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शुक्रवार, अक्तूबर 05, 2012

बीबी मइके भेज, ढूँढ़ता नइकी कोयल-चर्चा मंच 1023




श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३५वीं कड़ी)

Kailash Sharma  


ओ मेरे, मुसव्विर ....

udaya veer singh  


Kumar Singh:आवाज आती तो  है 

Aziz Jaunpuri 


मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(३) गुरु-वन्दना (ज्ञान,बिना गुरु, कभी न होता |)

Devdutta Prasoon  


Roshi: नारी

Roshi  


ओ भाव मेरे !

ताँका
  डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
सुनो हो तुम
तुम से भिन्न मेरी
कहाँ व्याप्ति
जो तुम हो समय
संग मैं तुम्हारी गति


ओ अंधियारे के चाँद

  Madhushaalaa  


अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं

शालिनी कौशिक


हर उम्र में सबके लिए ज़रूरी है अच्छी नींद

Virendra Kumar Sharma 


पछताते रह जायेंगे .

स्वयम्बरा 

खबरगंगा: पछताते रह जायेंगे .

devendra gautam 
 Blog News  

जिंदगी सिगरेट का धुंवा ...

noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा) 
 स्वप्न मेरे................

मुझे याद है 
धुंवे के छल्ले फूंक मार के तोड़ना तुम्हें अच्छा लगता था 
लंबी होती राख झटकना 
बुझी सिगरेट उंगलियों में दबा लंबे कश भरना 
फिर खांसने का बहाना और देर तक हंसना  
कितनी भोली लगतीं थीं तुम 

"संगीत बदल जाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

 
समय चक्र में घूम रहे जब मीत बदल जाते हैं।
उर अलिन्द में झूम रहे नवगीत मचल जाते है।।


एक बांध सब्र का ...

सदा  


तेरी यादों का मेला

आमिर दुबई 


पागल आशिक हूँ मैं दिलजला दिल का

"अनंत" अरुन शर्मा  


मजबूर आदमी

musafir  


रजोनिवृत्ति और हारमोन रिप्लेसमेंट थैरेपी

Kumar Radharaman 


उधार की सुबहों से ज़िन्दगी नहीं गुज़रा करती

वन्दना 


कवियों के लिए एक कविता

siddheshwar singh 



बुड्ढा होय अशक्त, आत्मा भटका हाथी-

 घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।
पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ ।
रहे नोचते *पाम, काइयाँ  पापी लीचड़ ।
भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे  ।। 
श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे ।
*किनारी की छोर पर लगी गोटी
ZEAL 

नर मादा नर्मदा हुई, मर जादा मर्याद ।
जैसा लिखता है सचिव, वैसा करती याद ।

वैसा करती याद, इलाज करवा कर आई ।

अब चुनाव के बाद, पुन: जाएगी माई ।

किन्तु अलग उद्देश्य, निभाई खुदरा वादा ।

लेगी टैक्स वसूल,  पूज कर के नर-मादा ।
 काव्य मंजूषा
कुत्ता यह खुजरैल है, है आश्विन का मास ।
ऐसे जीवों से हुआ, कल्चर सत्यानाश ।

कल्चर सत्यानाश, ताश का है यह छक्का ।

ढूँढे बेगम हुकुम, धूर्त है बेहद पक्का ।

बाढ़ी है तादाद, बाढ़ते कुक्कुरमुत्ता ।

बधिया कर दो राम, नस्ल रोको यह कुत्ता ।।

...आंसू आ गए होंगे

रश्मि 

यूँ ही जाते लड़खड़ा, कदम चले जो दूर ।
कहते क्यूँ यह हड़बड़ा, आखिर क्यूँ मजबूर ।

आखिर क्यूँ मजबूर, हकीकत तुम भी जानो ।

गम उसको भरपूर, बात मानो ना मानो ।

कैसे सहे विछोह, आत्मा यह निर्मोही ।

समझ हृदय की पीर, करो ना बातें यूँ  ही ।।

ओह!! तो ये बात है!??

 
कोयल मंत्री का मिले, अब इनको पदभार ।
बड़े घुटाले हैं किये, इन पर ही एतबार ।
इन पर ही एतबार, नया नव दिन ही रहता ।
भूल गए यह बात, पुराना सब दिन कहता ।
लेकिन मंत्री तेज, कोयला दूधे धोयल ।
बीबी मइके  भेज, ढूँढ़ता नइकी  कोयल ।।


मनु बिटिया : जन्म-दिवस की शुभकामनायें-


आश्विन की तिथि पञ्चमी, रहा नवासी वर्ष,
बहन शिवा की आ गई,  हर्ष  चरम  उत्कर्ष  |
हर्ष  चरम  उत्कर्ष, शीघ्र  ही  लगी  डोलने,
ताला - चाभी  फर्श,  पेटिका  लगी खोलने |
कह रविकर हरसाय, ख़ुशी से बीते हरदिन,
माता की नवरात, मास फलदायक आश्विन ||

पकौडी़

  उल्लूक टाईम्स
रोज जलेबी खा रहा, हो जाता मधुमेह |
इसीलिए दिखला रहा, आज पकौड़ी नेह |
आज पकौड़ी नेह, खूब चटकारे मारे |
लेता जम के खाय, रात बार बड़ा डकारे |
सके न चूरन फांक, जगह जो पूरी फुल है |
बैठा जाके शाख, यही तो इसका हल है ||

54 टिप्‍पणियां:

  1. चर्चा में किया गया आपका श्रम परिलक्षित हो रहा है, रविकर जी!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति... सुप्रभात!

    जवाब देंहटाएं
  2. नारी
    भोर की पौ फटते ही जो उठे .छोड़ सारे मीठे सपनो(सपनों ) की खुमारी ........सपनों ...............पौ फटते ही ....पौ फटना

    उष :काल का ही प्रतीक है ,यानी अभी दिन निकला ही निकला है .....


    अलसाया तन ,नींद से बोझिल नयन, .......,... पर क्या करे वो बेचारी
    उठते ही भागे रसोई की ओर ,क्या पकाए वो अपने नौनिहालों के वास्ते
    क्या खायेगा उसका पति ,ना है किसी को फ़िक्र उसके वास्ते
    स्वेद -बिंदों....(स्वेद कणों /स्वेद बिन्दुओं से ....) चालित से भीगा उसका ललाट ,.........,पर ना है उसका तनिक भी ध्यान
    यंत्र चालित थे उसके हाथ ,दिल और दिमाग सब दौड़ रहे थे साथ
    तनिक ना ध्यान उसका कहीं और बिसरा दी थी बस सारी बातें उसने एक साथ
    यह सिर्फ कर सकती है एक नारी ,एक माँ औरसिर्फ एक नारी ............

    पत्नी को क्यों छोड़ दिया जो प्रेमिका से बहुत ऊपर होती है ....

    बहुत सुन्दर शब्द चित्र ....महा -लक्ष्मी का ,अन्न -पूर्णा का .

    बधाई !बधाई !बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  3. सोच को चील बना ऊंचाई पे लेजाता है ...

    सोच को चील बना ऊँचाई पर ले जाता है,

    बहुत सुन्दर प्रयोग .चील एक किलोमीटर ऊपर उड़ते हुए भी एक चावल के दाने को भी रोटी के बराबर स्पस्ट देख लेती है .

    इटली वाली चील नहीं देखी आपने ?

    जवाब देंहटाएं
  4. नर्मदा को नर और मादा कहने वाली चील scavenger होती है. चील भारतीय संपदा को दूर से देख लेती है .अब गुजरात की बारी है .

    जवाब देंहटाएं
  5. क्या गूगल पे कोंग्रेस ने कोई एजेंट बिठा रखा है

    स्पैम बोक्स और भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस में एक साम्य है -

    एक कोंग्रेस विरोधी टिप्पणियाँ चट कर रहा है ,

    दूसरी देश की संपदा को कोयले में तबदील कर रही है -

    लेकिन हिंदी को आगे बढा रही है सोनियावी कोंग्रेस -



    इसलिए कहती है नर्मदा को नर और मादा -

    देखा आपने क्या दिमाग पाया है ,

    इटली का पीज़ा खाया है .

    जवाब देंहटाएं
  6. नारी
    भोर की पौ फटते ही जो उठे .छोड़ सारे मीठे सपनो(सपनों ) की खुमारी ........सपनों ...............पौ फटते ही ....पौ फटना

    उष :काल का ही प्रतीक है ,यानी अभी दिन निकला ही निकला है .....


    अलसाया तन ,नींद से बोझिल नयन, .......,... पर क्या करे वो बेचारी
    उठते ही भागे रसोई की ओर ,क्या पकाए वो अपने नौनिहालों के वास्ते
    क्या खायेगा उसका पति ,ना है किसी को फ़िक्र उसके वास्ते
    स्वेद -बिंदों....(स्वेद कणों /स्वेद बिन्दुओं से ....) चालित से भीगा उसका ललाट ,.........,पर ना है उसका तनिक भी ध्यान
    यंत्र चालित थे उसके हाथ ,दिल और दिमाग सब दौड़ रहे थे साथ
    तनिक ना ध्यान उसका कहीं और बिसरा दी थी बस सारी बातें उसने एक साथ
    यह सिर्फ कर सकती है एक नारी ,एक माँ औरसिर्फ एक नारी ............

    पत्नी को क्यों छोड़ दिया जो प्रेमिका से बहुत ऊपर होती है ....

    बहुत सुन्दर शब्द चित्र ....महा -लक्ष्मी का ,अन्न -पूर्णा का .

    बधाई !बधाई !बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  7. जख्म कितने , बाजुओं, पाँवों, चेहरों और सीनों पर
    मशालें हाथ में ले बस्तिओं से एक हुंकार आती तो है

    चीखती सांसे,गुम रोशनी,घुटन,ले अपनी जुबानो पर ..........जुबानों ...........
    ले जलती मशाले हाथ में रातें हौशलों की आती तो है ............हौसलों ........

    इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है ,

    नाव जर्जर ही सही ,लहरों से टकराती तो है ..........स्व .दुष्यंत कुमार जी ,याद आये .

    बढ़िया rachna है भाई साहब .

    वैसे भाई साहब रचना का एक पर्याय रे -चना भी बतलाया गया है .

    जवाब देंहटाएं

  8. Virendra Kumar Sharma ने कहा…
    नहीं जानती कि ये शेर(शैर ) किस मारूफ़ शायर का है किन्तु आज सुबह समाचार पत्रों में जब .....शैर

    ४-हाईकोर्ट के सेवानिवृत(सेवा -निवृत्त ) जज करेंगे पार्टी पदाधिकारियों पर आरोपों की जाँच ......निवृत्त

    .५-एक रूपये से उपर(ऊपर ) के सभी चंदे का हिसाब वेबसाईट पर डाला जायेगा ......ऊपर
    देश को चूना लगते(लगातें ) हैं.

    इतना खौफ क्यों हैं ईमानदार लोगों और ईमानदारी का ?अभी पार्टी बनने दीजिए .ईमानदार लोगों में पहल की कमी रही है लेकिन उनका राजनीति में आना गैर -कानूनी कब है .आपसे एक ड्राफ्ट शुद्ध नहीं लिखा जाता और केजरीवाल पर ऊंगली उठाने चलीं हैं .
    एक प्रतिक्रिया -


    अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं
    अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं



    ''सुविधाएँ सारी घर में लाने के वास्ते , लोगों ने बेच डाला अपना ईमान अब ,
    आखिर परों को काटकर सैय्याद ने कहा ,हे आसमां खुली भरो ऊँची उड़ान अब .''
    नहीं जानती कि ये शेर किस मारूफ़ शायर का है किन्तु आज सुबह समाचार पत्रों में जब अरविन्द केजरीवाल की पार्टी की विशेषताओं को पढ़ा तो अरविन्द एक सैय्याद ही नज़र आये .जिन नियमों को बना वे अपनी पार्टी को जनता के द्वारा विशेष दर्जा दिलाना चाहते हैं वे ही उन्हें इस श्रेणी में रख रही हैं .उनके नियम एक बारगी ध्यान दीजिये -
    १-एक परिवार से एक सदस्य के ही चुनाव लड़ने का नियम .
    २-पार्टी का कोई भी सांसद ,विधायक लाल बत्ती का नहीं करेगा इस्तेमाल .
    ३-सुरक्षा और सरकारी बंगला नहीं लेंगे सांसद ,विधायक .
    ४-हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज करेंगे पार्टी पदाधिकारियों पर आरोपों की जाँच .
    ५-एक रूपये से उपर के सभी चंदे का हिसाब वेबसाईट पर डाला जायेगा .
    क्या केवल गाँधी परिवार से अपनी पार्टी को अलग रखने के लिए एक परिवार एक सदस्य का नियम रखा गया है ?जब वकील का बच्चा वकील और डॉक्टर का बच्चा डॉक्टर बन सकता है तो नेता का बच्चा नेता क्यूं नहीं बन सकता ?चुनना तो जनता के हाथ में है .अब किसी नेता के परिवार के सदस्य में यदि हमारे नेतृत्व की ईमानदार नेतृत्व की क्षमता है तो ये नियम हमारे लिए ही नुकसानदायक है और दूसरे इसे बना भ्रष्टाचार पर जंजीरें डालना अरविन्द का भ्रम है हमने देखा है कितने ही लोग एक परिवार के सदस्य न होते हुए भी देश को चूना लगते हैं और मिलजुल कर भ्रष्टाचार करते हैं एक व्यक्ति जो कि ठेकेदारी के व्यवसाय में है नगरपालिका का सभासद बनता है तो दूसरा [उसका मित्र -परिवार का सदस्य नहीं ]कभी ठेकेदारी का कोई अनुभव न होते हुए भी नगरपालिका से ठेके प्राप्त करता है और इस तरह मिलजुल भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं क्या यहाँ अरविन्द का एक परिवार एक सदस्य का नियम कारगर रहेगा ?
    लाल बत्ती का इस्तेमाल जनता के हितार्थ किया जाये तो इसमें क्या बुराई है कम से कम ये जनता के लिए एक पहचान तो है और इस पहचान को छीन वे कौन से भ्रष्टाचार को रोक पाएंगे ?
    सुरक्षा का न लेना ''झीना हिकाका ''वाली स्थिति पैदा कर सकता है क्या ये देश के लिए देश की सुरक्षा के लिए भारी नहीं पड़ेगा ?
    और सरकारी बंगला जनता को नेता से जोड़ने के लिए है जिसके माध्यम से सांसद ,विधायक जनता से सीधे जुड़ते हैं और उनके परिवार के जीवन में कोई अनधिकृत हस्तक्षेप भी नहीं होता इसलिए इस नियम को भी व्यर्थ के प्रलाप की श्रेणी में रखा जा सकता है .
    हाईकोर्ट जज द्वारा आरोपों की जाँच -क्या गारंटी है रिटायर्ड हाईकोर्ट जज के भ्रष्टाचारी न होने की ?क्या वे माननीय पी.डी.दिनाकरण जी को भूल गए ?इसलिए ये नियम भी बेकार .
    एक रूपये से ऊपर के चंदे का हिसाब -अभी शाम ही एक मेडिकल स्टोर पर देखा एक उपभोक्ता को दवाई के पैसे देने थे २००/-रूपये और उसने दिए १-१ रूपये के सिक्के .अब जो चंदा हिसाब से बाहर रखना होगा वह कहने को ऐसे भी लिया जा सकेगा तो उसका हिसाब कहाँ रखा जायेगा इसलिए ये नियम भी बेकार .
    फिर अरविन्द केजरीवाल कह रहे हैं -''कि ये उनकी नहीं आम लोगों की पार्टी होगी ,जहाँ सारा फैसला जनता करेगी .''तो अरविन्द जी ये भारत है जहाँ लोकतंत्र है और जहाँ हर पार्टी जनता की ही है और हर नेता जनता के बीच में से ही सत्ता व् विपक्ष में पहुँचता है फिर इसमें ऐसी क्या विशेषता है जो ये भ्रष्टाचार के मुकाबले में खड़ी हो .अरविन्द जी के लिए तो एक शायर की ये पंक्तियाँ ही इस जंग के लिए मेरी नज़रों में उनके अभियान को सफल बनाने हेतु आवश्यक हैं-
    ''करें ये अहद कि औजारें जंग हैं जितने उन्हें मिटाना और खाक में मिलाना है ,
    करें ये अहद कि सह्बाबे जंग हैं हमारे जितने उन्हें शराफत और इंसानियत सिखाना है .''
    शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

    प्रस्तुतकर्ता शालिनी कौशिक पर 10:41 am कोई टिप्पणी नहीं:

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  9. माननीय शालिनी जी !किसी पार्टी को मान्यता देना न देना चुनाव आयोग का दायरा है .और उससे भी ऊपर जनता की अदालत है .जिस पार्टी को कुल मतों का एक न्यूनतम निर्धारित अंश प्राप्त नहीं होता है उसे चुनाव आयोग मान्यता नहीं देता है .लाल बत्ती की गाड़ियां हिन्दुस्तान के आम आदमी का रास्ता रोकके खड़ी हो जातीं हैं .
    यहाँ कैंटन छोटा सा उपनगर है देत्रोइत शहर का .दोनों वेन स्टेट काउंटी के तहत आते हैं .ओबामा साहब कब आये कब गए कहीं कोई हंगामा नहीं होता ,हिन्दुस्तान में तमाम रास्ते रोक दिए जाते हैं जैसे कोई सुनामी आने वाली है .लाल बत्ती क्या पद प्रतिष्ठा का आपके लिए भी प्रतीक है ?केजरीवाल साहब अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए लाल बत्ती का प्रावधान नहीं रखना चाहते तो आपको क्या आपत्ति है ?

    प्रति रक्षा मंत्री रहते भी जार्ज साहब ने सिक्योरिटी नहीं रखी थी कोठी के बाहर .

    जवाब देंहटाएं
  10. माननीय शालिनी जी ! इस भारत देश में सांसद विधायक क्या हर दल्ला कोयला खोर लाल बत्ती लगाए घूम रहा है .एक दो इनके माथे पे भी डिजिटल बत्ती लगनी चाहिए .बहरसूरत आपने मुझे मान सम्मान दिया शुक्रिया करता हूँ जहे नसीब .ये नाचीज़ किस काबिल है .ज़िक्र आपका नहीं है कई और हैं ब्लॉग जगत में जिन्हें चाहिए नारदीय चिरकुट .हाँजी ! हाँ जी! करने को .ये जो कोंग्रेसी हैं इन्हें भी सिर्फ माता जी की जै बोलना ही आता है .

    जवाब देंहटाएं
  11. भाई साहब जो लोग व्यंजना और तंज से परिचित नहीं हैं वह यही कहेंगे जो श्रीप्रकाश जी जायसवाल ने कहा है वरना यह भी कह सकते थे -

    तू मैं ,(शादी से पहले )

    तूमैं ,(हो गई शादी )
    तू तू में में (शादी के बाद ).

    यानी स्वीट डिश कुछ ही दिन अच्छी लगती है शादी की फिर वही खटपट....

    जवाब देंहटाएं



  12. बिन आराधन, मन के दर्पण की न छंटेगी धुन्ध |

    बिना स्वच्छ मन, इस जीवन में व्याप्त रहता द्वन्द ||३||....द्वंद्व

    अब क्या मिसाल दूं मैं आपकी आशुकविताई की ,........एक रचना इटली की चील पे भी लिखिए जो भारत की संपदा पर दृष्टि ज़माए है ,अब गुजरात इसे लुभाए है ...

    जवाब देंहटाएं
  13. क्या कहने हैं इस गीता सार तत्व लिए अनुवाद का .

    जवाब देंहटाएं
  14. राह के हर नजारे धुंधला गए होंगे
    उसकी आंखों में जब आंसू आ गए होंगे

    होके मजबूर उसने शहर ये छोड़ा होगा ....

    बढ़िया रचना .

    जवाब देंहटाएं
  15. बढिया चर्चा सजायी है , आभार इन लिंक्स के लिये

    जवाब देंहटाएं
  16. लिंक्स को बड़े सलीके से सजाया है भाई रविकर जी आपने. मेरे ब्लॉग को भी शामिल किया है इसके लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  17. ये संस्मरण नहीं हमारे दौर का एक सच है .इस तरह के किरदार मैं ने आपने सबने देखे हैं .अच्छा हुआ नरगिश मर गई .नर्गिशी आँखें इसे आज भी पसंद हैं .

    जवाब देंहटाएं
  18. ....
    ओ मेरे,
    मुसव्विर !
    बनाना एक आशियाना ,
    मजबूत बुनियाद से ,
    जिसमें दरवाजे,सीढियाँ हो ,
    खिड़कियाँ हो ,
    सामने खुला क्षितिज
    लहराते उपवन,आती भीनी खुशुबू.......ख़ुश्बू
    भौंरे हों ,तितलियाँ हों,
    स्मरण दिलाते, स्मृतियों में बसी,
    तारीखों को ,
    दीवारों पर टंगे कैलेण्डरहों .....केलेंडरओं .....
    अहसास ,अपनापन का
    वेदना की साँझ में ,
    संवेदना की मशाल ,
    खुले प्रकोष्ठ,
    झीने मखमली परदे ,
    गुलाबी दीवारें ,
    बजते साज
    ध्वनित होते, प्रेम गीत ,
    बहती जायें तरंगें ....
    गाँव ,शहर,वन-मधुवन
    आनंदित हो
    क्षितिज सारा ...

    बढ़िया रचना है ...

    ओ मेरे, मुसव्विर ....
    udaya veer singh
    उन्नयन (UNNAYANA)

    जवाब देंहटाएं

  19. सुन्दर है बहुत .रचना .एक एहसास को लेकर ज़िंदा था .और वह एहसास जाता रहा .सिगरेट का धुंआ चिढाता रहा ता -उम्र .

    जिंदगी सिगरेट का धुंवा ...
    noreply@blogger.com (दिगम्बर नासवा)
    स्वप्न मेरे................

    जवाब देंहटाएं
  20. आशंका चिंता-भँवर, असमंजस में लोग ।
    चिंतामणि की चाह में, गवाँ रहे संजोग ।

    गवाँ रहे संजोग, ढोंग छोडो ये सारे ।.........छोड़ो......
    मठ महंत दरवेश, खोजते मारे मारे ।

    एक चिरंतन सत्य, फूंक चिंता की लंका ।
    हँसों निरन्तर मस्त, रखो न मन आशंका ।।

    घोंघे करते मस्तियाँ, मीन चुकाती दाम ।
    कमल-कुमुदनी से पटा, पानी पानी काम ।..
    पानी पानी काम, केलि कर काई कीचड़ ।
    रहे नोचते *पाम, काइयाँ पापी लीचड़ ।.......नोंचते .....
    भौरों की बारात, पतंगे जलते मोघे ।।
    श्रेष्ठ विदेही पात, नहीं बन जाते घोंघे ।.........ये मोघे क्या चीज़ है भाईसाहब !हमें नहीं मालूम यह जनपदीय प्रयोग .....

    मन की साथी आत्मा, जाओ तन को भूल ।
    तृप्त होय जब आत्मा, क्यूँ तन खता क़ुबूल ?
    क्यूँ तन खता क़ुबूल, उमरिया बढती जाए ।.........बढ़ती ....
    नहीं आत्मा क्षरण, सुन्दरी मन बहलाए ।
    बुड्ढा होय अशक्त, आत्मा भटका हाथी ।
    ताक-झाँक बेसब्र, खोजता मन का साथी ।।........बढ़िया व्यंजनाएं हैं सभी .बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  21. मनु बिटिया का जन्म दिन,शुभकामना हजार |
    मिले सफलता हर कदम,खुशियाँ मिलें अपार ||

    निगम परिवार की हार्दिक शुभ-कामनायें...........

    जवाब देंहटाएं
  22. श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (३५वीं कड़ी)
    Kailash Sharma
    Kashish - My Poetry -

    आनन्द दायी भावानुवाद !

    जवाब देंहटाएं
  23. ओ मेरे, मुसव्विर ....
    udaya veer singh
    उन्नयन (UNNAYANA)

    बहुत सुंदर !

    क्षितिज होगा
    आनन्दित हमारा
    और तुम्हारा
    उदय वीर की
    कविता के
    तीर से
    गुंजायमान होगा
    जब आकाश सारा !

    जवाब देंहटाएं
  24. Kumar Singh:आवाज आती तो है
    Aziz Jaunpuri
    Zindagi se muthbhed

    बहुत सुंदर भाव !

    जवाब देंहटाएं
  25. मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(३) गुरु-वन्दना (ज्ञान,बिना गुरु, कभी न होता |)
    Devdutta Prasoon
    साहित्य प्रसून

    खूबसूरती से सजाई गयी रचना !!
    चित्र भी और भाव भी!!

    जवाब देंहटाएं
  26. साहित्य-प्रसून पर.......

    गुरु की जिस पर हो कृपा, खुलते उसके भाग
    पाय सफलता-मान-धन , अरु पाये अनुराग
    अरु पाये अनुराग , सफल जीवन हो जाये
    लक्ष्मी चल कर द्वार, सुखों के सँग में आये
    हुई साधना सफल , सुमिर गुरुनाम शुरू की
    खुलते उसके भाग, हो जिस पर कृपा गुरु की ||


    जवाब देंहटाएं
  27. Roshi: नारी
    Roshi
    Roshi

    बहुत सुंदर सच्चाई है
    त्याग की प्रतिमूर्ति है
    पति बच्चों के मन में
    सम्पूर्णता से समाई है
    कह नहीं पायें भी हों
    लेकिन हाव भाव से
    ये बात बहुत बार
    सबने मिलकर बताई है !

    जवाब देंहटाएं
  28. ओ भाव मेरे !
    त्रिवेणी
    ताँका
    डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
    बहुत सुंदर !!
    एक से बढ़कर एक !

    जवाब देंहटाएं
  29. ओ अंधियारे के चाँद
    Madhushaalaa

    सुंदर चाँद
    शर्मा गया होगा
    कुछ भी नहीं
    कह पाया होगा
    कविता बस पढ़
    चला गया होगा !

    जवाब देंहटाएं
  30. ओ अँधियारे के चाँद पर.............

    पूनम-मावस दृष्टि-भ्रम,धूप-छाँव का खेल |
    चाँद कहे जीवन अरे! है सुख-दुख का मेल ||

    जवाब देंहटाएं
  31. अरविन्द की पार्टी :क्या अलग है इसमें -कुछ नहीं
    शालिनी कौशिक
    ! कौशल !

    राजनीति जब हम
    घर में करते हैं
    कार्यस्थल में
    करते हैं
    बाजार में करते हैं
    अपनों से करते हैं
    परायों से करते हैं
    सबकुछ जायज
    मानकर करते
    चले जाते हैं
    बस देश के
    लिये राजनीति
    की भाषा और
    परिभाषा को
    केवल क्यों अलग
    बनाते हैं ?

    जवाब देंहटाएं
  32. परिश्रम का सुखद परिणाम बहुत सुन्दर चर्चा बहुत बधाई रविकर भाई

    जवाब देंहटाएं
  33. वीरू भाई पर..........

    सोया घोड़े बेचकर ,जाग मुसाफिर जाग |
    चुरा गठरिया हाय रे,चोर जाय ना भाग ||

    मेरी निद्रा तुझे मिले,ऐसा कर दे राम |
    मैं जागूँ सो जाय तू , निपटें मेरे काम ||

    नींद न आये रात भर , लगा प्रेम का रोग |
    दिल सचमुच खो जाय गर,छोड़ा ना हठयोग ||

    गीत गज़ल में नींद का,जैसा करें प्रयोग |
    किंतु नींद भरपूर लें, और भगायें रोग ||

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  34. बहुत बढिया चर्चा
    सभी लिंक एक से बढ़कर एक..

    शालिनी जी को पढ़ा, उनकी बात में वाकई दम है।
    लेकिन कुछ लोग विरोध करेंगे, क्योंकि ज्ञान कम है।

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  36. हर उम्र में सबके लिए ज़रूरी है अच्छी नींद
    Virendra Kumar Sharma
    ram ram bhai

    कैसे पता
    चलता है
    नींद जो
    आई थी
    सुंदर नींद थी
    वो आती है
    जिसके पास
    वो तो सो
    जाता है
    फिर उसको
    ये बात
    कौन उठा के
    बता पाता है?

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  37. बहुत बढ़ि‍या लिंक सजाया है....सब पढ़ने की कोशि‍श कर रही हूं..मेरी कवि‍ता शामि‍ल करने के लि‍ए धन्‍यवाद

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  38. ताँका
    1-डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    ये तांका लिखने वालों को पहले यह बतलाना चाहिए यह तांका है क्या ?तांका शब्द प्रयोग क्यों ?हम यह

    बात पाठक के नाते जानना चाहते हैं .क्योंकि या तो वह तांका लिखकर अपने पास रख लेतीं जब

    ब्लॉग पे डाल ही दिया है तो अब वह ब्लॉग की संपत्ति हो गई .

    क्या ये व्यक्ति प्रेम का टाँका है ?संबंधों का टाँका हैं ?या जोड़ना है टाँका लगाकर किसी चीज़ को किसी

    और चीज़ के साथ .

    किसी से टाँका लग गया या टाँका फिट हो गया भी शब्द प्रयोग है .

    हाइकु एक स्वीकृत छंद था .क्या यह उसी में टाँका लगाके आगे बढ़ाया गया है उसी का विस्तार है लेखिका

    कृपया यह बतलाएं .हमारी जिज्ञासा का शमन करे .

    वैसे भाव जगत बड़ा व्याकुल और विस्तृत है टांकों का (तांका का ).

    बधाई .
    त्रिवेणी
    ताँका
    डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
    1
    सुनो हो तुम
    तुम से भिन्न मेरी
    कहाँ व्याप्ति
    जो तुम हो समय
    संग मैं तुम्हारी गति

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  39. मनु बिटिया : जन्म-दिवस की शुभकामनायें-
    जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनाऎं !

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  40. "संगीत बदल जाते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    उच्चारण
    खूबसूरत रचना !

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  41. पागल आशिक हूँ मैं दिलजला दिल का
    "अनंत" अरुन शर्मा
    दास्ताँने - दिल (ये दुनिया है दिलवालों की )

    आदमी फिर भी है भला दिल का :)

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  42. एक बांध सब्र का ...
    सदा
    sada-srijan

    सुंदर रचना !

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  43. फ्राइडे छुट्टी थी ,इसलिए इस चर्चा में ना आ पाया.रविकर जी की सुचना मिली थी,इसलिए आज मोहब्बत नामा की पोस्ट शामिल किये जाने के लिए शुक्रिया अदा करने आ पाया हूँ.इन दो दिनों में दोनों ब्लोग्स की पोस्ट्स शामिल किया जाना यक़ीनन मेरे लिए सम्मान की बात है.

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  45. आदरणीय रविकर सर आपको प्रणाम बेहद सुन्दर चर्चा है आज की , मेरी रचना को स्थान दिया हार्दिक आभार.

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