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सोमवार, दिसंबर 17, 2012

सोमवारीय चर्चामंच-1096

दोस्तों! चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का नमस्कार! सोमवारीय चर्चामंच पर पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
 लिंक 1- 
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लिंक 2-
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लिंक 3-
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लिंक 4-
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लिंक 5-
राम राम भाई! हम असली गाँधीवादी हैं -वीरेन्द्र कुमार शर्मा ‘वीरू भाई’
मेरा फोटो
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लिंक 6-
जय हिन्दी जय भारत -अरुणा कपूर
My Photo
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लिंक 7-
‘बैंडिट क्वीन’ से शुरुआत -सौरभ शुक्ला, प्रस्तुति- माधवी शर्मा गुलेरी
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लिंक 8-
मिलन की आस -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
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लिंक 9-
इक साल -रजनीश तिवारी
My Photo
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लिंक 10-
साहब की कोठी -मनोज कुमार
मेरा फोटो
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लिंक 11-
Girish Pande
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लिंक 12-
मेरी डगर -डॉ. नूतन डिमरी गैरोला
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लिंक 13-
छोटी सी 'बड़ी बात' -पुरुषोत्तम पाण्डेय
मेरा फोटो
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लिंक 14-
शब्द -ईश मिश्र
My Photo
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लिंक 15-
आजा री निंदिया रानी तू आजा! -मृदुला हर्षवर्द्धन
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और अन्त में
लिंक 16-
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!


कमेंट बाई फ़ेसबुक आई.डी.

22 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे पठनीय सूत्रों से सजी चर्चा के लिए बहुत बहुत बधाई गाफिल जी

    जवाब देंहटाएं
  2. काफ़ी बढिया लिंक्स संजोये हैं ।

    जवाब देंहटाएं
  3. लिंक-15
    स्वप्न सलोने ले आती है, जब आती है निंदिया।
    प्रियतम तुम्हें रिझाने को ये, झिलमिल करती बिंदिया।।

    जवाब देंहटाएं
  4. लिंक-1
    दुश्मन की अरु मित्र की, मुश्किल है पहचान।
    जो गर्दिश में साथ दे, मित्र उसी को मान।।

    जवाब देंहटाएं
  5. लिंक-2
    अपनी पुस्तक में करो, भावनाओं को व्यक्त।
    कोरे कागज को भरो, हो करके अनुरक्त।।

    जवाब देंहटाएं
  6. लिंक-3
    हाथों की ये चूढ़ियाँ, जब करती हैं शोर।
    सुन कर इस संगीत को, नाचे मन का मोर।।

    जवाब देंहटाएं
  7. लिंक-4
    दूजों की कर चाकरी, मत होना बदनाम।
    भड़कीली छवि देखकर, जग जाता है काम।।

    जवाब देंहटाएं
  8. लिंक-5
    गांधी जी के नाम को, भुना रहे हैं लोग।
    गांधी के ही नाम से, चला रहे उद्योग।।

    जवाब देंहटाएं
  9. लिंक-6
    राष्ट्रभाषा हिन्दी की ओर प्रेरित करता बढ़िया लघुआलेख!

    जवाब देंहटाएं
  10. लिंक-9
    चमकेगा अब गगन-भाल।
    आने वाला है नया साल।।

    आशाएँ सरसती हैं मन में,
    खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
    सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
    आने वाला है नया साल।।

    जवाब देंहटाएं
  11. लिंक-12
    मन में आशा का संचार करती सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  13. बढ़िया चर्चा । सभी लिंक्स बढ़िया ।

    जवाब देंहटाएं
  14. कैसे जानूं मैं -निरन्तर



    धीरज ,धर्म, मित्र अरु नारी ,आपद काल परखिये ही चारी .......जो आपके ब्लॉग पे निरंतर आये आप वहां न जाएँ ....निरंतर बस कलम चलायें ....

    जवाब देंहटाएं
  15. बिना लाल बत्ती वाला नेता ला -वारिश होता है श्रीमान बत्ती राखिये .....

    "लालबत्ती मुझे भी चाहिए" (कार्टूनिस्ट मयंक)

    जवाब देंहटाएं
  16. बढ़िया आद्र संस्मरण .एहसान हलाली हरेक को आती नहीं है यह एहसान फरामोसों का दौर है पहले लोग -नेकी कर दरिया में डाल ,का फलसफा लिए होते थे आपकी तरह .

    जवाब देंहटाएं
  17. बढ़िया रचना है कृपया अनुनासिक /अनुस्वार लगाएं रचना को शुद्ध करें ....मिलाएं कृपया ,आदर और नेहा से ....वीरुभाई ...

    (हाथों ,हैं ,धडकनें ,)
    Sunday, 16 December 2012
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है....!!
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने,
    क्या गुनगुना रही है....
    खनक-खनक मेरे हाथो में,

    याद तुम्हारी दिला रही है.....

    पूछ न ले कोई सबब इनके खनकने का,
    मैं इनको जितना थामती हूँ...
    नही मानती मेरी बे-धड़क
    शोर मचा रही है,
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ
    न जाने क्या गुनगुना रही है.....

    मैं कुछ कहूँ न कहूँ मेरा हाल-ए-दिल...
    मेरी चूड़ियां सुना रही है.....
    आज भी तुम्हारी उँगलियों की छुअन से,
    मेरी चूड़ियाँ शरमा रही है...
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..

    मेरी हाथो से है लिपटी,
    एहसास तुम्हारा दिला रही है.....
    मैं कब से थाम कर बैठी हूँ,
    अपनी धडकनों को....
    जब भी खनकती है मेरे हाथो में,
    धड़कने तुम्हारी सुना रही है.....
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..

    तुम्हारी तरह ये मुझसे ये रूठती भी है,
    रूठ कर टूटती भी है....
    मैं इनको फिर मना रही हूँ....
    सहज कर अपने हाथो में सजा रही हूँ,
    ये फिर मचल कर तुम्हारी बाते किये जा रही है....
    मेरे हाथो की ये चूड़ियाँ न जाने क्या गुनगुना रही है..
    Posted by sushma 'आहुति' at 04:26

    जवाब देंहटाएं

  18. सड़क पे गाड़ी चलाने वाला हिन्दुस्तान में अपने आपको अफलातून समझता है और गाड़ी पुलिस की हो तो अफलातून का भी बाप मान लेता है स्साला खुद को .यह हमारे नागर बोध की एक झलक मात्र हैं पुलिसिया के तो कहने ही क्या .बढ़िया रिपोर्ताज ...

    लिंक 10-
    साहब की कोठी -मनोज कुमार

    जवाब देंहटाएं
  19. लिंक 10-
    साहब की कोठी -मनोज कुमार

    जवाब देंहटाएं

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