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मंगलवार, जनवरी 31, 2012

कांपता गणतंत्र, ताली पीटता सत्तातंत्र - चर्चामंच-774

आप सबको अतुल श्रीवास्‍तव का नमस्‍कार। 


गणतंत्र दिवस। बसंत पंचमी और महात्‍मा गांधी का निर्वाण दिवस। बीते हफ्तों में इन विषयों पर खूब कलम चली पर जिस खबर ने सबसे ज्‍यादा चिंता में डाला वो थी खुशदीप जी की कलम और खबर थी,  कांपता गणतंत्र, ताली पीटता सत्तातंत्र
 अफसोस! देश के कर्णधारों पर। आज ही के दिन मोहनदास करमचंद गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया गया था....... पर उनके आदर्श अब तक जिंदा हैं, यह सोचने वाली बात है कि अब तक क्‍या कर रहे हैं हम गांधी के लिए । 
मुंह मोड़ा सर्द हवाओं ने
किया श्रृंगार प्रकृति ने 
आई  वासंती बयार
सिमटी  उसके आँचल में |
 आगमन बसंत का
जन जन में, 
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
और साथ ही ये भी सही है कि अभिमन्‍यु की मौत जरूरी है
 
राहें बहुत रास्ते मगर ये पटरियां
ढूंढे इन्ही में जिंदगानी की वो गलियाँ
मुड़ी तुड़ी राहों से कोई गुज़रता नहीं
मिली तो बस बेमिली ,ज्यों पटरियां
 ये किसी न कहना सख्‍त मना है 
 क्‍या होता है पचपन और बचपन का अंतर 
  सोलह आने सच है कि बेटी है तो कल है....!!
जान लीजिए इस बहाने  

 जानिए कितने काम का होता है पुरातत्‍व सर्वेक्षण
 क्‍या होता है उपलब्धि का आधार
पढिए 

  बात शुरू मैंने की थी, गणतंत्र दिवस पर घटी एक शर्मनाक घटना से और इसके बाद आपको अपनी पसंद के कुछ लिंक्‍स देने के लिए ब्‍लाग पोस्‍टों को यूं ही एक दूसरे से पिरोकर पेश किया। अब आखिर में अंत भला तो सब भला कि तर्ज पर प्रस्‍तुत है मेरी एक पोस्‍ट जिसने उम्‍मीदों को जिंदा रखा है,  मिलिए फुलवासन से जिसके सफर की कहानी है बकरी की हांक से पद्मश्री के धाक तक

 मुझे दीजिए इजाजत। अब मुलाकात होगी अगले मंगलवार को... पर चर्चा जारी रहेगी पूरे सातों दिन। 
नमस्‍कार! 
 
 
 

सोमवार, जनवरी 30, 2012

तू भी है आदमजात क्या? : सोमवारीय चर्चामंच-774

दोस्तों ! सोमवारीय चर्चामंच पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का आदाब क़ुबूल फ़रमाएं! पेशे-ख़िदमत है आज की चर्चा का-
 लिंक नं. 1- 
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मेरा फोटो
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सख़्त मना है गीत अंतरात्मा के -अवन्ती सिंह
My Photo
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4-
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कला यात्रा -सुनील दीपक
Bologna art fair and art first - S. Deepak, 2012
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मेरा फोटो
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7-
उसने कहा था...किला जो कहता है चार सदियों की दास्तां -माधवी शर्मा गुलेरी
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8-
रूप बसन्ती प्यारा-प्यारा -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उच्चारण
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मेरा फोटो
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10-
कुछ लोग फिर मंदी आने की बात कर रहे हैं -हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग
मेरा फोटो
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My Photo
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मेरा फोटो
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मेरा फोटो
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मेरा फोटो
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माँ शारदे से प्रश्न डॉ. जे.पी. तिवारी का
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16-
पतझर जैसा मधुमास हुआ भाई अरुण कुमार निगम की निगाहों में
My Photo
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17-
प्रेरक प्रसंग...हर काम भगवान की पूजा -मनोज कुमार
mahatma-gandhi_1
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शाश्वत शिल्प...गीत बसंत का -महेन्द्र वर्मा
My Photo
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19-
चाँदनी भी कहर सा ढाती है -डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
डा. रूपचंद शास्त्री 'मयंक' जी
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20-
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नहीं चल रहा युवराज का जादू... -महेन्द्र श्रीवास्तव
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22-
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हे महान पूर्वजों गर्ब करो -डॉ. आशुतोष मिश्र ‘आशू’
My Photo
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झा जी कहिन 'सतियानासी मोबाइलवा' -अजय कुमार झा
कहने के लिए झाजी तैयार होते हुए
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तो कुछ बात बने -आदित्य
My Photo
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26-
एक नदी का जख़्म बयाँ कर रही हैं डॉ. अलका सिंह जी
रूपरेखा चित्र
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आखिर क्यूँ और कब तक... -पल्लवी सक्सेना

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बाक़ी है हर तहजीब पुरानी अभी तक गाँव में -रजनी मल्होत्रा
मेरा फोटो
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29-
हमको भी तडपागें -धीरेन्द्र
Friends18.com Orkut Scraps
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और अन्त में
30-
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आज के लिए इतना ही, फिर मिलने तक नमस्कार!

रविवार, जनवरी 29, 2012

पंजाबी मजदूर जब : चर्चा-मंच : 773


पंजाबी मजदूर जब, इटली जाय कमाय ।
राहुल जी कहिये भला, झन्खे या इठलाय ।।
                               ---- रविकर

यादों के झूले....

तब १९६९ में .

और अब २०१२ में 
          
यादें ....

यादों... के भवंडर,
दुखों की आंधियां...
एक सदियों पीछे ले जाता है 
और एक मीलों आगे....

वैसे तो आगे बड़ने को ही जिन्दगी मानते हैं 
पर कभी-कभी पीछे मुड कर देखना भी 
बड़ा सुखद लगता है ,अपने छोड़े हुए कदमों 
के निशां,जिन रास्तों से हम चल के आये 
उन्हें अपने पीछे  छोड़ आये ,यादे हमेशा हमारे 
साथ-साथ चलती हैं |पर अक्सर हम  उन्हें नजर-अंदाज 
करके बहुत आगे निकल आते हैं ,उनकी तरफ ध्यान 
ही नही जाता |फिर भी चलते-चलते एक नजर पीछे 
पड़ ही जाती है ,और हम फिर मुस्करा कर आगे  
बड जाते हैं |जब जिन्दगी के रास्तों पर चलते-चलते 
थकने लगते हैं ,तब-तब हम पीछे छूटे रास्तों को 
पहचानने की कोशिश करने लगते हैं |

पर नजरें अब कमजोर हो चुकी हैं ,शरीर बुढ़ापे  की 
और बढ़ चला है ,यादाशत धोखा देने लगी है |
अब सब कुछ धुधला चुका है |पर यादें हैं की आती 
ही जाती हैं ....यादें...यादें और अब बस यादें ...
"अपने बोलने से मुकरना तो  सभी को आता है
अपने लिखे को झुठलाना समझाओ तो जाने"

पहली 

ऋतुराज बसंत

महेश्वरी कनेरी जी की प्रस्तुति 




लो ऋतुराज बसंत फिर आए

सजधज धरती पर छाए ।

हर्षित धरती पुलकित उपवन
सुगंध बिखेरे पवन इठलाए
शाखों ने फ़िर ओढ़ी चुनरी

  दूसरी

चुनावी सर्कस के दोरान, खटीमा में बी.जे.पी. ने बुलाया शक्ति कपूर ...



 तीसरी 

कुछ तो गलत है ...





सदा पर 








इंसाफ़ होने में देर हो तो
अंदेशा होता है अंधेर का
ज़रूर कहीं न कहीं
कुछ तो गलत है ...
''जागते रहो'' की
आवाज़ लगाता सुरक्षा प्रहरी
अनभिज्ञ रहता है

बहार ऐसे ही आती है .

जैसे दुखों के बाद सुख - तपते
मौसम के बाद बारिश - सूखते
जखम के बाद होने वाली -
मंद मंद खारिश -
अहसास दिलाती है - शायद
पतझर के बाद - बहार
ऐसे ही आती है  .

पांचवी 
फ़ुरसत में ... 90
IMG_3308मनोज कुमार
कहीं पढ़ा था, “किसी की मदद करते वक़्त उसके चेहरे की तरफ़ मत देखो, ... क्योंकि उसकी झुकी हुई आंखें आपके दिल में गुरूर न भर दे ...।” इस सूक्ति को मैंने दिल में गांठ की तरह बांध ली थी। मुझे नहीं पता था कि यह गांठ दिल को सुकून पहुंचाएगी या किसी दिन गले की फांस बन जाएगी।

 छठी 

स्वास्थ्य-सबके लिए

 कमर दर्द का कारण स्लिप्ड डिस्क तो नहीं?


वह ज़माना बीत चुका है जब गर्दन दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द या स्लिप्ड डिस्क जैसी समस्याओं को वृद्घावस्था का लक्षण माना जाता था। अब २५-३० साल के लोग भी कमर पक़ड़े नज़र आ जाते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह सामने आया है कि विश्व में हर आठवां आदमी पीठ दर्द या स्लिप्ड डिस्क के दर्द से त्रस्त है।

सातवीं 
  देवेन्द्र पाण्डेय  बेचैन आत्मा  पर
तूने दिया हैप्यार माँ स्वीकार कर आभारमाँ माता-पिता कोईनहीं बस तू ही हैआधार माँ मेरा नहीं तेराही है जो कुछ भी है घर-बारमाँ कोई न था बस तूही थी जब था बहुत लाचार माँ आशीष दे लड़तारहूँ जितना भी होअंधियार ...



हँसते-मुस्कुराते पीले फूल .....!

 




नौवीं 
वैसवारी पर

हम वो परिंदे हैं !

उनकी याद भी अब उनकी तरह नहीं आती,
कोई खुशी अब खुशी की तरह नहीं आती !(१ )


हमने मौसम की तरह,उनका इंतज़ार किया,
पतझर के बाद भी ,बासंती-हवा नहीं आती ! (२)


वे खूब खुश रहें ,अपने जहान में,
हमें तो अब दुआ भी,देनी नहीं आती !(३)


दसवीं 

ए बसंत तेरे आने से

ए बसंत तेरे आने से
नाच रहा है उपवन
गा रहा है तन मन
-----------------
ए बसंत तेरे आने से ।
,,,"दीप्ति शर्मा "

ग्यारहवीं 
Dr.J.P.Tiwari   pragyan-vigyan  पर 
आखिर क्या है यह - चित्र, कृति या विकृति? कला या मन की कालिमा? अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता? या संवेदनाओं का दुरुपयोग? यह अरूप का रूप है या अपने मन का कुत्सित रूप
                                     

बारहवीं 

"करता हूँ माँ का अभिनन्दन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


मन के कोमल अनुभावों से,
करता हूँ माँ का अभिनन्दन।
शब्दों के अक्षत्-सुमनों से,
करता हूँ मैं पूजन-वन्दन।।

तेरहवीं 

अमृता तन्मय की प्रस्तुति  

मनतारा

चिड़ियों  की  चीं-चीं , चन-चन
भ्रमरों  का  है  गुन-गुन , गुंजन
कलियों की  चट-चट , चटकन
मानो  मंजरित हुआ  कण-कण

चौदहवीं 




बसंत पंचमी की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें ...बसंत को महसूस करने के लिए डूबिये मां-बेटी  मलिका पुखराज और ताहिरा सईद की दिलकश आवाज़ में-


पंद्रहवीं 

बसंत एक रंग अनेक ( हाईकू )


पीत वसन 
उल्लसित  है मन 
बसंत आया 
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श्रीहीन मुख 
गरीब का बसंत 
रोटी की चाह .

सोलहवीं 
निरंतर की प्रस्तुति 

दिल किस के बस में है



दिल
किस के बस में है
अब तक पता नहीं चला
ज़िन्दगी क्यों बेबस है
ये भी पता नहीं चला
इतना ज़रूर पता है

 सत्रहवीं 

भक्तों को घंटे-घन्टी बजाने से रोक...इसे पढ़कर तो बहुत आश्चर्य हुआ और क्षोभ भी...

क्या ऐसा भी हो सकता है? आँध्रप्रदेश सरकार की साम्प्रदायिकता का एक अजीब और दुखद उदाहरण सामने आया है | हैदराबाद में चार मीनार के पास स्थित भाग्यलक्ष्मी जी के मंदिर पर ‘आरती के समय घंटे’ बजाने पर रोक है; जिसके लिए प्रशासन ने दो महिला कांस्टेबल भी भक्तों को घंटे-घन्टी बजाने से रोकने के लिए लगाये है| नीचे  का फोटो देखकर आपको हकीकत का अंदाजा लग जायेगा | 


अट्ठारहवीं 
सुकरात संग, मॉल में - अपने अनुशासन से बुरी तरह पीड़ित हो गया तो आवारगी का लबादा ओढ़ कर निकल भागा। कहाँ जायें, सड़कों पर यातायात बहुत है, एक दशक पहले बंगलुरु की जिन सड़कों पर बि...

उन्नीसवीं 

वेद क़ुरआन में ईश्वर का स्वरूप God in Ved & Quran

शारदा देवी को एक वर्ग ज्ञान की देवी मानता है। आज उसकी पूजा की जा रही है। बहुत से ब्लॉगर्स ने इस पूजन-अर्चन को आज अपने लेख का विषय बनाया है और उसकी पूजा और प्रशंसा में गीत भी लिखे हैं।
देवी देवताओं की पूजा उन लोगों का मौलिक अधिकार है जो कि उनकी पूजा में विश्वास रखते हैं। लेकिन जब इस पूजा और विश्वास को इस महान देश की ज्ञान परंपरा देखा जाता है तो पता चलता है कि वैदिक परंपरा में मूर्ति पूजा बाद के काल में शामिल हुई।

बीसवीं 

ग़ज़ल

तू मेरी जरूरत भी रहा, मेरी आदत भी।
तू ही खुदा था  मेरा, मेरी  इबादत भी।

दरिया से  कतरा मांग  कर क्या करता,
यही वक्त का तकाजा है, मेरी चाहत भी।

क्यूं शर्मिंदा रहूं करके इश्क-ए-गुनाह,
सज़ा भी यही है, और मेरी राहत भी।