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मंगलवार, अगस्त 03, 2010

साप्ताहिक काव्य मंच –११ ( संगीता स्वरुप ) चर्चा मंच - 234

नमस्कार ,हम आ गए आपके दरबार ,आपको था मंगलवार का इंतज़ार तो हम भी हैं काव्य पुष्पों की माला ले कर तैयार ….स्वागत है आप सबका ….आज पुन: मिलिए कुछ अन्य रचनाकारों से …मेरी नज़र से …. किसी भी लिंक तक पहुँचने के लिए आप चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं …लिंक्स तो हैं ही…  लिंक्स तक आपका पहुंचना चर्चा की सार्थकता बताता है…तो शुरू करते हैं आज की चर्चा ….

गिरीश पंकज जी पत्रकारिता के क्षेत्र में एक चमकते सितारे हैं …इनके लेखन के बारे में कुछ भी कहना  सूर्य को दीपक दिखाने के समान है…विशेष रूप से व्यंगकार हैं …अनेकों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं…इस विषय में आप इनके ब्लॉग से जानकारी ले सकते हैं …कविताओं की बात करें तो हिंदी में बहुत खूबसूरत गज़ल लिखते हैं …विषय इनके सामाजिक ,राजनैतिक और शिक्षाप्रद होते हैं …हर विशेष दिवस पर उनकी लेखनी जागरूक करती है ..

ध्वज दिवस पर इनकी पंक्तियाँ देखें
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सबको ध्वज से प्यार है.
जिसने इसकी फ़िक्र नहीं की, समझो वह गद्दार है.
देश से बढ़ कर कौन हुआ है, क्या यह भी समझाएंगे..
वक़्त पडा तो इसकी खातिर, अपनी जान लुटाएँगे.


भगवान को भी अपनी गज़ल में चुनौती देते हुए कह रहे हैं
खून बहाकर जीवों का जो भक्तों से खुश होता है
लानत भेजूँगा मैं उसको चाहे वह भगवान् भी हो

सुख और दुःख को अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं
धीरज रक्खो, सोचो थोडा
चंचल मन तो उकसाता है
सर्जक के मन के भावों को
बस सर्जक ही पढ़ पाता है.
स्वप्न मंजूषा जी हर विधा में माहिर हैं …लेख हो , व्यंग हो , गीत हो या फिर गज़ल हो…ऐतिहासिक विषयों पर भी अच्छी जानकारी रखती हैं …समसामयिक विषयों पर भी धारदार लेखनी चलती है आपकी … गज़लें बहुत संजीदगी से लिखती हैं तो कभी कभी कविताओं में भाषा सौदर्य से चमत्कृत कर देती हैं …आप भी देखिये कुछ नमूने …

आओ न आँधियों कहीं और उड़ा लो मुझे ..
निगाहों में रख लो या दिल में बसा लो मुझे
हाथों की लकीरों में लिल्लाह सजा लो मुझे
प्रार्थना उर अंकुर हुआ...
मन मयूर मुदित हुआ
हृदयंगम कोई सुर हुआ
गात पात सम लहराया
उषामय आनन उर हुआ
ऊबरा मन मंदिर तम से
देह प्रकाशित पुर हुआ
मैं हूँ यशोधरा तुम्हारे राहुल की माँ.
सिद्धार्थ !!
कैसे मोक्ष पाओगे ?
ऋणी हो तुम मेरे
नहीं मुक्त करुँगी तुम्हें, कभी भी,
याद रखना
मैं हूँ यशोधरा
तुम्हारे राहुल की माँ...
हम नहीं सुधरेंगे...
आर्य आये ईसा पूर्व १५००
वैदिक सभ्यता विकसित हो जाना
संस्कृत थी आर्यों की भाषा
तभी धर्म 'हिन्दू' उत्थाना
चलते - चलते एक नज़र नयी गज़ल पर भी
बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
बात वो दिल की ज़ुबां पे कभी लाई न गई
चाह कर भी उनको ये बात बताई न गई
नीम-बाज़ आँखें लगा जातीं हैं सेक हमें
आब में डूबे रहे पर आग बुझाई न गई

12012010005
मनोज जी की रचनाओं को मैंने अनेक विधाओं में पढ़ा और जाना है ..लघुकथा के माध्यम से बड़ी से बड़ी बात कह जाते हैं ..ऐसी ही कड़ी है मेरे छाते की यात्रा कथा व्यंग के माध्यम से भी बहुत कुछ कहते प्रतीत होते हैं …इसका उदाहरण आप  बिखरी चीजें   पर भी पढ़ सकते हैं ..कविताओं की बात करें तो आपकी कविताएँ नए बिम्ब लिए हुए होती हैं …या फिर भाषा का सौंदर्य कविताओं में झलकता है …कुछ उदाहरण यहाँ देना चाहूंगी ..
अपनी कविता
  अमरलता  के माध्यम से ऐसे लोगों को इंगित कर रहे हैं जो दूसरे को गिरा कर खुद आगे बढ़ना चाहते हैं …

बस भोग, निरन्तर भोग, भोग,
बढ़ते हैं
जग मे वही आज,
जो देते
औरों को धकेल।
हे अमरलता !
हे अमरबेल !

ऐसे ही एक नया बिम्ब है कैटरपिलर  …जहाँ एक मजदूर के जीवन की त्रासदी को लिखा है …

कैटरपिलर!
तुम प्रतीक हो,
बेबस बेचारों के,
मोहताज़ मज़दूरों,
लाचारों के।
हे श्रमजीवी!
करके तैयार,
रंग-विरंगे वस्त्रों का,
रेशमी संसार।
तुम मिटते हो,
पटते हो,
जैसे नींव में पत्थर।
ओ कैटरपिलर!
भाषा का सौंदर्य धारासार धरा  पर देखिये
वारिद-विद्युत   विभूषित  व्योम,
मोह – जनित     भव - दारुण।
प्रीति   रस   से  भरा   घनमाल,
रिमिर-झिमिर वर्षा, मृदु गर्जन
और एक नयी पेशकश -------  संबंध-विच्छेद …..   इस रचना को मात्र एक कविता नहीं कहा जा सकता …..यह है रिश्तों   की धरोहर ….किसी भी रिश्ते को निबाहने के लिए यह रचना मूल मन्त्र का काम करेगी..यह मेरा विश्वास है …आप भी पढ़िए और मनन कीजिये ..
थक-हार चुके हम
करके हर उपाय
अब और निभेगा नहीं……
सुना है
हर ख़तरे से पहले
बजती है घंटी!
बजी तो होगी
और इसके बाद का विश्लेषण मनोज जी ने बहुत संजीदगी से और सहजता से किया है…
My Photoशिखा वार्ष्णेय के लेखन से बहुत से लोग परिचित हैं …..संस्मरण और यात्रा वृत्तांत बहुत खूबसूरती से लिखती हैं ..काव्य सृजन बहुत संवेदनशीलता से करती हैं …कविताओं में हर रंग मिलता है …व्यंग भी और चिंतन भी …बहुत सी रचनाओं में इनका आशावादी दृष्टिकोण दिखता है…..आसमां तक पहुँचने की चाहत इसी बात को दर्शाती है…..जैसे लिखती हैं …. उछलूँ और लपक लूँ आसमां …बाहों में पिघलता आसमां …और बादल की उंगली थाम आसमां की सैर करती हुई सपनों के गाँव को ही घूम आती हैं ….कल्पना के साथ यथार्थ को भी बुनती हैं जैसे - किसानो की चिन्ता भी सताती है तो  नारी जैसे विषय पर भी लेखनी चलती है…..आप भी  कुछ ऐसी रचनाओं से रु-ब -रु होइए ---
अमृत रस
बेबस किसान ताक़ रहा था, 
चातक भांति निगाहों से, 
घट का पट खोल जल बूँद 
कब धरा पर आएगी..

आज इन बाहों में

कर समाहित सूर्य उष्मा
तन मन अब निखर रहा है
आज खुली बाहों में जैसे
सारा आस्मां पिघल रहा है.

समाज की विसंगतियों को दर्शाती एक रचना …

उसका / मेरा चाँद

उसकी माँ तो रोज़ रात को
जब काम से आया करती है
इस थाली में ही छोटा सा
चाँद दिखाया करती है
कुछ रोमानी से एहसास -
सुनो! पहले जब तुम रूठ जाया करते थे न,
यूँ ही किसी बेकार सी बात पर
मैं भी बेहाल हो जाया करती थी
चैन ही नहीं आता था
मनाती फिरती थी तुम्हें
नए नए तरीके खोज के..
आज इतने ही लोगों से परिचय …..बाकी कुछ अगली कड़ी में ….अब प्रारंभ करती हूँ चर्चा का दूसरा चरण ….सभी रचनाओं पर मैंने अपनी सोच के आधार पर थोड़ी व्याख्या की है ….यदि किसी की रचना के साथ गुस्ताखी हो तो क्षमा कीजियेगा ….
मेरा फोटो मेरे घर आना  ….. इस कविता के माध्यम से कवयित्री आज के भौतिकवादी जीवन को व्यक्त करते हुए आश्वासन दे रही हैं कि जब ज़िंदगी में थक जाओ तब मेरे घर आना …जहाँ रिश्तों की गर्माहट है….
मेरे घर में बेशकीमती चीजें नहीं
अनमोल एहसास हैं
एक संदूक - यादों की
एक संदूक - मासूम सपनों की
एक संदूक- मुस्कान की
image रचनाकार »  पर पढ़िए  सुभाष राय की कवितायें….तलाश …..  आदमी होना  और कहाँ है आदमी
तीनों कविताएँ आज के आदमी को परिभाषित करती हुई ..अलग अलग ढंग से व्याख्या कर रही हैं ..




मुझे उन कायरों की
कोई दरकार नहीं है
जो सड़क पर लहूलुहान पड़े
बच्चे के पास से गुजर जाते हैं
मेरा फोटोसूर्यकान्त गुप्ता जी के उमडत - घुमडत विचार आज बादलों के साथ घुमड़ घुमड़ कर बारिश से होने वाली त्रासदी को सहजता से बता रहे हैं …जहाँ एक ओर बारिश सुख देती है तो कहीं यही वर्षा किसी के घर को भी उजाड़ देती है ..    यही बात इन्होंने इन तीन दिनों की बारिश  में बहुत सहजता से कही है ..

नदी में आयो बाढ़,  उतर जइयो---
प्राकृतिक आपदाओं, भूखमरी,
बेरोजगारी, घोटालों,  भ्रष्टाचारों
इनकी बनी रहे जो बाढ़,
क्या करियो भइयो?????
जय जोहार ....
My Photoअविनाश अपनी हर रचना से चमत्कृत कर  देते हैं ….हिंदी भाषा का गूढ़ ज्ञान रखने वाले इस युवा पर जितना भी नाज़ किया जाये कम है …. आज की कविता      क्षत्रियता..  में ऐसे प्रश्नों को उठाया गया है जिनके जवाब शायद ही कोई दे पाए ….पढते पढते मन अकुलाहट से भर जाता है ..

समस्त पराक्रम,
निचोड़ के रख तो दूँ.
खोल दूँ प्रत्यंचा, कवच
मोड़ के रख तो दूँ.
किन्तु विकट तम आए तो,
मुझे हिंसक कहने वाले,
शांति के पुरोधाओं,
असि उठा लोगे?
मेरा फोटोयोगेश शर्मा जी अभिनन्दन से सशक्त रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं ….आज की यह रचना  संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है   उनके हौसले को बताती है…..आगे बढने की चाह , संघर्ष करते हुए मंजिल पाने की इच्छा  ….मन के सारे भय को दूर कर  नयी राह बनाने की अकुलाहट दिखाई देती है …


मर रहा हूँ रोज़, कतरा-कतरा तिल तिल के
नये सिरे से, अपने आप से जुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है

पुकारो जितना मुझे, लाख़ दे लो आवाजें,
किसी के रोके रुकेंगी, न अब ये परवाज़ें,
दिखी है राह नयी, पीछे नहीं मुड़ना है
संभालो ज़मीन अपनी, मुझे उड़ना है
प्रज्ञान - विज्ञान पर  डा०  जे० पी० तिवारी की एक बहुत अच्छी रचना पढ़ें ..  गंगा क्या है - नदी, आस्था या विज्ञान …..  इस कविता में जहाँ एक ओर गंगा का इतिहास और भारतीय संस्कृति झलकती है वहीँ इसे विज्ञान से भी जोड़ा गया है …
गंगा एक नदी है
जो निकलती है गोमुख
गंगोत्री से और………….
गंगा हमारी संस्कृति है
जो विष्णु के नख से निःसृत हो
जा समाई ब्रह्मा के कमंडल में………….

गंगा है आस्था
और विश्वास का अटूट संगम,……..
गंगावतरण विज्ञान है-
एक .सूत्र है भौतिकी का………..
पूरी कविता आप लिंक खोल कर पढ़ें
श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना \यह चित्र साधना वैद की माँ का है…और यह हमारा सौभाग्य है कि हमें माँ की रचना पढने को मिल रही हैं …साधना जी को इसके लिए साधुवाद  ……..  ज्ञानवती सक्सेना जी ( किरण ) की हर रचना खूबसूरत भावों  से सजी होती है .. * कितनी दूर और चलना है …..इस कविता में कवयित्री साथी के पथ को प्रशस्त कर रही हैं ….

मेरा जीवन दीप तुम्हारे पथ में किरणें बिछा रहा है,
अपनी ही ज्वाला में जल कर अपनी हस्ती मिटा रहा है,
ज्योति तुम्हें देती हूँ पर प्रिय मेरे तले अकाट्य अँधेरा,
स्नेह हीन जर्जर उर बाती, मुख पर झंझाओं का फेरा,
मेरा फोटोलक्ष्मी चौहान  अनुभूति  अपने एहसास के गलियारे से एक संवेदनशील कविता को प्रस्तुत कर रही हैं ….हिना ….. यह हिना मेंहदी नहीं है लेकिन जिस तरह से मेंहदी पीसने के बाद ही रंग देती है ऐसे ही यह हिना भी संघर्ष करते हुए अपने रंग बिखेरती सी प्रतीत होती है ..यह रचना घर में काम करने वाली हिना के बारे में कह रही है

तुम्हे सलाम करती हूँ हिना 
सलाम करती हूँ 
जिन्दगी की मुश्किलों से लड़ने की
तुम्हारी ताकत को  
तुम मेरे लिए बहुत  ख़ास हो 
तुम्हारी वो मासूम सी बाते और 
अपने परिवार के पांच लोगो को पालने का बोझ 
और उसमे दम  भर्ती तुम्हारी सपने देखने की चाहते
My Photoसिद्धार्थ  ऐसे सत्य को बता रहे हैं जिससे हर कोई परिचित है ….लेकिन इस सत्य को जानते हुए भी सब अनजान बने रहना चाहते हैं ….    जाने वाले     से यही कहना चाहते हैं कि … कहने को तो है सब अपने, पर कोई अपना साथ नहीं,मुश्किलों के इन लम्हों में , हाथो में कोई हाथ नहीं.

चिर निंद्रा में लीन हुए अब तो हमको सोने दो,
सदियों के है नाते टूटे, कुछ पल तो हमको रोने दो.
घुघूतीबासूती    जी ने अपनी कविता    ये चाहती क्या हैं ?  के माध्यम से समाज की सोच पर प्रश्नचिह्न  लगा दिया है….. कहने को तो चिड़ियों को माध्यम बनाया है ..पर जहाँ तक मैं समझ पायी हूँ आज की लड़कियों के खुलते पंखों को कतरने की कुछ साजिश की ओर इंगित करती है यह कविता ….बहेलिये , व्याध , छछूंदर , विमान यहाँ तक कि देवता भी स्त्रियों के आगे बढने से चिंतित नज़र आते हैं …रचना इतनी खूबसूरती से लिखी है कि आपके समक्ष रखने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई …

ये चिड़ियाँ
चाहती क्या हैं?
जो चाहती हैं वह
ये चाहती क्यों हैं?
क्या यूँ कुछ चाहना
भली चिड़ियों को शोभा देता है?
क्या बिन ऊँची उड़ान भरे
बिन हमसे स्पर्धा करे
किसी दड़बे में रह, कभी कभार
उड़ना ही है तो क्या
मुर्गी की तरह नहीं उड़ सकतीं?
पूरी रचना लिंक पर जा कर पढ़ें
lमेरा फोटोअराधना  चतुर्वेदी मुक्ति के नाम से भी लिखती हैं ….हर कविता दिल से निकली आवाज़ होती है ….अपने इनके स्वयं के अनुभव होते हैं जिनको शब्द दे देती हैं …आज की इनकी कविता    मन विद्रोही    में ऐसे ही अनुभव को बांटा है … एक लडकी को अक्सर माँ की क्या हिदायतें मिलती रहती हैं आप जानिए इनकी इन कविताओं से ..

(१.)
माँ कहती थी -ज़ोर से मत हँस
तू लड़की है...
धीरे से चल,
अच्छे घर की भली लड़कियाँ
उछल -कूद नहीं करती हैं,
(२.)
माँ कहती थी
सूनी राहों पर मत निकलो
क़दम क़दम पर यहाँ भेड़िये
घात लगा बैठे रहते हैं,
My Photoअनामिका  आप सबसे पूछ रही हैं  कि     आत्मा कहाँ जाती है यह रचना एक बात स्पष्ट  करती है कि इंसान मरते दम तक ज़िंदगी से जुड़े रिश्तों का मोह नहीं छोड़ पाता ….अंतिम समय में भी रिश्तों से जुड़े रहना चाहता है …



क्या ये संसार से,
रिश्तों से
बिछुड़ने के बाद
उन रिश्तों को याद नहीं करती ..
जो रिश्ते इसकी याद में ..
इसके बिछोह में
खाली हो जाते हैं

ऐसे ही उहापोह की स्थिति से उबरने के लिए श्री कृष्ण ने कुरु भूमि में अर्जुन को ज्ञान दिया था …कौन किसका पुत्र ? कौन किसका पिता? हर बार आत्मा नया रूप धर इस धरती पर आती है…इसीलिए इस संसार का मोह व्यर्थ है….यही जीवन के कर्म हैं ….और कर्म केवल एक जीवन से बंधे नहीं होते ….जाने वाला चला गया लेकिन जो कष्ट भोग रहा है वो उसके अपने कर्म होते हैं ….ऐसा मैं मानती हूँ ….
My Photoमुदिता आज अपने एहसास अंतर्मन के से    जीवन का अंकगणित समझाने का प्रयास कर रही हैं …अंकगणित ही बहुत कठिन लगता है तो जीवन का अंकगणित  तो बहुत दुरूह है …लेकिन इनकी रचना को पढ़ कर शायद कुछ सरल लगने लगे …..क्या घटाना है और क्या जोड़ना …किसे गुणा  करना है और किसे भाग देना …बहुत आसानी से समझा दिया है….विश्वास नहीं है ? पढ़ कर देखिये -

जीवन के इस अंकगणित में
इधर उधर क्यूँ जोड़ घटाना
अहम को खुद से घटा घटा के
है अभीष्ट बस शून्य को पाना

करो विभाजित दुःख दूजे का
गुणन करो निज सुख का रब से
जितना सुख अंतर में होगा
बाँट पाओगे वो ही सबसे
मेरा फोटोसाधना वैद जी  इस बार कुछ उदास हैं और लायी है    उदास शाम    …. कभी कभी मन जीवन की घटनाओं से प्रभावित होता है और जीवन का उल्लास कम हो जाता है ..और यह अनुभूति तब ज्यादा गहरी हो जाती है जब आप अपने देश से दूर हों …भले ही आप अपनो के बीच ही क्यों न हों फिर भी शायद वतन पुकारता है …
पंछी दल लौटे नीड़ों को मेरा नीड़ कहाँ है
नहीं कोई आतुर चलने को मेरी उंगली थाम

बाहर भी तम भीतर भी तम लुप्त हुई सब माया
सुनती हूँ दोनों का गर्जन निश्चल और निष्काम ।

डा०  लखनवी  की रचना     लोग जो चिकने घड़े हैं.   एक व्यंग रचना है…. जो देश के कर्ता धर्ताओं की असलियत बता रही है  ..आप भी अपने नेताओं की खासियत और असलियत से वाकिफ़ हों ….

लोग  जो  चिकने  घड़े  हैं। 

            लग  रहा  वो  ही  बड़े  हैं॥

समस्याएं  हल  हों   कैसे- 

            अक़्ल  पर  ताले पड़े  हैं

चाहती  बदलाव   दुनिया- 

            हम  न बदलेंगे,  अड़े  हैं॥
My Photo
रावेंद्र रवि  अपने रविमन पर एक बहुत प्यारी रचना लाये हैं     नाम तुम्हारा   ..  यह कविता मन के कोमल  भावों  को इंगित करती है…. मन - वचन से समर्पित सी रचना …


इंदु-प्रभा की किरण-किरण में 

सजे तुम्हारे नेह-सुमन! 
इन सुमनों की मुस्कानों से 
सुख पाती मेरी धड़कन

मेरे नवगीतों में नाम 

तुम्हारा ऐसे सजता है - 
जैसे मेरी हर धड़कन में 
रूप तुम्हारा बसता है!
My Photo
पलक लम्हे पर लायी हैं उँगलियों की करामात ….. उँगलियों पर दिन भी गिन लेती हैं और ज़माना जो उंगलियां उठाता है उन्हें भी देख लेती हैं ….सुंदरता से एहसास पिरोये हैंउंगलियाँ ..
जब नाम तेरा प्यार से 

लिखती हैं उँगलियाँ

जिस दिन से दूर हो गए 

उस दिन से ही हम 
बस दिन तुम्हारे आने 
के गिनती हैं उँगलियाँ
फोटू...गुस्ताख मंजीत जी     मेरी इच्छाएं-  कविता के द्वारा बता रहे हैं कि उनकी बहुत ही मामूली सी इच्छाएं हैं …..लेकिन आपको बिना पढ़े नहीं पता चलेगा कि वाकई मामूली हैं या कुछ गुस्ताख है ….अपनी इच्छाओं को कहने का अंदाज़ निराला है …


बेहद मामूली हैं मेरी इच्छाएं,
एक कप दूध,
सिरहाने मनचाही किताबें,

सही है कि हमें अपने दुश्मनों को माफ कर देना चाहिए
मगर तभी,
जब उन्हें सूली पर लटकाया जा चुका हो।
बेहद मामूली हैं मेरी इच्छाएं।
My Photoप्रदीप जी चेतना के स्वर उजाले की ओर से एक कविता के माध्यम से आपसे कुछ पूछना चाहते हैं …लगता है कि किसी उलझन में हैं ….शायद आप कुछ मदद कर सकें ….वो पूछ रहे हैं कि ..

मुझे क्या होना चाहिए?
मैं दर्द होता तो
आपकी आंखों से बहकर
अपना अस्तित्व समाप्त करना चाहता..
मैं खुशी होता तो
आपकी मुस्कुराहट के रूप में
होठों पर बिखरना चाहता

अब आप थोड़ा सा बता दीजिए
मुझे क्या होना चाहिए।
My Photo
सुमंत  अपनी गज़ल में एक आशावादी दृष्टिकोण ले कर आये हैं ….  आज फिर जीने की तमन्ना है
जैसा कि शीर्षक से ही एहसास हो जाता है …कितनी ही कठिनाइयाँ हों …गम हों पर आप मुस्कुराना नहीं भूले हैं …..
तेरी रोशन निगाहों का वो पैमाना नहीं भूले
निगाहे जर्द* बेशक है पर मुस्काना नहीं भूले
[*Despair]
ये गुलशन हिज्र* के तीरों से बेकल** सहमे सहमे है
इन्ही के बीच इक दिन तेरा शर्माना नहीं भूले
[ *Separation ** Anxious ]
My Photoअश्वनी कुमार मयूरपंख  से बता रहे हैं  कि हर बार कुछ खोजा जाता है पर यह प्रक्रिया समाप्त नहीं होती…     बदस्तूर    हर बार नयी बारी आ जाती है …कुछ नया जानने की, नया सोचने की ..




अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है
चेहरे दर चेहरे
कुछ धुंधलाते कुछ याद दिलाते
वक्त की चाल बड़ी मस्त है ……..

यौवन की बसंत ऋतू आई
जायका अब बदल गया है …
सबकुछ सच्चा है
यही सच है
लगता भी था
पर अंतिम नहीं था
फिर आई नई बारी है
अंतिम सच की तलाश बदस्तूर जारी है.....
आशीर्वाद   पर आप आज के जीवन की सच्चाई पढ़ सकते हैं  याद नहीं कब हँसे थे दिल से  …
डर लगता है हँसने रोने से
सब कुछ पाने और कुछ खोने से
उब गए सुनी आखों से
याद करो कब हँसे थे दिल से
 My Photo
पी० सी० गोदियाल  जी एक लंबी छुट्टी के बाद लाये हैं एक धारदार व्यंग ….
तेरे चाहने वाले, तमाम बढ़ गए है इस व्यंग में उन्होंने कुछ ही शब्दों में बहुत कुछ समेटा है …देश की विकासशीलता के जहाँ दर्शन होते हैं वहाँ बेईमानी और दौलत का गठबंधन भी हो रहा है….जनसेवा की आड़ में होते हुए व्याभिचार का ज़िक्र भी है…एक सार्थक सोच देती हुई अच्छी व्यंग रचना …

तरक्की की पहचान बनी सुन्दर चौड़ी सड़कें है,
ये बात और है कि इन पर, जाम बढ़ गए है।


'बेईमानी' संग रचाई है, 'दौलत' ने जबसे शादी,
लघु-घरेलू उद्यमों में भी बुरे काम बढ़ गए है॥

गोदियाल कहे खुश होले, ऐ भ्रष्ठाचार की जननी,
हर तरफ, तेरे चाहने वाले तमाम बढ़ गए है॥
My Photoनीरज जी की गज़ल    जो न समझे नज़र की भाषा को  कह रही है कि तुझे चाह कर कुछ और चाहने की हर ख्वाहिश खत्म हो गयी है…अब रब से भी क्या माँगा जाये ….

आप आंखों में बस गए जब से
नींद से दुश्‍मनी हुई तब से
आग पानी हवा ज़मीन फ़लक
और क्या चाहिए बता रब से
My Photoएम० वर्मा जी इस बार एक गहन मुद्दा ले कर आये हैं …..इंसान तो सुधर नहीं सकता शायद बेजुबान परिंदा ही कुछ सुधरे ….. कबूतर! तुम कब सुधरोगे ?   कबूतर का बिम्ब भी लिया है एक शान्ति दूत के रूप में ….व्यंग शैली में एक खूबसूरत सोच को काव्य का रूप दिया है .



कबूतर! 

तुम कब सुधरोगे ? 
आख़िर तुम क्यों कभी 
मन्दिर के अहाते में उतरते हो 
तो कभी 
मस्ज़िद के आले में ठहरते हो?

धर्म के नाम पर जो मार काट मची रहती है उस पर तीखा प्रहार किया है
अरे! हमसे सीखो
हम अपना धर्म बचाने के लिए
क्या नहीं करते हैं,
कभी बारूद बनकर मारते हैं
तो कभी बारूद से मरते हैं।
मेरा फोटो
अरुण सी० राय  की हर रचना अचंभित करती है….आज की यह रचना भी उनके सूक्ष्म विश्लेषण को दर्शा रही है .. प्रबंधन की  डिग्री लिए बिना भी महिलायें किस तरह प्रबंधन में कुशल होती हैं इसका ज़िक्र किया है उन्होंने अपनी  कपडे सुखाती औरतें   में …
बरसात के दिनों में
कपडे सुखाती औरतें
औरतें नहीं होती
प्रबंधक होती हैं


प्रबंधन की सारी बात जानिए उनकी रचना पढ़ कर …अंतिम पंक्तियाँ मन मोह लेती हैं
फिर भी
औरतों को प्यार है
बरसात से
बूंदों से
हमसे
बच्चों से

मेरा फोटो   वंदना जी आज किसके मन की पीड़ा ले कर आई   हैं ,आप जानिये उनकी इस रचना में ..हाय !ये मैंने क्या किया?…..  आज जो हाल इस धरती का हो रहा है ..मानव ने धरती का जो दुरुपयोग किया है उसी पर इन्होने चिन्ता व्यक्त की है ….


इक सौंदर्य का
बीज रोपा 
धरती के सीने में
जग नियंता ने
फिर उसने 
मानव नाम का
प्राणी धरती
पर उतारा
मेरा फोटोचर्चा का अंतिम पड़ाव आ गया है ..यह हमारी लाचारी है…..लेकिन आप पढ़िए डा० रूपचंद  शास्त्री जी को , वो पूछ रहे हैं कि    “कैसी है यह लाचारी?”   इस रचना के माध्यम से शास्त्री जी आज भारत की सत्ता पर , नेताओं पर और भ्रष्टाचार पर प्रहार कर रहे हैं …



पढ़े-लिखों पर खादी भारी!
कैसी है यह लाचारी?
छिपी हुई खाकी वर्दी में,
दुनियाभर की मक्कारी!

बसी विदेशों में जा कर के,
सोन-चिड़ैय्या भागी घर से,
स्विटजर में यह छिपी पड़ी है,
चील और कौओं के डर से,
आज की साप्ताहिक चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ ….अपने विचारों से अवगत कराईयेगा …आपके सुझावों का हमेशा स्वागत है ……फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को इसी मंच पर , तब तक के लिए नमस्कार |

35 टिप्‍पणियां:

  1. फिर वही अनोखा अन्दाज .. यकीनन आपकी मेहनत परिलक्षित होती है.
    बहुत सुन्दर चर्चा, बहुत सुन्दर कविताओं के लिंक्स,
    संग्रहणीय

    जवाब देंहटाएं
  2. यकीनन बहुत ही अच्छा सजा है चर्चा मंच का गुलदस्ता । प्रस्तुति के हर फ़ूल अपनी-अपनी महक बिखेर रहे हैं । बागबान को बधाई ,जिसने अलसुबह इतनी खूबसूरत बगिया सजाई । -आशुतोष मिश्र

    जवाब देंहटाएं
  3. दीदी ,
    बहुत मेहनत से सजाया है आपने यह गुलदस्ता..एक एक फूल चुन कर उसकी विशेषताओं के साथ माला में गूंथा है यह अंदाज़ बहुत भाया...आपके नज़रिए का पता चलता है रचना को चुनने के पीछे..बहुत धन्यवाद मेरी रचना को यहाँ सम्मिलित करने के लिए..
    मुदिता

    जवाब देंहटाएं
  4. बाप रे संगीता दीदी,
    मैं तो आपकी मेहनत देख कर हैरान हूँ...सचमुच आपसे हमलोगों को बहुत कुछ सीखना है...
    इतनी लगन से ब्लॉग जगत में कभी भी चर्चाएँ नहीं हुईं हैं...शास्त्री जी की कोशिश ने वास्तव में रंग जमा दिया है...एक ही मंच पर इतनी प्रतिभाओं को एकत्रित करना,,.बहुत सार्थक रहा...
    पहली बार देख रही हूँ कि..नए लोगों को यथोचित स्थान मिल रहा है...नित नए लिंक्स और नए लोगों को पढ़ने का सुअवसर प्रदान कर रहीं हैं आपलोग...
    अब अगर मैं यह कहूँगी कि चर्चा मंच पर साथी ब्लोग्गेर्स ने वास्तव में से ब्लाग चर्चा को उसका सही रूप दिया है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी...
    और इस काम में आपका बहुत बड़ा हाथ है..दीदी...
    मेरा हृदय से धन्यवाद एवं शुभकामनायें स्वीकार करें....

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  5. आँख हैरान, जुबां खामोश है..
    कैसे कर गए आप ये कमाल...
    ये तो आपके मंथन का अमृत है..

    संगीता जी हर बार निशब्द कर देती है आपकी मेंहनत और आपके कमेंट्स. बहुत बहुत सटीक चित्रण किया है हर एक के लेखन और चरित्र के साथ. बहुत बहुत आभारी हैं शास्त्री जी के भी जिन्होंने आप का चुनाव किया चर्चा मंच के लिए. आप पर और आज चर्चा मंच आपकी मेंहनत से जिन उंचाईयों को छू रहा है उस पर गर्व होता है.

    साधुवाद.

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  6. इतनी अहम लिंक्स से सजे चर्चा मंच की सराहना के लिये मेरे शब्दों का उपक्रम सूर्य के सामने क्षुद्र दीपक दिखाने की बौनी चेष्टा से बढ़ कर और कुछ नहीं कहा जा सकता ! मुझे और मेरी मम्मी की रचनाओं को इस महत्वपूर्ण चर्चा में स्थान देकर आपने जो गौरव प्रदान किया है उसके लिये आपकी आभारी हूँ ! मैं सभी को पढ़ना चाहती हूँ और चाहती हूँ कि वे सब भी मुझे अवश्य पढ़ें ! आपका ह्रदय से धन्यवाद !

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  7. आपने बहुत परिश्रम के साथ साप्ताहिक काव्य-मंच सजाया है!
    --
    एतदर्थ आप बधाई की पात्रा हैं!
    --

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  8. बेहद सुन्दर चर्चा संगीता जी , किसी रचना के लिंक पर न जाकर यही पर उस बारे में इस चर्चा में ही बहुत कुछ पढने को मिल गया ! चर्चा में मुझे शामिल करने के लिए आपका शुक्रिया !

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  11. आपके इस चर्चा मंच के मार्फ़त एक छोटी सी टिपण्णी अनामिका जी की सुन्दर कविता पर भी करना चाहूंगा ;

    ,आत्मा,
    मरने के बाद कहाँ जाती है ?
    मेरी मानो तो
    ताउम्र साथ निभाती है !
    यूँ समझिये कि
    यह शरीर एक मोबाईल फोन है,
    जीवन-लीला जिसमे
    एक सुरीली सी रिंग टोन है !
    मस्तिष्क की-गार्ड है,
    और आत्मा सिमकार्ड है!
    इसमें
    प्रकृति को मानो
    कृत्रिम उपग्रह अगर,
    तो दुनिया का पालनहार
    सर्विस प्रोवाईडर !
    बस आत्मा का
    इस शरीर से इतना सा नाता है,
    इंस्ट्रूमेंट ख़राब होने पर
    सिमकार्ड को
    एक और इंस्ट्रूमेंट में डाल दिया जाता है !!
    ,

    क्षमा चाहता हूँ कुछ कमी रह जाने की वजह से दो बार डिलीट करना पडा टिपण्णी को !

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  12. संगीता जी सुन्दर चर्चा | यह बड़ी अच्छी बात है कि आप सिर्फ लिंक देने के बजाय आप आगे बढ़ कर कुछ लिख रहीं हैं|इससे न सिर्फ पोस्ट को चार चाँद लगते हैं साथ ही साथ रचनाकार(ख़ास तौर से मेरे जैसे नौसीखिए)की हौसला अफज़ाई भी होती है|आपके समय और श्रम के लिये हार्दिक आभार |

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  13. बेहद उम्दा चर्चा ..........आपका हार्दिक आभार!

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  14. इस चर्चा मंच पर सजी हर चर्चा बेमिसाल है।
    पहले भाग में जिन लोगों से परिचय कराया है आपने, उनके बारे में एक नया आयाम जानए-समझने को, मिला, इन लोगों में मैं भी शामिल हूं, और खुद को तथा खुद की रचना को एक बार फिर से समझने का मौक़ा मिला।
    हर प्रतिनिधि रचना, उस रचनाकार के व्यक्तित्व का आइना है। आपका चयन लाजवाब है। आपकी पारखी निगाहों का कमाल!
    कुछ दिनों से मैं कहने की सोच रहा था कि अपने अनोखेपन और अपनेपन के कारण चर्चा मंच बुलंदियों को छू रहा है। यहां कोई कृतिमता, बनावटीपन नहीं, एक प्यार, स्नेह और अपनापन का गहरा अह्सास मिलता है, महसूस होता है, न सिर्फ़ एक पाठक के तौर पर, ... बल्कि एक योगदानकर्ता के तौर पर भी।

    आपको सलाम शास्त्री जी और संगीता जी!!

    दूसरा पार्ट पहले भाग का ही एक्स्टेंशन लगता है। जितने लिंक्स हैं सब प्रेरित करते हैं उन रचनाओं तक, रचनाकारों तक पहुंचने को। यह चर्चाकार के चयन और प्रस्तुतिकरण का कमाल नहीं है तो और क्या है?!
    आपकी लघु समीक्षा ने मंच को सलमा-सितारा से जड़ दिया है। रचना के अनुरूप रंगों का चुनाव आपके सुरुचिसंपन्न होने की गवाही है।

    जिस लगन और मेहनत से की गई है आज की चर्चा, उसके फलस्वरूप, यह चर्चा एक मील का पत्थर है, यह बात कहते हुए मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा।

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  15. उपार जिन लोगों का परिचय आपने दिया है, उनमें से कुछ से मैं परिचित हूँ, कुछ से नहीं, पर आपका अंदाज़ बहुत अच्छा लगा. अविनाश की जो एक मात्र कविता दी है आपने वो बहुत अच्छी है, ब्लॉग पर जाकर पूरी पढूंगी.
    इतनी मेहनत करके बेहतरीन काव्यरचनाओं से परिचय कराने के लिए शुक्रिया.

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  16. bahut sunder. sagar manthan se amrit kalash nikal lai aap. behtareen posts padvane ke liye aapka dhanyawad. khastaur par "kapde sukhati aurten" ne bahut prabhavit kiya. aapka prayas sarahneey hai. badhai.....

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  17. आपकी लगन और मेहनत का नतीजा है जो चर्चा मंच इतनी खूबसूरती से सजा है………………सभी चर्चायें गज़ब की हैं ………………………रंग बिरंगे चर्चा मंच के लिये बधाई।

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  18. दी ! वाकई ब्लॉग चर्चा में एक नया रंग भर दिया है आपने, नए आयाम दिए हैं उसे..अब लोग चर्चा को भी उतने ही मन से पढ़ते हैं जितना कि किसी मनपसंद पोस्ट को.शास्त्री जी ने आपके रूप में एक नायाब हीरा खोज निकाला है :) जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं .आप जिस मेहनत ,प्रेम और उत्साह के साथ रचनाओं और रचनाकारों पर मनन करके चर्चा करती हैं वह निसंदेह प्रशंसा योग्य है.
    बहुत शुक्रिया मुझे यहाँ स्थान देना का

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  19. संवेदना

    संवेदना तुम कहाँ हो ?
    लोग तो कहते हैं कि तुम मर गई ,
    क्या यह सच है कि तुम
    अब नहीं रही ?
    कहते हैं मानवता में तुम्हारा वास था ,
    मर्यादा तुम्हारा लिबास था ।
    हर सांस में वेदना का साथ था ,
    जुबां पर तुम्हारी, दया-करूणा का वास था ।
    हमें लगता है, तुम मरी नहीं, यहीं-कहीं हो ,
    जहां कहीं भी हो आ जाओ ।
    वेदना को तुम्हारी तलाश है ,
    मर्यादा को तुम्हारे आने की आस है ।
    तुम बिन दया - करूणा उदास है ,
    मानवता को तुम्हीं से जीवन की आस है ।

    - आशुतोष मिश्र

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  20. सभी पाठकों का आभार ...आपकी प्रतिक्रियाएं नया हौसला देती हैं ...

    @@ गोदियाल जी ,
    आभार इतनी सुन्दर रचना यहाँ देने का...हास्य में भी सत्य है ..

    @@ आशुतोष जी ,

    इतनी सुन्दर पंक्तियाँ यहाँ देने के लिए आभार ...गहन मनन करने लायक लिखा है ..

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  21. इतनी सुन्दर चर्चा का आभार..लिखे हुए को लिखा हुआ सा बनाया है आपने.. :)
    इतना कुछ सहेजना आसान नहीं होता पर बहुत मेहनत की है आपने, जो की सामने दिखती है :)

    मेरी रचना के लिए, मुझे शामिल करने के लिए..नहीं शामिल करने के लिए, कभी कुछ नहीं कहता मैं, आपको तो पता ही है.
    पर आपने नाज़ किया है, तो कद जरा ज्यादा ही ऊँचा है आज :)

    प्रणाम कहूँ, आशीष लूँ..इतना ही सामर्थ्य है, इतना ही उचित भी.


    @मुक्ति जी,
    बहुत शुक्रिया..समय देने का.

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  22. गजब!! क्या मेहनत की है आपने इस मंच को सजाने में..अद्वितीय!!! आप साधुवाद की पात्र हैं. रह रह कर आश्चर्य हो रहा है कि कोई इतनी सुन्दरता और सजगता से इतनी मेहनत कर ऐसी चर्चा कैसे पेश कर सकता है.


    शानदार!! बधाई स्वीकारें.

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  23. आज तो बहुत ही विशद चर्चा है. शायद लिंक्स देने और सजावट का रिकार्ड टूट गया लगता है.

    रामराम

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  24. Your efforts are really appreciable. Thanks for including my poem in your debate. Dhanyavaad.

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  25. संगीता जी नमस्कार,
    चर्चा मंच को देखा, यह तो फूलों का वह खुबसूरत गुलदस्ता है जिसमे आपकी संवेदना की सुगंध, देशप्रेम का जज्बा और सांकृतिक लगाव की अनुगूँज एक साथ गुंजित हो रही है. अन्य विशिष्टताओं के साथ चर्चा मंच की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह मंच निश्छलता पूर्वक गुन -दोष के आधार पर रचनाओं का चयन करता है. इस कार्य की दुरुहता और इसमें व्यतीत होने वाले समय को वही महसूस कर सकता है जिसने ऐसा कोई कार्य या शोध कार्य किया हो. यह सारी प्रक्रिया किसी शोध कार्य से कम नहीं. पारदर्शिता के कारण ही नए रचनाकारों को भी इसमें यथायोग्य स्थान मिल जाता है. नहीं तो गुटबाजी और खेमेबजी जैसे बढती माहौल में उन्हें कौन पूछता? ईश्वर आपको और ऊर्जस्वी / तेजस्वी बनावे इस शुभकामना के साथ साधुवाद...

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  26. Sangita ji,

    Aapki lagan evam bariki se chuni gayi rachnaaye sarahneey hai.

    Dhanyawad,
    Siddhartha

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  27. संगीता जी आपके इस प्रयास की जितनी प्रशंशा की जाए कम है आपकी बदौलत हम बेहतरीन काव्य रचनाओं को एक ही जगह पर पढ़ पाते हैं...आपकी इस मेहनत से फायदा हमें हो रहा है...हम आपके आभारी हैं...
    नीरज

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