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बुधवार, सितंबर 18, 2013

प्रेम बुद्धि बल पाय, मूर्ख रविकर है माता -चर्चा मंच 1372





शापित थी ....... शापित है ...

संगीता स्वरुप ( गीत )


कविता - बचपन के पन्ने मेरे हाथों में

smt. Ajit Gupta


क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )

कालीपद प्रसाद 

कौन रोता है , यहाँ?

Neeraj Kumar 



"छँट गये बादल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 

 खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन।
छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।।

उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा,

हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा,

नीर से, आओ करें हम आचमन।



मैं प्रतीक्षा करूँ ....


Amrita Tanmay


तुम्हें क्या ...


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--
अनुनाद में मेरी दो कवितायें …
प्रिय मित्रों - मुझे बताते हुए बहुत खुशी हो रही है कि 
अनुनाद ब्लॉग में मेरी दो कवितायें प्रकशित हुई है… 
आशा है कि आपको भी ये कवितायेँ पसंद आएँगी … .. 
जरूर देखिएगा और अपनी राय दीजियेगा वहाँ …
अमृतरस पर डॉ. नूतन डिमरी गैरोला

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रुबाइयां --डा श्याम गुप्त ..
शहीदों के लिए सिर्फ शम्मा जलाने से क्या होगा 
साल में इक बार दिवस मनाने से क्या होगा| 
बेहतर है प्रतिदिन चरागे-दिल जलाए जाएँ - 
नक़्शे -कदम पे श्याम चल पायं तो अच्छा होगा|...
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--
मोदी नाम पे कितना हल्ला , सावधान रहना तुम लल्ला , 
सेकुलर बैठे घात लगाए , इनसे बचके रहना लल्ला।

आग की तरह फैला दो इस वीडियो को......
आपका ब्लॉग पर Virendra Kumar Sharma
--
तो चाँद मांगता था

उन्नयन (UNNAYANA)

--
दंगो को प्रायोजित तौर पर भड़काया जाता है !

शंखनाद पर पूरण खण्डेलवाल

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"घर भर की तुम राजदुलारी" 
बालकृति 
"हँसता गाता बचपन" से
एक बालकविता
प्यारी-प्यारी गुड़िया जैसी,
बिटिया तुम हो कितनी प्यारी।
मोहक है मुस्कान तुम्हारी,
घरभर की तुम राजदुलारी।।
हँसता गाता बचपन


28 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा लिंक्स |
    शुभ प्रभात |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. रविकर जी।
    कल मैं बुधवार के लिए चर्चा लगाने ही जा रहा था। तभी सोचा कि आपको एकबार फोन कर लूँ। अच्छा ही हुआ। नही तो मुगालते में दो चर्चा प्रकाशित हो जाती।
    --
    आपने आज बुधवार की चर्चा में अच्छे लिंकों का समावेश किया है।
    आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं

  3. बढ़िया लिंक संयोजन ,उत्तम चर्चा .मेरी रचना को सामिल करने के लिए हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उम्दा चर्चा ..मुझे स्थान देने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा
    सुंदर सूत्रों से
    सजा मंच !

    जवाब देंहटाएं
  6. मचा रहे हल्ला सभी, कभी नहीं हों मौन |
    मची हुई है होड़ नित, आगे निकले कौन |

    आगे निकले कौन, लगाते कसके नारे |
    काली पीली दाल, गलाके छौंक बघारें |

    रचते नित षड्यंत्र, चलें तलवार तमंचा |
    छौंक छौंक के दाल, हुआ अब काला चमचा ||


    बाकी बातें बाद में, सबसे आगे वोट |
    करते हमले ओट से, खर्च करोड़ों नोट |

    नगर मुज़फ्फर रोज़ कराते ये डंके की चोट

    वोटों की गिनती करें मनमें इनके खोट।

    नगर मुज़फ्फर रोज़ कराते ये डंके की चोट

    वोटों की गिनती करें मनमें इनके खोट।

    बढ़िया बढ़िया लिंक सजाये हैं रविकर ने

    जवाब देंहटाएं
  7. स्तुत्य कार्य है आप का करो स्वीकार प्रणाम हमारे शतश :



    क्षमा प्रार्थना (रुबैयाँ छन्द )
    कालीपद प्रसाद
    मेरे विचार मेरी अनुभूति

    जवाब देंहटाएं
  8. किसीमे समाया हुआ होकर भी मन कई बार खुद को उससे अलग कर लेता है। बगल में बैठकर तुमसे सबसे सन्निकट होकर भी मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करती हूँ। हालाकि मेरा मन प्रश्न करता है वह कहीं न कहीं तुम्हारे स्पर्श की आस में ही तुमसे प्रश्न करता है -

    भक्त मुक्ति नहीं चाहता भक्त तो उसको देखना चाहता है। वह तो विभक्त है भाग का हिस्सा है। विभाग से विभक्त हुआ। वह अपने अस्तित्व को अपने प्रिय से रु -ब- रु होकर बता सकता है।यही परमानंद के स्थिति है। प्रेमा भक्ति का उत्कर्ष है। उज्जवल रचना है अमृता तन्मया की


    मैं प्रतीक्षा करूँ ....

    Amrita Tanmay
    Amrita Tanmay

    जवाब देंहटाएं
  9. अर्चना-पूजा की चहके दीप लेकर थालियाँ,
    धान के बिरुओं ने पहनी हैं सुहानी बालियाँ,
    अन्न की खुशबू से, महका है चमन।
    अन्न की खुश्बू। ..... बढ़िया प्रस्तुति


    "छँट गये बादल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
    उच्चारण

    खिल उठे फिर से वही सुन्दर सुमन।
    छँट गये बादल हुआ निर्मल गगन।।

    उष्ण मौसम का गिरा कुछ आज पारा,

    हो गयी सामान्य अब नदियों की धारा,

    नीर से, आओ करें हम आचमन।

    जवाब देंहटाएं
  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

  11. मेरे घर-आगँन की तुम तो,
    नन्हीं कलिका हो सुरभित।
    हँसते-गाते देख तुम्हें,
    मन सबका हो जाता हर्षित।।
    तुलसी का बिरवा हो तुमतो ,
    बाहर कैक्टस तने हुए,

    सावधान रहना है तुमको ,
    पल प्रतिपल हे वसुन्धरे।



    जवाब देंहटाएं
  12. शुभप्रभात
    बहुत सुंदर लिंक्स संग्रह है
    शुक्रिया और आभार आपका
    हार्दिक शुभकामनायें!

    ज़िन्दगी एक संघर्ष -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-005

    जवाब देंहटाएं
  13. कविता – बचपन के पन्ने मेरे हाथों में
    WRITTEN BY: AJITGUPTA - SEP• 17•13
    इक बंद पिटारी खोली तो

    कुछ गर्द उड़ी कुछ सीलन थी

    कुछ पन्ने उड़कर हाथ आ गए



    कुछ मेरे थे कुछ तेरे थे ,


    कुछ ख़्वाब कहीं घनेरे थे ,


    कुछ टेरे थे ,कुछ फेरे थे ,


    तिनकों के महल भतेरे थे ,


    संकल्पों की याद ताज़ा करती रचना ,....

    कविता - बचपन के पन्ने मेरे हाथों में
    smt. Ajit Gupta
    अजित गुप्‍ता का कोना

    जवाब देंहटाएं
  14. शापिता शमिता बनी जो नारी

    आदम की पसली से पैदा हुई थी भैया नारी।

    नर से पैदा हुई इसी से नाम पड़ा था नारी (बाइबिल )

    रोंद रहा अब वही पुरुष इस नारी को ,

    महतारी को।

    गुणक्यारी को।


    शापित थी ....... शापित है ...
    संगीता स्वरुप ( गीत )
    गीत.......मेरी अनुभूतियाँ

    जवाब देंहटाएं
  15. bade achche links hain......mujhe shamil karne ke liye aabhari hoon.....

    जवाब देंहटाएं
  16. रविकर जी ,
    बहुत सुन्दर सूत्र संकलन जिसमे मुझे भी शामिल किया
    बहुत बहुत आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत उम्दा चर्चा ,बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  18. एक से बढ़कर एक सूत्र हैं जिसे आपने सुन्दरता से संयोजित किया है.. आभार..

    जवाब देंहटाएं
  19. आदरणीय रविकर जी आपका और "चर्चामंच" का सविनय आभार , जय सियाराम !

    जवाब देंहटाएं
  20. आभार आपका रविकर जी .. बहुत ही खूब लगा आपका संग्रह .. आपके परिश्रम को नमन करता हूँ .. इस चर्चा मंच पे मेरे रचना को जगह देने का तहेदिल से आभार ..

    जवाब देंहटाएं
  21. अच्छे -अच्छे तो हैं ही....टिप्पणियाँ भी सटीक हैं...

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  22. बड़े ही सुन्दर सूत्रों से सजी चर्चा।

    जवाब देंहटाएं
  23. बेहतरीन चर्चा
    शानदार लिंक
    माफी चाहूँगा की आने मे देर हो गई
    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया रविकर साहब

    जवाब देंहटाएं

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