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शुक्रवार, अप्रैल 11, 2014

"शब्द कोई व्यापार नही है" (चर्चा मंच-1579)

आज के इस चर्चा मंच पर मैं राजेन्द्र कुमार  हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ।इस सदविचार पर विचार करते हुए आगे चर्चा की तरफ बढ़ते हैं।  

"मनुष्‍य को सदा उत्‍तम वाणी अर्थात श्रेष्‍ठ लहजे में बात करना चाहिये, और सत्‍य वचन बोलना चाहिये, संयमित बोलना, मितभाषी होना अर्थात कम बोलने वाला मनुष्‍य सदा सर्वत्र सम्‍मानित व सुपूज्‍य होता है । कारण यह कि प्रत्‍येक मनुष्‍य के पास सत्‍य का कोष (कोटा) सीमित ही होता है और शुरू में इस कोष (कोटा) के बने रहने तक वह सत्‍य बोलता ही है, किन्‍तु अधिक बोलने वाले मनुष्‍य सत्‍य का संचित कोष समाप्‍त हो जाने के बाद भी बोलते रहते हैं, तो कुछ न सूझने पर झूठ बोलना शुरू कर देते हैं, जिससे वे विसंगतियों और उपहास के पात्र होकर अपमानित व निन्‍दनीय हो अलोकप्रिय हो जाते हैं । अत: वहीं तक बोलना जारी रखो जहॉं तक सत्‍य का संचित कोष आपके पास है । धीर गंभीर और मृदु (मधुर ) वाक्‍य बोलना एक कला है जो संस्‍कारों से और अभ्‍यास से स्‍वत: आती है ।"

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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जीवन की अभिव्यक्ति यही है,
क्या शायर की भक्ति यही है?

शब्द कोई व्यापार नही है,
तलवारों की धार नही है,
राजनीति परिवार नही है,
भाई-भाई में प्यार नही है,
क्या दुनिया की शक्ति यही है?
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जयश्री वर्मा 
चेहरे अलग-अलग से हैंं दिखते, 
पर ये अपने से कोई न लगते,
ये तो मोदी,राहुल,केजरीवाल हैं,
पार्टियां वादों की घालमघाल हैं,
वो कहते-हम यह सब कर देंगे, 
ये कहते नहीं हम ही सत्ता लेंगे,
इसको देखा और उसको जाना, 
बंधु,सब सामान हैं,सब सामान हैं।
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रविश कुमार 
लस्सी वाक़ई लाजवाब थी । मोटी मलाई की परत के साथ । आह वाह कर ही रहा था कि नज़र उस तस्वीर पर पड़ गई जिस पर लिखा था कामरेड सूरज पाल वर्मा जी । इटावा के चौक पर इतनी अच्छी लस्सी मिलेगी और वो भी किसी कामरेड की दुकान पर सोचा न था । भारत एक क़िस्सा प्रधान देश है । कब कोई क़िस्सा मिल जाए कोई नहीं जानता ।
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आशा सक्सेना 
एक प्रत्याशी आया
बड़े प्रलोभन लाया
टेम्पो में सब को लिया
बूथ तक ले आया |
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राजीव कुमार झा 
दमादम मस्त कलंदर...... अली दा पैला नंबर’,यूँ तो सिंधी समुदाय के प्रसिद्द संत झूलेलाल के सम्मान में गाया जाने वाला यह भक्ति गीत समुदाय विशेष की सरहदों को पार कर सबों में समान रूप से लोकप्रिय है.इसे नामचीन फ़नकारों ने अलग-अलग अंदाज में,
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पूर्वा भारद्वाज 
ख़यालिस्ताने-हस्ती में अगर ग़म है, ख़ुशी भी है 
कभी आँखों में आँसू हैं, कभी लब पर हँसी भी है 
इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा 
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है
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हर्षवर्धन त्रिपाठी 
वैसे ही दो दिन से कष्ट में हूं। जब से साफ हुआ कि मेरे प्रयास के बाद भी मेरा और पत्नी का नाम नोएडा की मतदाता सूची में शामिल नहीं हो सका। चुनाव आय़ोग ने बड़ी मेहनत की है। पिछले कुछ चुनावों में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है तो उसमें बड़ी मेहनत चुनाव आयोग के जागरुकता अभियानों की है।
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विजय लक्ष्मी 
आज की रोटी का इंतजाम तो हो गया जैसे तैसे 
कल जिन्दा रहे तो कोशिश जरूर करेंगे 
गर किसी दिन साँस लौट कर नहीं आई तो 
क्या आप हमारा माफीनामा कबूल करेंगे 
वैसे अर्जी लगाई है खुदाई दरबार में भी 
इक अहसान ये, कब कितना वसूल करेंगे
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पूनम माटिया 
समय बीतता जाता है 
दर्द कहीं थक के 
सुख की म्यान में सो जाता है
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कैलाश शर्मा 
लिये आकांक्षा अंतस में चढ़ने की 
खुशियों और शांति की चोटी पर 
करने लगते संग्रह रात्रि दिवस
साधनों, संबंधों, अनपेक्षित कर्मों का
और बढ़ा लेते बोझ गठरी का।
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रेखा श्रीवास्तव 
हम इस इलाके में पिछले २४ साल से रह रहे हैं और जब यहाँ आये थे तब भी एक तरफ मुस्लिम बाहुल्य इलाका था और दूसरी और मिले जुले लोग रहते हैं और हम बड़ी शांति से रह रहे थे। वर्षों से यहाँ ताजिए उठते हैं तो साथ में हिन्दू जाते हैं और रामनवमी के रथ के साथ मुस्लिम भी होते हैं। कभी इसमें साउंड बॉक्स हिन्दू ले कर जाते हैं और कभी मुस्लिम।
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रश्मि शर्मा





बेहद नाराज थी मैं उससे....इतनी..कि‍ जी चाह रहा था.....न कभी मि‍लूं उससे...न फोन लूं उसका......
शायद इस बात का अहसास हो गया था उसे.....कई बार के कॉल के बाद बेमन से मैंने फोन उठाया......मेरे हलो के जवाब में उसकी बहुत ही मीठी आवाज आई....कैसा है तू.....
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यशवंत यश 
जो अधिकार है 
कभी कभी 
होता है
 वह भी कर्तव्य .... 
और जो 
कर्तव्य है 
कभी कभी होता है वह भी अधिकार .... फिर भी कुछ लोग नहीं कर पाते सच को स्वीकार ..... उनके मन का...
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कविता विकाश 
लम्हों के दस्तगाह में
इक लम्हा ऐसा आया
कश्ती पर हो सवार
उतर गए हम भंवर में।
गर ज़न्नत है दुनिया में
क्यूँकर हमको रास न आया
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मृदुला प्रधान 
जूही-बेला की 
पंखुड़ियों में 
लिपटी हुई शाम.…… 
रजनीगंधा के किनारे,
चंपा,चमेली,रात-रानी का 
सानिध्य......
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आशा जोगळेकर
फरवरी महीना इस २०१४ साल का हमेशा याद रहेगा। २ फरवरी को मेरी जरा सी तबियत खराब हुई। पता चला वाइरल फीवर है फ्लू जैसा ही कुछ । दो तीन दिन क्रोसीन और विटामिन खा कर मै तो ठीक हो गई पर सुरेश, मेरे पति, बीमार हो गये ।
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मीना पाठक  
एक स्त्री का जब जन्म होता है तभी से उसके लालन पालन और संस्कारों में स्त्रीयोचित गुण डाले जाने लगते हैं | जैसे-जैसे वो बड़ी होती है उसके अन्दर वो गुण विकसित होने लगते है | प्रेम, धैर्य, समर्पण, त्याग ये सभी भावनाएं वो किसी के लिए संजोने लगती है और यूँ ही मन ही मन किसी अनजाने अनदेखे राज कुमार के सपने देखने लगती है और उसी अनजाने से मन ही मन प्रेम करने लगती है | किशोरा अवस्था का प्रेम यौवन तक परिपक्व हो जाता है, तभी दस्तक होती है दिल पर और घर में राजकुमार के स्वागत की तैयारी होने लगती है |
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सुशील कुमार जोशी 
लोक सभा निर्वाचन 
के सफल संचालन 
हेतु जिला निर्वाचन 
अधिकारी ने आदेश
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राहुल मिश्रा 
बाल सफ़ेद....चेहरे पर कार्बन फ्रेम का मोटा चश्मा....बदन पर मटमैला रंग का कुर्ता....और कंधे पर भगवा झोला। हाँ शायद यही थी कद-काठी उस पैसठ-सत्तर बरस के बुज...
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अनीता 
देवताओं का शिव-पार्वती को सुरतक्रीडा से निवृत करना तथा उमा देवी का देवताओं और पृथ्वी को शाप देना

मुनि की बात समाप्त हुई जब, किया प्रेम से अभिनन्दन
धर्मयुक्त कथा उत्तम यह, बोले दोनों राम, लक्ष्मण

हे विस्तृत वृतांत के ज्ञाता, अब विस्तार से हमें सुनाएँ
गिरिराज हिमवान की पुत्री, गंगा की महिमा बतलाएं
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"अद्यतन लिंक"

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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पतझर - हाइगा में 

हिन्दी-हाइगापरऋता शेखर मधु
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और ऐसा ज़नाब पहली बार नहीं हुआ है 
हम लोकसभा व विधानसभा में 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल ला रहे थे, लेकिन भाजपा ने उसे रोक दिया। कर्नाटक के मंगलोर में भाजपा कायकर्ता महिलाओं को पीटते हैं। छत्तीसगढ़ में उनके विधायक विधानसभा में मोबाइल पर अश्लील फिल्म देखते हैं। गौरतलब है कि विधानसभा में अश्लील फिल्म छत्तीसगढ़ के नहीं बल्कि कर्नाटक के विधायक देख रहे थे.... 
Virendra Kumar Sharma 
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Sudhinamaपरsadhana vaid
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यह तरीके बनायेगें अापको 

कम्‍प्‍यूटर पर तेज, 

स्‍मार्ट और सुरक्षित 

MyBigGuide पर 
Abhimanyu Bhardwa
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ग़ज़ल - कुछ को नटखट वो शरीर.... 

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क्या ? क्यों ? किसके लिए ? 

स्पंदन  SPANDAN
आजकल न जाने क्यों, 
न लिखने के बहाने ढूंढा करती हूँ. 
विषय ढूंढने निकलती हूँ तो सब बासी से लगते हैं.... 
क्या लिखा जाए इन पर? 
और कब तक ? 
और आखिर क्यों ?....
स्पंदन पर shikha varshney
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"गीत-फिर से वीणा झंकार करो" 

19 टिप्‍पणियां:

  1. आज की चर्चा में सभी लिंक पठनीय हैं।
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    इस श्रमसाध्य चर्चा के लिए
    आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी आपका आभार।

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  2. बिभिन्न विषय समेटे आज का चर्चा मंच
    बहुत व्यस्त कर देता पढ़ने में यह मंच |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |

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  3. सुंदर सूत्र संकलन राजेंद्र जी और आभार 'उलूक' का सूत्र 'तुम भी सरकार के चुनाव भी सरकार का हमें मत समझाइये' शामिल किया ।

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  4. सुंदर चर्चा सूत्र.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

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  5. मौज़ू रवानी लिए है यह भावपूर्ण व्यंग्य रचना :

    शब्द कोई व्यापार नही है,
    तलवारों की धार नही है,
    राजनीति परिवार नही है,
    भाई-भाई में प्यार नही है,
    क्या दुनिया की शक्ति यही है?

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  6. कुछ नया करने का सशक्त आवाहन करती है यह रचना :

    अनुबन्धों में भी मक्कारी,
    सम्बन्ध बन गये व्यापारी।
    जननायक करते गद्दारी,
    लाचारी में दुनिया सारी।
    अब नहीं समय शीतलता का,
    मलयानिल में अंगार भरो।
    सोई चेतना जगाने को,
    जनमानस में हुंकार भरो।।

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  7. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ..आभार!

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  8. बढ़िया हरी-भरी चर्चा व दिलचस्प सूत्रों का संकलन , आदरणीय शाश्त्री जी , राजेन्द्र भाई व मंच को धन्यवाद ! व मेरे पोस्ट को स्थान देने के लिए बहुत आभार !
    ~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )

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  9. राजेन्द्र जी, विविधरंगी चर्चा के लिए बधाई..मुझे इसमें शामिल करने के लिए आभार !

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  10. बहुत रोचक और विस्तृत सूत्र...रोचक चर्चा...आभार

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  11. आदरणीय राजेन्द्र जी बहुत सुन्दर चर्चा और बहुत बहुत आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए | सादर

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  12. bahut achchhe link mile aur sundar prastuti . meri rachna ko sthan dene ke liye dhanyavad !

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  13. मेरी '' ग़ज़ल - कुछ को नटखट वो शरीर.... '' को शामिल करने का धन्यवाद मयंक जी !

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  14. बहुत खूबसूरत चर्चामंच..मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए धन्‍यवाद

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