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शुक्रवार, मार्च 23, 2012

जल-प्रदान का पुण्य, काम पित्तर आयेंगे : चर्चा मंच 827

"नवसम्वतसर-2069 की मंगलकामनाएँ!" (श्रीमती अमर भारती)

नवसम्वतसर-2069 की
आप सबको मंगलकामनाएँ!

 हिन्दू नव वर्ष की शुभकामनायें .
आशुतोष की कलम से...शांति नहीं क्रांति

आज कल लिखना लिखाना कम हो गया है नौकरी से तो फुर्सत निकाल लेता हूँ मगर अब विचारधारा के लिए धरातल पर काम कर रहा हूँ अतः समय  से जंग चलती रहती है ..कभी कभी लगता है की एक जीवन कम है जितने काम हमे करने हैं..कल नव वर्ष है तो सोचा बधाइयाँ देता चलूँ..शायद आज के वर्तमान परिवेश में इस त्यौहार को लोग भूलते जा रहे हैं इसपर पिछले साल एक पोस्ट लिखी थी कुछ थोड़े बहुत संपादन के बाद उसे ही लिख रहा हूँ.. 

हमारी वर्तमान मान्यताएं और आज का भारतीय : वर्तमान परिवेश में पश्चिम का अन्धानुकरण करते हुए हम ३१ दिसम्बर की रात को कडकडाती हुए ठण्ड में नव वर्ष काँप काँप कर मानतें है..पटाके फोड़ते है,मिठाइयाँ बाटते हैं और शुभकामना सन्देश भेजते है..कहीं कहीं मास मदिरा तामसी भोजन का प्रावधान भी होता है..अश्लील नृत्य इत्यादि इत्यादि फिर भी हमें ये युक्तिसंगत लगता है..


"नूतन सम्वत्सर आया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')



फिर से उपवन के सुमनों में
देखो यौवन मुस्काया है।
उपहार हमें कुछ देने को,
नूतन सम्वत्सर आया है।।

उजली-उजली ले धूप सुखद,
फिर सुख का सूरज सरसेगा,
चौमासे में बादल आकर,
फिर उमड़-घुमड़ कर बरसेगा,
फिर नई ऊर्जा देने को,
नूतन सम्वत्सर आया है।।

दिनेश की टिप्पणी 
(A)

उड़ते बम विस्फोट से, सरकारी इस्कूल ।
श्री सिड़ी अनभिग्य है, बना रहा या फूल ।

बना रहा या फूल, धूल आँखों में झोंके ।
कारण जाने मूल, छुरी बच्चों के भोंके ।

दोनों नक्सल पुलिस, गाँव के पीछे पड़ते ।
बड़े बढे ही भक्त, तभी तो ज्यादा उड़ते ।।  

(B)
चीं चीं चिड़िया सृजनकर, तन्मय बारम्बार ।
जाती आती फुर्र से, बच्चे रही सँभार ।

बच्चे रही सँभार, बड़ी मारक हो जाती ।
लुटा रही है प्यार, पूज्य माता कहलाती ।

समय चक्र पर क्रूर, रक्त से जिनको सींची ।
उड़ जाते वे दूर, करे फिर मैया चीं चीं ।।   

(C)
  मनोज
बांग्लाभाषी है भला, पिए नहीं बस खाय । 
भूलो सब जलपान को, जल तो रहा विलाय ।

जल तो रहा विलाय, कलेवा बदल कलेवर ।
ठूस-ठास कर खाय, ठोस दाना अब पेवर ।

जल-प्रदान का पुण्य, काम पित्तर आयेंगे।
देंगे वे जल-ढार, पिपासु बुझा पायेंगे ।। 


  चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
 बेसुरम्‌ अगर आप सदाचारी बुद्धिजीवी हमारे साथ हैं तो हम इस भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने को तैयार हैं वर्ना मज़बूर हैं कि उसे उसका मनमानी घूस दें, अपना वेतन पास करायें और भ्रष्टाचार को मज़बूत बनायें। हम अपने परम सहयोगी, तेज़तर्रार पत्रकार बन्धु महेन्द्र श्रीवास्तव से विशेष आशा रखते हैं और जो भी कोई सदाचारी, जागरूक हमारा सहयोग करने को तैयार हों वे हमसे सम्पर्क कर सकते हैं फोन नं. तथा ईमेल पर। हमें आपके मानसिक और भौतिक सहयोग की महती आवश्यकता है।


इस हिंसक और गैर-अनुशासित छवि के चलते छात्रों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.उनकी अवस्था ऐसी नहीं होती कि वे इन चीज़ों के दुष्परिणाम भाँप सकें.हमारे समाज में किसी को फुर्सत नहीं कि आखिर इन छात्रों को विद्यालयों से क्या सीख मिल रही है ? चूंकि ऐसे हालात सरकारी विद्यालयों में ही अधिक हैं और इनमें पढ़ने वाले छात्रों के अधिकतर अभिभावकों की पृष्ठभूमि ऐसी नहीं है कि वे इस सबमें दख़ल दे सकें,इसलिए सब कुछ राम-भरोसे चल रहा है.यहाँ यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि ये विद्यालय शुरू से ऐसे ही नहीं थे.इस समय हालत ज्यादा ख़राब हैं,तभी आये दिन किशोर छात्र अपने साथियों पर या अध्यापकों पर हमला बोल देते हैं.


* करमउनका ज़फा उनकी सितम उनका वफा उनकी हमारा आबला अपना मुहब्बत में अना उनकी तबस्सुम भी उन्हीं का और शोखी भी उन्हीं की है हमारा अश्क अपना और चेहरे की हया उनकी जूनून-ए-शौकदीद अपना और ये रूसवाइयाँ अपनी येसर सर ...

*(आज विश्व कविता दिवस है। इस उपलक्ष्य * *में कैलाश वाजपेयी की कविता 'विकल्प वृक्ष' * *और साथ में पॉल गॉगिन का चित्र)* सुनते हैं कभी एक पेड़ था रोज़ लोग आकर दुखड़ा रोते उस पेड़ से तरह-तरह के लोग, दुख भी स

(6)

स्वस्थ्य रहने की ऋषि प्रणीत प्रशस्त जीवन शैली

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के प्रादुर्भाव से बहुत पूर्व भारतीय ऋषियों ने अपने दीर्घ अनुसन्धान एवम प्रकृति के निरंतर साहचर्य से उत्कृष्ट जीवन शैली का विकास किया था जिसके अभ्यास के परिणामस्वरूप लोग व्याधिमुक्त रहते हुये दीर्घायु के सहज अधिकारी हुआ करते थे। नवीन अनुसन्धानों ने ऋषियों के उपदेशों की वैज्ञानिकता को स्वीकार किया और उसे “जीवनशैली का सनातन सत्य” निरूपित किया है। प्रस्तुत हैं आपके लिये कुछ सामान्य सी करणीय बातें
  1. सूर्योदय से पूर्व जागरण का अभ्यास। परिणाम– मलविबन्धता(कॉंस्टीपेशन) नहीं होती। आलस्य नहीं रहता, शरीर और मन में स्फूर्ति बनी रहती है।
  2. उषःपान (ताम्रपात्र में रात भर रखे जल का ऊषाकाल में पान)। परिणाम- मलविबन्धता को दूर करता है, नेत्र के लिये हितकारी है, मूत्र विकारों को दूर करता है, कोषिकाओं के अपवर्ज्य पदार्थों का निष्क्रमण भलीभाँति होता है जिससे रोगों की सम्भावनायें कम होती हैं। उषःपान के अभ्यास(आदत) से अर्श (बबासीर) की सम्भावनायें न्यून हो जाती हैं।

इक चेहरा है चेहरई, चारुहासिनी चाह ।
चंचलता लख चक्रधर, भरते रहते आह ।

भरते रहते आह, गुलाबी से हो जाते ।
करते हैं आगाह, गुणी नारद को भाते ।

चेहरा होय सफ़ेद, उठे लेकिन जब पर्दा ।
कर देता है मित्र, चेहरई चेहरा गर्दा ।

  WEERA 
योग जीवन जीने की कला है।योग च्रित की वृतियों का निरोध है।योगा...

(9)

नयी राह नयी दिशा


ये उस इंसान की मनोव्यथा है जो बनना कुछ और चाहता है पर परिस्थितिवश
बन कुछ और जाता है । ये करियर पर भी लागू होती है 


नजरें पैदा कर रहीं, हलवत हत हत्कंप ।
वर्षागम वलद्विष कृपा, नहीं जरुरी पंप ।
 
नहीं जरुरी पंप, होय उर मस्त उर्वरा ।
प्रेम पौध को रोप, हुए एहसास शर्करा ।  

पहरे का उपलंभ, गुदडिया पहरे अजरे । 
छोड़ व्यर्थ का दम्भ, बुलाती कब से नजरें ।।

(10-B)

दर्शन-प्राशन

भयंकर रक्तपात में भी पुष्प सुगंध नहीं त्यागते

आशुकवि रविकर जी और आचार्यवर कौशलेन्द्र जी,
पिछले कुछ दिनों से एक पीड़क मनःस्थिति को झेल रहा हूँ... आपकी काव्य-टिप्पणियों से संवाद करने से पहले आपको अपने मन में उठ रहे झंझावात से रू-ब-रू कराना चाहता हूँ. मेरे कुछ प्रिय हैं जो परस्पर घृणा करते हैं. मैं दोनों के ही गुण-विशेषों का ग्राहक हूँ. मैं किसी एक पाले में खड़ा दिखना नहीं चाहता क्योंकि दोनों से संवाद बनाए रखना चाहता हूँ. मेरी स्थिति मदराचल पर्वत को मथने वाली मथानी 'वासुकी'-सी हो गयी है. मेरे मन में बिना क्रम के प्रश्ननुमा विचारों का चक्रवात उठ खड़ा हुआ है :
— क्या 'दिन' शब्द 'रात' शब्द के साथ जुड़कर अपनी उज्ज्वलता खो बैठता है? फिर तो दिन-रात रहने वाला 'प्रिय स्मरण' एक मानसिक अपराध होना चाहिए??
— क्या 'सुर-असुर', 'कृष्ण-कंस', 'सत्यासत्य', 'पाप-पुण्य' आदि शब्द युग्म बनाना सत शब्दों के साथ अन्याय करना है?
-                  -                -                     -   
 वैचारिक द्वंद्व हो अथवा शारीरिक द्वंद्व ....अखाड़े के अतिरिक्त कोई तो ऐसा मंच होना चाहिए जहाँ दोनों में परस्पर संवाद बने..
एक रूपक (दृष्टांत) मन में आ रहा है :
"भयंकर रक्तपात में भी पुष्प सुगंध नहीं त्यागते."
उपर्युक्त रूपक पर चिंतन करते हुए एक और विचार छिटककर बाहर आ खड़ा हुआ है --
 -            -                       -    
अपने लिये आवागमन के मार्ग चिह्नित करना और अपने लिये वर्जनाओं का जाल बुनना किस आधार पर हो? कौन-सी कसौटी पर इन्हें कसूँ?
मन में तरह-तरह के संकल्प आ-जा रहे हैं :
— "अब से बिना नाम चिह्नित किये अपने प्रियजनों का गान किया करूँगा."
— "माला जाप' के उपरान्त 'अजपा जाप' का पड़ाव आता है - अब वही करूँगा."
... ये संकल्प स्थिर नहीं हो पा रहे हैं, आपसे अनुरोध है कि अपने अनुभवी चिंतन का स्नान करायें... मन सुखद विचारों के बिछोह से गदला हो गया है.
नव वर्ष आ रहा है.. उसके आने से पहले अपनी समस्त कलुषता धो लेना चाहता हूँ. कृपया अपनी शुभ्र कामनाओं से मेरी दुविधाओं को दूर कर दीजिये!
 एक अस्थायी पोस्ट


(11)

कवि निरपेक्ष होते हैं सापेक्ष नहीं


कवि और उसकी कविता
प्रकृति कह लो , धड़कन कह लो
प्रतिध्वनि कह लो
पत्ते पर ठहरी ओस की बूंद कह लो
वही वेद, वही ऋचा
और उसके एहसास यज्ञकुंड !
कवि कोई बनता नहीं
वह तो बस जीता है
जीने के लिए मौसम को अनुकूल बनाता है

रश्मि प्रभा

वाह भाई वाह ,
ढिबरी की आह
दादा की परवाह  
जलने की चाह
चाहत अथाह
ओ अल्लाह-
दिखा दे राह ||



अगर हमें अपने बच्चों का पालन-पोषण करना है ताकि वे हमारी तरह विकृत न हों... जिज्ञासुः अगर हमें अपने बच्चों का पालन-पोषण करना है ताकि वे हमारी तरह विकृत न हों और बिगडे न, और समाज के गलत लोगों के प्रभाव में न...


अरे भ्रमर कित्थे गिया, भ्रमर-गीत भरमाय ।
किंशुक किंवा चंचु-शुक, रहा व्यर्थ ही धाय ।  

रहा व्यर्थ ही धाय,  वहाँ न तेरा मेरा ।
बियाबान सुनसान, फ़क्त यादों का घेरा ।

रविकर पूछे यार, दसा करदा की उत्थे ।
पञ्च-नदी के पार, गिया रे भरमर कित्थे ।।  

 काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये--(15)

भाये ए सी की हवा, डेंगू मच्छर दोस्त ।
फल के पादप काटते, काटें मछली ग़ोश्त ।

काटें मछली ग़ोश्त, बने टावर के जंगल ।
टूंगे जंकी टोस्ट, मने जंगल में मंगल ।

खाना पीना मौज, मगन मानव भरमाये ।
काटे पादप रोज, हरेरी अपनी भाये ।।


मिया लफडूद्दीन बड़े दिलकश इंसान थे,एक दम मस्त अपने किस्म के इकलौते तो इतने कि संग्रहालय के डायनासोर तक जलते. बनारसी पान मुह डाल के चलते तो रंगरेजों का जी होता कि मुह से ललाई निकाल के अपने कपडे रंग लें. क...

अरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
दिल के जोड़े से कहाँ, कृपण करेज जुड़ाय ।
सौ फीसद हो मामला, जाकर तभी अघाय । 

जाकर तभी अघाय, सीखना जारी रखिये ।
दर्दो-गम आनन्द, मस्त तैयारी रखिये ।

आई ना अलसाय, आईना क्यूँकर तोड़े ।
आएगी तड़पाय, बनेंगे दिल के जोड़े ।। 

स्वप्न मेरे................  
चुन चुन वे साजा किये, अपने सपने रोज ।  
चुनचुनाना सौंपते, इधर उधर से खोज ।।


और  अंत  में --              (19)

पानी चुल्लू भर नहीं, करे कुकर्मी ऐश-

पानी चुल्लू भर नहीं, करे कुकर्मी ऐश ।

सूखे पोखर में गई, भ्रष्टाचारी भैंस । 

भ्रष्टाचारी भैंस, तैस में पानी पी पी ।

कैसे कोसें दुष्ट, करे है बैठा ही ही ।

http://totallytop10.com/wp-content/uploads/2011/08/Dracula-2000.jpg

पानी दिया उतार, चढ़े अब कैसे पानी ।।

रविकर पानीदार, बहे धन जैसे पानी ।

25 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ूबसूरत भारी-भरकम चर्चा...हमारी अपील को शेयर करने के लिए आभार

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  2. बहुत बढ़िया चर्चा ...सुंदर लिंक्स चयन ...
    नव संवत की सभी को ढेरों ...मंगलकामनाएं ....!!

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  3. उपयोगी लिंकों के साथ बढ़िया चर्चा!
    नवसम्वतसर-2069 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  4. सराहनीय सुखद पुष्प गुछ्छ चर्चा मंच को मनभावन सफल सार्थक प्रयास बधाईयाँ जी /

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  5. कवित्त मय चर्चा मंच सजाया मेहनत से हर बार ,

    रविकर हमार .

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  6. पहला चर्चा मंच है , नव सम्वत्सर वर्ष
    सबको जीवन में मिले, सुख मंगल उत्कर्ष
    सुख मंगल उत्कर्ष , परिश्रम से सँवरा है
    सौरभ संचित मंच ,लाय रविकर भँवरा है
    कवितायें आलेख, आज का मंच सुनहला
    नव सम्वत्सर वर्ष, चर्चा मंच है पहला.

    सभी को नव वर्ष की शुभकानायें..............

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद् की आप मेरे ब्लॉग पे पधारे और अपने विचारो से अवगत करवाया बस इसी तरह आते रहिये इस से मुझे उर्जा मिलती रहती है और अपनी कुछ गलतियों का बी पता चलता रहता है
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना

    कुछ अनकही बाते ? , व्यंग्य: माँ की वजह से ही है आपका वजूद: एक विधवा माँ ने अपने बेटे को बहुत मुसीबतें उठाकर पाला। दोनों एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे। बड़ा होने पर बेटा एक लड़की को दिल दे बैठा। लाख ...

    http://vangaydinesh.blogspot.com/2012/03/blog-post_15.html?spref=bl

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  8. बहुत सुंदर चर्चा .....हार्दिक शुभकामनाएँ

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  9. बहुत बढ़िया लिंक्स के साथ सुंदर चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार!
    नवसंवत्सर 2069 एवं नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ !

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  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  11. इस चर्चा के बहाने दो ब्लॉगों पर पहली बार जाना हुआ।

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  12. सुन्दर प्रस्तुति| नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  13. कृति को स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार

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  14. बहुत सुन्दर चर्चा , मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ..

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  15. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स का संयोजन किया है आपने ...आभार ।

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  16. बहुत बढिया चर्चा..
    मैं ब्लॉग जगत में नया हूँ मेरा मार्ग दर्शन करे
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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  17. सर मे ब्‍लाग जगत मे नया हू मुझे बताये की टैम्‍पलेट पर उपर अपना फौटो केसे लगाउ तथा ब्‍लाग पर ब्‍लाग ज्‍वाईन करने वाले का ि‍लंग कैसेट आयेग मेरी मार्गदर्शन करे ब्‍लाग (vinodsaini27.blogspot.com) e-mail vinod.tijara@gmail.com सर जरूर बताना जी ईन्‍जार मे आपका

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  18. बहुत बढ़िया चर्चा ...सुंदर लिंक्स...नवसंवत्सर २०६९ की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  19. बहुत सुन्दर !
    -चीं चीं करती चिड़िया आती
    अम्बर ऊपर घोसला बनातीं |
    पानी जहां पर वहाँ मडरातीं
    औ जमी से उड़ -उड़ जाती |

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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