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रविवार, अप्रैल 08, 2012

"कैसी-कैसी चालें चलतें है लोग" चर्चा मंच-843

चर्चा मंच के सभी पाठकों को 'मयंक' का नमस्कार!
      मित्रों दो घण्टे पहले नेट खोला था मगर ब्लॉग नहीं खुल रहे थे। अब नेट गतिमान हो गया है, इसीलिए अपनी पसन्द के लिंक आपको रविवार के लिए पठनार्थ लिंक दे रहा था हूँ।
       आज सबसे पहले देखिए!
       श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद की छठी - कड़ीम्हारा हरियाणा में देखिए इस प्रश्न को आलेख के रूप में- क्या निर्धारित सीमा के बाद हटेंगे अतिथि अध्यापक ?  हर मदारी अपने बंदर नचा रहा है बंदर बनूं या मदारी समझ में ही नहीं आ रहा है हर कोई ज्यादा से ज्यादा बंदर चाह रहा है ज्यादा बंदर वाला हैड मदारी कहलाया जा रहा है...! सफ़र हैं सुहाना (सफ़र मनाली का)....! ....कैसी कैसी चालें चलतें है लोग!* *.....कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए झूठ बोलना, दूसरों के बीच मनमुटाव पैदा करना, घूंस देना.....साम, दाम, दंड और भेद ....उपन्यास का नववा पन्ना!....! क्या डॉ. मनमोहन सिंह अक्षम प्रधानमंत्री हैं ? .... बच्चों को लगते जो प्यारे। वो कहलाते हैं गुब्बारे।। गलियों, बाजारों, ठेलों में। गुब्बारे बिकते मेलों में।।...जिस छाँव में रुकने का मन हो उस छाँव से  दुआ सलाम रहे -  जो गाँव लगे अपना अपना उस गाँव से  दुआ सलाम रहे -  जिन बातों में हो शहद ज़रा वो बातें सब दो चार रहें......! नक़ल का दंड श्री पाल स्मिट जी, पिछले सप्ताह ही भूतपूर्व हुए हंगरी के राष्ट्रपति बंधु, यदि अभी तक तक भूतपूर्व नहीं हुए तो शायद हम आपको पत्र ही नहीं लिखते और लिखते ...नकल का सिद्धांत नकल एक सार्वभौमिक परिकल्पना है। प्रकृति के हर अंग में कूट कूट कर भरी है यह प्रवृत्ति.....। ..क्या करूँ..तुम हो पास मेरे.....! वो हमारा दोस्त ही नहीं हमस्वभाव भी है .सावधानी हटी दुर्घटना घटी .कहतें हैं स्वान (कुत्ते )के पास एक छटा इन्द्रिय बोध होता है.....! दिल में यही तमन्ना है सारी दुनिया की सैर करूँ....! .....तुम्हारे कहने * *मेरे सुनने के बीच * * * *जो था  अनकहा * * * * * * * कह दिया * *तुम्हारी ख़ामोशी ने * * *!  "तुझसे शुरू हो.. तुझपे ख़तम.. अजीब रस्ते हैं.. गुलाबी जिस्म की.. चौको रूह के..!!" दखलंदाजी सही नहीं. मैं अपना काम करूँ, और तुम अपना काम करो, एक दूसरे के कामों में, दखलंदाजी सही नहीं ...!  -काव्यांश :वो कौन है ? veerubhai at ram ram bhai अधिकारों के प्रति रहे, मुखरित और सचेत |  पिता, पुत्र पति में बही व्यर्थ समय की रेत-.... | एक था राजा एक थी रानी उसकी बेटी थी फूल कुमारी फूल कुमारी जब उदास होती... पढ़ते सुनते बरस बीत गए कहानी में  फूल कुमारी उदास है.........! मेरे गीतों को होठों से छू लो जरा  ज़ुल्फ बिखरा के छत पे ना आया करो , आसमाँ भी ज़मीं पर उतर आयेगा. वक़्त बे वक़्त यूँ ना लो अंगड़ाइयां......! लेकिन हमारी कृतघ्नतायें खत्म क्यूं नहीं होती! ......? नारी का कविता ब्लॉग....! झूठ की जीत सच की हार नहीं हमारी हार । लोकतंत्र को बनाओ मजबूत स्वस्थ चर्चा से । गीता पढता फल की चिंता मन छोड़ता नहीं । महके फिजा प्यार की खुशबू .....ये दुआ करो.....! खेलिए जज्बात से ना मेहरबानी कीजिए मुस्कुराके इसतरह ना खौफ तारी कीजिए *.* गरीबी को मिटाने के लिए  छेडिए इक जंग...इस ग़ज़ल को पढ़कर मुझे अदम गौंडवी की यह पंक्तियाँ याद आ गईं---छेड़िये इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के ख़िलाफ़, दोस्त, मेरे मजहबी नग्मात को मत छेड़िये!.... मुंडेर पर बैठा आज फिर  एक काला कव्वा !  चौकस ! कभी इधर ! कभी उधर ! गर्दन को घुमाता हुआ .. काऊं ! कांउ !! कांउ !!! यु चिल्ला रहा था मानो सबको खबरदार कर रहा हो...! फ़ुरसत में ... गठबंधन की सरकार! वीर तुम बढे चलो ..... वीर तुम बढे चलो फकीर तुम बढे चलो। वोट तुम अपना सदा, भ्रष्टाचारीयो को दो। बढ रही महँगाई हो ,धर्म की लड़ाई हो राह चलते चलते तेरी रोज ही पिटाई हो, वीर तुम बढे चलो ..... -! कुछ...गहरा घना गूढ़, मगर दूर बहुत ......यथार्थ का शतक! कहीं पढ़ा था इसको और इसके यथार्थ पक्ष को देखा भी है औरसमझा भी है कुछ सन्देश देती है ये कथा सो इसको यथार्थकी सौवीं रचना के रूप में आपके नजर कर रही हूँ
      नदी में चाँद ( ताँका ) *नदी में चाँद **( ताँका )* *डॉ अनीता कपूर *** *1*** *नदी में चाँद*** *तैरता था रहता*** *पी लिया घूँट *** *नदी का वही चाँद*** *आज हथेली **पे उतरा ।*....यदि मै तुमसे कहूँ.. कि मेरे मन पर, तुम इस तरह छा गई हो, कि मै ओत प्रोत हो गया हूँतुम्हारे व्यक्तित्व के जादू में ......!
      रविवार का दिन था । श्रीमती जी कहने लगी --जी बहुत दिन हो गए , फूलों को देखे हुए । चलिए कहीं चलते हैं । मैंने कहा भाग्यश्री, ऱोज तो रोज को देखती हो , लेकिन फिर भी... फूलों की तलाश में , भटकते रहे हम गुलशन गुलशन --- ! और मिला यह कार्टून....बाबा रामदेव का नया 'भक्त'!

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे लिंक्स संजोये हैं...आभार!!

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  2. आज के व्यस्त जीवन में समय
    निकाल कर इतना सब कुछ कर
    पाना, निश्चय ही अभिनन्दनीय है।
    चर्चा-मंच के आयोजकों को शत्-शत्
    अभिनन्दन।

    आनन्द विश्वास

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  3. भावपूर्ण सभी विधाओं से सजी संयमित सफल चर्चा....बधाईयाँ सर /

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  4. बहुत अच्छे लिंक्स और इनके साथ मुझे भी जगह मिली आभार पर यहां छपा तो है पर लिंक नहीं बना है।
    " कुछ...गहरा घना गूढ़, मगर दूर बहुत ......"
    का।

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  5. लोगों की कैसी कैसी चालें
    चर्चामंच पर लाकर आप धो डालें
    जवाब नहीं आपका कैसे इसे सम्भालें
    खूबसूरती से भरे कितने लिंक दे डालें
    नजर उतारने के लिये लगता है
    उल्लूक को शायद ऊपर से बैठा लें।

    धन्यवाद !! आभार !! बार बार !!

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  6. कहानी के रूप में व्यक्त ब्लॉगजगत की चर्चा।

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  7. मेरी रचना को मंच में स्थान देने के लिए,..आभार
    सूत्र संयोजन के लिए बधाई,....

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  8. मंच में स्थान देने के लिए धन्यवाद...

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  9. बहुत सुन्दर लिंक्स....रोचक चर्चा...आभार

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  10. बहुत बढ़िया सार्थक लिंक्स के साथ-साथ सुन्दर प्रस्तुति
    आभार!

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  11. सभी लिंक्स बहुत ही सुन्दर है!...सभी के विषय अलग अलग...जैसे कि सुन्दर रंग-बिरंगी पुष्पों से सुसज्जित हरा-भरा उपवन!...मेरी रचना शामिल की आपने...धन्यवाद!

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  12. .बढ़िया प्रस्तुति एवं संयोजन एक से बढ़कर एक लिंकों का .

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