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रविवार, अक्तूबर 16, 2011

"सपनो का विरोधाभास" (चर्चा मंच-669)

मित्रों!
त्यौहारों का मौसम चल रहा है।
सबके मन में दीपावली का उल्लास समाया हुआ है।
ऐसे में देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक!

मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,


डायरी के पन्नों से : अमरनाथ यात्रा


....प्रातः केवल 6 किमी. पर बर्फ़ानीबाबा के दर्शन की उत्कण्ठा यात्रियों के पैरों को स्वचालित कर देती है। उत्साह से भरे यात्री हर हर महादेव और बाबा अमरनाथ की जय के जयघोष से हिमशिवलिंग के दर्शन के लिए कमान से छोड़े तीर की भाँति चल पड़ते हैं। अमरनाथ के पहले कई हिमनद पार करके एवं अमरगंगा में स्नान करके यात्री मन एवं शरीर से 100 फिट लम्बी एवं 150 फिट चौड़ी गुफ़ा में पंक्तिबद्ध दर्शन के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं।....

मोनल से मुलाक़ात


वैसे तो मोनल या मोनाल पक्षी के बारे में मैं जानता तो पहले से था मगर जब इसे बिलकुल करीब से देखने का अवसर मिला तो इसकी सुन्दरता को बस देखता रह गया ...सुनहले मोनल की इस जाति-क्रायिसोलोफस पिक्टस पर लगता है प्रकृति ने अपने पसंदीदा रंगों का खजाना ही लुटा दिया हो ...मैं बनारस के मशहूर बहेलिया टोला नाम की एक गली में पहाडी मैना ढूँढने गया था जो मनुष्य की बोली की काफी हद तक नक़ल करने में माहिर है ....पहाडी मैना तो नहीं मिली मगर वहीं मोनल से मुलाक़ात हो गयी ....

या खुदा ये कैसा कर्म है
हम पर तेरी महर हुई
बीत गया जो अंधकार था
अब नई मेरी सहर हुई.....
मुस्कराना एक भाव है, भीतर से उठती एक बहुत गहरी हूक जिसके मायने मुसिबतों से निपटने की अविकल ध्वनी के रूप्ा में सुने जा सकते हैं। मौसम के खिलाफ, दुख के खिलाफ और एक खुशहाल भविष्य की उम्मीदों भरी स्थितियों में बहुत हौले से मुड़ गए होंठों का ऐसा चित्र जिसमें जीवन के राग रंग की भी अभिव्यक्ति को सुना देखा जा सकता है, गीता गैरोला की कविता में लौट लौट कर आता हुआ भाव है। ...
प्रस्तुत है गीता गैरोला की कुछ कविताएँ-----

पहुँचे बुद्ध यशोधरा द्वार


स्वागत, स्वागत, हे आर्यपुत्र !
वंदन तेरा अभिनन्दन तेरा.
कैसे करूँ मैं तेरी आरती?
रह गयी कहाँ पूजा की थाली?

मेरी आँखों में जो सपने पल रहे थे ---
आँख खुलते ही सब मिट्टी में दफन हो गए ---
मेरे लिए भी थी कभी कुछ पेड़ों की छाँव ---

चन्द्रमा के कुछ रूप, मेरे सेलफ़ोन व कैमरों से

डॉ.ऐ.पी.जे.अब्दुल कलाम को जन्मदिन की बहुत बहुत हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं !
जी हाँ दोस्तों भाजपा जो भ्रष्टाचार के खिलाफ खुद को साबित करना चाहती है जो भ्रष्टाचार और लोकपाल मामले में अन्ना का समर्थन करती है वही भाजपा अपने...


सात जन्मों तक के लिए
तुम्हारा साथ मांगने वाली मैं
तुम्हारे लिए करवा चौथ का व्रत रखने वाली मैं
तुम्हारे नाम का सिन्दूर मांग में सजाने वाली मैं...

धँसी आँखें पिचके गाल
पेट-पीठ एकाकार
सीने परहड़्डियों का जाल
हैंगरनुमा कंधेपर झूलता फटेला कंबल
दूर से दिखता हिलता-डुलताकंकाल
एक हाथ मेंअलमुनियम का कटोरा ...


अगर देश और समाज चिंतन करना चाहे तो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी.जे. अब्दुल कलाम ने एक मार्के की बात कही है .

ठूँठ और झाड़ी.........
झाड़ी की कुटिल मुस्कान और ठूंठ पर कटाक्ष ,
क्या मिला तुमको ?
सह कर आँधियों के थपेड़े ,
और मौसम का कहर |
बढ़ना सूखना और टूट कर गिरना ,
यही था तुम्हारा ...

मेरी बारी में महुआ का यह पेड़ दिन-दिन सूखता जा रहा है अब फल नहीं आते उस तरह न ही गमक उसकी फैल पाती भीतर वाले घर - ओसारे तक कंक-सा होता...

जिस सुबह तुम मुझसे मिलने आने वाली होगी,
उस रात मैं साधु हो तपस्या करने
त्रिवेणी पार्क के उसी पेड़ के नीचे बैठूँगा,
जिसके नीचे बैठ हमने तुमने कितनी ही .....

आज एक ऐसी रचना जो गहरे तक असर कर गई
पहली ही बार पढ़ने में ..शायद आप भी ऐसा ही महसूस करें
पंजाबी नहीं जानती तो उच्चारण गलत हो सकते हैं ...
थक गईं नजरें तुम्हारे दर्शनों की आस में।
आ भी आओ चन्द्रमा तारों भरे आकाश में...

23 अगस्त 2011 को दोपहर तक कोणार्क से मैं वापस पुरी आ गया। टम्पू वाले ने सीधा जगन्नाथ मन्दिर के सामने ही जा पटका। नीचे उतरते ही पण्डों ने घेर लिया....

करवाचौथ पर विशेष प्रेम की
नि:शब्द करने वाली अनुभूति से ओतप्रोत..

करवा चौथ * ** *
* *सखियाँ खूब सुहाग के गीत गाओ री*
*बिंदिया .चुदियाँ .मेहंदी से खुद को खूब सजाओ री *
*सोलह श्रंगार करके सजना को रिझाओ री *
*आओ करवाचौथ ...


बीते साल गन्ध पर लिखते हुए मुझे कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिली थीं और उसे मैने दो कड़ियों में देना तय किया था। पर जैसा कि अब तक होता आया है, कई शब्दों ...

एक दिना के वास्ते, बदली-बदली चाल ||
करवाल=तलवार
करवा संग करवालिका, बनी बालिका वीर |
शक्ति पा दुर्गा बनी, मनुवा होय अधीर ||
करवालिका=छोटी गदा

शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें, बेगम सदा सशंक ||

लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश |
चौथी से ही चल रहा, अब क्या लेना चांस ??
(महिमा )
नारीवादी हस्तियाँ, होती क्यूँ नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके पुन: समाज ||
अभिसार चलो चलें उस ओर प्रेम की मधुर ज्योति जहाँ जगे सखी ,
प्रेम वायु के शीतल झोंके इधर-उधर से लगें सखी ...
तुम इतनी कठोर कब से हो गई हो कि जाने के बाद नहीं देखती मुडकर भी! एक तो वो दिन था कि तुम एक पल के लिए भी नहीं होना चाहती थी दूर समय के लिए सचेत करती थी कि..

रायबरेली की माटी गीत-नवगीत के लिये
बहुत ही उपजाऊ रही है।
यहाँ के प्रख्यात नवगीतकार
- डॉ शिवबहादुर सिंह ...

22 टिप्‍पणियां:

  1. ढेर सारे अच्छे लिंक्स , बस पढने की फुर्सत ही निकल पायें !
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. सबकी पसंद का कुछ न कुछ लिया है आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. जो अक़्लबंद आदमी हैं वे लड़की को पैदा नहीं होने देते ।

    नर नारियों के जोड़े सबके सदा बने रहें ,
    चाहे वे उन्होंने प्रार्थना किसी तरीक़े से की हो ।

    अच्छी पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए. अन्य पोस्टो की जानकारी के लिए आभार.

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  5. आज तो फ़ुरसत में हूं। इतने सारी और अच्छे लिंक्स मिल गये हैं। अब बांचता हूं।

    जवाब देंहटाएं
  6. अमरनाथ यात्रा के लिंक को साँप सूंघ गया शायद, जो काम नहीं कर रहा है।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर संकलन ||

    नए लिंक मिले

    आभार ||

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  8. बहुत बधाई शास्त्रीजी आपको इतना अच्छा चर्चा-मंच सजाने के लिए /मेरी रचना "करवाचोथ"को शामिल करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद /बहुत ही अच्छे और शानदार लिनक्स से परिचय कराया आपने /आभार /

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  9. अच्छे लिंक हैं।

    मेरा सुझाव है कि चर्चा मंच पर सप्ताह में एक-दो बार किसी ढेर सारे लिंक देने के बजाय किसी एक ब्लॉगर की रचनाओं पर खूब चर्चा की जाय। हर रचना की आलोचनात्मक समीक्षा हो, जिसे पढ़कर लोग अपने विचार भी खुल कर लिखें।

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  10. आपके पोस्ट पर आना बहुत अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका निमंत्रण है । धन्यवाद ।

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  11. बहुत ही बढिया लिंक्स संजोये हैं……………बहुत सुन्दर और सार्थक चर्चा।

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  12. एक साथ इतने अच्छे लिंक आभार मेरी रचना भी धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत बधाई शास्त्रीजी आपको इतना अच्छा चर्चा-मंच सजाने के लिए /

    जवाब देंहटाएं

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