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रविवार, जुलाई 03, 2011

रविवासरीय (03.07.2011) चर्चा

नमस्कार मित्रों!

मैं मनोज कुमार एक बार फिर से हाज़िर हूं रविवासरीय चर्चा के साथ।


                               --बीस--


एपार जौनपुर - ओपार जौनपुर ..मादरडीह गांव -2

मा पलायनम ! पर डॉ. मनोज मिश्र

clip_image001जौनपुर केक्रमबद्ध इतिहास लेखन के लिए बगैर ठोस साक्ष्यों के ,संकेतक साक्ष्य आज भी बेमानी प्रतीत हो रहें हैं . आज तो पुरातत्व उत्खनन के लिए हमारे पास विकसित और समुन्नत तकनीक है ,यदि भविष्य में जौनपुर के चुनिन्दा स्थलों पर पुरातात्विक उत्खनन संपादित करवा दिए जाएँ तो उत्तर भारत का इतिहास ही नहीं अपितु प्राचीन भारतीय इतिहास के कई अनसुलझे सवालों का जबाब भी हमें यहीं से मिल जायेगा ।


                                   --उन्नीस

एक मकबरा जिसकी नक़ल पर "ताजमहल" बना है.

कुछ अलग सा पर गगन शर्मा, कुछ अलग सा

clip_image002हिंदुस्तान में मुगलों का वह प्रारंभिक दौर था। बाबर के बाद हुमायुं ने शासन की बागडोर संभाली तो थी पर शेरशाह से हार कर उसे भागते-छुपते रहना पड़ रहा था। तमाम मुश्किलातों को झेलने, दर-दर की ठोकरें खाने के बाद फिर उस पर एक बार किस्मत मुस्कुराई और सन 1955 में वह फिर एक बार बादशाह बना पर सिर्फ साल भर केलिए।


                                    --अट्ठारह

यू के क्षेत्रीय हिंदी सम्मलेन 2011

स्पंदन SPANDAN पर shikha varshney

clip_image003भारत से डॉ. पंचाल, डॉ. पालीवाल, रूस, इजराइल, डेनमार्क, आदि से विद्वान् और हिंदी के प्राध्यापक, केम्ब्रिज के प्रोफ़ेसर एश्वार्ज कुमार और बहुत से स्थानीय गुणीजन ,वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार आये थे अपना अपना  व्याख्यान देने . और इन सबके साथ हमें भी अपना व्याख्यान देना था. सो जी हमने भी वेबपत्रकारिता को बनाया मुद्दा और डंके की चोट पर कह दिया कि " वसुधैव कुटुम्बकम " के नारे को आज की तारीख  में कोई चरितार्थ करता है, तो वो है वेब पत्रकारिता.


                                 --सत्तरह

अंतरिक्षयान का वर्णन भी है यजुर्वेद में

सुधीर राघव पर सुधीर

clip_image004अगर किन्ही पराग्रहियों ने मनुष्य को धरती पर बसाया तो यहां तक वे किन यानों से पहुंचे, ये कैसे थे, किससे बने थे और इन्हें क्या कहा जाता था ये सब सवाल उठते हैं। इनका जवाब यजुर्वेद के तेइसवें अध्याय में मिलता है। इन यानों को अश्व कहा जाता था। और ऐसे अश्व की चाह इन्सानों में भी रही और धरती पर साधन के रूप में मिले घोड़े में उन्होंने इसी नाम से पुकारा। परिवहन का यह साधन भी हवा से बातें करे यह मनुष्य की इच्छा रही और मुहावरों तक में झलकी।इस अध्याय के ग्याहरवें श्लोक के सवालों में से एक है कि स्वर्ग पर्यंत पहुंचने वाला महान पक्षी कौन है। इसका जवाब अगले श्लोक में यह कहकर दिया गया है कि अश्व ही स्वर्ग पर्यंत पहुंचने वाला महान पक्षी है।


                                 --सोलह—

जयपुर की वेधशाला-जंतर-मंतर

भारत दर्शन ......Bharat Darshan पर Alpana Verma

clip_image005सन २०१० में विश्व सांस्कृतिक निकाय यूनेस्को ने जयपुर के 18 वीं सदी के जंतर-मंतर को वर्ल्ड हैरिटेज सूची में शामिल किया है.तब से ही यह राजस्थान की पहली व देश की २३ वीं सांस्कृतिक धरोहर बन गया है.यूँ तो राजस्थान का भरतपुर घना पक्षी अभयारण्य पहले से वर्ल्ड हैरिटेज की सूची में है,परंतु वह प्राकृतिक हैरिटेज सूची में है.


                               --पन्द्रह

कैंसर का इलाज़ एसआरबीटी से

स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण

clip_image006इस तकनीक से ज़्यादा मात्रा में रेडिएशन दिया जा सकता है जिसका बहुत कम दुष्प्रभाव होता है। इमेज गाइडेंस और रैपिड आर्क जैसी नवीनतम पद्धतियों से रेडिएशन की सूक्ष्म किरणें सिर्फ कैंसर तक सीमित रखी जाती हैं। सामान्य कोशिकाओं को रेडिएशन से बचाया जा सकता है। यह इलाज १-५ चरणों में पूरा हो जाता है, इसके विपरीत साधारण रेडियोथैरेपी में ३०-३५ चरणों की ज़रूरत होती है


                                   --चौदह

कुछ इधर की कुछ उधर की

क्रांति स्वर..... पर Vijai Mathur

clip_image007आज ०२ जूलाई को हमारे नगर में होम्योपैथी के जनक डा.हैनीमेन का निर्वाण दिवस मनाया जा रहा है और ०४ जूलाई को स्वामी विवेकानंद का भी निर्वाण दिवस है,इधर ग्रहों की आकाशीय स्थिति में भी जो परिवर्तन हो रहा है उसका भी व्यापक प्रभाव होगा अतःआज कुछ इधर की कुछ उधर की ---


                                    --तेरह

५२-मेरा दिल ले गई है वो-----(अजय की गठरी)

गठरी पर अजय कुमार

clip_image008ये मेकअप में छुपे चेहरे , मुझे कुछ कुछ नहीं होता ।
मेरा दिल ले गई है वो ,कि जिसका रूप सादा है ॥
कुंवारे थे तो अच्छा था , डिसीजन खुद ही लेता था ।
मेरा घर अब व्यवस्थित है , मगर सरदर्द ज्यादा है ॥
लगाई आग इस घर में , इसी घर के कसाबों ने ।
अरे जयचंद को पकड़ो , ये तो बस एक प्यादा है ॥


                                  --बारह

प्यार के प्रतीक ढूंढना...............

कवि योगेन्द्र मौदगिल पर योगेन्द्र मौदगिल

clip_image009कल्पना में हिंद-कुश रहे,

अब ना रोमां-ग्रीक ढूंढना.

पत्थरों से दोस्ती हो तो,

मेरे सा हक़ीक ढूंढना.

प्रेम-धागा खो गया कहीं,

ध्यान से बारीक़ ढूंढना.


                                   --ग्यारह

कैलेण्डर ज़िन्दगी का

ज़ख्म…जो फूलों ने दिये पर वन्दना

clip_image010दोस्तों

ये कविता जुलाई माह के गर्भनाल अंक मे छपी है और अभी तक आपने इसे पढा भी नही है तो आज ये आपके समक्ष है।


                                      --दस

तू न आना इस देस,लाडो...

गूंजअनुगूंज/GUNJANUGUNJ पर मनोज भारती

clip_image011स्त्रियों को अपने लिए वाणी जुटानी होगी। और उनको वाणी तभी मिल सकती है सब दिशाओं में,जब तुम यह हिम्मत जुटाओ कि तुम्हारी अतीत की धारणाओं में निन्यानवे प्रतिशत अमानवीय हैं। और उन अमानवीय धारणाओं को चाहे कितने ही बड़े ऋषियों-मुनियों का समर्थन रहा हो,उनका कोई मूल्य नहीं है।


                                      --नौ

बहस के हवाले समलैंगिकता

सरोकार पर Prakash Ray

clip_image012ठीक दो साल आज के दिन दिल्ली उच्च न्यायलय ने अपने ऐतिहासिक फ़ैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अंतर्गत अपराध माने गए ‘अप्राकृतिक’ यौन संबंधों के बारे में व्यवस्था दी थी कि वयस्कों के बीच आपसी सहमति से और निजी परिवेश/एकांत (प्राइवेट) में बनाये गए यौन संबंधों को अपराध मानना संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है. इस फैसले पर स्वाभाविक रूप से समलैंगिक संबंधों के पक्षधर और प्रगतिशील तबके ने प्रसन्नता जतायी थी, लेकिन विभिन्न धार्मिक संस्थाओं और धार्मिक-आध्यात्मिक गुरुओं ने धर्म, सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देते हुए विरोध किया था जो अब भी ज़ारी है. दस सालों से चल रहा यह मसला अभी सर्वोच्च न्यायलय में है.


                                       --आठ

कार्टून: ए ल्लो ... ये मनमोहन से प्रभावित हो गया!!!

Cartoon, Hindi Cartoon, Indian Cartoon, Cartoon on Indian Politcs: BAMULAHIJA पर Kirtish Bhatt, Cartoonist

clip_image013


                                        --सात

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गाँव में देवी पूजन : अष्टबलि

KAVITARAWAT पर कविता रावत

clip_image015इस क्रम में जबमुझे कई लोगों ने यह जानकारी दी कि हमारे अधिकांश गाँवों में लोगों ने आपस में मिल-बैठ गहन विचार-विमर्श कर राजी ख़ुशी से अब पशुओं के बलि पर प्रतिबन्ध लगा रखा है तो मुझे यह सुनकर बहुत आत्मसंतुष्टि मिली।


                                      --छह

ग्रह - उपग्रह

(दोहे)

कुँवर कुसुमेश

clip_image016

अवगाहन के योग्य है,सूरज का साहित्य.

तेरह लाख गुना बड़ा,पृथ्वी से आदित्य.

ग्रह -उपग्रह पर जीत की,लगी हुई है होड़.

प्रकृति संतुलन को रहा,मानव तोड़-मरोड़.

क्या बसंत क्या शरद ऋतु,क्या गर्मी बरसात.

पृथ्वी अपनी धुरी पर,घूम रही दिन रात.


                                   --पांच

एक के बाद एक

न दैन्यं न पलायनम् पर praveenpandeypp@gmail.com (प्रवीण पाण्डेय)

एक अँग्रेज़ी फिल्म है, गारफील्ड। गारफील्ड एक बिल्ले का नाम है जो अपने मालिक पर अपना एकाधिकार समझता है। एक दिन उसका मालिक, न चाहते हुये भी, अपनी प्रेमिका के दबाव में ओडी नाम का एक छोटा सा कुत्ता घर ले आता है। एकाधिकार से वंचित गारफील्ड सदा ही किसी न किसी जुगत में रहता है कि किस तरह वह ओडी को घर के बाहर भटका दे। एक दिन वह सफल हो जाता है और ओडी सड़क पर होता है।


                                     --चार

एकांत नाच की भूमिका

एक आलसी का चिठ्ठा पर गिरिजेश राव Girijesh Rao

clip_image018एक तनी हुई रस्सी है जिस पर मैं नाचता हूँ।
जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ
वह दो खम्भों के बीच है।
रस्सी पर मैं जो नाचता हूँ
वह एक खम्भे से दूसरे खम्भे तक का नाच है।
दो खम्भों के बीच जिस तनी हुई रस्सी पर मैं नाचता हूँ
उस पर तीखी रोशनी पड़ती है
जिस में लोग मेरा नाच देखते हैं।


                                     --तीन

हमारी खबर से बेखबर बहता चला आता है जीवन

कबाड़खाना पर Ashok Pande

clip_image019जैसे तुम पहली बार उजाले में आई हो
कोई तेरी पलकों के ठाठ देखकर
चौंक पड़ेंगे
कुछ भले लोगों की तरह सँभलेंगे
कुछ इंतजार करेंगे बेचैनी से
मेहँदी के घटने के दिन


                                      --दो

प्रदीप जिलवाने की कविताएं

अनहद पर अनहद/aNHAD

clip_image020छिपकलियाँ जब भूखी होती हैं

तब भी
उतने ही धैर्य से

साध रही होती हैं
अपनी दुनिया को

जितने धैर्य के साथ

नजर आती है अमूमन


                                      --एक--

 

जमीला, सारा, दारा और सरकोजी

sharadakshara पर Dr (Miss) Sharad Singh

clip_image021परंपरा और स्वतंत्रता के बीच गहरी खाई होती है जिसे एकमुट्ठी रेत से पाटा नहीं जा सकता है, पुल जरूर बनाया जा सकता है बशर्ते खाई की गहराई में झाकें बिना उस पर चलने का साहस किसी में हो। अंतर्रात्मा की आवाज कुछ ही पल में सब कुछ बदल सकती है लेकिन कानून किसी बात को विरोध सहित मनवा सकता है, निर्विरोध नहीं।

बस आज इतना ही।
अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।

तब तक के लिए हैप्पी ब्लॉगिन्ग!

18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभप्रभात ..मनोज जी ..सधी हुई सुंदर चर्चा ..और बेहतरीन लिंक्स ...आभार...

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  2. बेहतरीन चर्चा ...
    अच्छे लिनक्स ..
    आभार !

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  3. बीस ब्लॉगों का चयन!
    मनोज कुमार जी को नमन!
    --
    रविवासरीय चर्चा बहुत शानदार रही!

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  4. अच्छे लिंक्स.
    मुझे स्थान दिया.आभार.

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  5. बहुत सारे महत्‍वपूर्ण लिंक मिले .. आभार !!

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  6. अच्छे लिंक ,अच्छी चर्चा ,आभार

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  7. link bahar nahi khulne se bahut asubidha hoti hai..

    kripya dhyan de

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  8. मनोज कुमार जी का विशेष आभार मेरे लेख को शामिल करने हेतु.दुसरे अच्छे लिक्स के लिए धन्यवाद.

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  9. आज की बहुत लिंक्स पढ़ी हुयी थी, अच्छी थीं।

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  10. क्रम बार व्यवस्थित २० लिंक के साथ बहुत सुन्दर चर्चामंच.....इस चर्चा में मुझे शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार!

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  11. सुन्दर और सारगर्भित लिंक्स के माध्यम से सार्थक चर्चा।

    जवाब देंहटाएं

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