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शनिवार, जुलाई 10, 2010

कितने कमल खिले जीवन में (चर्चा मंच - 210)


नमस्कार, मित्रो!
आज की इस चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है!
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आज मैं आपको सबसे पहले एक ऐसे ब्लॉगर से मिलवा रहा हूँ,
जो अपने ब्लॉग के माध्यम से
हमें नई-नई पत्रिकाओं की जानकारी देते रहते हैं!


अखिलेश शुक्ल इस बार हमें त्रैमासिक पत्रिका "पुष्पक" के बारे में बता रहे हैं!
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यहाँ आजकल "कमल" पर कार्यशाला चल रही है!
इस कार्यशाला के अंतर्गत दूसरा नवगीत प्रकाशित हुआ है!
जिन रचनाकारों को नवगीत रचना सीखना हो,
उन्हें यह नवगीत पढ़ने के लिए अवश्य जाना चाहिए -


कितने कमल खिले जीवन में
जिनको हमने नहीं चुना
जीने की आपाधापी में भूला हमने
ऊँचा ही ऊँचा तो हरदम झूला हमने ... ... .
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रश्मि प्रभा अपनी कविता के माध्यम आज को जीने का महत्त्व वता रही हैं!


उनके अनुसार -

कल को भविष्य माना तो एक ही सार होगा
तुमने क्या पाया?
तुम्हारा क्या गया जो रोते हो !!!
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वंदना गुप्ता ब्लॉगरों पर एक मज़ेदार व्यंग्यात्मक पैरोडी सुना रही हैं!

मेरा फोटो

मैं कुछ पल का ब्लॉगर हूँ
कुछ पल की मेरी पोस्टें हैं
कुछ पल की मेरी हस्ती है
कुछ पल की मेरी ब्लॉगिंग है
मैं कुछ पल ........
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इस रचना का शीर्षक ही बता रहा है कि इसका संबंध किसी से भी नहीं है!
फिर भी देख लीजिए : कहीं यह आपसे संबंधित तो नहीं!

मेरा फोटो

मुझसे बतियाने को कोई,
चेली बन जाया करती है!
तब मुझको बातों-बातों में,
हँसी बहुत आया करती है!
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एक बढ़िया आलेख के माध्यम से स्वप्न मंजूषा 'अदा'
कनाडा की गर्मी के बारे में विस्तार से बता रही हैं!


किसी से अगर हम कहें कि कनाडा में भी गर्मी पड़ती है तो लोग कहेंगे ...
मेरा दीमाग ठिकाने पर नहीं है....जी हाँ ये तापमान है हमारे शहर, ओट्टावा का ...
आज तो वास्तव में ४४-४५ डिग्री सा ही महसूस हो रहा है....
सोचा आप लोगों को भी बता देना ही चाहिए....
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डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने तुर्की कवि ओरहान वेली (१९१४ - १९५०) की

एक कविता का बहुत महत्त्वपूर्ण अनुवाद प्रस्तुत किया है!


मुझे पसंद है पालक
मैं दीवाना हूँ पफ़्ड चीज़ पेस्ट्रीज का
दुनियावी चीजों की मुझे चाह नहीं है
बिल्कुल नहीं दरकार।
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हर्षिता ने बहुत सुंदर शब्दावली का प्रयोग करते हुए
चटकती धूप का वर्णन इस रचना में किया है!


सुबह की धूप आज कितनी खिली है
कई दिनों बाद
मानों सूरज की किरणें बुहार रही
धरती के हरीतिम आंचल को।
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समीर लाल
एक बहुत सुंदर गिलहरी की
मस्त हरक़तों के बारे में अपने अनुभव बता रहे हैं!
एक बार आपको बताया था कि कैसे चिन्नी गिलहरी मुझसे घूल मिल गई है.
बुलाता हूँ तो चली आती है. खिड़की के बाजू में बैठकर मूँगफली और अखरोट मांगती है.
जब दे दो तो एक खायेगी बाकी सारे बैक यार्ड में छिपायेगी बर्फीले दिनों के लिए.
हमारे आपकी तरह उसे भी अपने कल की चिन्ता है.
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पछुवा पवन : परमेश्वर से तब मैंने बेटी को मांग लिया


कई जनम के सत्कर्मो का
जब मुझको वरदान मिला
परमेश्वर से तब मैंने
सीता सी बेटी मांग लिया

--------------------------------------------------------------- राजभाषा हिंदी कविता क्या है?

मनोज कुमार ने अपने अलग अंदाज़ में
कविता के बारे में एक रोचक आलेख प्रस्तुत किया है!

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कविता क्या है?
इसकी प्रेरणा कहां से आती है?
कविता लिखने से पहले,
या लिखते वक़्त या पढते वक़्त कभी सोचा है आपने?
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चर्चाकार -

14 टिप्‍पणियां:

  1. waah..!!
    ye andaaj to bilkul hi naya laga hai..
    kya idea hai...
    bahut khoob...bahut acchi lagi naye andaaz ki ye charcha...
    aapka aabhaar..!!

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की चर्चा बहुत ही बढ़िया शैली में प्रस्तुत की गई है!
    --
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा मंच में चुनी गई रचनाओं ने आनन्दित कर दिया |इसे सुन्दर ढंग से सजाया है आपने |
    आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  4. रोचक, मनभावन प्रस्तुति।
    बेहतरीन चर्चा।
    मेरी रचना, खासकर राजभाषा ब्लॉग को सम्मान देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर और अलग अंदाज़ की चर्चा...अच्छी चर्चा के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. आज की चर्चा सार्थक चर्चा है……………नये अन्दाज़ मे…………आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. आप सबको चर्चा का
    यह अंदाज़ भी अच्छा लग रहा है!
    --
    यह जानकर ख़ुश हूँ!
    --
    कल्पना करना शुरू कर दिया है -
    आप सब को पसंद आ जानेवाले एक नए अंदाज़ की!

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. इतने अच्छे प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई। आपका प्रयास अन्य लोगों को भी प्रेरणा देगा।

    जवाब देंहटाएं
  10. जबरदस्त चर्चा रही आज की
    रचनाओं का अच्छा चयन भी किया गया है।

    जवाब देंहटाएं

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