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शुक्रवार, जुलाई 02, 2010

"चर्चा मंच - 202" (अनामिका की सदायें..)


लीजिए जी हर शुक्रवार की तरह आज फिर हाज़िर है मेरी अनामिका की सदायें.. की चर्चा..आपके समक्ष कुछ नायाब लिंक्स के साथ ..ओह....लेकिन साथियों ये लिंक्स अपना नायाब रूप तो तभी पा सकते हैं ना जब इन पर आपके सुंदर विचारों से मूल्यांकन हो..तो....तो...जी सोचिये मत...और अपने सुन्दर सुन्दर हाथों से....अपने भाव - भीने शब्दों से और अपने मन में उठते प्यारे प्यारे विचारों से करवाइए ना जरा अवगत हमें भी और इन ब्लोग्गर्स को भी...
*********
सबसे पहले आपको कराते हैं आज शास्त्री जी स्वरों का ज्ञान 
और फिर बढते हैं आगे के लिंक्स पर...

स्वरावली पढ़िए और सुनिए” 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)

 

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कुछ पिछले पन्नों से ...कविताये..
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जहाँ बाढ़ है आशीर्वाद!

डा. अरुणा कपूर जो पेशे से डा. होते हुए भी एक साहित्यकार भी हैं. देखिये बता रही हैं बाढ़ को भी एक आशीर्वाद..
...और साहित्य के आकाश का....
रंग गहराता चला गया......
लाल, पिला, नीला , नारंगी...
इंद्रधनू के सात रंग....
एक रंग में रंग गए....
*****

राजकुमार सोनी जी कहते हैं.. लगता है कि मैं एक बार फिर कविताओं की ओर लौटने लगा हूं। यह सही हो रहा है या गलत मैं नहीं जानता, बस इतना कह सकता हूं कि एक छटपटाहट ने घेर रखा है जिससे मुक्त होना थोड़ा कठिन लग रहा है। आज वो कुछ लिखते है...

अपने मोहल्ले की लड़कियों के बारे में

एक लड़की
सीखने जाती है
सिलाई मशीन से
घर चलाने का तरीका


एक लड़की
दिनभर सुनती है
लता मंगेशकर का गाना

*******
गिरीश पंकज रायपुर, छतीसगढ़ से कह रहे हैं……. लगता है हम छत्तीसगढ़ के लोग केवल लाशें गिनाते जायेंगे. आज हम गिन रहे है , ं, पता नहीं कल हमें भी कोई गिनने बैठ जाए.सरकार असफल होती जा रही है और उधर नक्सलियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं. हर हत्याओं के बाद 'वे' अपनी सफलता पर जश्न मनाते होंगे
लहू से तर रहे बस्तर..हमें अच्छा नहीं लगता
ये छत्तीसगढ़ हैं आँसूघर..हमें अच्छा नहीं लगता
ये नफ़रत एक दिन हमको अमानुष ही बना देगी
ये हिंसा का भयानक स्वर..हमें अच्छा नहीं लगता

ग़ज़ल/ लहू से तर रहे बस्तर हमें अच्छा नहीं लगता

~*~*~*~*~
हमारी युवा ब्लोग्गर पारुल जी को कुछ याद आ गया है जो आप सब के बीच बाँट रही हैं...आइये जाने..

जीवन.........

बस आज फिर यूँ ही वो बचपन याद आया
किसी मासूम सी जिद पे सिसकता मन याद आया!!
कैसे जिए वो पल अपने ही ढंग में
रंग लिया था जिन्दगी को जैसे अपने ही रंग में
वो सब याद करके ऐसा लगा
कोई भूला सा दर्पण याद आया!!
********
माधव नागदा जी ने आखर कलश पर एक बहुत सुंदर कविता प्रस्तुत की है जिसे आप सब के बीच शेयर करना चाहूंगी..उम्मीद करती हूँ पसंद आएगी..
एक विचार अमूर्त सा
कौंधता है भीतर
कसमसाता है बीज की तरह
हौले हौले
अपना सिर उठाती है कविता

माधव नागदा की कविता - बचा रहे आपस का प्रेम

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सप्तरंगी प्रेम ब्लॉग पर विनोद कुमार पाण्डेय जी का एक प्रेम गीत पढ़िए..

रात से रिश्ता पुराना हुआ

रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
यह न पूछो हुआ,
कब व कैसे कहाँ,
धड़कनों की गुज़ारिश थी,
मैं चल पड़ा,
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सुमन 'मीत' जी कहती हैं… भावों से घिरी हूँ इक इंसान; चलोगे कुछ कदम तुम मेरे साथ; वादा है मेरा न छोडूगी हाथ….. और पेश करती है एक सुंदर कविता..
बदलता वक्त
बदलते वक्त ने
बदला हर नज़र को
काटों से भर दिया
मेरे इस चमन को
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अब कुछ लेखो की बारी..
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श्री दिनेश राय द्विवेदी जी खोल रहे हैं कच्चा चिटठा डाक्टरों की लापरवाही का..
क महिला रोगी के पैर में ऑपरेशन कर रॉड डालनी थी, जिस से कि टूटी हुई हड्डी को जोड़ा जा सके। रोगी ऑपरेशन टेबल पर थी। डाक्टर ने उस के पैर का एक्स-रे देखा और पैर में ऑपरेशन कर रॉड डाल दी। बाद में पता लगा कि रॉड जिस पैर में डाली जानी थी उस के स्थान पर दूसरे पैर में डाल दी गई।
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श्री हर्षवर्धन त्रिपाठी जी प्रकाश डाल रहे हैं हमारे देश के नए बनते बिगड़ते कानूनों पर.. बतंगड़ BATANGAD द्वारा जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर उनके निजी विचार

तलाक ले लो, तलाक

हिंदू विवाह कानून में बदलाव करके विवाह विच्छेद यानी पति-पत्नी के बंधन को तोड़ने के 9 आधारों में दसवां आधार शामिल करने जा रही है जिससे लोगों को आसानी से तलाक मिल सके।
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पढ़िए इस आर्टिकल में ओशो (रजनीश) के बचपन की बातें .. Osho Satsang/ओशो सत्‍संग

ब्राह्मण की चोटी काटनापरिशिष्‍ट प्रकरण

मैंने अपने पिता को कहा: जब कभी आप मुझसे सत्‍यभाषी होने के लिए कहते है, आपकेा एक बाप स्‍मरण रखनी चाहिए कि सत्‍य को पुरस्‍कृत किया जाना चाहिए, अन्‍यथा आप मुझको सत्‍य भाषण न करने भाषण न करने के लिए बाध्‍य कर रहे है।
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मानसून आने ही वाला है ,बल्कि देश के कुछ हिस्सों में आ भी चुका है. ये मौसम अपने साथ त्वचा की अनेक बीमारियों को लेकर आता है. इस मौसम में अनेक कीड़े-मकोड़े भी पैदा हो जाते हैं या यूं कह लीजिये कि अपने आवासों से बाहर निकल आते हैं क्योंकि उनके बिलों [घरों] में पानी भर गया होता है. अब उन्हें आवास तो चाहिए ही ,बेचारे रहेंगे कहाँ ? बस हमारी त्वचा ही उनका पहला निशाना बन जाती है. अगर त्वचा में पहले से घाव है तब तो क्या कहना !!! कीड़ों की पाँचों उंगलियाँ घी में और सर कढ़ाही में. सलिए हे मनुष्यों सावधान हो जाओ . आइये अलका जी बता रही हैं इसके कुछ अच्छे उपाय -------

मानसून की बीमारियां

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अजित गुप्ता जी वापिस आ रही हैं अमेरिका से और जल्द ही अपनी भारत भूमि पर कदम रखने वाली है..
जानिए कितनी उत्सुक हो रही हैं...वो अपने देश आने को...जान कर मन सोचने और गर्व करने पर मजबूर हो जाता है की वाह...आखिर अपना देश अपना देश ही है..

अब मैं वापस भारत जा रही हूँ जहाँ मेरा एक नाम और एक परिचय है

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क्षमा जी बाँट रही हैं अपने बचपन की कुछ भोली भाली बाते..

बोले तू कौनसी बोली ?

हमारे घर के क़रीब एक कुआ मेरे दादा ने खुदवाया था।उस कुए का पानी रेहेट से भर के घर मे इस्तेमाल होता था... उस कुए की तरफ़ जाने वाले रास्ते की शुरू मे माँ ने एक मंडवा बनाया था...उसपे चमेली की बेल चढी हुई थी... अब तो समझने वाले समझ ही गए होंगे, कि, मैंने कौनसा गीत सुना होगा और ये सवाल किया होगा...!
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समीर जी सुना रहे हैं एक किस्सा और बता रहे हैं..एलार्म फाॅर्स सिस्टम के बारे में..

सर, आपके घर चोर आये हैं!!!

अमरीकी, जपानी और हिन्दुस्तानी पुलिस के मुखिया मिटिंग में थे. अमरीकी बोला कि हम तो चोरी के बीस मिनट के अन्दर चोर की पहचान कर लेते हैं. जपानी बोला कि हमारे यहाँ तो दस मिनट में पता कर लेते हैं कि किसने चोरी की. भारतीय पुलिस के मुखिया हँसने लगे. दोनों ने पूछा कि हँस क्यूँ रहे हैं. उसने कहा कि हमें तो चोरी के पहले से ही मालूम होता है कि कौन चोरी करेगा.
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पढ़िए हिंदुस्तान का दर्द ब्लॉग पर ...


हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
तुम क़त्ल भी करते हो तो चर्चा नहीं होता।

लो क सं घ र्ष !: तुम क़त्ल भी करते हो तो चर्चा नहीं होता

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पढ़िए बुपेंदर सिंह जी के ब्लॉग पर

कामयाब नहीं रहा शिमला समझौता

समझौते का मकसद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते में पड़ी दरार को कूटनीतिक तरीके से पाटना था लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं हो सका और आज यह पूरी तरह अप्रासंगिक हो चुका है।
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तमाम सेकुलर और गाँधी परिवार के चमचे बुद्धिजीवियों और बिके हुए मीडिया की "बुद्धि" पर तरस भी आता है, हँसी भी आती हैजब वे लोग राहुल गाँधी को "देश का भविष्य" बताते हैं साथ ही कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों पर दया भी आती है कि, आखिर ये कितने रीढ़विहीन और लिज़लिज़े टाइप के लोग हैं
पढ़िए इस ब्लॉग पर

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर (Suresh Chiplunkar)

राष्ट्र के पुनर्निर्माण के प्रति समर्पित
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आज सोचा कि कुछ विचित्र ब्लॉगों के बारे में जानकारी लेने का प्रयत्न क्यों न किया जाये जो बिना "ब्लागरों " के कमेन्ट के भी चल रहे हैं ! …….. सतीश सक्सेना
कुछ नयी कविताये/ग़ज़लें….
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आज चलिए आपको पढाये हमारे प्रसिद्द लेखक डा. धरमवीर भारती जी की पत्नी डा. पुष्प भारती के अनुभव...
कुछ ही दिन पूर्व डा. पुष्पा भारती ने एक और बरस का अनुभव अपने जीवन में जोड़ लिया और और 75 के पड़ाव से आगे के अनुभव संचित करने के लिये आयु के नये साल में प्रवेश कर लिया है ।

दूर कहीं लोग जीवित हैं : डा. धर्मवीर भारती

उनके पति, प्रसिद्ध कवि, लेखक एवम सम्पादक, स्व. डा. धर्मवीर भारती की एक कविता यहाँ प्रस्तुत है….
वंदना जी अपनी रचना द्वारा बगावत का बिगुल बजाती आम आदमी के जागने की बात कर रही हैं..

कभी तो जगेगा ही........

तपते चेहरे
कुंठित मन
ह्रदय में पलता
आक्रोश का
ज्वालामुखी
लिए हर शख्स
पढ़िए अदा जी की इस गज़ल में ...जो कहती है..मन मनुहार चाहता भी है लेकिन कहते भी शर्माता है..

हम वहीं तर जाते हैं....

चुल्लू चुल्लू पानी लेकर, हम कश्ती से तो हटाते हैं
वो पलक झपकते सागर बन, और इसे भर जाते हैं
देखें तुझको या ना देखें, फर्क हमें क्या पड़ता है
साया भी ग़र तेरा छू ले, हम वहीं तर जाते हैं

दीपक मशाल जी अपने शब्दों से दिखा रहे हैं एक अद्रश्य सूली..

एक अदृश्य सूली

हर सुबह समेटती हूँ ऊर्जाओं के बण्डल
और हर शाम होने से पहले
छितरा दिया जाता है उन्हें
कभी परायों के
तो कभी तथाकथित अपनों के हाथों..

रश्मि प्रभा जी काबुलीवाले की प्यारी सी कविता पेश कर के देखो कैसे हमरा बचपन याद दिला रही हैं..

काबुलीवाला

जेब में जादू का दीया और बाती
मिन्नी की मटकती आँखें
और काबुलीवाले का जादू...
गलती से बड़ी हुई मिन्नी
काबुलीवाले ने घुमाई छडी
छोटी बन गई मिन्नी
करण समस्तीपुरी की एक कविता आई -'निशब्द नीड़' (लिंक) इसकी न केवल शब्द योजना और प्रांजलता ने पाठकों को मुग्ध किया बल्कि भावों की सरल प्रस्तुति के कारण भी यह पाठकों के अन्तर्मन को स्पर्श कर गई। कविता की इसी विशिष्टता ने इस रचना पर दो शब्द लिखने के लिए प्रेरित किया और ऑंच के इस अंक में इसे समीक्षा के लिए सम्मिलित किया गया।

निःशब्द नीड़

दिन भर दूर नीड़ से श्रम कर,
चना-चबेना दाना चुन कर,
सांझ पड़े खग आया थक कर,
किन्तु यहाँ क्या पाया ?
नीड़ देख निःशब्द,
विहग का उर आतुर घबराया !!
पढ़िए मनोज जी के ब्लॉग पर

थूके अगर तो थूक ले जग इसका ग़म नहीं.............

-डॉ० डंडा लखनवी
कुछ अपनी जान उनपे छिड़कते ज़रूर हैं।
जो शख़्श सरे राह मटकते ज़रूर हैं॥
सत्ता के संग हुज़ूम हो, है ये असंभव,
चीनी के पास चींटे फटकते ज़रूर हैं॥
अब वक़्त मांग रहा है इजाज़त तो दीजिए मुझे भी इजाज़त ......फिर मिलेंगे अगले शुक्रवार ...तब तक के लिए शब्बा खैर….!!

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही मनभावन चर्चा रही आज की!
    --
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  2. एक अच्छी चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत मेहनत से तैयार की गई चर्चा। बहुत अच्छे लिंक्स मिले। अभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही मनभावन चर्चा रही आज की..!
    अभार...!

    जवाब देंहटाएं
  5. कई बढ़िया ब्लाग्स का पता बताने के लिए शुक्रिया अनामिका !

    जवाब देंहटाएं
  6. अनामिका जी
    सबसे पहले तो आपको इस बात के लिए धन्यवाद कि आपने मेरी पोस्ट को चर्चा मंच के लायक समझा दूसरी बधाई इस बात के लिए कि आपने भी संगीता स्वरूपजी की तरह ही अपनी मेहनत को अन्जाम देना शुरू कर दिया है। आपके परिश्रम का रंग भी चटख दिखाई देने लगा है।
    आज भी सारी लिंक्स अच्छी है। विविध विषयों पर लिखने वाले लोगों को एक जगह एकत्र कर देना एक बड़ा काम ही है। आपको बधाई।

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  7. धन्यवाद! आप सूचना न देतीं तो शायद यहाँ तक न पहुँच पाता। कुछ दिनों से वैयक्तिक व्यस्तताओं के चलते कुछ कम पढ़ पा रहा हूँ।
    यहाँ से पढ़ने के लिए कुछ लिंक मिले हैं।

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  8. सुन्दर चर्चा.....अच्छे लिंक्स मिले....आभार

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  9. bahut hi achchhi charcha... kavitaon ka hissa hamesha ki tarah sabse jyada pasand aaya mujhe :)

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  10. अनामिका जी
    बहुत ही मेहनत से लगाई है चर्चा…………काफ़ी नये लिंक्स मिले……………बहुत ही सुन्दर अन्दाज़्।

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  11. यहां चर्चा के विषयों का चुनाव आपने बहुत सोच समझकर किया है अनामिकाजी!... यहीं से हम चुनिंदा ब्लोग्स पर जा सकते है!...मेरी कविता को यहां स्थान मिला इसके लिये धन्यवाद देना चाहूंगी!

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  12. सुन्दर एवं विस्तृ्त रूप से तैयार की गई ये चर्चा बहुत ही मनभावन रही...
    आभार्!

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  13. विविधतापूर्ण स्तरीय सामग्री को एक ही स्थान पर परोस कर आपने पाठकों पर बड़ा उपकार किया है।
    -डॉ० डंडा लखनवी

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  14. अनामिकाजी ,आभार कि अपने मेरी कविता को चर्चा मंच के लायक समझा.आज के अंक में आपने खूब मेहनत की है.बधाई.

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  15. अनामिकाजी ,आभार कि अपने मेरी कविता को चर्चा मंच के लायक समझा.आज के अंक में आपने खूब मेहनत की है.बधाई.

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  16. अनामिका जी मेरे ब्लॉग का चयन करने के लिये शुक्रिया ।आपकी चर्चा में सभी विषयों से सम्बन्धित लिंक मिल गए।धन्यवाद

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  17. bina kisi parichay ke kisi ka link dena, uski charcha karnaakoi dilvala hi kartaa hai. aap ko naman. aapne anek sundar link diye hai.

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  18. सबको बराबर स्थान दिया और हर रचना को पढ़ कर इतनी मेहनत से आपने जो चर्चा तैयार की उसकी तारीफ तो करनी ही होगी.. आभार भी..

    जवाब देंहटाएं

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