फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, जून 15, 2012

भगवान् राम की सहोदरा : भगवती शांता परम ; चर्चा-मंच 911

सर्ग-1 भाग-1 "अथ शांता" 

मनोज कुमार has left a new comment on  "भगवान् राम की सहोदरा (बहन) : भगवती शांता परम": 

भारत की हर दूसरी बहन यूं ही तमाम कुर्बानी देने के बावजूद गुमनाम बनी रहती है। शांता की किस्मत में भी ऐसी ही कुर्बानी थी। बावजूद इसके कि वो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र की बहन थी और रामजन्म को संभव बनाने के लिए उसने बड़ा बलिदान दिया था। इस गुमनाम पात्र जो लेकर एक छोटी सी कविता रचने की सोची थी। कर न पाया। आप तो पूरा काव्य ही रच रहे हैं। शुभकामनाएं। 

Om 

सोरठा  
  वन्दऊँ श्री गणेश, गणनायक हे एकदंत |
जय-जय जय विघ्नेश, पूर्ण कथा कर पावनी ||1||
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi28fzpnTGOZ8Zve1CFrI046hvYdLgpJvZx-8_uJI8bQ-U24rJVtni-ZomYR8tP26sTvFACcptKP12kYEmPXBiFAvovu0lv-mVboBrKrCHHd2Wdliu-34FVo6tTLKDKfnYvVkaZBflvxOg/s1600/shree-ganesh.jpg

वन्दऊँ गुरुवर श्रेष्ठ, कृपा पाय के मूढ़ मति,
यह गँवार ठठ-ठेठ, काव्य-साधना में रमा ||2||



पुस्तक परिचय -------" मेरे गीत " / गीतकार --- सतीश सक्सेना

संगीता स्वरुप ( गीत ) 

कुछ दिन पूर्व  सतीश सक्सेना जी के सौजन्य से मुझे उनकी पुस्तक  " मेरे गीत "  मिली  और मुझे उसे गहनता से पढ़ने का अवसर भी मिल गया । सतीश जी ब्लॉग जगत की ऐसी शख्सियत हैं जो परिचय की मोहताज नहीं है ।  आज  अधिकांश  रूप से जब छंदमुक्त रचनाएँ लिखी जा रही हैं उस समय उनके लिखे भावपूर्ण गीत मन को बहुत सुकून देते हैं । उनके गीतों और भावों से परिचय तो  उनके ब्लॉग  पर होता रहा है  लेकिन पुस्तक के रूप में  उनके गीतों को  पढ़ना  एक सुखद अनुभव रहा । पुस्तक पढ़ते हुये यह तो निश्चय ही  पता चल गया कि  सतीश जी एक बहुत भावुक और कोमल हृदय के इंसान हैं । 

ठीक है फिर शामी कित्थे मिलना है ते केडे टेम. रिंग करना, हूँन चलदा हाँ.

जी ये जिंदादिल लोग ठहाकों के बीच अपना रिटायर्ड जीवन व्यतीत रहे हैं....
तय कीजिए ६० साल के जवान या बूढ़े.

जय राम जी की.

कोंपलों के लिए

कुश्वंश
 कुछ शब्द
मन में घुमड़ते
मानसून बनकर
कुछ शब्द पसरे
सड़क पर
जूनून बनकर

लेखा- जोखा...

Saras
मेरे हिस्से की धूप


यह दुनिया शिशुपालों से भरी पड़ी है -
किस किस के पापों का हिसाब रखूँ..?
हाँ ....मैं कृष्ण नहीं हूँ -
मै हूँ एक आम आदमी-
जो ऐसे ही लोगों द्वारा -
हर कदम पर शोषित-
इसी आस में जी रहा है कि -
"वह" तो हिसाब रख ही रहा होगा इनके कुकर्मों का ....
लेकिन फिर.....

मेरी रचना पुष्पों की माला

Dr.J.P.Tiwari 

हे चिन्तक! तुझे प्रणाम!!, आज प्राप्त हुए मुझे,'अनुभूति के विभिन्न सोपान'.
चाहता हूँ उन्हें दीप मालाओं से सजा दूँ, क्योकि अब पूरे हुए मेरे अरमान, 

होती है जब मन में हलचल, तो करती है यह यात्रा: संदेह से सत्य तक का.
देख गुरु-शिष्य बदलते समीकरण, आया ध्यान 'समीकरण: तम और प्रकाश का.


हर सरकारी योजना का नाम गांधी या नेहरु.....गिनेचुने लोगो के नाम पर ही क्यों रखी जाती है ? क्या ये गिनेचुने ही लोग भारत में रहते है ? या ये ही शहीद हुये ? या आजतक ये ही महान हुये ?

Admin Deep




गर्मी का मौसम है आया।
आड़ू और खुमानी लाया।।

आलूचा है या कहो बुखारा।
काला-काला कितना प्यारा।।

फदील अल-अज्ज़वी की कविता

मनोज पटेल
पढ़ते-पढ़ते  
*आज फदील अल-अज्ज़वी की एक कविता... * * * * * *ईश्वर और शैतान : फदील अल-अज्ज़वी * (अनुवाद : मनोज पटेल) पहले अध्याय में हम बात करते हैं उस शैतान के बारे में जो चुनौती देता है ईश्वर को. दूसरे अध्याय में शैतान को स्वर्ग से निकाले जाने के बारे में.


 1
बिखरें रंग
फूलों से झरे हुए
धूप फागुनी
सजा जमीं आकाश
जग मनभावन ।

  कोई चिड़िया नहीं बोलती

ईंट–पत्थरों की जुबान है
ऊँचे बड़े मकानों मे
कोई चिड़िया नहीं बोलती
सूने रोशनदानों में।

कुछ छीटें मेरी यादों के
कुछ धब्बे सबके
 

 (1)
गरज हमारी देख के,  गरज-गरज घन खूब ।
बिन बरसे वापस हुवे, धमा-चौकड़ी ऊब ।
 
धमा-चौकड़ी ऊब, खेत-खलिहान तपे हैं ।
तपते सड़क मकान, जीव भगवान् जपे है ।
त्राहिमाम हे राम, पसीना छूटे भारी ।
भीगे ना अरमान, भीगती देह हमारी ।। 



"चाँद मान भी जा "

Sushil 
चाँद सितारे चाहता, भंवरा खुश्बू फूल ।
लगता फिर से हिल गई, है  दिमाग की चूल । 
है दिमाग की चूल, गधे सी सोच बना ले ।
सीवर में हर बार, चोंच की लोट लगा ले ।
लिस्ट हाथ में थाम, बाम माथे पे मलना ।
निपटाओ हर काम, चाल न कहीं बदलना ।।

छुपा खंजर नही देखा

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
ग़ाफ़िल की अमानत -

जो हर सर को झुका दे ख़ुद पे ऐसा दर नहीं देखा।
जो झुकने से रहा हो यूँ भी तो इक सर नहीं देखा।।

पहुँच जाता कोई वाँ पे जहां ईसा का रुत्बा है,
कोई बिस्तर नहीं छोड़ा के वो बिस्तर नहीं देखा।

आरक्षण : आधार जातिगत, कारण राजनैतिक


अनुराग, रौशनी के प्रति!

अनुपमा पाठक
अनुशील

 बस एक नैसर्गिक अनुराग हो रौशनी के प्रति
तो स्वतः ही जीवन कुसुमित हो जाता है
उज्जवल पक्षों के प्रभाव से
नित सवेरा आता है

सोने के बाद कोई नहीं आया : एक लघु कथा

रंजीत
उस साल बहुत बारिश हुई थी। नदी-खेत एकारनल हो गये थे। कोशी के कछार में बनैया सूअरों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही हो गया था। रात में सूअर के झूंड आते और मकई की फसल उजाड़ देते । किसानों को मचान बनाकर रात भर पहरा देना पड़ता था। उस किसान के घर में दो ही समांग थे- बाप और बेटा। 

हाहाकार

दिनकरजी जीवन दर्पण भाग - १२
दिनकर जी  लिखते हैं.....
मधुर जीवन हुआ कुछ प्राण ! जब से
लगा धोने व्यथा का भार हूँ मैं,
रुदन अनमोल धन कवि का, इसीसे
पिरोता आंसुओं का हार हूँ मैं.

नहीं रहे मेहँदी हसन (चर्चा -910 )

श्रृद्धा-सुमन समर्पित सादर, गजलों के सम्राट को |
मेंहदी मोहक गजल गायकी, करती गुंजित घाट को  |

मुर्दे भी जिन्दा-दिल होते, सुनिए प्यारे पाठकों -
इक दिन तो सबको जाना है, छोड़ जगत के हाट को || 

"खरबूजों का मौसम आया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

खरबूजे को देखकर, बदले रविकर रंग ।
पर पानी-पानी हुआ, बिन पानी है दंग।
बिन पानी है दंग, ढूंढता शीतल छाया ।
उत्तरांचल कोयल, कोयला इत गर्माया ।
 
करिए खुब आनंद, सदा किलकारी गूंजे ।
भेजो झोंके चंद, रंग बदले खरबूजे ।।
कुछ नहीं सीख पा रहे सुशील कुमार जोशी जी
 My Photo
 सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।
रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।
रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।
करिए  कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।
दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।
करते क्यूँकर सफ़र,  नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।
My Photo
दिव्या जीवन दिव्यतम, दो वर्षों का ब्लॉग ।
लोहा लेती लोक से, पिघलाई ना आग । 
पिघलाई ना आग, शर्त पे अपने जीती ।
जीती खुद के युद्ध, गरल भी खुद से पीती ।
लिखते रहो सटीक, देश हित रविकर हव्या ।
मानव का कल्याण, बधाई डाक्टर दिव्या ।।

न्यूरोन सर्किटों में सुधार ला सकता है योग

veerubhai
*न्यूरोन सर्किटों में सुधार ला सकता है योग * * * *'Meditation can improve brain wiring in a month '/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA,NEW DELHI ,JUNE 14,2012,P23* * * *संत महात्मा ,योग गुरु ,राजयोगिनी दादियाँ ( ब्र्ह्माकुमारीज़ विश्व -विद्यालय ) ,योग गुरु रामदेव जी जिस बात का बखान बरसों से कर रहें हैं अब साइंसदान भी उस पर अपनी मोहर लगा रहें हैं .* * * *एक नए अध्ययन से पता चला है ध्यान (योग साधना ,मेडिटेशन )हमारे दिमाग के न्यूरोन परिपथों ,ब्रेन वायरिंग ,दिमागी कम्युनिकेशन नेट वर्क ,न्यूरोन -न्यूरोन संवाद में महीना भर के अभ्यास के बाद ही सुधार पैदा कर सकता है .* * * *इस शोध से अनेक म


चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा.......

लोग शक करने लगे हैं बाग़बाँ पर.
वक़्त ऐसा आ पड़ा है गुलसिताँ पर.
चेहरा-ए-इन्सान के पीछे भी चेहरा,
हम करें किस पर यकीं आख़िर यहाँ पर.
दिन भर की तुम्हारी चुप
रात भर गूंजती रही
ज़हन में

गीली मिट्टी सी तुम्हारी महक
दस्तक देती रही
साँसों पे

अनमनी सी तुम्हारी छुअन
छूती रही
उँगलियों को

दबी हुई तुम्हारी आहट
टहलाती रही
पैरों में बेचैनी


ल्यो आखिर हम भी घोषित रूप से कवि ...!
आज के 'जनसंदेश' में देखें !

कवि पूरे पागल हुवे, यही सही एहसास ।
घूरे के दिन बहुरते, रविकर के भी काश ।
रविकर के भी काश, हमें भी कहीं छपाओ ।
  बिगड़े अब ''ईमान'',  चलो अब "तो आ जाओ"।
बन जाता कवि भूत, जहाँ घर खाली घूरे ।
करके कर्म अभूत, करें कविवर दिन पूरे ।।
(परिवार गाँव गया हुआ है )

सुदृश्य

प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन

पलक लपक मनमथ परख, झपक करत रति कैद।
नयन शयन कर न सकत, चतुर बुलावें बैद ।।

कमजोर नज़र

Maheshwari kaneri
अभिव्यंजना  

मस्त मस्त दो पंक्तियाँ, भरे अनोखे भाव ।
दीदी बहुत बधाइयां, गूढ़ दृष्टि पा जाव ।।

“DEATH IS A FISHERMAN”  
– BY BENJAMIN FRANKLIN 
अनुवाद-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
दुनिया एक सरोवर है,
और मृत्यु इक मछुआरा है!
हम मछली हैं अवश-विवश सी,
हमें जाल ने मारा है!!


मछुआरे को हम जीवों पर 
कभी दया नही आती है!
हमें पकड़कर खा जाने को,
मौत नही घबराती है!!

19 टिप्‍पणियां:

  1. विभिन्न विषयों पर कई लिंक्स से सजा चर्चा मंच बहुत आकर्षक है |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. विभिन्न विषयों पर कई लिंक्स से सजा चर्चा मंच बहुत आकर्षक है |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  3. रविकर जी!
    आज तो आपकी चर्चा पूरे रंग में है।
    रंगों की फुहार है,
    बहार ही बहार है,
    आभार व्यक्त करता हूँ आपका!

    जवाब देंहटाएं
  4. अभी अभी चक्कर लगा के आया है
    नयी उर्जा भर के लौट के आया है
    चर्चामंच कुछ नये अंदाज में सजाया है
    आभार है कुछ हमारी भी ला के सुनाया है ।

    जवाब देंहटाएं
  5. अच्छे लिंक्स.धन्यवाद मुझे शामिल करने के लिए,रविकर जी.

    जवाब देंहटाएं
  6. रविकर जी बहुत ही सुन्दर अंदाज में सजाया हैआप ने ये आज का चर्चामंच...मुझे शामिल करने के लिए आभार...

    जवाब देंहटाएं
  7. sunder links...din bhar mein dheer dheere padhugi

    goonjti chuppi ko shamil karne ke liye abhaar

    Naaz

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही बढिया चर्चा लिंक्‍स की ... आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. aabhar is charcha manch ko ham tak pahuchane k liye.

    dhanywad jo aapne rajbhasha se mere lekh 'DINKAR' ji ko yahan sthan diya.

    जवाब देंहटाएं
  10. Ravikar ji, Thanks for the wonderful links provided here in the charcha.

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।