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बुधवार, जुलाई 10, 2013

निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा


नमस्कार मित्रो , पाठक गण और चर्चा मंच का समस्त परिवार ...सभी को  शशि पुरवार का स्नेहिल नमस्कार .मै आज की बुधवारीय चर्चा में आपका स्वागत करती हूँ .जीवन के भिन्न भिन्न रंग जीवन के परदे पर बिखरे होते है चलिए ज्यादा न कहते हुए आज सीधे प्रस्थान करते है आपके अपने लिनक्स पर .आप सभी का दिन मंगलमय हो यही कामना है

विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते

कल्पना रामानी 
वे सुना है चाँद पर बस्ती बसाना चाहते। विश्व में आका हमारे यश कमाना चाहते।   लात सीनों पर जनों के, रख चढ़े  हैं सीढ़ियाँ, शीश पर अब पाँव रख, आकाश पाना चाहते। 

सुमन-शय्या और मालपुआ...My Photo

 

Amrita Tanmay 
'' सुमन-शय्या पर लेटे-लेटे मालपुआ चाभने वालों के श्री मुख से केवल मेवा-मिष्ठान ही झड़ता है '' भला बताइए तो इसकी व्याख्या का प्रसंग निर्देश अनिवार्य अंग है या नहीं ? साथ ही इसके कार्य-कारण का पुर्न-पुर्न व्याख्या करने हेतु हममें-आपमें अब भी वो उमंग है या नहीं

ऐसे खुशनसीब सब नहीं होते....

रश्मि शर्मा 
लि‍खी जा रही थी जब मेरी कि‍स्‍मत में खुशि‍यों से भरे चांद सि‍तारे बेपनाह प्‍यार और दुनि‍या भर की सारी नेमतें शायद तब मेरी आंखों में नींद भरी थी

खोज सत्य की

संगीता स्वरुप ( गीत ) 
सत्य की खोज में दर बदर भटकते हुये मिली सूर्य रश्मि से पूछा क्या तुम सत्य हो मिला जवाब ...हाँ हूँ तो पर सूर्य से निर्मित हूँ यूं ही कुछ मिले जवाब चाँद से तो कुछ तारों से दिये की लौ से तो जगमगाते जुगनुओं से यानि कि जहां भी उजेरा था या रोशनी का बसेरा था नहीं था
 
रिश्तों में शामिल हुए, जब से ये इनलाज |* *चिंदी-चिंदी हो गया, जकड़ा हुआ समाज |* * * *रिश्तों की कड़वाहटें, देती रहीं दलील |* *हम ही रौशन कर रहे
जाने क्या हुआ !
सहज  साहित्य
 यह क्या हुआ !
  स्तब्ध दिशाएँ हो गईं
  सो गए हैं शब्द
  मौन वाणी हो  गयी ।
रिश्तों का खोखलापन
 https://blogger.googleusercontent.com/img/proxy/AVvXsEjQC2vWws4Q5CJDZAPSorIeUQwfQ26vAuUFo_MHMFRYbGAJiVQvsvSd9J0gfcYj6DuuY1iQj86I3RyMqdAYo2GYKaap-_myE9T3IHFvXMIDzFBvVKfBIO5ZceArgaJVy1uQxD7esSEHSNxh-8eE4vkJ-GbHsSr-BYWX6MCzQbA0JN2VNB3GcrlX4969twbxZIaWk95XYApXiwUaptY=w125-h125
शौर्य मालिक 
काजल कुमार  

राजीव  शर्मा  

देवभूमि का चीत्कार

सोनल  रस्तोगी

बादलों की मंडी थी
पानियों का सौदा था
सैलाब के क़दमों ने
फिर ज़मीं को रौंदा था
हवा बहुत रूठी थी
 
-रंजना भाटिया

ममता की छांव

मन में है विशवास

Rekha Joshi 
मन में है विशवास चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर कभी तो मिलेगी चलते हुए मंजिल कहीं तो जाएगी

भू को चली भागीरथी

 

कल्पना रामानी
   स्वर्ग के सुख त्यागकर, भू को चली भागीरथी पर्वतों की गोद से, होकर बही भागीरथी   कैद कर अपनी जटा में, शिव ने रोका था उसे फिर बढ़ी गोमुख से हँसती, वेग सी भागीरथी धाम कहलाए सभी जो, राह में आए शहर रुक गई हरिद्वार में,

बन के काली घटा वह बरसती रही

मेरा फोटोNaveen Mani Tripathi 
*जिन्दगी थी अमावस की काली निशा ,चादनी की तरह वह बिखरती रही | रौशनी के लिए जब शलभ चल पड़े ,जाने क्यूँ रात भर वह सिसकती रही || जब पपिहरे की पी की सदा को सुनी ,और भौरों ने कलियों से की आशिकी |

'स्वराज' की हुंकार

अंतर्मन चीत्कार कर बहिर्मन प्रतिकार कर प्रघोष महाघोष कर निनाद महानाद कर नाद कर नाद कर 'स्वराज' का प्रणाद कर साम, दाम, दण्ड, भेद ह्रदय

 

मेरा फोटो

जागो !तामसी , आज फिर जागो !

  प्रतिभा सक्स्सेना

हमारा गिरेबां 

हमने ही बदले है अपने सारे सामाजिक मापदण्ड।
असीमित धन की लालसा की लपटे हो रही है प्रचंड

घिनौनी सोच -लघु कथा

shikha kaushik 
   आज हिंदी की अध्यपिका माधुरी मैडम स्कूल नहीं आई तो सांतवी की छात्राओं को तीसरे वादन में बातें बनाने के लिए खाली समय मिल गया .दिव्या सुमन के कान के पास अपना मुंह लाकर धीरे से बोली -'' जानती है ये जो बिलकुल तेरे बराबर में बैठी हैं ना मीता ...

 

गुज़रा हुआ वक्त

Rekha Joshi 
वक्त जो गुज़र जाता है छोड़ जाता पीछे कई यादें कुछ खट्टी तो कुछ मीठी भर आती है

क्या यही प्यार है ?

सरिता भाटिया
सुबह उठते जिसे देखने की चाह हो मन हर पल देखता जिसकी राह हो क्या यही प्यार है? मंदिर में भगवान दर्शन की जो आस हो किसी के पास खड़े होने का अहसास हो क्या यही प्यार है?

 

निकलना होगा विजेता बनकर !!!!

सदा 
मुश्किल भरे रास्‍तों से गुज़र कर दिल और दिमाग के कुछ हिस्‍सों में गज़ब की ताकत आ जाती है जंग लगे ख्‍याल भी बड़ी ही फुर्ती से अपना नुकीला पन दर्शा देते

 

हाथ में सब्र की कमान हो तो तीर निशाने पर लगता है।

कविता रावत 
धैर्य कडुवा लेकिन इसका फल मीठा होता है। लोहा आग में तपकर ही फौलाद बन पाता है।। एक-एक पायदान चढ़ने वाले पूरी सीढ़ी चढ़ जाते हैं। जल्दी-जल्दी चढ़ने वाले जमीं पर धड़ाम से गिरते हैं।

 

कुछ छुट्टा तूफानी विचार -फेसबुक से संकलन!

  (arvind mishra)
कई दिनों से शुकुल महराज कोंच रहे हैं कि कुछ लिखते क्यों नहीं( कुछ लेते नहीं के तर्ज पर

"जय-जय जगन्नाथ भगवान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
*मित्रों!* *कल से भगवान जगन्नाथ की * *रथयात्रा प्रारम्भ हो रही है।

 

 

सदुपयोग समय का

Asha Saxena 
सारा दिन व्यर्थ गवाया कोइ काम रास न आया पर पश्च्याताप अवश्य बारम्बार हुआ क्यूं नहीं सदउपयोग समय का कर पाया |
   आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)

प्रातः स्मरणीय परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री शिवानन्द जी महाराज परमहंस के तत्वावधान में गुरु पूर्णिमा के पवित्र अवसर पर चिंताहरण आश्रम मुक्त मंडल में दिनांक 19, 20 तथा 21 जुलाई 2013 को सत्संग एवं दिनांक 22 जुलाई 2013 (गुरुपूर्णिमा) के दिवस पर गुरुपूजन तथा महाभोज (भंडारा) का आयोजन हो रहा है। इस पावन अवसर पर आप सभी भक्तजन सप्रेम आमंत्रित हैं। पता:- चिंताहरण आश्रम मुक्त मंडल, गाव: नगला भादों,...।
searchoftruth सत्यकीखोज पर RAJEEV KULSHRESTHA 

(2)
तृष्णा तृप्ति
वर्षा में बरसें बादल यह है बादल का स्वभाव है धरती का अधिकार। जब ॠतु न हो वर्षा की अपेक्षा न हो जल की फिर भी, बेमौसम हो जाए धरती प्यासी, इतनी प्यासी कि वह तृष्णा ही बन जाए आस लगाए देखे वह ऊपर झुलसें आँखें सूर्यताप से किन्तु जिद्दी धरती, राह तके इक बादल की चाहत हो केवल कुछ बूँदों की...
घुघूतीबासूती पर Mired Mirage 

(3)
खुद ही उल्टा सीधा, फ़रेबगिरी का पाठ पढावै क्य़ूं सै

भाईयों, ताई के अलावा सभी भहणों, भतीजे और भतीजियों आप सबनै घणी रामराम. आज इस "*हरियाणवी गजलकार ब्लाग मंच"* पर अपनी गजल पढते हुये मन्नै घणी खुशी होरी सै. इब मैं अपणी बिल्कुल नई नई और ताजा गजल आपको सुणा रह्या सूं.....जरा कसकै तालियां मारणा.... 
ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया 
(4)
महिला दिवस

सुबह का समय , दो महिलाये आपस में मिली। एक , बच्चे को स्कूल बस में बैठाने आयी थी। दूसरी एक स्कूल की शिक्षिका थी। दोनों ही सहेलियां थी। शिक्षिका सहेली ने अपनी सहेली के गले लगते हुए बोली , " हैप्पी वुमन्स डे ...," पहली ने हंस कर कहा " सेम टू यू ...! अरी धीरे बोल ...! काम वाली ने सुन लिया तो छुट्टी कर के बैठ जाएगी ..
नयी दुनिया पर उपासना सियाग 
(5)
वो जो कभी वादियाँ थी !

*डर लगता है वहाँ, बिजलियों की कडकड़ाहट से, * *डर लगता है अब वहाँ, बादलों की गडगड़ाहट से। * * **वीरान हुए खण्डहरों में नीरवता ही पसरी पडी है,* *डर लगता है वहाँ, चमगादडों की फडफड़ाहट से।* * * 
अंधड़ ! पर  पी.सी.गोदियाल "परचेत" 

16 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लिंक्स हैं शशि जी |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

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  2. बहुत सुन्दर लिंको के साथ बढ़िया चर्चा।
    जगन्नाथ रथ यात्रा की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  3. सुन्दर लिंक, बढ़िया चर्चा, मेरी रचना शामिल करने हेतु आपका आभार शास्त्री जी !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति है -
    चर्चा मंच की-
    आभार आदरणीया -

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी लिंक बहुत सुंदर है बहुत आभार , शशि जी

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

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  7. मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार,सुन्दर प्रस्तुति है चर्चा मंच की

    जवाब देंहटाएं

  8. सुंदर सूत्र संजोए हैं, मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार...

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  9. सुंदर लिंक्स संजोये रोचक चर्चा...आभार

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  10. aadarniya shashi purwar ji

    aapne meri kavita ki panktiyon ko charchamanch mein sthan diya. aabhari hun.

    pushpa mehra
    10 july, 2013

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  11. खूबसूरत लिंक्‍स..मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार..

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  12. आज तो बहुत देर बाद मंच पर आ पाया हूं
    बहुत सुंदर चर्चा



    कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री असली चेहरा : पढिए रोजनामचा
    http://dailyreportsonline.blogspot.in/2013/07/like.html#comment-form

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  13. सुंदर चर्चा के लि‍ए आभार..

    जवाब देंहटाएं

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