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मंगलवार, अप्रैल 30, 2013

"रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230)

मित्रों!
     हमारी मंगलवार की चर्चाकार बहन राजेश कुमारी जी के पति अस्वस्थ हैं इसलिए मंगलवार की चर्चा की चिट्ठी में मैं डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक कुछ चिट्ठों के लिंक प्रस्तुत कर रहा हूँ। 
सरबजीत की जान से पाकिस्‍तान कर रहा खिलवाड़, भारत ने अपने ही नेताओं को लगाई लताड़        क्या सरबजीत सिंह जी को हलाल नहीं किया गया? जी हाँ... सरबजीत की जान से पाकिस्‍तान कर रहा खिलवाड़, भारत ने अपने ही नेताओं को लगाई लताड़....! अब समय है कि कह दो मन की बातें....*1 छूटी सारी गलियाँ बाबुल का अँगना  वो बाग़ों की कलियाँ ...! गूगल के कुछ लाजबाब सीक्रेट और ट्रिक्स....सीक्रेट और ट्रिक्स  में आपका स्‍वागत है, सबसे पहले मैं आपको यह बताना चाहता हॅू कि आपने *Google* सीक्रेट और ट्रिक्स PART 1 को काफी पंसद किया,..
       सम्भोग से समाधि तक...संभोग एक शब्द या एक स्थिति या कोई मंतव्य विचारणीय है ......... सम + भोग समान भोग हो जहाँ अर्थात बराबरी के स्तर पर उपयोग करना अर्थात दो का होना और फिर समान स्तर पर समाहित होना समान रूप से मिलन होना भाव की समानीकृत अवस्था का होना वो ही तो सम्भोग का सही अर्थ हुआ....! नदिया....आ सखी चुगली करें...सुनो, सुनाऊं, तुमको मैं इक, मोहक प्रेम कहानी, सागर से मिलने की खातिर, नदिया हुई दीवानी ... कल कल करती, जरा न डरती, झटपट दौड़ी जाती, कितने ही अरमान लिए वो, सरपट दौड़ी जाती....! उड़ान...सहज साहित्य...जीवन एक कला है । साहित्य उसी का सहज मार्ग...! हरामखोरी हमारा राष्ट्रीय चरित्र है....एक बड़ी पुरानी सीख है . हमारे पुरखे हमें देते आये हैं . अगर किसी की मदद करना चाहते हो तो उसे मछली मत दो , बल्कि मछली पकड़ना सिखाओ....! धरती माँ....ठीक है, तुम खूब शरारतें करो, दीवारों और ऊंचे वृक्षों पर चढो, अपनी साइकलों को जिधर चाहो घुमाओ-फिराओ, तुम्हारे लिए यह जानना अनिवार्य है कि तुम इस काली धरती पर किस प्रकार बना सकते हो अपना स्वर्ग....! एक दूजे के वास्ते ......सागर की लहरों के साथ थामें एक दूजे का हाथ चलो साथी चलें उस ओर ...जहाँ .... उन्मुक्त आकाश हो दिन हो या रात हो बुझे नहीं कभी मिलन से ऐसी अतृप्त प्यास हो ..... रिश्तों में मर्यादा हो कम....! रश्मिरथी...'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ? कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?... 
          नई इबारत!!!...मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो सबको मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो समाज को मान्य न थी... मेरी कविता बदल दी है मैने उन सब बातों के लिए जो मजहब को मान्य न थी...! भाड़ में जाये संगठन तेल लेने जाये विकास हम तो ....!! कवि श्री हरे प्रकाश की कविता में खुलासा देखिये-नींद में मैं दफ़्तर के सपने देखता हूँ, सपने में दफ़्तर के सहकर्मियों के षड्यंत्र सूंघता हूँ, जिससे बहुत तेज़ बदबू आती है,इस बदबू में मुझे धीरे-धीरे बहुत मज़ा आता है, मैं नींद में बड़बड़ाता हूँ....! टेढ़ा है पर मेरा है...यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए ,जन्म देने वाले माता पिता ,पालपोस और पढ़ा लिखा कर अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते है ,बस उनका कर्तव्य पूरा हुआ ...! मै उंगलियों से चुनता अपने ही पोरुओं पे लगे दुःख के शूल पलकों से उठता अपने होठों पे लगे आनंद के फूल विद्रूपता लिखने पर विस्मित होता विदूषक बनाने पर रुदन करता अपने ही गढ़े चरित्रों के अभिनय पर हँसता शिवि की भांति स्वयं का विच्छेदन करता दधिची सा हड्डी का वज्र बनाकर स्वयं से युद्ध करता ....!  
        डमरू घनाक्षरी/ प्रणय....नियम:- ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में…… ! चीख तिरष्कृतों का सर्वश्रेष्ठ साहित्य है....आज चीखने का मन कर रहा है मैं चीखना चाहता हूँ शहर की सबसे ऊंची इमारत पर चढ़ कर मैं चीखना चाहता हूँ इस दौर की सबसे गहरी खाई में....'बरखा रानी ज़रा....… पिछले दो साल से बारिश नहीं हुई थी..कुछ महीने पहले  हलकी सी  हुई थी लेकिन पिछले दो दिन से यहाँ ऊपरवाले  की ऐसी मेहरबानी है कि बादलों से ढके आसमान ने रूक- रूक कर अभी  तक बरसाना जारी रखा है...! हमारी ज़मीन पे नहीं , इंडिया की ज़मीन पे कब्ज़ा किया है .............. चाइना ने हमारी जमीन पे कब्जा कर लिया है .......बेटा कैसी बात करती हो .....अपनी गवर्नमेंट है , अपनी पुलिस है , अपना गृह मंत्री है . ऐसे कैसे कोई हमारी ज़मीन पे कब्ज़ा कर लेगा . मम्मी ....बात को समझो ....."लोग पुराने अच्छे लगते हैं"...गीत पुराने, नये तराने अच्छे लगते हैं, हमको अब भी लोग पुराने अच्छे लगते हैं...''किस किस की सुरक्षा '' ....मुकेश अम्बानी जैसे उद्योगपति , खतरे से नहीं है खाली सरकार हमारी दे रही गाली । उनकी सुरक्षा के लिए सी .आर .पी .ऍफ़ बल शाली....अपना गाँव… … गाँव और शहर से मेरा संबन्ध जन्म देने वाली माँ और पालने वाली माँ जैसा है। गाँवों के सौंदर्य का बखान करते रहने वाले हम शहरी-गँवार लोग, वहा...! झरीं नीम की पत्तियाँ...त्याग ‘आवरण लाज का’,  ‘शील के वसन’  उतार | ‘रति’  मदिरा  पी कर  चली, लिये ‘वासना-ज्वार’....! एक मुलाकात -- डॉ निशा महाराणा सुबह का समय था दिवाकर सात घोडों के रथ पे होके सवार अपनी प्रिया से मिलकर आ रहा था पवन हौले-हौले पेड की डालियों औ पत्तों को प्यार से सहला रहा था समाँ मनभावन था...! एक प्रेमकथा का किस्सा कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में ....! मैकदे मैं उम्र गुजरी है तमाम  तमाम हाथों में शामो-सहर, रिन्दों के जाम सामने साकी खड़ी सागर लिए आज अपनी मयकशी का इम्तिहान आज होकर बज्म में खामोश हम ...!
        ठाले बैठे....पाँच हाइकु - दुर्गा की पूजाकन्या की भ्रूण हत्यादोगलापन.रात का दर्द समझा है किसने देखी है ओस?न जाने कब फिसली थी उँगलीयादें ही बचींविकृत मनदेखे केवल देहबालिका में भी. नयन...! मेरे हबीब. कागज के पुर्जे जमा हो गए थे, सोचा समेट के ब्लॉग पर डाल दूँ . अकेलापन अपने से जुड़ने का अवसर देता हैं, और उसी जुड़ने मे कुछ गहरे भाव उठते ....! क्योंकि यह प्यार है क्यों वक्त के साथ ख्वाहिशों की कभी उम्र नहीं बढती ! क्यों आँखों के सपने बार-बार टूट कर भी फिर से जी उठते हैं....! मशक पुराण इस्लाम धर्म में वर्ण व्यवस्था या जाति प्रथा तो नहीं है, पर जो आदमी जैसा पेशा करता है या जिसका जो खानदानी धन्धा होता है, उसी के अनुसार उसकी जाति बन गयी है....! हम नासमझों के हवाले जायेंगे अँधेरे जायेंगे, उजाले जायेंगे इक रोज सब निकाले जायेंगे सच का जनाज़ा निकलेगा औ' झूठ के परचम संभाले जायेंगे....! मात्र देह नहीं है नारी .. -आये दिन भ्रूण हत्याएं होती हैं , बलात्कार होते हैं और दहेज़ के नाम पर खरीद फरोख्त होती है . नारी की देह बिकती है , अस्मिता हर दिन दावं पर लगती है और हम हैं ...! हर चुप्पी में इक चीख छुपी होती है - हर सन्नाटे में इक गूंज दबी होती है | इन चीखों को, इन गूंजों को बिरले कोई ही सुनता है...! अंधेरा बैठकर कुछ पल इंतजार के सूने पहलू मेँ, सिसकती शाम गुजर गई छोड़कर तन्हा सुसप्त तन्हाईयां। शैशव अधेरा घुटनों के बल , रेंगता हुआ ताकता है डर से ...!

       रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ....कल शहर में रेवडियाँ बाँटी गयीं थीं. रेवडियाँ बाँटने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया था. समारोह के आयोजक ऐसा समारोह हर साल करते हैं और अपने चाहने वालों के लिए नियम से रेवडियाँ बाँटते हैं. रेवडियाँ प्राप्त करने की कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती. बस आपको रेवड़ी बाँटू कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है.....! "वर्तमानकालीन ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिका"...जैसा की आप जानते हैं ताऊ टीवी द्वारा *अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर **सम्मेलन* - 2013 आहुत किया गया है. इस सम्मेलन के उदघाटन सत्र में सर्वप्रथम *"महान ब्लाग धर्म गुरू बाबा ताऊराम डमरू वाले" * के प्रवचन होंगे. आज का विषय है* "**वर्तमानकालीन** ब्लाग धर्म में आपकी महती भूमिकारेवडिया, बताशे और इनाम कुमार: अथातो 'विज्ञान परिषद' पुरस्कार कथा...बताशे की गंध हवाओं में तैरने लगी तो मैंने सोचा की क्या मै * काठमांडू* पहुच गया। पर सर झटका चश्मा उतारा तो धुल धक्कड़ देख के तसल्ली हुयी कि अब्बै तो कानपुर में ही है . खैर *'सामलाल' *से पता चला की यह गंध तो मेरे प्यारे शहर इलाहाबाद से आ रही है.... मर्यादा का उल्लंघन ...य ईश्वर ने समस्त जगत के लिए और जीव जगत के लिए एक धर्म और मर्यादा नियत की है और यदि कोई इनका उल्लंघन करता है तो उसे उसके दुष्परिणाम भोगने ही पड़ते हैं ....कहानी मोबाइल की ...चालीस साल पहले तीन अप्रैल 1973 को मोटोरोला के इंजीनियर मार्टिन कूपर ने अपनी प्रतिद्वंदी कंपनी के एक कर्मचारी को फ़ोन कर मोबाइल फ़ोन पर बातचीत की शुरुआत की थी. ...! 
        आतंकवादी....आतंकवादी कटुता ने पैर पसारे शुचिता से कोसों दूर हुआ अनजाने में जाने कब अजीब सा परिवर्तन हुआ सही गलत का भेद भी मन समझ नहीं पाया...! विकास,विकास और विकास !! जो राजनैतिक पार्टियां राज्य और केन्द्र में सत्तासीन है वो अपना विकास का राग अलाप रही है ....! जंगल, फन और "मोहब्बतें"...योजना बनाते वक़्त बच्चों के थोबड़े सूज गए थे,और हमें समझ में आ गया था कि जब तक इन बच्चों के लायक भी किसी स्थान का चयन नहीं किया जाएगा हमारी भी गाँव यात्रा खटाई में पड़ी रहेगी...! मैं कौन हूँ ?परमात्मा का परिचय ?  दुखों का कारण है हमारा देह अभिमान .खुद को देही (देह का मालिक )न समझ सिर्फ देह भान में रहना .हम जानते ही नहीं है अपना सही परिचय .परिचय के अभाव में हम अशांत विचलित रहते हैं .हमारे कर्मों को दिशा नहीं मिलती है...! एक प्रेमकथा का किस्सा...कुछ दिन पहले "जूलियट की चिठ्ठियाँ" (Letters to Juliet, 2010) नाम की फ़िल्म देखी जिसमें एक वृद्ध अंग्रेज़ी महिला (वेनेसा रेडग्रेव) इटली के वेरोना शहर में अपनी जवानी के पुराने प्रेमी को खोजने आती है. इस फ़िल्म में रोमियो और जूलियट की प्रेम कहानी से प्रेरित हो कर दुनिया भर से उनके नाम से पत्र लिख कर भेजने वाले लोगों की बात बतायी गयी....परम्परा..परिवारिक परम्परा, बुजुर्गों का हथियार, छोटो पर अत्याचार....! जीवन संध्या...संध्या से पहले भी कभी सवेरा हुआ था, अमा निशा से पहले भी कभी पूर्णमासी का चाँद खिला था....! बागी नहीं हूँ मैं ...मितरां किसी भी राग का रागी नहीं हूँ मैं , कहता हूँ अपनी बात...! पर तुम एक आभास ही तो हो ...उपासना का!
        एक थी सोन चिरैया ..........एक औरत लें किसी भी धर्म ,जाति ,उम्र की पेट के नीचे उसे बीचों-बीच चीर दें चाहें ....! दिल चाहिए बस मेड इन चाइना .... चीन भारत में घुसपैठ कर गया । प्यारे बापू का दिल ही बैठ गया । बहुत परेशान हो गए । गुस्ताखी पर उसकी हैरान रह गए । कैसे भारत की सीमा के इतने अन्दर घुस आया होगा ? क्या किसी को भी नज़र नहीं आया होगा ? मुझको अभी के अभी धरती पे जाना होगा । जैसे भगाया था अंग्रेजों को, इनको भी भागना होगा । जंग - ए - आजादी अभी जिंदा है मेरे अन्दर ...किन्त हमारे कर्णधारों के भीतर नहीं....! जिन्दगी डराती है..........माँ अक्सर याद आती है तारा बनकर चमक रही है आकाश में उसकी रोशनी मेरे दिल तक आती है ....! मधुशाला.... बदनाम हो गयी,हर महफ़िल की शान हो गयी जिव्हा से हल्खो तक गुजरी,कब सुबहो से शाम हो गयी....! 

बोझ उठाना है लाचारी.....
आज की चर्चा में बस इतना ही...!

सोमवार, अप्रैल 29, 2013

'सुनती है माँ गुज़ारिश ':चर्चामंच 1229

शुभम दोस्तो ...
मैं सरिता भाटिया 
आज की सोमवारीय चर्चा शुरू करने से पहले कुछ बताना चाहती हूँ
अभी कुछ दिन पहले ही चर्चामंच पर एक मित्रवर की चर्चा का नाम था क्या सचमुच ही बुलावा आता है ?
ऐसा ही कुछ अपने साथ भी हुआ 
हमारी 18 फरवरी की टिकट थी सपरिवार जाने की 'माँ वैष्णो देवी' की पर किसी कारणवश हमें यात्रा रद्द करनी पड़ी और अब जब कोई टिकट नहीं मिल रही थी कल यानि 27 अप्रैल को बैठे तत्काल में करवाने तो मन मैं यही ख्याल आ रहा था कि अगर बुलावा आया होगा तो मिल जाएगी वर्ना जाना रद्द कर देंगे 
और मुझे बताते हुए हर्ष हो रहा है कि हमें टिकट मिल गई और जब तक आप मेरी चर्चा का आनंद ले रहे होंगे मैं जम्मू पहुच जायूंगी इसी विश्वास के साथ कि वाकई 
क्योंकि ग्रीष्म अवकाश का समय हो चला है 
तो चलिए शुरू करते हैं 
यात्रा वृतान्त 
के संग 
ललित डॉट कॉम
ललित शर्मा 
जात देवता का सफ़र 
संदीप पंवार 
काव्य मंजूषा 
स्वपन मन्झुषा
My Photo
देशनामा
खुशदीप सहगल 
रूप -अरूप 
रश्मि शर्मा 
हमारा मिलन 
चेतन रामकिशन देव 
My Photo
जो मेरा मन कहे 
यशवंत माथुर 
राहुल गाँधी युवा आइकॉन नहीं बल्कि वृद्ध आइकॉन 
सच्चाई 
बुरा भला 
शिवम् मिश्रा 
हथेली में तिनका छूटने का अहसास 
विकेश कुमार बडोला 
अकांक्षा 
आशा सक्सेना 
महाभारत 
रचना दीक्षित 
रसात्मिका 
अनुभूति 
स्याही के बूटे 
शिखा गुप्ता 
My Photo
काजल कुमार के कार्टून 
काजल कुमार 
बस यूँ ही 
अमित श्रीवास्तव
आधा सच 
महेन्द्र श्रीवास्तव 
चलते चलते लेते जाइए 
कुछ उपयोगी जानकारी 
internet and pc related tips
हितेश राठी 
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तू यहाँ यहाँ चलेगा मेरा साया साथ होगा 
ये जिंदगी के मेले 
बी एस पाबला 
नेवीगेटर स्क्रीन का विवरण
गणों का छन्दों में प्रयोग 
उच्चारण 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री जी 
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक's profile photo

आदरणीय शास्त्री जी ने शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013 को यह पोस्ट लगाई थी!
और अन्त में लिखा था कि 
समय मिला तो आगामी किसी पोस्ट में 
छन्दों में इनका प्रयोग भी बताऊँगा...!

तो... 
आज इससे आगे 
शास्त्री जी बता रहे हैं...
--
मित्रों! काव्य में छन्दों का बहुत महत्व होता है...

अभी अलविदा न कहो दोस्तो 
 इससे पहले 
एक नगमा तो सुनते जाइए जनाब

अब दीजिए 
अपनी सरिता भाटिया 
को इजाज़त
बढ़ो को सप्रेम नमस्कार 
छोटो को प्यार ...
आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती..
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आदित्य
ये ख़लिश दिल से क्यूं नहीं जाती, रूह आराम क्यूं नहीं पाती, 
है कोई मर्ज़ या कयामत है, दवा कोई दुआ नहीं भाती.. 
(2)
कलि

एक कलि खिली चमन में बन गई थी 
वो फूल बड़ा गर्व हुआ अपने में सबको गई थी...
(3)
एंड्रॉयड मोबाइल पर बीबीसी हिंदी का ऐप मुफ्त में डाउनलोड कीजिये |

(4)                                  
Ignore Health Hazards of Weight -Gain Pills

Ignore Health Hazards of Weight -Gain Pills एक छोर पर नव युवतियां जहां तन्वंगी दिखने के लिए बे -तहाशा वजन घटाने की ताक में रहतीं हैं तो वहीँ कुछ कृशकाय कन्याएं स्थूल और भरा बदन दिखने की कोशिश में पीनस्तनी (सुडौल बड़े स्तन के आकार वाली खाजुराओ सदृश्य )होने के लिए तौल बढाने के लिए अपने अनजाने कुछ भी खाने...
(5)
क्षणिक और आवेगपूर्ण देशभक्ति से क्या हम देश का भला कर पायेंगे !!

शंखनाद पर पूरण खण्डेलवाल 

रविवार, अप्रैल 28, 2013

अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो : चर्चामंच १२२८

"जय माता दी" अरुन की ओर से आप सबको सादर प्रणाम.तनिक भी विलम्ब किये बिना आइये चलते हैं लिंक्स पर. 
Sushila
रह-रह कानों में
पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द
"अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो"।
Rajendra Kumar
१.
पृथ्वी की गोद
पेड़ों की हरियाली
सुनी पड़ी है
२. कटते वृक्ष
बढ़ता प्रदुषण
चिन्ता सताए
लेखक : डॉ. परमजीत ओबराय (एन.आर.आई)
प्रस्तुतकर्ता : यशोदा अग्रवाल (मेरी धरोहर)
संसार क्षेत्र की यात्रा करने
चली आत्मा
रूप अनेक धार ।
पथ में जिसके कांटे अधिक हैं
फूल हैं केवल चार ।
~अनु ~
बीती रात ख्वाब में
मैं एक चिड़िया थी........
चिडे ने
चिड़िया से
मांगे पंख,
प्रेम के एवज में.
और
पकड़ा दिया प्यार
चिड़िया की चोंच में !
उदय वीर सिंह
मर्यादा
की परिभाषाएं
गढ़े कौन......
अतिरंजित होते मूल्य ,
मूल्यांकन की बात करे कौन
डॉ. मोनिका शर्मा
हमारी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था ही कुछ ऐसी है कि एक स्त्री का जीवन केवल उसके अपने नहीं बल्कि घर पुरुषों के व्यवहार से भी प्रभावित होता है ।
Vandana Tiwari
(Vivek Rastogi)
(पुरुषोत्तम पाण्डेय)
ZEAL
Swati
इक किला मैं रोज़ धकेलती हूँ
मुझे मुक्त होना है
रूह की बेड़ियाँ चुभती हैं
इक किला मैं रोज़ बनाती हूँ
मुझे कैद होना है
Anshu Tripathi
मेरे लिए कहाँ रुका पल
मेरे लिए कहाँ बढ़ा पल
तेरे आसपास ही थमा पल
मेरी स्मृति तेरी परिमल
दृढ़ पौरुष हृदय सुकोमल
तेरे स्वप्नों में गुँथा पल
Monali
अमिता नीरव
Abhi
Jyoti Khare
स्वप्न मञ्जूषा
ये थका-थका सा जोश मेरा, ये ढला-ढला सा शबाब है
तेरे होश फिर भी उड़ गए, मेरा हुस्न क़ामयाब है
ये शहर, ये दश्त, ये ज़मीं तेरी, हवा सरीखी मैं बह चली
तू ग़ुरेज न कर मुझे छूने की, मेरा मन महकता गुलाब है
ये कूचे, दरीचे, ये आशियाँ, सब खुले हुए तेरे सामने
है निग़ाह मेरी झुकी-झुकी, ये ग़ुरूर मेरा हिज़ाब है
शारदा अरोरा
अपने अपने सफ़र की बात है
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं
समझे थे जिसे हम आबो-हवा
सहरा में धूप से क्या निज़ात है
आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी
टकराये भी अगर तो बरसात है
Prem Lata
संध्या आर्य
सुमन कपूर 'मीत'
Neelima
महेन्द्र श्रीवास्तव
गाँव गया था,
गाँव से भागा ।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
Anita Singh
हमें जिंदगी जीने का सलीका ना आया
मगर जिंदगी ने हमे हर बार आजमाया
भूल चुके जब हम सब माज़ी के किस्से
दुश्मने जां फिर मेरा दिल दुखाने आया
था साथ उसके इक नया हमसफर
होकर पराया हमसे हमको जलाने आया
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
मेरी गैया बड़ी निराली,
सीधी-सादी, भोली-भाली ।
सुबह हुई काली रम्भाई,
मेरा दूध निकालो भाई ।
हरी घास खाने को लाना,
उसमें भूसा नही मिलाना ।
इसी के साथ आप सबको शुभविदा मिलते हैं रविवार को. आप सब चर्चामंच पर गुरुजनों एवं मित्रों के साथ बने रहें. आपका दिन मंगलमय हो
जारी है ..... "मयंक का कोना"
(1)
सुख और दुःख
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सुख और दुःख धरती के, 
ध्रुव की तरह होते हैं लेकिन प्रतिक्रया में दोनों के, 
आंसू ही होते हैं....
(2)
शब्दों का कारवाँ

आज 
तलाश रही हूँ 
कुछ ऐसे भीने  
शब्दों का कारवाँ 
जिनका असर हो...

(3)
अमेरिका : मां डायन तो बेटा भी होगा राक्षस !

भारत माता को सार्वजनिक रूप से नंगा करने वाले नेता 
जब खुद नंगे होते हैं तो कैसी तिलमिलाहट होती है...
(4)
नींद में ही तो नहीं हैं ?

कभी कभी सपनों के बोझ तले दबी हुई पलकें खुलना तो चाहती हैं
पर खुल नहीं पाती असहज, घुटन सी महसूस होती है...
(5)
मेरी संस्था मेरा घर मेरा शहर या मेरा देश कहानी एक सी
उसे लग रहा है मेरा घर शायद कुछ बीमार है 
पता लेकिन नहीं कर पा रहा है कौन जिम्मेदार है 
वास्तविकता कोई जानना नहीं चाहता है ...

शनिवार, अप्रैल 27, 2013

कभी जो रोटी साझा किया करते थे

शनिवार की चर्चा में सभी का स्वागत है 

वक्त और हालात जैसे करवट बदलते हैं
वैसे ही चर्चा के भी रंग बदलते हैं 
कहीं धूप तो कहीं छाँव से 
अहसासों में उतरते हैं 
कभी ग्रीष्म के ताप से तपाते हैं 
कभी वर्षा की फ़ुहार से भिगाते हैं
बस यही तो मनों के सौदे होते हैं 
जो भीड में भी जगह बनाते हैं 



सुन्न

स्पंदनों की साँझ कुम्हला गयी 
सुन्न होने की घडी आ गयी



हर कोई हनुमान नहीं होता 
वक्त सब पर मेहरबान नहीं होता 



बहुत हो गया ..... अब सरेआम फांसी हो



बातें तो तुम बहुत बनाते हो 
क्या कभी हुनर भी आजमाते हो 



आँखों देखा हाल और हम हुए बेहाल ... जय हो सन्तों की


ज़िन्दगी की दिल्लगी ने किया परेशान 
ना तुम्हें खुदा मिला ना हमें भगवान



देखो कितना हुनर हमारा ..


ना तुम बेवफ़ा थे ना हम बेवफ़ा 
बस ये तो ज़िन्दगी ने किया है दगा 


साँझा चूल्हा खो गया...


कभी जो रोटी साझा किया करते थे 
जाने वो चूल्हे किस आग की भेंट चढ गये 



चल सोच से आगे निकल जायें 
आ इस लकीर को लांघ जायें 


मेरे अरमानों की चादर


 उम्र के दरख्त पर अरमान उगते हैं 
और यादों की चादर में सिमटते हैं 


बंदिशें बनती है


जो टूट जायें वो बंदिशें कहाँ 
और मोहब्बत कब बंदिशों की मोहताज़ हुयी है 


शमशाद बेगम को श्रद्धांजलि : भाग 1


गुजरा हुआ ज़माना आता नही दोबारा 
हाफ़िज़ खुदा तुम्हारा 



कविता कहाँ है ?????????


ढूँढो तो खुदा मिल जायेगा 
मगर इंसान का ज़मीर क्या जग पायेगा ?



किस की तरह बनूँ ?


ना हिन्दू बन ना मुसलमान 
बस बन सके तो बन जा इंसान 
ना खुदा बन ना भगवान 
बस बन सके तो बन जा इंसान 


जब अर्थ का अनर्थ होता है 
तभी मानव ह्रदय रोता है 
जब कहीं कुछ विध्वंस होता है 
तभी कहीं नव निर्माण भी होता है 



वादियों के सफ़र में 
चिनारों के साये तले 
हाथों में हाथ डाले 
आओ हम चलें 
एक सपनों का जहान बनाने 



चिराग


गर जल सकता तो रौशनी करता 
मगर मैं वो चिराग हूँ जिसमें ना तेल है ना बाती 
फिर भी मुझमें अभी जीने की ललक है बाकी 





क्या आप जानते हैं कि "शहर" खुश कैसे होते हैं?

जब दिल मे आफ़ताब खिलते हैं 
चिनारों के सायों में दिल मिलते हैं 


फ़िल्मी शादी

दुनिया तेरे रूप निराले 
कैसे कैसे करे इशारे 


मील का पत्थर यूँ ही बना नही जाता 
दोज़ख की आग में यूँ ही जला नही जाता 
ताज तो बहुत बन जाते लेकिन 
बिन मुमताज़ शाहजहाँ बना नहीं जाता 



एक टुकडा बर्फ़ का .......


कुछ जीने के हुनरमंद रहे जो लोग
वो ही रफ़्ता रफ़्ता बर्फ़ से पिघलते गये




चिराग तो जला दूँ हर दिल में इबादत के 
बस तुम थोडा लीक से हटकर चलना तो सीखो 




जो गुबार गुस्से का होता  तो निकाल भी देते 
ये घुटन के गुब्बारों पर कोई सुईं अब चुभती ही नहीं 


मन के आँगन की दुल्हनें 
कब घूँघटों की मोहताज हुयी हैं 





जो ना बदल सका हाथ की लकीरें 
वो आदमी बन जी लिये हम 
कभी खुद से कभी हालात से 
बस यूँ डर डर कर जी लिये हम 




मन की बाधा मोडे ऐसा कोई संत मिले 
जो तार प्रभु के साथ जोडे ऐसा कोई संत मिले 



चलो चलें सपनो को हकीकत बना लें 
तुम और मैं चलो एक चाँद धरती पर उतारें 



आओ उम्मीद के चराग जलाओ यारों 
नाउम्मीदे के अंधियारे को दूर भगाओ यारों 
खिल सकती है आस की किरण भी अंधेरों मे 
बस तुम हौसलों की एक चन्द्रकिरण लाओ तो यारों 




देखो आसमाँ पर छायी बदली है
शायद वक्त ने करवट बदली है इन दिनों 




जब से ये आग लगी है हवाओं  में 
दमघोटूँ धुँआ फ़ैला है फ़िज़ाओं में
साँस साँस बिखरी है दरकती सी 
साँय साँय की कराहती आवाज़ों में 



काश कहना आसान होता 
तो आवाज़ की सरगोशियों का तुम्हें इल्म होता 




कोई मुझमें बैठा मेरा खुदा इबादत करने नहीं देता (मेरा खुदा यानि अहम )
वरना यारों मैं साज़िशन नहीं बुझाता चिराग 


बस एक बार आइना बदलकर तो देखो 
स्पर्श या देहसुख से आगे निकलकर तो देखो 
नारी जो कभी किसी से ना है हारी 
क्योंकि वो ही तस्वीर  बदलती है सारी 



एक गुनाह ए खुदा तुम ही कर दो 
चलो एक बार हर मर्द को औरत कर दो 


कभी शीशम सी कभी साल सी 
ये सुबहें हैं बडी खुशगवार सी 



"मच्छरदानी को अपनाओ" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



नींद चैन की आ जायेगी 
जो सोच सबकी बदल जायेगी



अगर आज के युग में महाभारत होती तो....

जाने कैसी वो जंग होती 
कितनी द्रौपदियाँ होतीं 
कितने दुश्शासन होते 
पाण्डवों के वेश में भी भेडिये ही होते 




मुस्लिम तलाक़ और भरण पोषण की विधि
याद रखना ना दिन तेरा ना रातें तेरी 
ये ज़िन्दगी से बस चंद मुलाकातें हैं तेरी 



चल एक कश लगा ले ज़िन्दगी का 
फिर हर नशा हो जायेगा फ़ीका



बस एक बार अदब सज़दे में नज़र झुका लेना 
सम्मान भी सम्मानित हो जायेगा 



बेगैरतों ने जो बना कठपुतली नचाया 
अब दिल वालों की नगरी ना रही हमारी 



कमल तो कीचड में भी खिल जायेगा 
जो तेरी आँख का पानी बदल जायेगा 




आज की चर्चा को अब देते हैं विराम 
और अगले हफ़्ते तक करते हैं आराम :)

आगे देखिए..."मयंक का कोना"
(1)
भयग्रस्त

भय नहीं मृत्यु से
भयग्रस्त हूँ
 जीवन से । 
विविधताओं से 
आकांक्षाओं से  
उपलब्धियों से ।
कि जीवन जोंक की तरह न हो जाय...
(2)
दुल्हन की बारात अपने घर बुलाने की कसम खायें
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ताऊ डाट इन पर ताऊ रामपुरिया
(3)
जन्म का खेल
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लम्हों का सफ़र पर डॉ. जेन्नी शबनम
 
(4)
बेवफा ज़िन्दगी .....

(5)
कार्टून :- ...सोने की चिड़िया चांदी के जाल

(6)
काव्यान्जलि पर  धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
(7)
sapne पर shashi purwar