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मंगलवार, नवंबर 02, 2010

पीपल का पेड़, प्रेम कुटी और उन्हें अच्छा नहीं लगता ….साप्ताहिक काव्य मंच ---२३……….चर्चा मंच …..326…

नमस्कार , एक ब्रेक के बाद फिर हाज़िर हूँ सप्ताह भर की काव्य रचनाएँ ले कर ….दीपावली आने में तीन दिन शेष लेकिन मैंने इन रचनाओं से जला दिए हैं दिए हर दिए की रोशनी आप तक पहुंचे यही कामना है ..हर त्योहार आस्था का प्रतीक होता है , समानांतर चलते जीवन में परिवर्तन लाता है . दीपावली के उपलक्ष्य पर मैं यही कामना करती हूँ कि आप सभी का जीवन फूलों की तरह सुरभित हो , खुशियों से अपनी डाली पर झूमता रहे और आप दीपक बन इस संसार में अपने प्रकाश का उजाला भरें …..तो लीजिए बात आस्था की है तो आज का काव्य मंच भी प्रारम्भ करते हैं आस्था के प्रतीक पीपल से ..
मेरा फोटो समीर लाल जी इस बार आस्था का प्रतीक     पीपल का पेड़  के माध्यम से बहुत कुछ कह गए हैं …एक तरफ जहाँ यह पेड़ पूजा का प्रतीक और सम्माननीय है वहीं कहीं एकांतवास का एहसास भी कराता है …कहीं न कहीं उम्र के बढ़ने के साथ मन में छिपी वेदना का भी एहसास कराती है यह रचना ..

उम्र के दीप में
कम हुआ तेल
और मैं
अपने ही घर में बना दिया गया
मंदिर की मूरत

उनका स्वार्थ
मेरा खुश रहना
भोग लगाया जाता रहा
मेरा

आखर कलश  पर समीर जी की माँ के प्रति समर्पित रचना पढ़िए माँ मेरी लुटेरी थीं
My Photo श्यामल  सुमन जी अपनी लेखनी की धार सरकार पर चला रहे हैं …और रास्ता बता रहे हैं …
दिल्ली से गाँव तक
अंदाज उनका कैसे बिन्दास हो गया
महफिल में आम कलतक वो खास हो गया
जिसे कैद में होना था संसद चले गए,
क्या चाल सियासत की आभास हो गया
मेरा फोटो
       अनीता जी अपने ब्लॉग को महका रही हैं ..
हरसिंगार के फूल झरे
हौले से उतरे शाखों से
बिछे धरा पर श्वेत केसरी
हरसिंगार के फूल अनूठे !
रूप-रंग, गंध की निधियां
लुटा रहे, मस्त, वैरागी
शेफाली के पुष्प नशीले
अनीता जी की नयी पेशकश
आयी जगमग दीवाली
IMG_0130
मनोज कुमार जी इस बार अपनी गज़ल में रखवालों के साथ साथ बहुत कुछ और भी देखने के लिए बाध्य कर रहे हैं ….

 
ये कैसै रखवाले देख
ये     कैसे   रखवाले    देख
चेहरे     सबके   काले  देख
उठती    क्यों आवाज़ नहीं
मुँह   पर सबके ताले देख.
मां की भाषा जो बोल रहा
घर  से जाए निकाले  देख.
My Photo अख्तर खान “ अकेला “ पत्थर रो रहा है   के माध्यम से कहना चाह रहे हैं कि पत्थर होते हुए भी उसमें संवेदनाएं बाकी हैं …फिर इंसानों को क्यों नहीं कुछ फर्क पड़ता ?
 वोह पत्थर
जो सर से मेरे
टकरा कर
ज़मीं पर
पढ़ा हे
खून का फ्न्व्वारा देख
मेरे सर का
वोह
बेजान
पत्थर भी
रो रहा हे

 अपनी माटी पर अरुण सी० राय की कविता पढ़िए अधूरी रह गयी दीवाली

दीपक
खरीद लाये
बाज़ार से
कर आये मोल भाव
कुम्हार से
ले आये
गुल्लक
सिखाने को
बचत



गिरीश बिल्लौरे जी एक बहुत प्यारी रचना लाये हैं …उसका शीर्षक ही यहाँ देना काफी है …इसे आप महसूस कीजिये ..
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiVxG51nAgF4er-8T6BuY13fYf_5lMqzkgu44NNkCQ-g5PDQX1ghftuXkCAMZ-lZSPVxjsO9v3pX-CdMmKg-J115gW10jZcYYaz-UE5M8SBIWqRBGlTQh5uwDpTc2cU6IdPTJzrFg74ph4r/s200/kuti.bmp
मेरी प्रेम कुटी में आना
प्रिय जब प्रेम कुटी में आना
मन ने संय़म साध लिया है
तुमको भी तो बांच लिया है
अश्रु निवालों के साथी थे
आज नमक ने साथ लिया है
हरियाई है पालक मेंथी-
राह दिखे तो ले ही आना
प्रिय जब प्रेम कुटी में आना
मेरा फोटो क्षमा जी परिंदों की बात कहते हुए बता रही हैं कि परिंदे कभी भी दूसरों से कोई उम्मीद नहीं रखते ..किसी कि गल्ती पर भी कुछ नहीं कहते ..

परिंदे!


 कैसे होते हैं  ये परिंदे!
ना साथी के पंख छाँटते ,
ना उनकी उड़ान रोकते,
ना आसमाँ बँटते इनके,
…साथ ही उनके द्वारा बनाये भित्ति चित्र का भी आनन्द लीजिए
मेरा फोटो
अंजना जी रंग बिरंगी एकता पर लायी हैं एक समसामयिक कविता और अपने विचार …. उनका मनाना है कि सरहदों को बंट लेने से कोई खुशी हासिल नहीं होती ……
अरुंधती जी, और सरहदें?
कब सरहदों से
फ़ायदा हुआ इस ज़मीं को?
अभी भी दिल नहीं भरा,
बार-बार बाँट कर इस ज़मीं को?
मेरा फोटो रश्मि प्रभा जी की लेखनी से कौन वाकिफ नहीं है इस ब्लॉग जगत में ? इस बार वो सुनहरे सपनों को सिरहाने रख सोने ही जा रही थीं की न जाने किसने दरवाज़ा खटखटा दिया …उनकी भावनाओं को पढ़ें ..

फिर से है !

सारे दरवाज़े बन्द कर
चुन लाई थी कुछ मोहक सपने
और सिरहाने छुपा दिया था ...
चमकती आँखों पर
पलकों का इठलाकर झपकना
शुरू हुआ ही था
कि दरवाज़े थरथराने लगे
और हाँ ..ब्लॉग पर जाएँ तो वीडियो ज़रूर सुनियेगा ..
My Photo
       मृदुला प्रधान जी बहुत संवेदनशील रचना लायी हैं …कह रही हैं कि जो दूरियां अनायास बन गयी हैं उनको वो बढ़ाना नहीं चाहतीं …आप भी उनके इन एहसासों में शरीक होईये . नहीं चाहती ...
नहीं चाहती ..........
तुम्हारी तस्वीर को 
माला पहना दूं ,
अगरबत्ती दिखा दूं ,
फूल चढ़ा दूं और
जो दूरी............
तुम्हारे-हमारे बीच
दुर्भाग्यवश,
बन गयी है,
उसे  और बढ़ा दूं.

रचना दीक्षित जी कुछ खास   तरंगें  लायी हैं ..
जिनको भेज रही हैं उनके पास जो किसी कारणवश इनसे दूर हैं ….ऊपर दिया चित्र रचना जी की बेटी ने बनाया है ..

पीछे घूम कर देखती हूँ.
कभी हम पास थे.
इतने, इतने, इतने,
कि सब कुछ साझा था हमारे बीच.
यहाँ तक की हमारी सांसे भी.
दूरी सा कोई शब्द न था, हमारे शब्द कोष में.
  अपर्णा मनोज भटनागर की रचना  सलीब  एक ऐसी रचना है जो सोचने पर मजबूर करती है ..सलीब को नारी के रूप में रख कर जो उन्होंने लिखा है आप स्वयं पढ़ें …

जब भी सलीब देखती हूँ
पूछती हूँ
कुछ दुखता है क्या ?
वह चुप रहती है
ओठ काटकर
बस अपनी पीठ पर देखने देती है
मसीहा ...
तब जी करता है
उसे झिंझोड़कर पूछूं
क्यों तेरी औरत
हर बार चुप रह जाती है सलीब

आपकी नयी रचना  पढ़ें …

राम से पूछना होगा


वंदना शुक्ला जी चिंतन पर लायी हैं बचपन ..आज शिक्षा के लिए बच्चों पर जो बोझ है उसकी ही बात कहते हुए बता रही हैं कि आज के बच्चों का बचपन कैसे छीना जा रहा है ? आप भी पढ़िए ..

देखती हूँ  रोज़ सुबह
घर के सामने से ,
स्कूल  को जाते  हुए
कुछ उदास थके से बच्चे!
अपनी कोमल दुबली
देह पर टांगे बोझिल बस्ते,!

अरविन्द जांगिड जी बहुत कुछ पूछना चाहते  हैं ..गरीबी के बारे में , भ्रष्टाचार के बारे में

आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है

सड़क के किनारे,
पड़ी गरीबी पैर पसारे,
नंगे बच्चे, 
एक अदद रोटी को चिल्लाते,
भूखे पेट ही क्यूँ सो जाते है,
आज फिर दिल कुछ पूछना चाहता है,
मेरा फोटोसाधना वैद जी नींव की मजबूती की बात कह रही हैं कि यदि वह मजबूत नहीं तो काल्पनिक और यथार्थ दोनों के ही महल धराशाही हो जाते हैं …

 
 
टूटे घरौंदे
जब मन की गहनतम
गहराई से फूटती व्याकुल,
सुरीली, भावभीनी आवाज़ को
हवा के पंखों पर सवार कर
मैंने तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हें पुकारा था !
मेरा फोटो
सुभाष नीरव जी  का कहना है कि कविता के क्या मायने हैं वो तो सयाने जाने ..पर जो बात दूसरों को अपनी सी लगे वही कविता है …

कविता

कविता की बारीकियाँ
कविता के सयाने ही जाने।
इधर तो
जब भी लगा है कुछ
असंगत, पीड़ादायक
महसूस हुई है जब भी भीतर
कोई कचोट
कोई खरोंच
मचल उठी है कलम
कोरे काग़ज़ के लिए।
 My Photo
अपर्णा त्रिपाठी जी अपने ब्लॉग पलाश पर कह रही हैं कि वह रोज अखबार पढ़ती हैं ..कुछ नयी उम्मीद लिए ..आप भी पढ़ें उनकी उस सोच को …

क्यों पढती हूँ अखबार
हर सुबह इक आस लिये
पढती हूँ अखबार ।
शायद आज ना छपा हो कोई
हत्या लूट का समाचार ॥
हर पेज पर मिल जाता नित्य
दुखद खबरों का अम्बार ।
शेयर से भी तेज बढता जाता
देश में अब व्याभिचार ॥
My Photoएम० के० वर्मा जी एक समसामयिक रचना लाये हैं …किस तरह से नवयुवकों को जो बेरोजगार हैं उनको मजबूर कर दिया जाता है गलत कामो को करने के लिए …और इस तरह एक नया वंश बनाया जा रहा है …

अगला निशाना

वंश के वंश
खड़े किये गये
दंश के कगार पर
या फिर सप्रयास
मजबूर किये गये
चलने को अंगार पर
My Photo
संतोष कुमार जी ज़िंदगी को एक हादसे की तरह देख रहे हैं …

ज़िंदगी
ज़िंदगी को हादसे की तरह देखा
कभी छुआ कभी फेंका
कल्पनाओं की लड़ियाँ सजाता रहा
खुद से दूर जाती चीज़ को बुलाता रहा
My Photo डोरोथी जी एक नयी आशा लिए रोशनी की परम्परा बता रही हैं …अँधेरे और उनका साथ देने वाले कभी तो रौशनी की गिरफ्त में आयेंगे
रोशनी की परंपरा
रोशनी को आखिर
क्या मिलता है यूं
जीवन भर जलकर....
अंधेरों के साजिशों
और षड्यंत्रों के साए तले
थर थर कांपता रहता है
हर पल
रोशनी का नन्हा सा वजूद..
My Photo मुदिता गर्ग अपनी रचना में एक गृहणी के सभी कामों को समेट लायी हैं …भोर की किरण से आधी रात तक के सारे कामों का सिलसिला….जो यह सोचते हैं कि घर में रह कर सारा दिन करती क्या हो ? शायद उनको जवाब मिल जाये …

गृहिणी.

अधमुंदी आँखों से
सूर्य की
प्रथम किरणों के
स्पर्श को
महसूसते हुए
होती है
शुरुआत
एक गृहणी के
दिन की...
मेरा फोटो के० एल० कोरी  जी अपने जज्बातों को बहुत खूबसूरत गज़ल में ढालते हैं …आप भी मुस्कुराते हुए पढ़ें ..

शाम फिर से मुस्कराने लगी

शाम फिर से मुस्कराने लगी
उसकी याद जब यूँ आने लगी
चराग खुद-ब-खुद ही जल उठे
रौशनी उसे ही गुनगुनाने लगी
मेरा फोटो योगेश शर्मा जी का विचार है की भले ही उगते सूरज को सलाम करो लेकिन अस्त होते हुए को भी मत भूलो …वैसे लोंग उन्हीं को पूछते हैं जो उगता हुआ सूरज होता है …

'उगते सूरज को सलाम लाख़ करो'
उगते सूरज को सलाम लाख़ करो
डूबते दिन से  बेरुखी न करो
खिलखिला लो नये  चिरागों संग
पिघली शमों  से दिल्लगी न करो

विश्वगाथा  पर पढ़िए जया केतकी और रेणु सिंह की कविताएँ…

जया केतकी जी ढूँढ रही हैं संवेदनाएं 

बिना दरवाजे, खिडकियों की झोपडी में,

बाहों में बाहें डाले,

मिला करती थी, तेरी-मेरी संवेदनाएं।

सिसक, सिमटकर कह जाती,

एक-दूसरे का दर्द।

खिलखिलाकर बांटती थी,

खुशी के लम्हे, बीते वाकये

रेणु जी लायी हैं साहस जीने का
झँझावतोँ मेँ मन उलझा फटी पतंग सा,
कुछ अनिश्चितताओँ मेँ मगन,
ढेर सी चिँताओँ मेँ मगन
सब कुछ तो करेँ क्या न करेँ,
कुछ असमँजस सा
 कुमार पलाश की कविताएँ उनकी भूमि से जुडी हुई हैं …कोयले खदान की बात करते हुए उनकी दो रचनाओं का ज़िक्र करना चाहूंगी …

काला पत्थर   और ….  झरिया
झरिया एक जगह का नाम है ..जहाँ कोयले की खान हैं …वहाँ के वासियों के दर्द को इन्होने शब्द दिए हैं …
सुना होगा
मुहावरा आपने
आग से खेलना
लेकिन
हम झारियावाले
आग जी रहे हैं
पीढ़ियों से
आग ओढना
बिछौना आग
आग पर चलना
आग से खेलना
हमारा शौक नहीं है
मजबूरी है

        
मेरा फोटो
सुनील कुमार जी बिलकुल दीपावली के मूड में हैं और छोड़ रहे हैं फुलझडियां .
हास्य कवितायेँ ,दीवाली की फुलझड़ी

जलते हुए मकान से
जिन  लोगों ने
दस आदमियों को निकला 
वह तो बस दो हिम्मत बाले थे 
मग़र दोनों को जेल हो गयी .
क्योंकि
मकान के अन्दर तो
फायर ब्रिगेड वाले थे
मेरा फोटो वंदना गुप्ता जी चाहतों के दौर को खत्म करते हुए स्वयं ही सजा सुना रही हैं और कह रही हैं की अब दुनियादारी निभा ली जाए …और थोड़ा कुछ यूँ दुनिया का क़र्ज़ उतारा जाए ..

चलो अच्छा हुआ
बातें ख़त्म हुयीं 
अब दुनियादारी 
निभाई जाये 
तुझे चाहते 
रहने की सज़ा 
एक बार फिर
सुनाई जाये
My Photo डा० ओम् राजपूत की रचना माँ के प्रति उनका समर्पण है …

माँ की बाँहों में
सुबह की अलसाई नींद
बिस्तर से उतरती है
डगमगाते पैरों की मानिंद
लेती है टेक
आँख खुलने की सच्चाई
आईने पर पसर जाती है
मेरा फोटो या मौला यह कैसी क़यामत आई है
खुमार के साथ ख्यालों की बाढ़ चली आई है …
आशीष जी को पढ़िए ..

पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
अब तो वो भी मुझसे इत्तेफ़ाक रखते हैं,
अपने सभी अलफ़ाज़ बेबाक रखते हैं!
मेरे मौला इस सफ़र में क्या कोई ऐसा उबाल आएगा?
के सोचा करूंगा मैं और उनको ख्याल आएगा
मेरा फोटो
डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी की रचना से मैं काव्य मंच का समापन कर रही हूँ …लगता है शास्त्री जी आज की पीढ़ी से त्रस्त हैं और जो कुछ उन्होंने महसूस किया है उसे बहुत संजीदगी से कहा है …सच ही है कि कब सुबह होती है कब रात , ज़िंदगी जीने का कोई अनुशासन नहीं ..अपने आप में ही डूबे रहना … यदि कहीं कोई बड़ा कुछ टोकाटाकी करे तो अच्छा नहीं लगता …आप भी जानिये इस कविता के माध्यम से कि और क्या क्या अच्छा नहीं लगता …

उन्हें अच्छा नहीं लगता!
कहीं जब दीप जलते हैं, उन्हें अच्छा नहीं लगता।
गले जब लोग मिलते हैं, उन्हें अच्छा नहीं लगता।।

समाहित कर लिए कुछ गुण उन्होंने उल्लुओं के हैं,
चमकता गगन पर सूरज, उन्हें अच्छा नहीं लगता
पुन: दीपावली की शुभकामनायें …लिंक पर जाने के लिए चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं ….आपके सुझाव और प्रतिक्रिया हमारा मनोबल बढ़ाने में सहायक होते हैं …आज इतना ही ……फिर मिलते हैं अगले मंगलवार को नयी रचनाओं के साथ ….नमस्कार ……… संगीता स्वरुप
सभी पाठकों से असुविधा के लिए क्षमायाचना है …चर्चामंच का टेम्पलेट बदल जाने के कारण तालिकाएं ठीक से व्यवस्थित नहीं हो पाई हैं ….आशा है इस बार यह चर्चा आप झेल लेंगे …आगे ऐसी शिकायत का अवसर नहीं मिलेगा …आभार ….क्षमाप्रार्थी …संगीता स्वरुप

35 टिप्‍पणियां:

  1. चुने हुए लिंक्स और चर्चा का अन्दाज लाजवाब ..
    करीने से सजाती हैं आप चर्चा मंच को

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  2. संगीता स्वरूप जी!
    आपकी शिकायत वाजिब है! मुझे आपको टेम्प्लेट बदलने के बाद सही कान्फिग्रेशन बताना चाहिए था!
    --

    विण्डो लाइव राइटर से पोस्ट लगाने वाले चर्चा मंच के सहयोगी ध्यान रक्खे कि टेबिल बलाते समय विडसाइज-
    widh : 575 pixel
    ही रक्खें!

    --

    आज की चर्चा बहुत सुन्दर लिंकों से सजाई गई है!
    आपका श्रम इसमें झलक रहा है!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत उम्दा लिंक्स..कहीं भी पहुँव नहीं पा रहा हूं भारत आने की तैयारी के चक्कर में..सभी से यहीं क्षमाप्रार्थना.

    जवाब देंहटाएं
  4. शास्त्री जी ,

    आपका आभार , आपने चर्चा को व्यवस्थित कर दिया ....मेरे से नहीं हो रही थी ..यह सुधारने का काम आपसे सीखना पड़ेगा...बहुत बहुत शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छी लिंक्स और चर्चा के लिए बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  6. चर्चा के अंतर्गत एक खूबसूरत यात्रा होती है ....

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति. दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .

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  8. आपके प्रयास से हर बार नए सुन्दर ब्लॉग पढ़ने को मिल जाते हैं. सुन्दर यात्रा है ... श्लाघनीय ..

    जवाब देंहटाएं
  9. संगीता जी कि प्रस्तुति हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर | और लिंक्स भी बहुत अच्छे .. इनेह शेयर करने के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  10. आपके पास सीबीआई वाली नज़र है,अच्छे लिन्कस और अच्छी रचनावों को आपकी हथकड़ी लगेगी ही और चर्चा मंच पर वे छपने की सज़ा पायेंगे ही।

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  11. संगीता जी,
    धन्यवाद !
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करके आपने जो सम्मान दिया है और उत्साहवर्द्धन किया है, उस के लिए मैं आपकी और इस मंच पर उपस्थित सभी गुणीजनों की बेहद आभारी हूं.
    इतने सारे बढ़िया लिंक्स देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. काफ़ी सुन्दर लिंक्स दिये हैं………………ज्यादातर लिंक्स पर हो आयी हूँ बाकि पर बाद मे जाऊँगी……………बेहद शानदार चर्चा लगाई है………………आभार्।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही खूबसूरत चर्चा !
    और बड़े जतन से सजी है आज की महफ़िल !
    आभार !!

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत ही खूबसूरत चर्चा!
    हमारी रचना को सम्मान देने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  15. अच्छी लिंक्स और चर्चा के लिए बधाई |
    दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .

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  16. aapki mehnat bahot sundar rang lekar aaye hai.man khush ho gaya padhkar.
    mujhe is dhara men shamil karne ke liye hriday se aabharee hoon.

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  17. कितनी खूबसूरत और नए लिंक्स मिल गए .आज का सारा दिन इन्हीं कविताओं के नाम :) और तालिका का क्या है मतलब तो रचनाओं से है .
    सार्थक चर्चा.

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  18. संगीता जी, आप बहुत सराहनीय काम कर रही हैं , बधाई स्वीकारें, चर्चा मंच देखा व कुछ बहुत अच्छीं कवितायें पढीं , धन्यवाद !

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  19. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  20. अपनी कविता को चर्चा मंच पर देखकर आज उम माँ की ख़ुशी का अहसास हुआ जिसका लाडला किसी मंच पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करता है .
    पहली बार किसी ने मेरी कविता को छापा है . संगीता दी आपका शुक्रिया कर एहसान नहीं चुकाऊंगा .

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  21. संगीता जी की प्रस्तुति हमेशा की तरह बहुत ही सुन्दर. मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करके आपने जो सम्मान दिया है, उस के लिए मैं आपकी बेहद आभारी हूं.

    आपको और सभी ब्लॉग विचरण करने वाले जीवों को दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  22. संगीता जी,
    मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने के लिय आपका आभार । मेरे लिये तो यह दीपावली का अमूल्य उपहार है । बहुत अच्छे लिकंस है , आप सभी को दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  23. आह, बहुत दिनों बाद चर्चा मंच का मानो नया सौंदर्य लौट आया है. हम तो ये स्टाईल देखनो को जैसे तरस ही गए हैं. समझ सकती हूँ आपको नए टेम्पलेट में बहुत मेहनत करनी पड़ी होगी..लेकिंन अंततः हम आपकी बदौलत ये रंग चर्चा का देख पाए.
    लिंक भी बहुत अच्छे अच्छे लिए है...लिंक तो सभी बहुत अच्छे लेते हैं...बट, किन्तु, परन्तु, वो क्या है की प्रेसेंन्तेशन भी तो मायने रखती है बहुत.
    कुछ लिंक देख चुकी हूँ..कुछ पर धीरे धीरे अपनी पहुँच पहुंचा पाउंगी.
    शुक्रिया इस सुंदर आभा को लौटा लाने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  24. संगीता माँ,
    नमस्ते!
    ये फोटो में मैं कुछ मोटा क्यूँ लग रहा हूँ???
    मैं चला एक-एक करके सभी बचे हुए ब्लोग्स पर.....
    डिंग डिंग डिंग डिंग.....
    अरे हां, आपके स्नेह का आभारी हूँ, वर्ना मैं फूहड़ इस लायक कहाँ!?!?
    आशीष

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत सुंदर रचनाओं से भरी चर्चा भी बहुत सुंदर लगी. आपकी टिप्पणियां हर पोस्ट और भी चित्ताकर्षक बनाती हैं. आपकी सराहना और प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत अच्छा लगा 'चर्चामंच' में इतनी सुन्दर कविताओं के बीच अपनी कविता को शामिल पाकर… आपका चयन नि:संदेह बहुत अच्छा है।

    जवाब देंहटाएं
  27. व्यस्तता के कारण तीन चार दिनों से नेट से दूर हूँ ! चर्चा मंच पर अपनी रचना देख सुखद आश्चर्य हुआ ! मुझे याद रखने के लिये आपकी आभारी हूँ ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद ! मेरी चेष्टा रहेगी कि सभी लिंक्स पर जाऊं ! दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं स्वीकार कीजिये !

    जवाब देंहटाएं
  28. Didi..
    bahut bahut abhaar ...vyastta ke karan links par nahin ja paa rahi hun... par aapki charcha bahut shaandaar hai...kotuhal jaga deti hai links ko padhne ka... meri rachna ko manch par jagah dene ka shukriya ...

    mudita

    जवाब देंहटाएं
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