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रविवार, सितंबर 05, 2010

रविवासरीय चर्चा (०५.०९.२०१०)

नमस्कार मित्रों!

चर्चामंच के रविवासरीय चर्चा में आप सबों का स्वागत है।

आज शिक्षक दिवस है, तो चर्चा शुरु करने के पहले गुरु को याद कर लें।

मूल ध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पाँव ।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सतभाव ॥

ऊँ श्री गुरुवे नमः।

आज के समय में यह भी एक बड़ा भारी काम है कि अपनी और दूसरों की रचनाशीलता को बचाने और बढ़ाने का प्रयास किया जाये। क्या इसके लिए कोई सकारात्मक पहल की जा सकती है?

My Photoब्लोगिंग या अंतरजाल हमारी रचनाशीलता को बचाने और बढ़ाने के लिए एक अत्यंत उपयोगी और प्रभावशाली माध्यम है, जो हमें व्यक्तिगत और सामाजिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक, स्थानीय और भूमंडलीय सभी स्तरों पर एक साथ सोचने और सक्रिय होने में समर्थ बना सकता है।

बेहतर दुनिया के संकल्प लिए अपनी और दूसरों की रचनाशीलता को बचाने और बढ़ाने के लिए अपनी तरफ़ से तो रमेश उपाध्याय जी ने पहल कर दी है। दोस्तों, इस बात पर ग़ौर कीजिए

इंटरनेट एक ऐसा मंच है, जो सार्वजनिक और सार्वदेशिक होते हुए भी हमें अपनी बात अपने ढंग से कहने की पूरी आज़ादी देता है। यहाँ हम किसी और संस्था या संगठन के सदस्य नहीं, बल्कि स्वयं ही एक संस्था या संगठन हैं। किसी और नेता के अनुयायी नहीं, स्वयं ही अपने नेता और मार्गदर्शक हैं। किसी और संपादक या प्रकाशक के मोहताज नहीं, स्वयं ही अपने संपादक और प्रकाशक हैं। लेकिन इस स्वतंत्रता और स्वायत्तता का उपयोग हम अपनी और अपने पाठकों की रचनाशीलता को बचाने-बढ़ाने के लिए बहुत ही कम कर पा रहे हैं।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए किए न तो कबूतर के आंखें मूंद लेने से बिल्ली कभी गई है और न ही पहिये के अविष्कार से लोगों ने पैदल चलना बंद किया है!

चलिये अच्छा है रमेश उपाध्याय जी कि आप जैसे वरिष्ठ लोगों ने शुरूआत की है! वर्ना हालत ये है कि तथाकथित स्थापित रचनाधर्मी या तो इंटरनेट से तो डरे-सहमे बैठे लगते हैं!! मानों उनके वर्चस्व पर हमला हुआ ही समझो!!!

हमें यह नहीं भूलना चाहिए किए न तो कबूतर के आंखें मूंद लेने से बिल्ली कभी गई है और न ही पहिये के अविष्कार से लोगों ने पैदल चलना बंद किया है!

पंजाबःऔषधि के नाम पर भांग खा रहे बच्चे बता रहे हैं स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण!

आयुर्वेदिक औषधि के नाम पर बच्चों को भांग के नशे का आदी बनाया जा रहा है। जालंधर शहर और गांवों में किराने की दुकानों और खोखों पर ‘श्री भोला मुनक्का’ के नाम से बिकने वाली गोली में सबसे ज्यादा मात्रा भांग की है।

निर्माता कंपनी का दावा है कि इससे पाचन क्रिया सही रहती है, स्फूर्ति मिलती है और कब्ज दूर होती है। कई इलाकों में बड़ी गिनती में बच्चे गोलियों के आदी हो चुके हैं।छोटे कस्बों और स्कूलों के आसपास इनकी खपत सबसे ज्यादा है।

इस तरह की गोलियां खाने से बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं। इससे वे कभी हंसने लग जाते तो कभी एकदम रोने।

मनोचिकित्सक डा. गुलबहार सिंह सिद्धू का कहना है कि इस तरह की गोलियां खाने से बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं। इससे वे कभी हंसने लग जाते तो कभी एकदम रोने। इसके अलावा ऐसी गोलियों को खाकर खेलने वाले बच्चों को कुछ समय के लिए तो एनर्जी मिल सकती हैं, लेकिन बाद में हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से किडनी भी फेल हो सकती है और शूगर के शिकार भी बन सकते हैं।

My Photoभाषा,शिक्षा और रोज़गार पर शिक्षामित्र की प्रस्तुति अब भी स्कूल का मुंह नहीं देख पाए 81 लाख बच्चे से पता चलता है कि शिक्षा में सुधार और बदलावों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें शोर चाहे जितना मचा रही हों, लेकिन बुनियादी पढ़ाई की तस्वीर अब भी बदरंग है। इस स्थिति का सीधे तौर पर कोई असर भले न दिखता हो, पर यह सच्चाई अखरने वाली है कि आजादी के छह दशक बाद भी 81 लाख बच्चों को स्कूल नहीं नसीब हो पाया है। इस तरह की गोलियां खाने से बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं। इससे वे कभी हंसने लग जाते तो कभी एकदम रोने।

इस तरह की गोलियां खाने से बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं। इससे वे कभी हंसने लग जाते तो कभी एकदम रोने।

सरकार का मानना है कि शिक्षा का अधिकार कानून अब अमल में आ चुका है और आने वाले वर्षों में छह से चौदह साल के सभी बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा मिलने लगेगी। हालांकि इसी साल अप्रैल से लागू हुए इस कानून के अमल को लेकर तरह-तरह की व्यावहारिक दिक्कतें भी आ रही हैं। फिलहाल सरकार उन्हीं से निपटने में उलझी हुई है!

इस आलेख में विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है।

मेरा फोटो“.. …ज़माने में…!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

बता रहे हैं उच्चारण पर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (ਦਰ. ਰੂਪ ਚੰਦ੍ਰ ਸ਼ਾਸਤਰੀ “ਮਯੰਕ”)।

छलक जाते हैं अब आँसू, गजल को गुनगुनाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।
नदी-तालाब खुद प्यासे, चमन में घुट रही साँसें,
प्रभू के नाम पर योगी, लगे खाने-कमाने में।
नही है चैन और आराम, इस जालिम जमाने में।।

आज की वस्तविकता को दर्शाती ये ग़ज़ल बहुत ही सुंदर है।

My Photo

संवाद घर से संजय ग्रोवर साहित्य-थिएटर ले जा रहें हैं। यह एक कविता है जो साहित्य के विभिन्न रंगों से हमारा साक्षात्कार कराकर एक तीखा व्यंग्य करती है

साहित्य ने सबको सुना, समोया, देखा, झेला,
कहा
यहाँ तक कि बका
और हंसते-हंसते उसकी आँख से
आंसू निकल पड़े
अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे
साहित्य के देवताओं ने घोषणा की,
‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’

यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।

मेरा फोटो अरुण राय शिक्षक दिवस पर अपने पहले गुरु को याद करते कहते हैं फेल हो गए मेरे पहले शिक्षक! शीर्षक कुछ चौंकाने वाला है, पर इस कविता में गुम होते मूल्यों पर बहुत अछा व्यंग किया है। पिताजी तो रहे नहीं मगर उनकी याद उनके फैल हो जाने के बाद भी उन्हें पास कर गई!

अरुण जी जिन मूल्‍यों की बात पिताजी ने की, आप उन पर ही जीवन की कसौटियों को कस रहे हैं। तो शायद न तो बाबूजी फेल हुए हैं और न उनका छात्र। सच तो यह कि शिक्षक कभी फेल नहीं होता। फेल और पास तो हमेशा छात्र ही होता है। शिक्षक तो हमें कुछ न कुछ सिखाते ही हैं।

जो धरती
आपके कंधे से चढ़ कर देखी थी
ना जाने कहाँ खो गई है,
जीवन का गणित
जो सिखाया था आपने
उसका उत्तर
अब मेल नहीं खाता ,
आपका बताया हुआ
इतिहास
अब बेमानी हो गया है ,
देश-दुनिया और समाज के
लिखे, अनलिखे संविधान में
हो गए हैं कई कई संशोधन
और
किसी मूल्य की बात करते थे आप
ना जाने कहाँ छूट गए हैं
जैसे आपका हाथ
हाथ के छूटने के साथ
फेल हो गए हैं आप
बाबूजी, मेरे पहले शिक्षक

अरुण जी जिन मूल्‍यों की बात पिताजी ने की, आप उन पर ही जीवन की कसौटियों को कस रहे हैं। तो शायद न तो बाबूजी फेल हुए हैं और न उनका छात्र। सच तो यह कि शिक्षक कभी फेल नहीं होता। फेल और पास तो हमेशा छात्र ही होता है। शिक्षक तो हमें कुछ न कुछ सिखाते ही हैं।

छीछालेदर के जिन आयामों को ब्लॉगिंग ने इस बीच छुआ है उससे लगता है कि साहित्य भी इसके सामने कुच्छ नहीं। यह कहना है, और सच ही, अनूप शुक्ल जी का। उन्होंने …. एक बीच बचाव करने वाले से बातचीत की और जो ऊभर कर सामने आया वो कुछ हैरत कर देने वाला है। सच ही कहा आपने कि “लगता है ब्लॉग-जगत बहुत डायनामिक है। विकट परिवर्तनशील है।” परिवर्तन के इस दौर में नये-नये तरह के काम के अवसर पैदा हुये हैं। इसमें से एक काम है-विवाद निपटाने का। ऐसे ही एक ब्लॉगर फ़ुरसतियाजी एक विवाद निपटाते हुये पकड़े गये। उनको पकड़कर उनके मुंह में माइक सटाकर उनका इंटरव्यू ले लिये गया। उसकी कुछ झलकियां भी देख लीजिये सवाल-जवाब के रूप में।

इसके बाद मैं कुछ नहीं कहूंगा। आप खुद ही पढिए ना।

My Photo स्पंदन SPANDAN पर शिखा वार्षणेय दो दिन, स्कॉटस और बैग पाइप . आलेख द्वारा आपको कह र्ही हैं आइये आज आपको ले चलती हूँ एडिनबर्ग .स्कॉट्लैंड की राजधानी.- स्कॉट्लैंड- जो १७०७ से पहले एक स्वतंत्र राष्ट्र था , अब इंग्लैंड का एक हिस्सा है और ग्रेट ब्रिटेन के उत्तरी आयरलैंड के एक तिहाई हिस्से को घेरे हुए है ,दक्षिण में इंग्लैंड की सीमा को छूता है तो पूर्व में नोर्थ सी को, जिसके उत्तर पश्चिम में अटलांटिक सागर है और दक्षिण पश्चिम में नोर्थ चैनल और आयरिश सागर.

लम्हों का सफ़र पर जेन्नी शबनम प्रस्तुत करती हैं अंतिम पड़ाव अंतिम सफ़र.../ antim padaav antim मेरा फोटोsafar...। बताती

वादा किया है कि
मन में हँसी भर दोगे,
उम्मीद ख़त्म हुई हीं कहाँ
अब भी इंतज़ार है...
कोई एक हँसी
कोई एक पल,
वो एक सफ़र
जो पड़ाव था,
शायद रुक जाएँ
हम दोनों वहीं,
उसी जगह गुज़र जाए
पहला और अंतिम सफ़र !

My PhotoKAVITARAWAT पर कविता रावत की प्रस्तुति कौन हो तुम!

खुद से बेखबर
उबड़-खाबड़ राहों से जानकर अनजान
कठोर धरातल पर नरम राह तलाशती
जिंदगी के आसमान को
चटख सुर्ख रंगों से
रंगने को आतुर-व्याकुल
कौन हो तुम!

मेरे भाव पर मेरे भाव की प्रस्तुति कहीं कोई चिट्ठी

गालों पर उड़ते
वो आवारा गेसू
लगता है जैसे
मुझको चिढ़ा रहे हैं .
कागज पे तेरा
छुप छुप के लिखना
कहीं कोई चिट्ठी
मेरे गाँव आ रही हैं .

My Photo काव्य मंजूषा पर 'अदा' की प्रस्तुति यूँ हीं....

रेत के बुत बने,

खड़े रहे हम सामने
पत्थर की इक नदी,

पास गुज़रती रही
रूह थी वो मेरी,
लहू-लुहान सी पड़ी
बदन से मैं अपने,
बाहर निकलती रही

न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय की प्रस्तुति आओ, मैं स्वागत में बैठा हूँ

समय के पीछे भागने का अनुभव हम सबको है। यह लगता है कि हमारी घड़ी बस 10 मिनट आगे होती तो जीवन की कितनी कठिनाईयाँ टाली जा सकती थीं। कितना कुछ है करने को, समय नहीं है। समय कम है, कार्य अधिक है, बमचक भागा दौड़ी मची है।वह भाग रहा अपनी गति से समय बहुमूल्य है। कारण विशुद्ध माँग और पूर्ति का है। समय के सम्मुख जीवन गौड़ हो गया है। बड़े बड़े लक्ष्य हैं जीवन के सामने। लक्ष्यों की ऊँचाई और वास्तविकता के बीच खिंचा हुआ जीवन। उसके ऊपर समय पेर रहा है जीवन का तत्व, जैसे कि गन्ने को पेर कर मीठा रस निकलता है। मानवता के लिये लोग अपना जीवन पेरे जा रहे हैं, मानवता में अपने व्यक्तित्व की मिठास घोलने को आतुर। कुछ बड़ी बड़ी ज्ञानदायिनी बातें जो कानों में घुसकर सारे व्यक्तित्व को बदलने की क्षमता रखती हैं।

My Photo

शब्दों का उजाला पर डॉ. हरदीप संधु की प्रस्तुति गधाकौन ?

सुख हो.....

चाहे दु:ख हो भला

कभी न बदलूँ

रहूँ एक सा

चाहे मुझमें हैं ढेरों गुण

पर बेवकूफ़ मुझे कहते तुम

किसी की अच्छाई.....

जो पहचान नहीं सकता

उससे बड़ा बेवकूफ़

हो ही नहीं सकता !!!

My Photoअनामिका की सदायें ... प्र अनामिका की सदायें ...... की प्रस्तुति नूर की बूंद

मानस विकारो से जन्मे

तूफ़ान से जूझती..

उस नूर की बूंद को

अलंघ्य बंदिशो से परे

उस झोंके ने

नयी आशाओ का स्फुरण

उसमे कर दिया !

सीप के मोती की मानिंद

उसे मन में सजा

मदहोश, अनाहत संगीत का

प्रादुर्भाव कर

अद्भुत सुधा सागर में डुबा

प्रेयसी अपनी बना लिया !

गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर संगीता स्वरुप ( गीत ) की प्रस्तुति वो चिंदिया ..वो खटोला

My Photoभाई के चिढाने पर

जिद कर मैं सो जाती थी

माँ की चारपाई पर .

लेकिन आज मुझे

वो खटोला

बहुत याद आता है ...

आज ना चारपाई है

ना ही खटोला

न चिंदिया है न आँगन

छोटे - छोटे घरों में

अलग - अलग कमरे में

जैसे बंध गए हैं

सबके मन ........

अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे!

22 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम लिंक्स मिले.. आभार मनोज जी..

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  2. वाह इस बार तो लगभग सभी पोस्ट पहले से ही पढ़ी हुई मिलीं.

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  3. मनोज कुमार जी उम्दा चर्चा के लिए आपका आभार!
    --
    मेरा नेट का ब्रॉडबैण्ड कनक्शन दो दिन से बहुत तंग कर रहा है!

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  4. मनोज जी...
    आपकी मेहनत स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है ..आज कि चर्चा में...
    बस एक बात पूछना चाहती थी...क्या आज कि formating में कोई समस्या है...या मुझे पर अब सचमुच बुढ़ापा तारी है...:):)
    आभार...

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  5. मनोज जी आपकी विशेषता यही है कि जिस प्रकार की दृष्टि रचनाओं को प्रस्तुत करने से पूर्व देते हैं उस से सचना को पढ़े और समझने का नजरिया बादल जाता है... आज के करीब सभी पोस्ट उम्दा हैं लेकिन को अधिक प्रभावित करते हैं उनमे.. राधारमण जी, प्रवीण पाण्डेय जी.. शास्त्री जी... संगीता जी उल्लेखनीय हैं.. इनके बीच खुद को पाकर अच्छा लग रहा है.. बहुत ही ऊम्दा चर्चा.. लेकिन खेद है कि इस चर्चा के बीच आपकी 'कुल्हड़' नहीं है.. वरना "कोल्कता के कुल्हड़ वाली चाय" (http://manojiofs.blogspot.com/2010/09/blog-post.html ) से आनंद आ जाता...

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  6. हमेशा की तरह सार्थक और सटीक चर्चा।

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  7. बहुत से अच्छे लिंक एकसाथ मिले,आभार ।

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  8. आज तो काफी खोज बीन से लगायी गयी है चर्चा.

    बहुत उम्दा चर्चा.

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  9. चर्चा मंच ऊँचाइयों की तरफ बढ़ रहा है . अच्छा निचोड़ मिल जाता है यहाँ . अपने एक लेख " इमोशनल अत्याचार या ग्लैडीयेटर शो" पर , जो की मैंने आज ही अपने ब्लॉग बात-चीत ( http://mahendra-arya.blogspot ) पर लिखा है - आपका ध्यान और चर्चा चाहूँगा . आप इस लायक समझें तो अगली किसी चर्चा में स्थान दीजियेगा. मैंने एक सामजिक मुद्दे को यहाँ खड़ा किया है . आपकी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण होगी .

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  10. सार्थक चर्चा ....कुछ फोंट इधर उधर दिख रहे हैं ...

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  11. बड़े सुन्दर लिंक मिल गये यहाँ पर।

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  12. भाषा,शिक्षा और रोज़गार ब्लॉग को चर्चा में शामिल करने के लिए आभार। किंतु,लाल रंग से बोल्ड में जो टेक्स्ट दिखाया गया है,वही टेक्स्ट स्वास्थ्य-सबके लिए ब्लॉग में भी दिख रहा है।

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  13. कठिन श्रम से आपने जो लिंक्स सुझाए हैं,उन पर जाकर ही पता चला कि आपने कई पोस्टों के बीच में उनका चयन क्यों किया।

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  14. बढिया है। अदाजी की बात का जबाब दिया जाये जी। अपनी पोस्ट की चर्चा करनी चहिये थी। ऐसा भी क्या चर्चा करना कि अपनी अच्छी पोस्ट की भी चर्चा न की जाये। :)

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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