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गुरुवार, जुलाई 22, 2010

हर शाख पे उल्लू बैठा है…वैसे हकीकत में उल्लू हमेशा बडे ही हुआ करते हैं------(चर्चा मंच—222)

                                  

    image चर्चाकार-पं.डी.के.शर्मा “वत्स”


सुना है कि इन्सानों के जैसे ही उल्लूओं की भी अनेक प्रजातियाँ होती हैं. इन प्रजातियों में कुछ उल्लू छोटे कद के व छोटे से मुँह वाले भी होते हैं ,जिन्हे कि देसी भाषा में चकोतरा व मादा उल्लू को चकोतरी कहा जाता है.ये देखने में तो बिल्कुल उल्लू जैसे ही दिखाई देते हैं, लेकिन आकृ्ति उस से कुछ छोटी होती है. अब उल्लूओं और चकोतरो से तो हमारा भी बहुत वास्ता पडता रहा है,लेकिन छुटपन में जब समझ इतनी नहीं हुआ करती थी और न ही इन दोनों के बीच के अन्तर को पहचानते थे, तब कहीं कोई चकोतरा दिख जाता तो हम सोचते कि ये उल्लू का पट्ठा (बच्चा) है. वो तो बाद में कहीं जाकर पता चला कि ये उल्लू नहीं होते और न ही उल्लू के पट्ठे बल्कि ये तो उल्लूओं के वंशज है..उल्लू तो बहुत बडे होते हैं, बिल्कुल चील जैसे. बस तभी से ये गूढ रहस्य समझ में आया कि जो बडा होगा वही उल्लू होगा,छोटा देखने में भले ही उल्लू जैसा दिखाई दे लेकिन हकीकत में वो न तो उल्लू होता है और न उल्लू का पट्ठा…..खैर इस ‘उल्लूक पुराण’ को यहीं बन्द करते हुए आज की चर्चा की शुरूआत की जाए……
लेकिन लगता है कि अभी कम से कम आज के दिन तो आप लोगों का उल्लूओं से पीछा छूटने वाला नहीं….अब आप ही देखिए समीर जी भी यहाँ ‘उल्लूक शास्त्र’ खोल के बैठे हैं..कहते हैं कि  हर शाख पर उल्लू बैठा है…. भई अब जब कि गुलिस्तां के मुकद्दर में ही उल्लूओं का साथ बदा है तो इसमें भला कोई कर भी क्या सकता है :)
image समीर लाल जी नें अपने दिव्य चक्षुओं से
आज एक अजीब बात देखी. आज तो क्या, देख बहुत समय से रहा था, जाना आज. यहाँ बहुत सारे घरों के सामने उल्लू की मूर्ति या पेन्टिंग लगी होती है दरवाजे पर.
बड़ी उत्सुकता थी जानने की कि आखिर उल्लू क्यूँ बैठालते हैं घर के सामने. घर का सामना तो शो रुम सा ही हुआ, उसी को देखकर तो अंदाज लगेगा कि दुकान में घुसा जाये या नहीं. मगर ज्ञात हुआ कि नहीं,घर के सामने से जो हिस्सा घर को रिप्रेजेन्ट करता है अगर वहाँ से उल्लू दिखे तो वह बहुत शुभ माना जाता है. समॄद्धि आती है. नाम होता है.

चर्चा को आगे बढाते हैं श्रीमती अजीत गुप्ता जी द्वारा सवाल उठाती एक सार्थक पोस्ट से--पता नहीं हम अपने देश भारत से नफरत क्‍यों करते हैं?

image एक सुन्‍दर राजकुमार था,उससे विवाह करने के लिए देश-विदेश की राजकुमारियां लालायित रहती थीं। एक दिन एक विदेशी राजकुमारी ने उस राजकुमार से विवाह कर लिया। राजकुमारी ने उसे लूटना शुरू किया और धीरे-धीरे वह राजकुमार जीर्ण-शीर्ण हो गया। राजकुमारी छोड़ कर चले गयी और राजकुमार अनेक रोगों से ग्रसित हो गया। अब उसे कोई प्‍यार नहीं करता,बस सब नफरत ही करते हैं और उससे दूर कैसे रहा जाए,बस इसी बारे में चिन्‍तन करते हैं। इस राजकुमार को हम भारत मान लें और राजकुमारी को इंग्‍लैण्‍ड। कल तक भारत एक राजकुमार था तो उसे लूटने कई राजवंश चले आए और आज जब लुटा-पिटा शेष रह गया है तब उसके अपने भी उससे नफरत कर रहे हैं?

ब्लॉग संसद में देश की दो बडी समस्याएं, ‘जातिवाद’ और ‘सम्प्रदायवाद’ के खिलाफ एक प्रस्ताव रखा गया है ।


देश की दो बडी समस्याएं है,’जातिवाद’ और ‘सम्प्रदायवाद’। यह दोनों समस्याएं तब तक खत्म नहिं हो सकती, जब तक इनके मूल कारणों को समझ कर, इन्हें जड से मिटा नहिं दिया जाता।
जातिवाद का मूल है, जातिय आधार पर सवर्णों एवं दलितों में भेद-भाव। जातिय आधार पर ही विशेष सुविधाओं का आंबटन। राज्य का प्रश्रय। जब तक ऐसे विशेष लाभ दिये जाते रहेंगे, कुछ जातियों में ईष्या-द्वेश बना रहेगा तो कुछ और ज्यादा पाने का मोह त्याग नहिं पायेंगे। और इसी लालच को केन्द्रित कर राजनैतिक रोटियां सेंकी जाती रहेगी। वोटों की राजनिति खेली जायेगी। लोग जाति आधार पर वोट देंगे। दल जाति आधार पर उम्मिदवार खडे करेंगे। और ऐसे लोकतंत्र में विजय सदा जाति की ही होगी। सार्थक लोकतंत्र हार जायेगा।

डरा डरा आदमी (महेन्द्र आर्य)



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रात के अँधेरे में
डरा डरा आदमी
अंगुली पकड़ के चल रहा
मन के भय के भूत की
डरता है मन क्यों?
शायद अँधेरे से !

जल्दी आओ ..(रश्मि प्रभा)

image                        
मन उदास रहता है
कई बार..
हवा की खुशनुमा चपल चाल भी
अच्छी नहीं लगती 
ज़मीन पर पाँव रखने का
चलने का दिल नहीं होता

अधूरी कविता –6 (अनकही)

कोई डाकिया चिट्ठी लेकर जब भी आता है,
उसके प्रश्नों से बचने को वह कतराता है,
आँखों से झर-झर झरने लगता सावन है।
कितने ही मौसम बीत गए अनजानी यादों के,
गाये ढेरों गीत विरह के सावन भादों में,
तडपी सारी रात मीन सी किया क्रंदन है।
सुबह शाम पूजा करती वह दत्त चित्त होकर,
घंटों रहती ध्यान मग्न अपनी सुध खोकर,
माँगा करती हाथ जोड़कर प्रिय का दर्शन है!
 हे राम! मत आना कभी तुम यहाँ (अर्चना शुक्ला)
image                                                  
मत छुओ मेरे दर्द को ,
दर्द और होगा,
मत सहलाओ मेरे ज़ख्मो को ,
घाव अभी फिर रिसने लगेंगे ,
मत हवा दो अपनी सांसों की,
मेरी आँहो से धुंआ उठने लगेगा,

दिव्या श्रीवास्तव जी इस बात पर रौशनी डाल रही हैं कि श्रेष्ठ चिकित्सक कौन ?

क्या नारी होने की सार्थकता पुरुष की आलोचना करने में ही है ? क्या मैं एक नारी होते हुए,पुरुषों में उपस्थित गुण,उनकी निर्भीकता,व्यावहारिकता तथा हिम्मत को आत्मसात नहीं कर सकती?
यदि कर सकती हूँ,तो एलोपैथ की डिग्री रखकर आयुर्वेद तथा होम्योपैथ की खूबियों को क्यूँ नहीं अपना सकती ? जितना ज्यादा जानकारी होगी,डॉक्टर का व्यक्तित्व उतना ही निखरेगा।

अस्तित्व (अनुभूति)

आत्मा अमिट हैं जानती हूँ मै
इसीलिए बिना इकरार,बिना वादे के
फिर भी मानती हूँ , तुमको
इकरार तो इनकार में बदलने का डर होता हैं
और वादा फिर भी टूट जाने का डर
तुम में ही,अपने को डुबोकर
पाया हैं मेने अपने आप को
कही कुछ खो जाने का डर नहीं
ना ही कुछ टूट जाने का
क्योकि मैने कुछ साथ बांधा ही नहीं,
मैने तो डुबो दिया हैं खुद को
तुम्हारे अस्तित्व में

दुनिया के रंगों में डूबे श्रीमान अनाम जी पूछ रहे हैं कि क्या किसी नें हिन्दुस्तानी टाईम सुना है ?

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आप लोगों नें इण्डियन स्टैंडर्ड टाईम सुना होगा,ग्रीनव्हिच टाईम सुना होगा लेकिन क्या किसी नें हिन्दुस्तानी टाईम सुना है?मेरे ख्याल से किसी नें नहीं सुना होगा.दरअसल हिन्दुस्तानी टाईम वो टाईम है, जिसके अनुसार……..
कुछ इधर की, कुछ उधर की कहते-सुनते  क्या आप भी सोचते हैं ???
image पता नहीं आप इस तरह से सोचते हैं या नहीं, पर बात वास्तव में सोचने की ही है. घरबार, बाल-बच्चे, रोजी-रोजगार, अडोसी-पडोसी, नाते-रिश्तेदार, देश-दुनिया और तो और भगवान के होने या न होने के बारे में भी आपने जरूर सोचा होगा. लेकिन मैं कहता हूँ कि इतना सबकुछ सोचने पर भी आपने कुछ नहीं सोचा, क्यों कि जो कुछ भी आपने सोचा वो सोचा न सोचा एक बराबर है.

अरविन्द मिश्र जी जानकारी दे रहे हैं -एक मछली जो वैज्ञानिको को छकाती रहती है

image आज बनारस के दैनिक जागरण ने एक सचित्र खबर प्रमुखता से छापी है जिसमें एक मछली के आसमान से बरसात के साथ टपक पड़ने की खबर है.मछलियों की बरसात की ख़बरें पहले भी सुर्खियाँ बनती रही हैं ,पूरी दुनिया में कहीं न कहीं से मछलियों के साथ ही दूसरे जीव जंतुओं की बरसात होने के अनेक समाचार हैं .बनारस में कथित रूप से आसमान से टपकी मछली कवई मछली है जो पहले भी वैज्ञानिकों का सर चकराने देने के लिए कुख्यात रही है.यह कभी पेड़ पर मिलती है तो जमीन पर चहलकदमी करते हुए दिखी है...इसका इसलिए ही एक नाम क्लायिम्बिन्ग पर्च है .अब इस बार यह बरसात की बूंदों के साथ जमीन पर आ धमकी है
                     ब्लागसंसार की इस भीड में शामि हुए कुछ नए चिट्ठे

चिट्ठा—नब्बूजी                                चिट्ठाकार-प्रो० नवीन चन्द्र लोहनी

मीडिया की हिन्दी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा बने

भविष्य में अगर हिन्दी के विकास के लिए कोई चीज जिम्मेदार होगी तो उसमें सर्वाधिक वे चयन होंगे जो वर्तमान हिन्दी के स्वरूप को उद्घाटित करने वाले होंगे जाहिर है कि इसमें सर्वाधिक,चर्चित विकासक्रम, संचारमाध्यमों द्वारा अपनाई गई हिन्दी का ही है जिसमें पारम्परिक हिन्दी बरक्स एक ऐसी हिन्दी खड़ी हो गई है जो आज अपने आप में अधिक प्रभावशाली,आक्रामक और सुलभ तरीके से लोगों के बीच पहुँच रही है। ऐसी हिन्दी से मेरा तात्पर्य है जो संस्कृतनिष्ठ बोझिलता से बाहर है और जिसमें उर्दू उच्चारण भंगिमा या अंग्रेजी की उच्चारण भंगिमा का अतिक्रमण होते हुए बंगला,मराठी, पंजाबी का हिन्दीकरण करते हुए एक अलग तरह की हिन्दी हमारे बीच आ रही है। मैं ऐसी हिन्दी का पक्षधर हूँ जो अपनी वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए किसी भी भाषा की शब्दावली को आत्मसात कर सके और उस परिवर्तन को हिन्दी की प्रवृत्ति के साथ तालमेल बिठाते हुए प्रयुक्त किया जाए कि वह भविष्य में हमें कभी भी बेगानी न लगे।
चिट्ठा--MY THOUGHTS                                            चिट्ठाकार—राज

मेरी अन्तर वेदिना

मुझे मेरा पहला दिन ससुराल का याद आया सुबह उठते ही सब नया लगा , माँ की जगह सास और भाइयों की जगह देवरों को पाया.घर के नियम और ससुराल के नियमों में अंतर पाया. अपने आप को सँभालने में ही महीनों लग गए. मैं अपने छोटे से सम्राज्य की महारानी हूँ .मेरे बगैर घर में कुछ भी नही होता. 30 साल से मैं इसे बहुत कुशलता से संभाल कर आ रही थी,कि अचानक कोई मेरे पीछे खड़ा महसूस किया और देखा,बहु! एक बार तो मन आंदोलित हो गया कोई मेरे छोटे से साम्राज्य में घुस गया हे
चिट्ठा--भारतीय की कलम से.......                                 चिट्ठाकार—गौरव शर्मा

image वन्दे मातरम !!
आपको सूचित करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है की आप समस्त देशभक्तों एवं देश के समर्पित जागरूक नागरिकों के सहयोग से देश की जनता को एकता और "भारतीयता" के सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से "अभियान भारतीय" की शुरुआत 15 अगस्त 2010 "स्वतंत्रता दिवस" के पावन अवसर से की जाएगी !!
पुनः आप सभी से अपील, कि अब हम जाती, धर्म, भाषा के भेदभाव को त्यागकर एक हो जाएँ और भारत को विश्वगुरु के पुरातन स्वरूप में पुनः प्रतिष्ठित करें.......
चिट्ठा-मितरां दा अड्डा  (योगेश मित्तल)

बचपन का ज़माना

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एक बचपन का ज़माना था,
खुशियों का ख़जाना था………
चाहत चाँद को पाने की,
दिल तितली का दिवाना था………
खबर न थी कभी सुबह कि,
और न ही शाम का ठिकाना था………
थक हार कर आना स्कुल से,
पर खेलने भी तो जाना था………
दादी की कहानी थी,
परियों का फ़साना था………


चिट्ठा—नया सवेरा  (गिरीश चन्दर)

मत इंतज़ार कराओ हमे इतना




   image                           
मत इंतज़ार कराओ हमे इतना
कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ
और हम खामोश हो जाएँ
दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती
Technorati टैग्स: {टैग-समूह},

17 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन चर्चा..लगभग सभी लिंक्स पर जाना बाकी है. अब यहीं से ब्रेमण करेंगे..आराम मिला, आभार.

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  2. शर्मा जी
    आज की चर्चा तो बेहद शानदार रही……………एक से बढकर एक लिंक मिले……………।बेशक देर से मिली मगर ज़बरदस्त मिली……………आभार्।

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  3. चर्चा सारगर्भित और सिस्टमेटिक लग रही है। इसके लिए वत्स जी को बधाई।
    ………….
    अथातो सर्प जिज्ञासा।
    संसार की सबसे सुंदर आँखें।

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  4. बहुत विस्तृत और उम्दा चर्चा.

    रामराम

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