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मंगलवार, सितंबर 25, 2012

मंगलवारीय चर्चा मंच --( 1013)उमा की लाडली


आज की मंगलवारीय चर्चा में आप सब का स्वागत है राजेश कुमारी की आप सब को नमस्ते आप सब का दिन मंगल मय हो 
बालिका/बेटी  दिवस (२३/ /१२)  की आप सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 

अब चलते हैं आपके प्यारे ब्लोग्स पर 



लहर..' - ... "काश.. 


तनहा हूँ भी तनहा नहीं भी - रोज़ दिखते हैं नए नए 




बंजारा सूरज - बंजारा सूरज 


अनुरोध - बीती बातें मैं ना 


निर्णय - आज एक किस्सा 


जिंदगी के सफ़र - यात्रा में 


विकल्प

Akash Mishra at Shrouded Emotions -उसका को

यादों की संदूकची

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें... - 
अब अंत में मिलिए उमा की लाडलियों से 

उमा की लाडली

Rajesh Kumari at WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION - 

इसके  साथ ही आज की चर्चा समाप्त करती हूँ फिर मिलूंगी तब तक के लिए शुभविदा,  शब्बा खैर ,बाय बाय |
**************************************************************
चर्चाकारा --राजेश कुमारी 

45 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा सामयिक चर्चा!
    आभार!
    बेटी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं

  2. सोमवार, 24 सितम्बर 2012

    "जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    बहुत समय से दुष्ट बणिक था अपनी जगह टटोल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।

    पहले भूल करी तो भारत सदियों तक परतन्त्र रहा,
    खण्ड-खण्ड हो गया देश, लेकिन बिगड़ा जनतन्त्र रहा,
    पुनः गुलामी का ख़तरा भारत के सिर पर डोल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।

    जिसने बैठाया आसन पर, वो ही धूल चटा देगी,
    जुल्मी-शासक का धरती से, नाम-निशान मिटा देगी,
    छल की लिए तराजू क्यों जनता का धीरज तोल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।

    खेल रहा है खेल घिनौना, जन-गण के मत को पाकर,
    हित स्वदेश का बिसराया है, सत्ता के मद में आकर,
    ईस्ट इण्डिया के दरवाजे फिर से घर में खोल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।

    आजादी का अर्थ भूलकर, स्वछन्दता मन को भाई.
    अपनाकर अंग्रेजी, अपनी हिन्दी भाषा बिसराई,
    जटा खोलकर शंकर क्यों गंगा में विष को घोल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।

    नस-नस में है खून विदेशी, पाया "रूप" सलोना है.
    इनकी नज़रों में स्वदेश का, आम नागरिक बौना है,
    रंगे स्यार को देख, लहू सारी जनता का खौल रहा।
    अब तो लालकिला भी खुलकर उनकी बोली बोल रहा।।
    क्या बात है शास्त्री जी लिखा आपने है भोगा और तदानूभूत हमने भी किया है सृजन के इन लम्हों को जिनमें यह सुन्दर गीत स्वत :स्फूर्त प्रवाह से निकलके आया है अंतस से .अच्छी नींद आयेगी आज रात को .बधाई भाई साहब .

    जवाब देंहटाएं
  3. भाई साहब यह गीत और इस पर टिपण्णी इसी रूपाकार में फेस बुक पर भी जा चुकी है .बधाई पुन :

    जवाब देंहटाएं

  4. सोमवार, 24 सितम्बर 2012
    हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ? (व्यंग गीत)


    (Google)



    हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ? (व्यंग गीत)






    यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!

    हुआ ऐसा, एक नेताजी को पीछे से आवाज़ लगा दी..!

    1.

    चुनाव सर पर था और प्र-खर समाज प्रचुर जोश में था..!

    अतः वो दौड़े चले आए और फिर लं..बी खर-तान लगा दी..!

    यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!

    2.

    "ज़रा धीरे नेताजी, आप की तरह, जनता बहरी है क्या ?"

    बोले, "चाहे सो कहो, दिलवा दोगे ना फिर वही राजगद्दी ?"

    यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!

    3.

    हमने कहा, " क्यों जी हमारे वोट, पेड़ पर उगते हैं क्या ?

    अब इतना समझ लो, हमने आपकी किस्मत उल्टी धुमा दी..!"

    यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!

    4.

    बोले, " हर आँगन में हम, रुपयों का एक पेड़ लगवा देंगे..!"

    हम पर करें वह दूसरा खर-प्रहार , हमने पीठ ही धुमा ली..!

    यूँ लगा मानो कि ग़लती से हमने, गधे की दुम दबा दी..!


    मार्कण्ड दवे । दिनांकः२४-०९-२०१२.

    क्या बात है इस मर्तबा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.com/2012/09/1013.html?showComment=1348534797662#c3679556226192705609

    TUESDAY, SEPTEMBER 25, 2012

    मंगलवारीय चर्चा मंच --( 1013)उमा की लाडली

    पूरी तरह छा चुका है .

    पेड़ों पे पैसे लगवा चुका है .

    चर्चा मंच के सेतु (लिंक )सब ,

    ज्यों नावक के तीर ,

    देखन में छोटे लगें ,

    घाव करें गंभीर .

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  5. वेद, यज्ञ, तप, दान द्वारा
    पुण्य शास्त्र में जो बतलाये.
    ऊपर उठ करके इन सब से
    योगी परम पद को है पाये.

    भावानुवाद पूरी लय गति ताल अर्थ लिए चल रहा है व्यष्टि और समिष्टि के .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर और मनभावक रचनाओं के लिंक्स पाकर धन्य हुई
    मुझ जैसे पाठिका को मानों षडरस पकवानों से भरी थाल मिल गई

    जवाब देंहटाएं
  7. बधाई ,उमा की लाडली मन भाई .भगवान करे इस आयोजन के कुछ ज़मीनी नतीजे भी निकलें .कोमा में पड़ा समाज थोड़ा चेते .शिव शक्तियां हैं ये इन्हें न मारो .जतन से संवारो .निखारों हुनर इनका .गगन पे बिठा दो .
    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  8. अलग अंदाज़ में कही गई गजल है .हर अश आर एक अंडर टोन लिए है .
    ram ram bhai
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    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  9. तुम खुद एक ताबूत हो .भाव शिखर पर आरूढ़ है यह रचना .
    ram ram bhai
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    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  10. वेदना और आलोडन है इस रचना में एक शिखर से दूसरे शिखर तक .ram ram bhai
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    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  11. इस वक्त की पीर और विडंबना है यह रचना .बस एक संशोधन कर लिया जाए .साक्षी भाव से दृष्टा बन मुस्काया जाए ,गिला न किया जाए .ram ram bhai
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    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  12. आंखों के आगे अब
    दुनिया जली जली होगी
    बिकने को मजबूर
    जवानी गली गली होगी
    नंगे चित्र छपेंगे पन्ने
    पन्ने खाली पेट के
    Posted by मनोज कुमार at 10:36 am 15 टिप्‍पणियां: Links to this post मनोज जी कवि अपने समय का अतिक्रमण करता है तभी तो यह रचना आज पहले से कहीं ज्यादा प्रासंगिक है ,अब जब कि गिद्ध भी बिला गएँ हैं उस मौसम के संदूक में जिसे महा नगर ने बड़ी बे -दर्दी से फैंक दिया है .
    महानगर ने फैंक दी मौसम की संदूक ,
    पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक ..ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    मंगलवार, 25 सितम्बर 2012
    दी इनविजिबिल सायलेंट किलर

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  13. लो कर लो बात! जब सारी दुनिया ये चर्चा कर रही है कि पैसे पेड़ पे नहीं लगते ,अगला अन्ना के कुरते की लम्बाई नाप रहा है यह बौना आदमी इतना लम्बा कुर्ता क्यों पहनता है यह राष्ट्रीय अपव्यय है .जाँ च होनी चाहिए जिस कमरे में रहता है वह वास्तव में दस बाई बारह का है या अन्ना झूठ बोलता है .यही है भाई साहब आधा सच .सारी दुनिया कोयले की बात करती है यह साहब अन्ना के गाँव वासियों को तिहाड़ की काबलियत का बतला रहें हैं यानी कलमाड़ी और कलि मुई /कनी मोई (रिहा है अब )के पास बिठला रहें हैं .

    इसे बोलतें हैं राष्ट्री मुद्दों से ध्यान भटकाना .कोंग्रेस को दिग्विजय की छुट्टी करके आधा सच वालों को अपना वक्र मुखिया बना चाहिए .बोले तो प्रवक्ता .जै श्री आधा सच ,पूरा बोले तो हो जाए गर्क .

    ये टिप्पणियों पे मोडरेशन लगाने वाले आधा ही सच बोलतें हैं आधा ही दुनिया को दिखातें हैं .


    Monday, 24 September 2012
    अन्ना को दो करोड़ देने की हुई थी पेशकश !पर एक प्रतिक्रिया .

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    उत्तर

    1. मैं तो सच में आपको एक पढ़ा लिखा सीरियस ब्लागर समझता था।
      इसलिए कई बार मैने आपकी बातों का जवाब भी देने की कोशिश की।
      सोचा आपकी संगत गलत है, हो जाता है ऐसा, क्योंकि मुझे उम्मीद थी
      शायद कुछ बात आपकी समझ में आज जाए।
      लेकिन आप तो कुछ संगठनों के लिए काम करते हैं और वहां फुल टाईमर
      यानि वेतन भोगी हैं। यही अनाप शनाप लिखना ही आपको काम के तौर
      सौंपा गया है। एक बात की मैं दाद देता हूं कि आप ये जाने के बगैर की
      आपको लोग पढ़ते भी हैं या नहीं, कहां कहां जाकर कुछ भी लिखते रहते हैं।
      खैर कोई बात नहीं, ये बीमारी ही ऐसी है। वैसे अब आप में सुधार कभी संभव ही
      नहीं है। सुधार के जो बीज आदमी में होते है, उसके सारे सेल आपके मर
      चुके हैं। माफ कीजिएगा पूंछ को सीधा करना मेरे बस की बात नहीं है।
      अब तो ईश्वर ही आपकी कुछ मदद कर सके तो कर सके

      हटाएं
  14. इस दौर में मेह्रूमियत ने सुविधाओं की आदमी को कितना उग्र बना दिया है .मुंबई में एक आदमी ने चाल में दूसरे की इस बात पे जाँ ले ली वह पब्लिक लेट्रिन से देर से निकला था .सुविधाओं का अकाल इस देश में जो करा दे सो कम .दूसरे छोर पर वह लोग हैं जो हवाई सफर में भी केटिल क्लास ही देखतें हैं .एक तरफ बे -शुमार सुविधाएं दूसरी तरफ बे -शुमार तंगी .

    ठीक कहतें हैं प्रधान जी ,पैसा पेड़ पे नहीं लगता ,लगता तो ये वंचित /वंचिता तोड़ लेतीं.

    मार्मिक और दुखद प्रसंग जो बतलाता है आम जन कितना खीझा हुआ है .गनीमत है अब रेल कोयले से नहीं चलती .डीज़ल से चलती है जीपे सब्सिडी है .

    जवाब देंहटाएं
  15. हाँ ये दौर बड़ा क्रूर है अकेले हालातों से दो चार होने की ,चलनेफिरने की कला जिसने सीख ली वह तर गया .

    जवाब देंहटाएं
  16. बहत बढ़िया लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
    प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं

  17. मम्मी जी के आँगन में है जी घोटालों का पेड़ ही नहीं बैंक भी है .मुखिया जी सच बोल रहें हैं पैसा पेड़ों पे नहीं लगता .

    जवाब देंहटाएं
  18. यादों की संदूकची
    रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें... -
    बहुत सुंदर !

    आत्मा छोड़ शरीर हो जाता है
    आदमी जब दुनिया छोड़ जाता है
    कोई दूसरा उसके लिये एक
    ताबूत की खोज में जाता है
    सुना था अभी तक बस यही !

    जवाब देंहटाएं
  19. उमा की लाडली
    Rajesh Kumari at WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION -

    बेटी दिवस पर शुभकामनाऎं !

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  20. SADA

    एक धुन जिंदगी को गुनगुनाने की .... - कभी तुमने देखा है

    बहुत नटखट भी होते हैं
    कभी ये शब्द !
    बहुत सुंदर !

    जवाब देंहटाएं
  21. ZEAL

    अकेला आगमन, अकेला प्रयाण .. - जो आज है वो

    सच में लगता है अब
    बदल जाना चाहिये
    अधिकतर जो कर
    रहे हैं वो तो
    समझ में आना चाहिये
    आदमी का चोला
    उतार कर
    फिर से बंदर
    हो जाना चाहिये !

    जवाब देंहटाएं
  22. मनोज

    बंजारा सूरज - बंजारा सूरज

    जो हो रहा है अब
    वो लिख रहा था तब !

    बहुत खूब !

    जवाब देंहटाएं
  23. Kashish - My Poetry

    श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३४वीं कड़ी) -

    इतनी सरलता से गीता समझ में आ सकती है नहीं लगता था !
    वाकई !

    जवाब देंहटाएं
  24. उच्चारण

    "जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    जनता का धीरज वाकई डोल रहा है
    नेता बैठ के यह सब तोल रहा है
    इस बार इसने भुना लिया है सब
    दूसरा अगली बार के लिये झोले तोल रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत बढ़िया, आप को ढ़ेरों बधाईयाँ..! सुंदर लिंक्स ।

    जवाब देंहटाएं
  26. उच्चारण

    "जनता का धीरज डोल रहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    घाटे का सौदा करे, सेठ अशर्फी लाल ।
    गाँव गाँव में बेच के, बेहद मद्दा माल ।
    बेहद मद्दा माल, बिठाता भट्ठा सबका ।
    एक क्षत्र हो राज्य, रो रहा ग्राहक-तबका ।
    करी सब्सिडी ख़त्म, विदेशी वह व्यापारी ।
    बेंचे महंगा माल, खरीदेगी लाचारी ।।

    जवाब देंहटाएं
  27. अच्छी चर्चा |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  28. वाह ... बेहतरीन लिंक्‍स के साथ उत्‍कृष्‍ट चर्चा आभार

    जवाब देंहटाएं
  29. बहुत सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा आभार

    जवाब देंहटाएं
  30. काफ़ी मेहनत से सजाई है आपने आज की चर्चा की पोस्ट।

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  31. बधाई राजेस कुमारी जी | बहुत ही सुन्दर लिंक

    जवाब देंहटाएं
  32. सूरदार कड़ियों के साथ सुंदर चर्चा |

    जवाब देंहटाएं
  33. आधे सच का आधा झूठ

    ईस्ट इंडिया कम्पनी की नै अवतार सरकार की दलाली करने वाले हिन्दुस्तान में बहुत से लोग हैं .ये आज भी वही कर रहे हैं जो तब करते थे .ये "आधा सच" बोलतें हैं ,आधा लिखतें हैं .ज़ाहिर है वह खुद ही यह मान के चल रहें हैं कि जो कुछ वह लिख रहें हैं ,कह रहें हैं उसमें आधा झूठ है .लेकिन मेरे दोस्त आधा झूठ भी बहुत खतरनाक होता है .

    भाई साहब जो यह कहता है मैं ने आधा खाया है वह यह मानता है वह आधा भूखा है .वह आधा सच नहीं बोलते पूरा झूठ बोलते हैं .क्या वह यह कहना चाहतें हैं सरकार अन्ना की रिश्तेदार है इसलिए वह अन्ना को कुछ नहीं कहना चाहती .केजरीवाल की रिश्तेदार है इसलिए वह खुला घूम रहें हैं .

    दोस्त जो सारी संविधानिक संस्थाओं के अस्त्रों का इस्तेमाल अपने विरोधियों पर करना जानतें हैं और चाहतें भी हैं श्री मान आधा सच आप यह कहना चाहतें हैं वह और उनकी परम -विश्वसनीय सी बी आई मूर्ख है .वह यह नहीं जानती कि अन्ना और उनकी मण्डली के लोग भ्रष्ट हैं .

    जो एक एक विरोधी पर उपग्रही नजर रखती है श्रीमान आधा सच उस सरकार के मुखिया को पत्र लिख कर क्यों नहीं पूछते -श्री मन यह कैसे हो गया "राजा" अन्दर अन्ना और उसके संतरी बाहर .ये अगर राष्ट्रीय समस्याएं हैं तो आप देरी क्यों कर रहें हैं पत्र लिखने में .

    जिन्हें जूते पड़ने चाहिए उन्हें खडाऊ नहीं मिलने चाहिए -उन्हें मिस्टर आधा सच को लिखना चाहिए रालेगन सिद्धि के लोग कोयले से भी ज्यादा काले हैं .उनसे गुजारिश है कृपया इस नादाँ सरकार को रास्ता दिखाएँ .और सरकार में सम्मानीय स्थान पायें .

    जवाब देंहटाएं
  34. धन्यवाद राजेश कुमारी जी..!!


    आभारी हूँ..!!

    जवाब देंहटाएं

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