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गुरुवार, अक्तूबर 31, 2013

"सबसे नशीला जाम है" चर्चा - 1415

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धन्यवाद
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"मयंक का कोना"
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हम-तुम अकेले

एक पार्क में बैठ कर एक बुज़ुर्ग दम्पति के जो दुःख दर्द मुझे महसूस हुआ ,
उसे मैं इस कविता में ढाला है | यह केवल इनके दर्द नहीं है ,
ऐसे अनेक दंपत्ति मेरे आसपास रहते है 
जिनमे से बहुतों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ,
यह दर्द उनलोगों का भी है...
मेरे विचार मेरी अनुभूति पर कालीपद प्रसा
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उसे अपनी माँ से विवाह करना पड़ा था, 
दुनिया की दर्दनाक कहानियों में से एक
..... ईडिपस देर तक रानी जोकास्टा के शव पर यह कह कर रोता रहा कि तुमने तो अपने दुखों का अंत कर लिया, लेकिन मेरी सजा के लिए मौत भी कम है। उसी समय ईडिपस ने अपनी आंखें फोड़ लीं और महल से निकल गया। कुछ ही समय में उसका पूरा परिवार नष्ट हो गया क्योंकि वह भी उसी पाप की उत्पत्ति था, जो भाग्यवश अनजाने में हो गया था।

शायद यह दुनिया की सबसे दर्दनाक कहानी है
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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देखता हूँ अंधेरे में अंधेरा
 नरेश सक्सेना 
लाल रोशनी न होने का अंधेरा 
 नीली रोशनी न होने के अंधेरे से अलग होता है 
इसी तरह अंधेरा अंधेरे से अलग होता है...
Nirjhar Times पर Brijesh Neeraj

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आम आदमी .....
कविता (अन्नपूर्णा बाजपेई )
घुट घुट के जीता मरता है ये आम आदमी , 
अब दिन रात तड़पता है ये आम आदमी । 
कब तलक यूं ही मरेगा ये आम आदमी , 
एक दिन तो जी उठेगा ये आम आदमी ....
नूतन ( उद्गार)

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कुछ लिंक "आपका ब्लॉग" से..
गहवर वन महँ लतन पतन महँ ,
ब्रज कण कण महँ श्री राधे, 
पूरब राधे पश्चिम राधे ,उत्तर राधे दक्षिण राधे , 
ऊपर राधे नीचे राधे ,जित देखूं तित श्री राधे।
जय राधे जय राधे राधे ,जय राधे जय श्री राधे
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अजीब बात ये है माँ बाप अपने ही लाडलों को 
भूत प्रेत के लिबास में बाहर छोड़ देते हैं। 
पड़ोस में ये स्वांग भरते हुए कैंडी मांगने पहुँच जाते हैंये कोई आज की बात नहीं हैं बरसों से हताशा ,
बेचैनी और मानसिक परेशानी का सबब बनता रहा है हेलो -ईवनिंग अप 
वीरेन्द्र शर्मा (वीरू भाई)
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इमोशनल अत्याचार?

रमेश पाण्डेय
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पत्नी रंगेहाथ पकड़ ले तो उसके पाँव दबाना 
पाप नहीं है बाबाजी

Albela Khtari
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कर नारायण ना नुकुर, गर है नारा ढील -

रविकर लखनऊ में २०-१०-१३
रविकर की कुण्डलियाँ

बुधवार, अक्तूबर 30, 2013

मधुमक्खी मकरंद, इन्हीं कमलों से लेती : चर्चा मंच 1414

 खुदा देश की नींव, लगाते दुष्ट कहकहा -

लिंक-लिक्खाड़ 

Politics में शेर और भेड़ियों के बीच अन्डरस्टैंडिन्ग


DR. ANWER JAMAL 

 कहानियाँ देते सुना, भुना रहे प्रोनोट |
दूजे को लगता सदा, पहले में है खोट |

पहले में है खोट, पोट कर रखते वोटर |
कठफुड़वा की टोंट, बना देती है कोठर |

बैठे हिंसक जीव, चला गठजोड़ आ रहा |
खुदा देश की नींव, लगाते दुष्ट कहकहा ||











बोले थे जो जनार्दन, दिखे वही छल छंद । 
शहजादे कहना नहीं, करूँ अन्यथा बंद । 

करूँ अन्यथा बंद, लगेंगे दो दिन केवल। 
आइ यस आई लिंक, बना लेता क्या सम्बल । 

हो पटने में ब्लास्ट, जहर मानव-बम घोले । 
पर बच जाता मंच, पुन: मोदी यह बोले ॥  

परंपरा --

Indu Kalkhande 
चालू म्यूजिक लॉन्च पर, तू कर रैली बंद |
आतंकी उद्देश्य सा, बकते मंत्री चन्द |

बकते मंत्री चन्द, अगर भगदड़ मच जाती |
मरते कई हजार, भीड़ भी फिर गुस्साती |

तोड़ फोड़ धिक्कार, हँसे आतंकी-खालू |
यह कैसा व्यवहार, मंत्रि-परिषद् अति चालू || 


घटना करते थे कहीं, शरण यहाँ पर पाय |
भटकल क्या पकड़ा गया, जाती बुद्धि नशाय |

जाती बुद्धि नशाय, हिरन झाड़ी खा जाए |
मारे तीर नितीश, नजर तू जैसे आये |

बोध गया विस्फोट, व्यर्थ दहलाया पटना |
रे आतंकी मूर्ख, आत्मघाती ये घटना || 

कितनी छिछली हरकतें, कर आयोग विचार-

कार्टून :- चुनाव चि‍न्‍ह के खेल

तालाबों को ढक रहे, हाथी पिछली बार |
कितनी छिछली हरकतें, कर आयोग विचार |

कर आयोग विचार, किसानों की यह खेती |
मधुमक्खी मकरंद, इन्हीं कमलों से लेती |

दिखी कांग्रेस धूर्त, कलेजा कितना काला |
पंजा दे कटवाए, साइकिल में भी ताला || 




सत्य वचन थे कुँवर के, आज सुवर भी सत्य |
दोष संघ पर दें लगा, बिना जांच बिन तथ्य | 

बिना जांच बिन तथ्य, बड़े बडबोले नेता |
हुई सभा सम्पन्न, सभा के धन्य प्रणेता |

बीता आफत-काल, हकीकत आये आगे |
फिर से खड़े सवाल, किन्तु सुन नेता भागे ||




संघी फासीवाद


Ish Mishra

संघी फासीवाद जहां भी जाता अपनी जहालत का शोर मचाता वह बजरंगी कुत्तों की भीड़ जुटाता आग लगाता, लूट मचाता, कत्ल कराता मां-बहनों की खुले-आम इज्जत लुटवाता इसी को हिंदू संस्कृति बतलाता इसके हैं इससे भी ज़ाहिल चमचे डिग्री लेकर त्रिसूल बांटते मानवता का गला घोंटते बन गया यह गर देश का नेता होगा इन चमचों का चहेता चमचे नहीं जानते इतिहास हिटलरों का होता ही है सत्यानाश

बिहार आतंकवादी हमला :फायदा एकमात्र 

भाजपा 

को .


Shalini Kaushik


एक गिलहरी-----।

हेमंत कुमार ♠ Hemant Kumar 
 

मेरी लंबी कहानी,..

Priti Surana 

अनजाने जाने पहचाने चेहरे

तुषार राज रस्तोगी 
 

श्याम खाटु जी के दर्शनोपरांत तीन दिनों के एक यादगार सफर का समापन

गगन शर्मा, कुछ अलग सा 


जिसको लेखक समझा हमने,यह केवल हरकारा है - सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना 
 

ज़िन्दगी कुछ इस तरह बसर किया हमने...अवधेश कुमार जौहरी

डा. मेराज अहमद

ले ले प्याज ले ...

रजनीश तिवारी

"बालगीत-गिलहरी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 


फुलमनी


Neeraj Kumar


"गीत गाना जानते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
 


कांग्रेस की राजनीति को ध्वस्त करते मोदी

HARSHVARDHAN TRIPATHI 


हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव

मदन मोहन सक्सेना 

झूठ चादर से ढक नहीं पाते ...

(दिगम्बर नासवा) 


बेतरतीब मैं (उन्तीस अक्टूबर )

Sonal Rastogi 

"मयंक का कोना"
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कुछ लिंक आपका ब्लॉग से
आपका ब्लॉग
पौरबत्य दर्शन में शब्द को रूप का सूक्ष्म बीज माना गया है। 
शब्द के आधार पर ही रूप खड़ा होता है।3. What you can do to protect yourself from the spiritual ill-effects of Halloween--
अपना जमीर जिंदा रख

दिल में थोडी सी पीर जिंदा रख।
यानी अपने आंखों का नीर जिंदा रख...
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"राजेंद्र यादव " साहित्यजगत की अपूरणीय क्षति

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गजल
मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले...

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एक तरह से मौत में से भी बाज़ार निकाल लेने की जुगत है।
ऐसी ही परम्परा है हेलोवीन की। 
भूत प्रेत का स्वांग धरके डराना। 
माहौल को भूतहा बनाना।
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मिलिए कुछ राष्ट्रीय सेकुलरों से पहचानिये 
इनके सरगना को समझिये इनकी फितरत 
:जानिये भाईजान !
इस देश में सेकुलर होने का क्या मतलब है 
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पहले राज्य के मामलों में चर्च का हस्तक्षेप था 
जिसका खामियाज़ा अनेक चोटी के विज्ञानियों ने उठाया था। 
गैलीलियो की तो आँखें ही फोड़ दी गईं थीं चर्च के आदेश पर।
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लोकतंत्र के गुनहगार हमलोग

सत्यार्थमित्र पर सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

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डायरी के पन्‍नों से...

आइये, कुछ बातें करें ! (Let's Talk) पर

मनोज कुमार श्रीवास्तव 
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जाऊं कहाँ ?
(डायरी से एक और रचना ) 
आजमा के देखे लाखों तरीके, 
पर बेकरारी दिल की मिटटी ही नहीं, 
सुकून देने दिल को, जाऊं तो जाऊं कहाँ ? 
चारो तरफ तो बस हैं, अपने ही अपने, 
अपनों की भीड़ में ही खो गया हूँ शायद, 
खुद को ढूंढ लाने, जाऊं तो जाऊं कहाँ...
मेरा काव्य-पिटारा पर 

ई. प्रदीप कुमार साहनी
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नैन उनके भी नम थे ......

उन्नयन पर udaya veer singh 

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ग़र कोई आरज़ू हो तो अब मोहलत न रही....
मामून कहीं रह जाऊँ, 
अब वो हाजत न रही ये दामन कहीं बिछ जाए, 
मुझे आदत न रही जिस्मों में 
ग़ैरों के भी यहाँ लोग जीते हैं ...
काव्य मंजूषा पर स्वप्न मञ्जूषा

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असहमतियों का सौंदर्य निखारते थे राजेन्द्र यादव

प्रतिभा की दुनिया ...पर Pratibha Katiyar

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"रौशनी की हम कतारें ला रहे हैं" 
अब धरा पर रह न जाये तम कहीं,
रौशनी की हम कतारें ला रहे हैं।
इस दिवाली पर दियों के रूप में,
चाँद-सूरज और सितारे आ रहे हैं।।

दीपकों की बातियों को तेल का अवलेह दो,
जगमगाने के लिए भरपूर इनको नेह दो।
चहकती दीपावली हर द्वार पर हों
महकती लड़ियाँ सजीं दीवार पर हों।
शारदा-लक्ष्मी-गजानन देव को,
स्वच्छ-सुन्दर नीड़ ज्यादा भा रहे हैं।
उच्चारण
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कार्टून :- सोने वाले बाबा तेरी सदाई जै.

Kajal Kumar's Cartoons 

काजल कुमार के कार्टून