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गुरुवार, सितंबर 12, 2013

चर्चा - 1366

 आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 
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छू लूं आसमां
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मेरी ज़ुल्फ़ अब परेशाँ नहीं होती

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तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं
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जो बात गुड़ में है, वह कहीं नहीं है
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 मैं प्रेम में नहीं हूँ मगर

सँजो रही हूँ  जीवन का एक एक पल

थाम लो एक बार फि‍र.....

मूवी के बाद अब गेम भी 
आज के लिए  बस इतना ही 
आभार 
दिलबाग 
"मयंक का कोना"
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कार्टून :- उपले थापता, तै बेरा पाटता

काजल कुमार के कार्टून
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Free will is necessary for love
प्रश्न :यदि परमात्मा ने हमें कर्म करने की स्वायत्तता न दी हुई होती ,हम उसे प्रेम करें ही करें वह इस बात के लिए भी हमें बाधित कर सकता था। फिर माया का फंदा भी हमारे गिर्द न होता। आखिर परमात्मा ने माया रची ही क्यों और रच ही दी तो हमें दूसरा विकल्प परमात्मा को भूलने का ) क्यों दिया ? Free will is necessary for love उत्तर :प्रेम के लिए विकल्प ज़रूरी है चयन का। मशीन या फिर किसी माडल के साँचें टेम्पलेट को यह विकल्प उपलब्ध नहीं है। माया हमें विकल्प उपलब्ध कराती है। जब हम माया का तिरस्कार करते हैं तभी ईश्वर तत्व की प्राप्ति का विकल्प खुलता है। माया निठल्ले को ही पकड़ ती है ...
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma 

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शीर्षकहीन
शांतिपूर्ण क्षण-क्षण रहे,  सुखमय  रहे समाज |
दुनिया के ऐश्वर्य की,  मिले   आप   को   भेंट,
यही प्रार्थना-कामना,  करता  प्रभु  से  'राज' |
सृजन मंच ऑनलाइन पर DrRaaj saksen
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"अच्छी नहीं लगतीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

वफा और प्यार की बातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। 
तपन के बाद बरसातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं। 
मिलन होता जहाँ बिछड़ी हुई, कुछ आत्माओं का,  
चमकती वो हसीं रातें, किसे अच्छी नहीं लगतीं।।

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गुरु वन्दना (रुबाइयाँ )"रुबाइयाँ "की रूप देने की कोशिश की। 
अगर आपको लगे कुछ कमी रह गयी है ,
कृपया टिप्पणी के रूप में बताएं, आभारी रहूँगा। 

मन ,वुद्धि ,विवेक का स्रष्टा होज्ञान विज्ञानं के तुम विधाता होब्रह्मा  रूपेण हो सिरजनहार तुमशतकोटी प्रणाम तुम्हे , मेरे ज्ञान-गुरु हो।
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विचित्र कथ्य-भावों की एक ग़ज़ल 'आईना' पर ..
एक रुबाई एवं ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त....
रुबाई...
किसने कहा कि भाग्य-विधाता है आईना |
चांदी की पीठ हो तभी बनता है आईना |
है आपकी औकात क्यावह बोल जाता है -क्या इसलिए न आपको भाता है आईना |  

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----भूली -बिसरी यादें .......

मुझे कुछ कहना है ....पर अरुणा 

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नफरत की दिवार
क्या दीवार हमने बनाई है, न इंट न सीमेंट की चिनाई है , 
पानी नहीं लहू से सिचतें है हम , 
कभी-कभी रेत की जगह, इंसानों के मांस पिसते है हम। । 
पुरातन अवशेषों से भी नीचे धसी है नींव की गहराई , 
शुष्क आँखों से दिखती नहीं बस दिलों में तैरती है परछाई।...
अंतर्नाद की थाप पर  Kaushal Lal

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तुम्हीं दर्द हो दवा तुम्हीं हो

जीवन पथ पे चला अकेला छोड़ दुनिया का झूठा मेला सहम गए क्यों ? 
वास्तविकताओं से सामना हुआ ज्योंहि 
आगे खड़ी है मंज़िल तेरी हिम्मत कर लो ओ बटोही,…
My Expression पर Dr.NISHA MAHARANA
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मुक्तक : 335 - रोजी-रोटी न.....

डॉ. हीरालाल प्रजापति

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कंप्यूटर में इस्तेमाल की गई USB devices की पूरी जानकारी !

Computer Tips & Tricks पर Faiyaz Ahmad 

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"स्कूल बस"
बालकृति "नन्हें सुमन" से
एक बालकविता "स्कूल बस"
 
बस में जाने में मुझको,
आनन्द बहुत आता है।
खिड़की के नजदीक बैठना,
मुझको बहुत सुहाता है।।...

27 टिप्‍पणियां:

  1. भाई दिलबाग विर्क जी आपका आभार।
    आप चर्चा मंच के लिए बहुत मनोयोग से छाँट-छाँट कर करीने से लिंक लगाते हैं।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. दिलबाग का है अपना
    कुछ अलग अंदाज
    उसकी चर्चा में बहुत
    कुछ होता है खास
    शुक्रिया है कहने को
    बस उल्लूक के पास !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत हि बढ़िया चर्चा मंच सजा है आज दिलबाग sir एवं गुरु जी को प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  4. बड़े ही सुन्दर और पठनीय सूत्र..आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया प्रस्तुति-
    सुन्दर चर्चा-
    आभार आदरणीय-

    जवाब देंहटाएं
  6. छा गए चर्चा मंचीय ,मुख चिठ्ठा पे आय।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर चर्चा मंच सजाया ,

    मुख चिठ्ठा पे जाय बिठाया।

    जवाब देंहटाएं
  8. स्वास्थ्य सचेत लोग फिर से गुड़ खाने लगे हैं ,ब्राउन शुगर भी। गुड़ चने तीन महीने खाओ हिमोग्लोबीन तीन पाइंट बढाओ। लौह तत्व का भी अच्छा स्रोत है गुड़।

    लोक कहावतों में भी गुड़ का अपतिम स्थान है -आदमी गुड़ न दे गुड़ जैस बात तो कह दे ,गुड़ खाय गुलगुलों से परहेज़ ,गुरु गुड़ ही रह गया ,चेला शक्कर है गया।

    लड़की को लड़का होने पर यानी आपके नाना बन ने पर लड़की के सुसरालिये क ई इलाकों में आज भी गुड़ की भेली भेजते हैं नाना के लिए।

    जो बात गुड़ में है, वह कहीं नहीं है


    इसलिए ज़नाब गुड़ खाया कीजिये खाना खाने के बाद पुराने गुड़ से कब्ज़ टूटती है ।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर सौद्देश्य बोध वर्धक।

    बस में जाने में मुझको,
    आनन्द बहुत आता है।
    खिड़की के नजदीक बैठना,
    मुझको बहुत सुहाता है।।...

    जवाब देंहटाएं
  10. अब इलेक्ट्रनि मीडिया में हिंदी के बिना काम नहीं मिलता है। हिंदी और अंग्रेजी कमसे कम दो भाषाएँ आपको अच्छी आनी चाहिए।विज्ञापन का माया संसार विज्ञापन हिंदी में रचता है बा -कायदा विज्ञापन साहित्य कई मूर्धन्य साहित्यकार (मूढ़ धन्य वास्तव में )लिख रहे हैं।

    लोगों में वराहभगवान् का अंश बढ़ गया है इसीलिए अंग्रेजी पनप रही है। हिन्दुस्तानी रोता हिंदी में है आसमान में उड़ते ही अंग्रेजी बोलने लगता है। अच्छी बात है अब कई परिवारों में अच्छी हिंदी बोलने वाले बच्चों को एक विरल जिन्स समझा जाने लगा है।

    भाषा बनी न राष्ट्र की, यह दिल्ली की भूल

    जवाब देंहटाएं
  11. चर्चा मंच को देख आजकल कई मंच बन गये हैं ,ये चर्चा मंच की ही एक सफलता है।

    जवाब देंहटाएं
  12. बढ़िया चर्चा लगाई है आज दिलबाग जी |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  13. चुनिन्दा लिंक्स से सजा सुव्यवस्थित चर्चामंच दिलबाग जी ! मेरी रचना को भी इसमें सम्मिलित किया आपने इसके लिये आभारी हूँ !

    जवाब देंहटाएं
  14. dilbag ji bahut sundar prastutikaran hai dil bhi hamara bag bag ho gaya , hamen shamil karne ke liye tahe dil se abhaar .sammilit hokar apne parivar se punah mila diya aapne , abhaar

    जवाब देंहटाएं
  15. prabhavshali bahut badhia charcha ......Dilbaag ji hriday se aabhar meri krity shamil kii.

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत हि बढ़िया चर्चा मंच , आभार

    जवाब देंहटाएं
  17. क्या बात है डॉ आशुतोष जी ,

    पढ़ी जो गजल उसकी दिल पे एतबार हुआ ,

    इश्क बार बार हुआ।


    उठी जो पलकें

    जवाब देंहटाएं
  18. खाकर के चोट आईना टुकड़ों में बंट गया,
    फिर भी तो अपना धर्म निभाता है आईना |
    शिकवा गिला क्या आईना है बेजुबान श्याम’
    खुद आपका ही अक्स दिखाता है आईना |

    बहुत सुन्दर गजल भाव सम्प्रेषण और अर्थ सम्प्रेषण में भी उज्जवल।

    बधाई डॉ श्याम गुप्त जी श्याम।

    मीरा हो या राधा बने रहो श्याम ,

    रोज़ सुबहा शाम।
    विचित्र कथ्य-भावों की एक ग़ज़ल 'आईना' पर ..
    एक रुबाई एवं ग़ज़ल ....डा श्याम गुप्त....
    रुबाई...
    किसने कहा कि भाग्य-विधाता है आईना |
    चांदी की पीठ हो तभी बनता है आईना |
    है आपकी औकात क्या, वह बोल जाता है -क्या इसलिए न आपको भाता है आईना |

    जवाब देंहटाएं
  19. मीरा हो या राधा बने रहो श्याम ,

    रोज़ सुबहा शाम।

    तुम राधे बनो श्याम ,

    या मीरा के घनश्याम।

    खाकर के चोट आईना टुकड़ों में बंट गया,
    फिर भी तो अपना धर्म निभाता है आईना |
    शिकवा गिला क्या आईना है बेजुबान श्याम’
    खुद आपका ही अक्स दिखाता है आईना |

    बहुत सुन्दर गजल भाव सम्प्रेषण और अर्थ सम्प्रेषण में भी उज्जवल।

    बधाई डॉ श्याम गुप्त जी श्याम।

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत बहुत धन्यवाद ! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ! मेरी इस रचना '' रोजी-रोटी न.........''को अपने मंच पर स्थान देने के लिए ! सभी पाठकों को गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ । - See more at: http://www.drhiralalprajapati.com/2013/09/335.html?showComment=1378991515706#c5263388601375848497

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  21. सुंदर सराहनीय लिंक्स संकलन ! बेहतरीन चर्चा !!

    RECENT POST : बिखरे स्वर.

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  22. बहुत सुंदर लिंक्‍स हैं...मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार...

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  23. बहुत शानदार सूत्रों से सजाया चर्चा मंच हार्दिक आभार दिलबाग जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए

    जवाब देंहटाएं

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