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शुक्रवार, सितंबर 16, 2011

अरे भुलक्कड़ आदमी !! चर्चा मंच-639


कुछ हफ़्तों में भूलता, गुजर गए व्यवधान |

गुजर गए व्यवधान,  भूलता  धूम-धड़ाका,
कत्लो-गारद खून, वफ़ा-रिश्ते-गम-फाका |

पर रविकर इतिहास, लगाता रहता लक्कड़,
अन्ना का अनशन अते, रामदेव  की  चोट |

रामदेव की चोट, खोट पुरकस सरकारी |
रथ-यात्रा से पोट, चोट देने की बारी |
 
मरियल नेता बूढ़, युवा जन लगे झूलने |  
भोले वोटर मूल, खता फिर लगे भूलने ||
                                             --रविकर 

लालकिशन आडवानी को सत्ता सुंदरी का प्रेमपत्र

नमस्कार

[Picture.jpg]
आपको प्यारे इसलिये न लिखा कि मेरे स्वयंवर में भाग लेने के लिये आपका इस तरह खड़े हो जाना मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगा।  जरा सोच तो लेते कि आपके घर में मोदी जैसे जवान और योग्य वर होंते हुये इस उम्र में आप वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण करना छोड़ युवाओं के साथ होड़ मे आ रहे हैं।  और खड़े होने के पहले  यह भी सोचते तो कि बाकी प्रतियोगी आपके बारे मे क्या क्या कहेंगे।  ललुआ तो एक ही बात कहता है कि आप पाईपलाईने में रहोगे और मनीष तिवारी कहेगा कि आडवानी जी किस मुह से सत्ता सुंदरी के स्वयंवर मे आये हैं वे तो खुद भ्रष्टाचार की अनेकों सुदरियों से संबंधो मे लिप्त हैं। दिग्विजय सिंग आपके द्वारा लिखा सोनिया गांधी को माफ़ीनामा लहरायेंगे तो कपिल सिब्बल कांधार प्रकरण की याद दिलायेंगे।


 (1)

हकीक़त

हकीक़त  हो  तुम  कैसे  तुझे  सपना  कहूँ ,
तेरे  हर  दर्द  को  अब  मैं  अपना  कहूँ,
सब  कुछ  कुर्बान  है  मेरे  यार  तुझ  पर,
कौन  है  तेरे  सिवा  जिसे  मैं  अपना  कहूँ
[Vidhya+-+V.jpg]
मेरे दिल में सबके लिए सिर्फ प्यार है। कोलकाता में लालन पालन हुआ है इसलिए हिन्दी भाषा को पढ़ और लिख सकती हूँ। मैं बहुत ही भावुक प्रकृति की हूँ। किसी के भी दिल को ठेस पहुँचाना मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं आप सबसे भी यही आशा रखती हूँ। सरल हृदय वाले और सीधे-सच्चे इन्सान मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। मैं बहुत ही साधारण जीवन यापन करती हूँ। बनावट से मुझे बहुत नफरत है। आप सब एक चेन्नई की महिला के ब्लॉग को पढ़ते हैं, यह देख कर मुझे बहुत खुशी होती है। मुझे अपनी मातृभाषा से बहुत लगाव है। इसलिए हिन्दी में ब्लॉगिंग करती हूँ।

आह भी तुम, वाह भी तुम


आह भी तुम, वाह भी तुम
मेरे जीने की राह भी तुम
छूकर तेरा यौवन-कुंदन
उर में होता है स्पंदन
पराग कणों से भरे कपोल
हर भवरे की चाह तो तुम//

छंद भी तुम,गीत भी तुम
मेरे जीवन के मीत भी तुम
नज़र मिलाकर तुम मुस्काती
हर हंसी कविता बन जाती
हर काजल की स्याह हो तुम //
आह भी तुम, वाह भी तुम//

जब मैं खोलूं अपनी पलकपा लेता तेरी एक झलकरूठी हो क्यों, कुछ तो बोलरब से बढ़ कर तेरा मोल
लाल-रंगीला लाह हो तुम आह भी तुम, वाह भी तुम//

मम्मी मै भी राम बनूँगा


(All photo's in this with thanks from google/other source)
मम्मी मै भी राम बनूँगा
तीर धनुष मंगवा दो
थोड़े से कुछ वस्त्र  राजसी
चूड़ामणि कंगन सारा सब
धोती भी मंगवा दो
दोनों रूप धरूँगा मै तो
(विशेष-१)
गदर की चिनगारियाँ
मनोज कुमार
My Photoइधर जब से एलेक्ट्रॉनिक मीडिया की क्रांति आई है पुस्तक लेखन और पठन का चलन कम हो गया है। साहित्य की एक-दो विधा को छोड़कर सारी विधाएं उपेक्षित पड़ी हुई हैं। इन उपेक्षित विधाओं में नाटक-एकांकी जैसी जीवन्त विधा को भी देखा जा सकता है। भारतेन्दु काल से आधुनिक नाटक विधा का आरंभ माना जा सकता है लेकिन 21वीं सदी तक आते-आते नाटक लेखन विधा-सरिता सूख-सी गई है। ऐसी अकाल बेला में डॉ. सुश्री शरद सिंह द्वारा रचित कृति “गदर की चिनगारियाँ” पहला पानी की तरह हमारे तप्त मनोभूमि पर शीतलता प्रदान करती है और यह आश्वास्त भी करता है कि नाटक लेखन फिर से नेपथ्य से उठकर मंच पर आ रहा है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद इतिहास और साहित्य का सुंदर अंतरावलंबन देखने को नहीं मिलता है। डॉ. सुश्री शरद सिंह “गदर की चिनगारियाँ” नाटक लेकर उपस्थित हुई हैं जिसमें दबी-कुचली नारी का स्वर नहीं, वरन्‌ वीरांगनाएं, जिन्हें भुला दिया गया था, उन्हें वे अपनी रचना के माध्यम से सच्ची श्रद्धांजलि देती नज़र आती हैं।
नारी को न समझो अबला, है वो शक्ति का दूजा रूप
उसने सदा दिया है हंसकर, अपना सूरज, अपनी धूप।
 

(विशेष-२)
posted by Er. सत्यम शिवम at *काव्य-कल्पना*
*आज से एक वर्ष पहले मैने "इंजीनियरस डे" के मौके पर ही लिखा था अपना एक लोकप्रिय काव्य "इंजीनियरस की परेशानी"....जिसमें बताया गया था इंजीनियरस की लाइफ में आने वाली परेशानीयों के बारे में...जो इक इंजीनियर कव...

मेरी पहली चर्चा में शामिल ब्लॉग---

"कभी मेरे घर आना" चर्चा -मंच : ५६९

..चक्रेश      अखबार बेंच कर आया हूँ -0३ 

बाल सजग   कविता : हरियाली आई -0४   

स्वाद का सफर-००

 कम चर्चित रचनाएं जिनपर मिली कुल-७ टिप्पणी

 आदरणीय पाठक गण !! 

इस बार इन्हें जरूर देख लें

और

कुछ सार्थक समालोचना भी करें---

मेरी पिछली चर्चा में शामिल ब्लॉग

जज्बा तुझे सलाम - चर्चा-मंच : 632

आतंकियों का दोष कहाँ, नेताओं की शय है दोस्त.--०२

राधा गोकुल में नीर बहाए: मोहे गोकुल ऐसो भायो सखी--०३

 मैं क्या लिखूंगा--०३ 

कम चर्चित रचनाएं जिनपर मिली कुल- 8 टिप्पणी


 (विशेष-३)

चीन की दादागीरी: कुआं वियतनाम का, फिर भी भारत को तेल निकालने से रोका



साउथ चाईना सी में दो वियतनामी ब्‍लॉक में भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) के तेल व प्राकृतिक गैस खोजने के अभियान में खलल डाला गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि चीन की आपत्ति का कोई कानूनी आधार नहीं है, क्‍योंकि जहां तेल-गैस निकाला जा रहा है वह ब्‍लॉक वियतनाम का है। नई दिल्‍ली. चीन ने भारत को एक और झटका दिया है। भारतीय सीमा में घुस कर चीनी सैनिकों द्वारा बंकर तबाह कर देने की खबरें आने के एक दिन बाद ही यह खबर आई है कि चीन ने भारतीय कंपनी को समुद्र से तेल निकालने से रोक दिया है।

और इस बार बिगत चर्चा मंच की इन दो टिप्पणियों का चयन किया है --

mahendra srivastava September 9, 2011 12:51 PM  
भाई रविकर जी, मेरे लेख का मकसद ये नहीं था, जो मैं यहां देख रहा हूं। पर आपने प्रमुखता से इसे स्थान दिया, इससे संबंधित लोगों तक संदेश तो पहुंच ही जाएगा। ये पब्लिक है, सब जानती है.......
Mridula Harshvardhan September 9, 2011 7:07 PM  
नमस्कार रविकर जी धन्यवाद मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए | आप बुलाएं और हम ना आयें....ह़ो नहीं सकता | मसरूफियत की वजह से देर से आई हूँ | आपके कमेन्ट मेरे ब्लॉग पे मुझे और बेहतर लिखने को प्रेरित करते हैं | आभार -- नाज़ ||                          
(विशेष-४)

From Politics To Fashion -

posted by SM  
Women in the United States Congress: 1917-2011 - Congressional Research Service Report Despite increases in the number of women serving in Congress over time, shows that only 2.1% of Members in United St...

(४)

गीत : मनचाहा कर जाने दो.......

देवी होकर चरण चूमती हो क्यों मेरे
अपने चरणों में मुझको मर जाने दो
व्यर्थ भिगोती हो अपनी कजरारी पलकें
मेरे नयनों में सागर भर जाने दो.
[arun+nigam.jpg]

 

(५)

लोग जहर उगलते रहे ,हम खुशी से निगलते रहे

[telaphoto1.jpg] 

जब भी मुस्कराए
किसी की नज़र के
शिकार हो गए
दो कदम आगे बढाए
जालिमों ने कांटे
बिछा दिए
हम खामोशी से
बैठ गए
लोगों ने मसले खड़े
कर दिए
लोग जहर उगलते रहे
हम खुशी से निगलते रहे

 (६)

 

आओ बतियाएँ हरिगीतिका छंद पर

 

 




उत्सवों का दौर जारी है और क्यूँ न हो - पर्वों का पावन प्रदेश जो है हमारा प्यारा हिन्दुस्तान| इस बात को ध्यान में रखते हुए ही आदरणीय 'सलिल' जी  के परामर्श अनुसार 'हरिगीतिका' छन्द को रिजर्व कर लिया गया था ---

(७)

गोल्डन टेम्पल अमृतसर भाग 4

(नीव का पहला पत्थर रखवाते हुए  --बाबा  बुढ़ासिंह )
चंदन कुमार मिश्र भारत के भावी प्रधानमंत्री की जबानी -पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दो अलग-अलग व्यवहारों को देखिए आज, हिन्दी दिवस पर। अब बताएँ वे सरकार के पक्षधर लोग कि हिन्दीभाषी राज्य बिहार के सुशासन बाबू का यह रवैया कैसा माना जाय।
र्वोच्च न्यायालय के ताजा निर्णय के बाद छह करोड़ गुजरातियों के नाम खुली चिट्ठी लिखने वाले नरेन्द्र मोदी के नाम गुजराती आईपीएस अधिकारी संजीव राजेन्द्र भट्ट ने खुली चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी के अंत में भट्ट ने महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के अपने सहपाठी भूचुंग डी. सोनम की एक कविता उदृत की है। यहाँ उस कविता का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है ... 

  • भूचुंग डी. सोनम

मेरे पास सिद्धांत है, बल नहीं
तुम्हारे पास बल है, सिद्धांत कोई नहीं

(१०)

कहो प्रिये क्या लिखूं

कुछ शब्दों के अर्थ लिखूं
कुछ अक्षर  यूँही  व्यर्थ लिखू
एक प्रेमकथा ,संवाद लिखू
संबंधो के सन्दर्भ लिखूं
इस जीवन का सार लिखूं
अंतर्मन का प्रतिकार लिखूं 
[DSC00705.JPG]

सोनल  रस्तोगी 

(१२)
posted by editor_lauhstambh@yahoo.com (S.N SHUKLA) at MERI KAVITAYEN -  

मेरी १०० वीं पोस्ट ************** ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! मैं अपने हर समर्थक, शुभचिंतक तथा पाठक से , अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर बेबाक प्रतिक्रिया की
[IMG_0672.jpg]
(१३)

हमारी मानसिकता और अनशन की प्रासंगिकता 1.1 ..........केवल राम

भ्रष्टाचार की लीला भी अजीब है . यह कभी मेज के नीचे आता है तो कभी मेज के उपर , कभी पंच सितारा होटल में किसी उच्च स्तरीय बैठक में पहुँच जाता है तो , कभी देश की संसद में प्रश्न पूछने के बहाने पहुँच जाता है , कभी यह नेता के पास जाता है तो , कभी बड़े - बड़े प्रशासनिक  अधिकारियों के पास , कभी यह चारा खाता है तो , कभी तीसरी पीढ़ी के टेलीफ़ोन पर ढेर  सारी बातें करता है , कभी खेल के नाम पर अंधाधुंध धन बहाता है. इसकी खूबियों की क्या चर्चा करूँ और इसकी व्यापकता का अहसास करने के लिए मुझे भी साधना करनी पड़ेगी , और इसको धारण करने के लिए किसी बड़े भ्रष्टाचारी गुरु के जीवन को जानना  होगा . वर्ना इसकी लीला को समझना मेरे वश की बात नहीं , हाँ यह जरुर है कि यदा - कदा इसके दर्शन मुझे भी होते रहे हैं , और यह जरुर है कि इसने अपनी लीला का आभास करवाया है .
मदमाती  रूप  पर..
इठलाती  यौवन  पर ...
थक  कर ..
एक  दिन  शांत ..एकांत  ..
देखती  हूँ  ..स्वयं को ..
दर्पण  में ... 
बड़े ध्यान  से ..और...
बड़े  अरमान  से .....!
(१५)
इस पोस्ट का टाईटिल सोचा था ’पाले उस्ताद – पाट्टू (पार्ट टू)’ फ़िर सोचा कि विद्वान जन आऊ, माऊ चाऊ टाईप की ब्लॉगिंग के बारे में फ़िक्र करके वैसे ही हलकान हुये जा रहे हैं, ऐसा शीर्षक देखकर कहीं उन्हें मौका न

(१६)

जज्बात भी रूमानी है


मदभरी रात है जज्बात भी रूमानी है।
सामने छत पे मचलती हुई जवानी है॥
        -ग़ाफ़िल

(१७)

बटरफ्लाई

बटरफ्लाई माधव को बहुत आकर्षित करती है . बटरफ्लाई को ठीक से पहचान नहीं पाया है ,कीट पतंगों को भी बटरफ्लाई ही बोलता है . पिछले दिन अपनी कॉलोनी के पार्क में गया और बटरफ्लाई के पीछे -पीछे दौड़ा . बटरफ्लाई तो हाथ नहीं लगी , कुछ कीड़े हाथ आ गए . बोला .-"पापा -पापा देखो बटरफ्लाई"





 (18)

 
 ZEAL

सभी ने अपने जीवन में प्यार का अनुभव तो किया ही होगा कभी न कभी या फिर हमेशा ही किसी न किसी के द्वारा। धनवान रही हूँ हमेशा से क्यूंकि "प्यार" जैसी बेशुमार दौलत को सदा ही पाया है। इतना प्यार मिलता है--- 

        (१९)        

क्या हिंदू देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा है?



रिपोर्ट कहती है कि इसका भारत की राष्ट्रीय मानसिकता पर गहरा असर पड़ा है और कई विश्लेषकों का
कहना है कि हिंदू राष्ट्रवादी देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए ख़तरा साबित हो सकते हैं.
इस रिपोर्ट में गुजरात प्रशासन और मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ों के पुल भी बांधे
 गए हैं

 (२०)

"हिन्दी-डे कहने लगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


हिन्दी भाषा का दिवस, बना दिखावा आज।
अंग्रेजी रँग में रँगा, पूरा देश-समाज।१।

हिन्दी-डे कहने लगे, अंग्रेजी के भक्त।
निज भाषा से हो रहे, अपने लोग विरक्त।२।

बिन श्रद्धा के आज हम, मना रहे हैं श्राद्ध।
घर-घर बढ़ती जा रही, अंग्रेजी निर्बाध।३।

लेकिन आशा है मुझे, आयेगा शुभप्रात।
जब भारत में बढ़ेगा, हिन्दी का अनुपात।४।

देखें कब तक रहेगी, अपनी भाषा मौन।
सन्तों की आवाज को, दबा सका है कौन?।५।

    

खलिश





ज़िन्दगी से मुझे कोई 
शिकायत भी नहीं 
जिंदा रहने की लेकिन 
कोई चाहत भी नहीं |


भारी हो गयी है अब 
कुछ इस  तरह ज़िन्दगी 
बोझ  उठाने की जैसे 
अब ताकत भी  नहीं |
 -संगीता स्वरुप ( गीत )

 (२२) 

सुनील कुमार

मेरा ख़त .........चंद शेर


इस ख़त में कुछ लफ्ज़   ,
खून ए ज़िगर से भी लिखे हैं |
नुक्ते की जगह मैंने , 
आँख का मोती लगा के रखा है


  (23)
मैं रोज तुम्हारी आँखों में चाँद को उगते देखती हूँ फिर चाहे रात अमावस की ही क्यों ना हो तुम कैसे दिन में भी चाँद को आँखों में उतार लाते हो कैसे अपनी शीतलता से झुलसी हुई दोहपर को पुचकारते हो जानती हूँ दिन ...



 (२४)


"मानसिकता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

THURSDAY, SEPTEMBER 15, 2011

आज से लगभग 30 साल पुरानी बात है। तब मैं खटीमा से 15किमी दूर बनबसा में रहता था। उन दिनों मेरी मित्रता सेना से अवकाश प्राप्त ब्रिगेडियर गौविन्द सिंह रौतेला से हो गई थी। जो निहायत इंसाफपसंद और खरी बात कहने वाले व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे।

एक दिन मैं अपने क्लीनिक से दोपहर के भोजन के लिए जा रहा था कि रास्ते में ब्रिगेडियर साहब भी मिल गये। हम दोनों लोग बातें करते हुए जा रहे  थे तभी हमने देखा कि एक दुकानदार और उसका लड़का झगड़ा कर रहे थे। बेटा पिता को मार रहा था और लोग तमाशा देख रहे थे। तभी ब्रिगेडियर साहब ने-------

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही अच्छा संग्रह किया है आपने रचनायों का. कुछ को अभी रात के ३:३० बजे ही बिना पूरा पढ़े छोड़ने का मन नहीं हुआ ... बाकि आज शाम को देख पाउँगा.
    बहुत आभार.

    My Blog: Life is Just a Life
    .

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  2. चर्चा का यह रूप बहुत सुंदर है ..बहुत से लिंक्स ...आपका आभार "हमारी मानसिकता और अनशन की प्रासंगिकता " के दुसरे अंक को शामिल करने के लिए ...आशा है आपका प्रोत्साहन यूँ ही मिलता रहेगा ...!

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  3. vividh rangon me behtareen links chayan.....sunder prastuti....bahut badhia charcha ...meri rachna chayan karne ke liye bahut abahar...Ravikar ji ...

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  4. धन्यवाद! मेरे लिखे और एक तथाकथित महान नेता की छवि का सत्य लोगों तक पहुँचाने के लिए, आपका आभार। क्या ऐट की जगह 'क ख ग' पर 'अ ब स' नहीं लिखा जाना चाहिए? उम्मीद है बुरा नहीं मानेंगे।

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  5. आज के चर्चा मंच में लिंकों की सजी हुई फुलवारी का जवाब नहीं!
    धन्यवाद रविकर जी!

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  6. बड़ी मेहनत से सजाई सुंदर चर्चा मेरी रचना को स्थान देने के लिये धन्यवाद

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  7. बहुत मेहनत के साथ की गयी प्रस्तुती के लिए साधुवाद
    आज जो निगला ज़हर नहीं था , स्वाद बहुत मीठा था
    मुझे स्थान देने के लिए धन्यवाद

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  8. बहुत ही शानदार चर्चा....
    बहुत ही अच्छे लिंक्स...
    सादर...
    मेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए आभार |

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  9. अच्छा संग्रह
    मेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए आभार |

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  10. आपकी चर्चा का अंदाज़ अनूठा होता है। रंग और काव्य का ऐसा सम्मिश्रण अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।

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  11. बहुत ही अच्‍छा चर्चा मंच ... आभार ।

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  12. चर्चा मंच में शामिल सभी लिंक्स तक अभी नहीं पहुंच पाया हूं, पर कुछ को देखा है, बहुत ही प्रभाव डालने वाली है।
    पिछले हफ्ते मेरे कमेंट को आपने यहां जगह दी है, मैं नहीं जानता कि ये क्यों...
    चर्चा रोचक अंदाज में है, जाहिर है और लोगों की तरह मुझे भी अच्छी लगी।
    शुक्रिया

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  13. आभार ||

    खासकर शुक्रवार की चर्चा पर दो बेहतरीन टिप्पणियों को रचनाकार के लिंक के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ |
    विगत चर्चा में माननीय प्रतुल जी एवं आदरणीय कुसुमेश जी की विशिष्ट टिप्पणियों का उल्लेख था ||
    सुन्दर एवं खूबसूरत टिप्पणी का स्तर, उच्चतम शिखर तक पहुँच पाए शायद |

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  14. बहुत ही सुंदर लिंको से सजी...बड़े ही मनोहारी ढ़ंग से प्रस्तुत किया है रविकर जी आपने आज का चर्चा मंच....शूभकामनाएं और आभार।

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  15. आज की चर्चा को पेश करने का अंदाज काफी अच्छा लगा .....

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  16. रविकर जी,
    सभी लिंक्स दिलचस्प हैं...सचमुच आपने बहुत मेहनत की है.... आपको हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं...

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  17. रविकर चर्चा मंच की प्रस्तुति अति अनूप
    ज्यों बरखा के संग में लुक-छुप खेले धूप.
    लुक-छुप खेले धूप , इंद्र-धनुष भी खींचा
    तुलसी के बिरवा को अँसुवन-जल से सींचा.
    अरुण कहे है वंदनीय, पावन श्रम-सीकर
    अतिशय,अति अनूप सजाया मंच 'रविकर'.

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