से लात मारना तो शिष्‍टाचार की दृष्टि से बिल्‍कुल गलत है ही , हमारा पैर गल्‍ती से भी किसी को छू जाए , तो इसके लिए हम अफसोस करते हैं या माफी मांगते हैं। हमारी संस्‍कृति सिर्फ व्‍यक्ति को ही नहीं , किसी वस्‍तु को भी पैरों से छूने की इजाजत नहीं देती। चाहे वह घर के सामान हों , बर्तन हो या खाने पीने की वस्‍तु। यहां तक कि अन्‍न की सफाई करने वाले सूप , अनाज को रखी जानेवाली टोकरियां या फिर घर की सफाई के लिए प्रयुक्‍त होने वाली झाडू।

ब्लॉग पर परिवर्तन की दस्तक

डा. महाराज सिंह परिहार विचार-बिगुल पर डा. महाराज सिंह परिहार की प्रस्तुति पढिए जहां वे बताते हैं कि

चारों ओर परिवर्तन का दौर है। हर क्षेत्र में नित्य-नूतन प्रयोग हो रहे हैं। अनुसंधान हो रहे हैं। विचारों की महत्ता बढ़ गई है। बौद्धिक संपदा प्रगति के सोपान पर है। विचारों की विविधता और परिवर्तन का दौर ब्लॉग पर भी दस्तक दे रहा है। ब्लॉगर्स दिल खोलकर विविध विषयों पर लिख रहे हैं। विचारों का बादल ब्लॉग पर अपनी दस्तक दे रहा है।

वंदे मातरम - बंकिमचन्द्र - स्वतंत्रता का महामन्त्र

Jai Bharat Jay-Jay Bharti पर अरविन्द सिसोदिया

की प्रस्तुति बंकिम चंद्र के बारे में

 
कुछ  तो कहानी छोड़ जा ,
अपनी निसानी छोड़ जा ,
मोशम  बिता जाये ,
जीवन बिता जाये .
यह गीत संभव  दो बीघा जमीन का हे .
मगर सच यही हे की ,
काल चक्र की गती नही रूकती,
एक थे बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय,
उनका निधन हुए भी काफी समय हो गया मगर वे हमारे बीच आज भी जिदा हें .
क्यों की उन्होंने एक अम्र गीत की रचना की जिसने भारत को नई उर्जा दी और देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई .

New Blogger Features: ब्लॉगर पर ट्विटर और फेसबुक शेयर बटन

My Photo Hindi Blog Tips पर आशीष खण्डेलवाल का आज का टिप्स है कि

ट्विटर औऱ फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की पहुंच से पूरी दुनिया चकित है। इन साइट्स के इसी असर को देखते हुए ब्लॉगर ने ब्लॉग पोस्ट को ट्विटर और फेसबुक व अन्य नेटवर्क्स पर शेयर करने की सुविधा दी है। आज ज्यादातर साथी ट्विटर और फेसबुक साइट्स पर मौजूद हैं और उनके साथ पोस्ट को शेयर कर ब्लॉग के ट्रेफिक को बढ़ाया जा सकता है। इस बटन के उपयोग से पाठक को हर पोस्ट के नीचे इसे ट्विटर या फेसबुक पर शेयर करने का विकल्प दिया जा सकता है।

हम चमार के बच्चे किसी से डरते नहीं

My Photo गाहे-बगाहे पर विनीत कुमार एक विचारोत्तेजक आलेख प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि

ST,SC एक्ट के तहत जातिसूचक शब्दों का प्रयोग असंवैधानिक है। ऐसा करने से जाति विशेष का अपमान होता है। थोड़ी-बहुत ही मशक्कत करने के बाद आपको ऐसे सैंकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें कि दबंग जातियों ने जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करके अपमानित करने का काम किया गया और इसके विरोध में बड़ी मुश्किल से  मामले दर्ज किए गए। लेकिन पंजाब की राजधानी लुधियाना के गांवों में इसी जातिसूचक शब्दों के प्रयोग से अपनी पहचान दर्ज कराने की कोशिशें तेज हुई हैं। इस जाति से जुड़े लोगों का मानना है कि उन्हें दलित भी नहीं कहा जाए,इससे उनकी पहचान छिपती है,वो चमार हैं और उन्हें इस बात पर गर्व है। पंजाबी गायक राज ददराल का यहां तक कहना है कि हम चाहते हैं कि हमारी जाति का नाम ज्यादा से ज्यादा लोगों की जुबान पर चढ़ जाए।

“आसमान में छाये बादल!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

मेरा फोटो उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक लेकर आए हैं                                         

जल से भर कर लाये छागल!  
उमड़-घुमड़ कर आये बादल!!
कुछ भूरे कुछ श्वेत-श्याम हैं, 
लगते ये नयनाभिराम हैं, 
नील गगन की चूनरिया पर, 
शैल-शिखर बन भाये बादल! 

उमड़-घुमड़ कर आये बादल!!

इंटरनेट और भारत

My Photoधान के देश में! : Hindi Blog पर जी.के. अवधिया बता रहे हैं

इंटरनेट के आविर्भाव ने सम्पूर्ण विश्व में एक नई क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। आज हम अपने घर में बैठकर ही अनेकों आवश्यक कार्यों को इंटरनेट की सहायता से निबटा सकते हैं। इंटरनेट ने “वसुधैव कुटुंबकम्” की धारणा को सत्य में परिणित कर दिखाया है। आप किसी भी समय किसी भी देश के किसी भी व्यक्ति से सम्पर्क कर सकते हैं। ईमेल अथवा एसएमएस के द्वारा कहीं पर भी तत्काल संदेश भेजा जा सकता है।

शादी का लड्डू

मनोभूमि पर Manish प्रस्तुत करते हैं …

बहुत ही गम्भीर मुद्दा है, हमारे जैसे कुँवारे, याने कि बंजारों के लिए… घर गृहस्थी की बेड़ियाँ पहनाने के लिए आजकल बहुत खतरनाक किस्म के आतंकवादी समाज में घूमते फिरते हैं।

पिछली बार, अपनी दूर की मौसी जी के छोटे सुपुत्र की शादी में सपरिवार जाना हुआ था।

“वह हमारी मौसी हैं? कैसे?” इस प्रश्न के उत्तर में हमारी माता श्री न जाने कितने रिश्तो के मकड़जाल को सुलझाती हुई यह सिद्ध कर देती हैं कि रिश्ते में वह मेरी मौसी ही लगती हैं।

इमरजेंसी के ३५ साल बाद एक और इमरजेंसी !

बुरा भलाबुरा भला पर  शिवम् मिश्रा की प्रस्तुति।

अगर अभी तक आप खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों की तपिश से ही परेशान थे, तो अब महंगाई के पूरे 'तूफान' को झेलने के लिए तैयार हो जाइए। केंद्र सरकार ने एक झटके में पेट्रोल, डीजल, किरासिन और रसोई गैस की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि का ऐलान कर दिया है। शुक्रवार आधी रात से देश भर में पेट्रोल 3.73 रुपये, डीजल दो रुपये तथा किरासिन तीन रुपये प्रति लीटर महंगा हो गया है, जबकि रसोई गैस की कीमतों में प्रति सिलेंडर 35 रुपये की बढ़ोतरी कर दी गई है।

मुझे कहानी कहते कहते - माँ तुम क्यों सो गईं?

लावण्यम्` ~अन्तर्मन्` पर लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`की कविता पढिए                     

मुझे कहानी कहते कहते -

माँ तुम क्यों सो गईं?

जिसकी कथा कही क्या उसके

सपने में खो गईं?

मैं भरता ही रहा हुंकारा, पर तुम मूक हो गईं सहसा

जाग उठा है भाव हृदय में, किसी अजाने भय विस्मय-सा

मन में अदभत उत्कंठा का -

बीज न क्यों बो गईं?

..... मेरी जान !!..जरा बूझिये तो कौन है..??

मेरा फोटोज्ञानवाणी पर वाणी गीत की प्रस्तुति।

ब्लॉग लिखते हुए एक वर्ष से भी ज्यादा का समय हो गया ...और अब तक आप लोगों से अपने सबसे ज्यादा अजीज साथी का परिचय नहीं करवाया ...रुष्ट होंगे ना आप लोग ...साथी ब्लॉगर्स से ऐसी पर्दादारी ....:)
आज ठान ही लिया है अपने इस साथी से आप सबको मिलवाने का ....एक ख़त में लिख दी हैं मैंने अपने दिल की सब बात अपने इस अनोखे साथी को ...
पढ़ लीजिये आप भी और हमें धन्यवाद दे दीजिये ...इस तरह अपने प्रेम-पत्र कौन पढवाता है भला !!

“वो दन्तुरित मुस्कान : नागार्जुन”

बाबा नागार्जुन के

जन्म शताब्दी समारोह प्रारम्भ

जेठ मास की पूर्णिमा को बाबा नागार्जुन के जन्म-दिवस के अवसर पर 
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक” के निवास पर 
एक वैचारिक गोष्ठी का आयोजन किया गया।

कबीर जयन्‍ती … पर

मनोज पर मनोज कुमार द्वारा

 

--- --- मनोज कुमार

हमारे देश के हिन्दू समाज में प्राचीन काल से ही वेदों पर आधारित परंपरा मान्य रही है। मध्यकाल तक आते-आते वर्णाश्रम व्यवस्था जटिल हो चुकी थी। जातियों में विभाजित समाज में हर तरह का भेद-भाव विद्यमान था। मनुष्यता स्त्री-पुरुष, ऊंच-नीच एवं अनेक धर्मों में बंटी हुई थी। छुआछूत के कठोर नियम थे। ईश्‍वर की उपासना एवं मोक्ष प्राप्ति में भी भेद-भाव था। वैदिक कर्मकांड तथा ॠढिवादिता से स्थिति बड़ी जटिल थी। समय-समय पर इस व्यवस्था के प्रति प्रतिक्रियाएँ जन्म लेती रहीं। ये प्रतिक्रियाएँ रूढिवादी समाज में परिवर्तन के लिए अल्प प्रयास ही साबित हुईं। किन्तु चौदहवीं तथा पंद्रहवीं शताब्दी में आस्था एवं भक्ति के मध्य से व्यापक आंदोलन की एक ऐसी बलवती धारा फूटी जिसने वर्ण-व्यवस्था पर आधारित समाज, कट्टरता एवं रूढिवादिता पर आधारित धर्मांधता को चुनौती दी।

मैं तुम्हे मरने नहीं दूँगा

My Photo न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय की प्रस्तुति।

कैंसर ठीक, बीपी ठीक, डायबिटीज़ ठीक, मोटापा ठीक, ऑर्थिराइटिस ठीक, हेपेटाइटिस ठीक............. लाइफ स्टाइल डिसीज़ेज़ ठीक....। मैं आपके क्षयमान अंगों को पुनः ऊर्जान्वित कर दूँगा । तुम बताओ अब मरोगे कैसे ? योग कर लो ना, देखो, मैं तुम्हे मरने नहीं दूँगा ।"

सपने में नहीं सुन रहा था पर सपने देखने के समय सुन रहा था ।

टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं .....

My Photoकाव्य मंजूषा पर 'अदा' की प्रस्तुति।

ख़यालों का आना-जाना था, किसी से किसी का सिला नहीं

ख़ुद पर ही कभी रंज हुए और कभी किसी से गिला नहीं

पत्तों का जब आग़ोश मिला, शबनमी नूर बस दमक उठा  

बदली में चाँद वो छुपा रहा, रौशन अब कोई काफ़िला नहीं

तस्सवुर में उनका आना भी क्या, आना है अब तुम ही कहो ?

पशे हिज़ाब है माहताब और नज़रों में वो गुल खिला नहीं

दिल चीर के हमने ग़ज़ल कही जज़्बात उफ़न कर चौंक गए

टटोल के देखा था अन्दर कोई ज़िगर कोई गुर्दा हिला नहीं

दिल बन जाए निग़ाह मेरा और निग़ाह बने है दिल की जुबाँ

दोनों ही लिपट कर बैठ गए, दोनों का कोई मुकाबिला नहीं

सोचो क्या पाया इनसां होके...खुशदीप

देशनामा पर खुशदीप सहगल की प्रस्तुति।                                                      

पंछी, नदिया, पवन के झोंके,
कोई सरहद न इनको रोके,
सरहदें इनसानों के लिए है,
सोचो तुमने और मैंने क्या पाया इनसां होके...
ये खूबसूरत गीत जावेद अख्तर साहब ने फिल्म रिफ्यूज़ी के लिए लिखा था...सरहद से बंटने का दर्द क्या होता है, शिद्दत के साथ इस गीत में महसूस किया जा सकता है...भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी बातचीत होती है, सरहद का ख्याल ज़ेहन में आ ही जाता है...लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि इस सरहद के मायने क्या होते हैं...आप एक घर में रहते रहें...फिर अचानक उसी घर के बीच दीवार खड़ी कर दी जाए...आप दीवार के उस पार नहीं जा सकते...दीवार के उस पार वाले इधर नहीं आ सकते...

समाज के माता-पिता --- अपने दत्तक बापों का सम्मान करना सीखो

My Photoरायटोक्रेट कुमारेन्द्र पर डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर



खुशी मनाने के कुछ बिन्दु
1- आपके परिवार के बेटे-बेटी मानने लगें कि उनका जन्म आपके परिवार की अभिलाषा नहीं वरन् उन बच्चों के माता-पिता के शारीरिक सुखों की परिणति है।
2- आपके बच्चे मानते हों कि आपने उनके लिए कभी कुछ किया ही नहीं जो कुछ किया है वो इस कारण से क्योंकि आपने अपने शारीरिक सुखों के एवज में उनको पैदा करने का अपराध जो किया था।

कर्ज कलकत्ता का

मेरा फोटोचला बिहारी ब्लॉगर बनने पर चला बिहारी ब्लॉगर बनने की प्रस्तुति।

बचपने से सोचते थे कि बिहार के पूरब में पश्चिम बंगाल है, त आखिर पूर्वी बंगाल कहाँ है? पता चला पूर्वी बंगाल कहीं नहीं है, जो था आजकल पूर्वी पाकिस्तान कहलाता है. त बेकारे न बंगाल को पश्चिम बंगाल कहते हैं! मगर हमरा बात का त कोनो भैलूए नहीं. खैर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान बन गया बांगला देस. तबो पश्चिम बंगाल का नाम ओही रहा. आखिर में हम हार मान कर मन में बईठा लिए कि एही नाम सही है. लेकिन बोलने से त कोनो हमको रोक नहिंए सकता था, एही से आज तक बंगाल बोलते हैं.

का मालूम था कि इसी देस का राजधानी में हमको छः साल काम करना पड़ेगा. अऊर इहो मालूम नहीं था कि ई सहर हमरे जन्मभूमि के बाद, हमरे जीवन का हिस्सा बनने वाला पहिला सहर हो जाएगा. इतिहास, आजादी का लड़ाई, साहित्य, संगीत, संस्कृति, शिल्प, कला अऊर का बोलें. बंगाल का जोगदान ई देस भुला नहीं सकता है.

अब इज़ाज़त दीजिए। अगले हफ़्ते फिर मिलूंगा।

16 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा के लिए आभार!

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  2. बहुत ही सुन्दर चर्चा की है……………काफ़ी लिंक्स मिल गये।

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति....नए लिंक्स पर जाना हुआ

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  4. उम्दा चर्चा की आपने। काफी अच्छे लिंक्स मिले हैं। कुछ को पढ़ चुका था कुछ बाकी है।

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  5. मनोजजी
    बहुत ही शानदार चर्चा की आपने। आपको बधाई।

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