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सोमवार, अप्रैल 14, 2014

"रस्में निभाने के लिए हैं" (चर्चा मंच-1582)

मित्रों।
सोमवार के चर्चाकार आ.अभिलेख द्विवेदी जी
किसी अपरिहार्य कारण से चर्चा लगाने में असमर्थ हैं।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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बैसाखी 

बैसाखी नाम बैसाख से बना ,खुशिया लेकर आता है 
किसान अपनी फसल देखकर झूम झूम कर गाता है...
गुज़ारिश पर सरिता भाटिया
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रस्में कोई जानता है 

किसी को समझाई जा रही होती हैं 

चुनाव क्यों करवा रहे हैं 
पता नहीं वोट क्यों डलवा रहे हैं 
पता नहीं तो पता क्या है 
अरे सब पता है 
कौन हार रहा है कौन जीत रहा है 
कैसे हार रहा है कैसे जीत रहा है 
कैसे पता है...
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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बाल गीत : 

सेहत सबसे बड़ा धन

(यह बाल गीत हमारे प्रिय मित्र 
योगी ठाकुर को 
आज उनके जन्मदिन के अवसर पर सप्रेम समर्पित है.)...
SUMIT PRATAP SINGH 
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क्या राजनीति और पौलिटिक्स पर्यायवाची है ? 

नेता किसे कहा जाए ?

My Photo
राजनीति और पौलिटिक्स, 
ये दोनों शब्द एक अर्थ नहीं रखते. 
आधुनिक भारतीय लोग 
जो संस्कृत या ग्रीक भाषा का ज्ञान नहीं रखते 
उनके कारण, यह त्रुटि व्यापक है. 
"पौलिटिक्स" शब्द का मूल, ग्रीक का पलुस (palus) है, 
जिसका अर्थ, पोल, डंडा, झंडा या खम्भा होता है...
Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI
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प्रेम के अर्थ

दिल से
पीत  पर्ण फिर हरियाए
वायवी उड़ानों संग हर्षाए
वन - प्रांतर में चली पुरवाई
गंध - गंध सुरभित अमराई
सौगंध पुराने कुछ याद आए
पोर - पोर अमलतासी हो गए...
दिल से पर Kavita Vikas 
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जीना भर शेष ... 

सु..मन(Suman Kapoor)
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"ग़ज़ल-अब नीड़ बनाना है" 

मासूम निगाहों में, खामोश तराना है
मदहोश परिन्दों को, अब नीड़ बनाना है

सूखे हुए पेड़ों पर, फिर आ गये हैं पत्ते
अब प्यार के दीपक को, हर दिल में जलाना है...
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कब तक चीखता रहेगा 

आधी आबादी का एक टुकड़ा 

ये नारी मन भी कितना विचित्र है
दुःख में सुख ढूंडता है -----
पीड़ा में प्रसन्नता खोजता है ---
अधिकतर दुःख वह खुद के लिए रख लेती है
और सुख बाँट देती है कभी
अपनों को कभी औरों को...
Divya Shukla 
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वो अनजाने से परदेशी!
मेरे मन को भाते हैं।
भाँति-भाँति के कल्पित चेहरे,
सपनों में घिर आते हैं...
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23 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात |बैसाखी पर्व पर शुभ कामनाएं |
    उम्दा समसामयिक लिंक्स हैं आज |

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात भाई
    अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुबह की चाय और चर्चा वाह ।
    आभार 'उलूक' का
    सूत्र 'रस्में कोई जानता है किसी को समझाई जा रही होती हैं'
    कहीं पर टंका हुआ दीवार पर दिखा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. चुनावों में व्यस्तता के कारण ब्लाग पर आना कम हो पा रहा है। जल्दी ही यहां पूरा समय दूंगा।
    बढिया लिंक्स, मुझे स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया चर्चा बेहतरीन सूत्र ! मंच पर मुझे भी स्थान देने के लिये ह्रदय से धन्यवाद ! आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. nice links,nice presentation .thanks to give place here for my post .

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन लिँक्स के लिए संयोजक महोदय का कोटिश: आभार!! समस्त रचनाएँ पठनीय हैँ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर भाव और भाईचारे को प्रोत्साहित करती पोस्ट :

    बैसाखी

    बैसाखी नाम बैसाख से बना ,खुशिया लेकर आता है
    किसान अपनी फसल देखकर झूम झूम कर गाता है...
    गुज़ारिश पर सरिता भाटिया

    जवाब देंहटाएं
  11. ग़मों की ओड़कर चादर, बहारों को बुलाते हो
    बिना मौसम के धरती पर, नजारों को बुलाते हो

    गगन पर सूर्य का कब्जा, नहीं छायी कहीं बदली
    बड़े नादान हो दिन में, सितारों को बुलाते हो

    नहीं चिट्ठी-नहीं पत्री, नहीं मौसम सुहाना है
    बिना डोली सजाये ही, कहारों को बुलाते हो

    कब्र में पैर लटके हैं, हुए हैं ज़र्द सब पत्ते,
    पुरानी नाव लेकर क्यों, किनारों को बुलाते हो

    कली चटकी नहीं कोई, नहीं है “रूप” का गुलशन
    पड़ी वीरान महफिल में, अशआरों को बुलाते हो
    (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    सुन्दर सांगीतिक भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  12. मासूम निगाहों में, खामोश तराना है
    मदहोश परिन्दों को, अब नीड़ बनाना है

    सूखे हुए पेड़ों पर, फिर आ गये हैं पत्ते
    अब प्यार के दीपक को, हर दिल में जलाना है...
    उच्चारण

    बढ़िया ग़ज़ल कही है सभी अशआर सुन्दर :

    मासूम निगाहों में, खामोश तराना है
    मदहोश परिन्दों को, अब नीड़ बनाना है

    सूखे हुए पेड़ों पर, फिर आ गये हैं पत्ते
    अब प्यार के दीपक को, हर दिल में जलाना है...
    उच्चारण

    जवाब देंहटाएं

  13. मेरे इलाके में आना (कानपुर आना )तब देखूंगा तुझे कहने

    वाले एक कांग्रेसी काबीना मंत्री ही थे जो उस वक्त क़ानून
    मंत्री थे और क़ानून में सुराख में से विकलांगों की बैसाखी
    भी खा गए बदले में तरक्की और पा गए विदेश मंत्री पद पा
    गए। कौन सी कांग्रेस संस्कृति की बात कर रहीं हैं आप। व


    ह संस्कृति जिसके तहत एक कांग्रेसी नेता (सुशील शर्मा



    )पत्नी के टुकड़े करके उसे तंदूर में भूनते हैं।

    मोदीजी तो एक किशोर अल्प वयस्क पत्नी को ससम्मान

    पढ़ाई करने के लिए अपने घर भेज देते हैं। क्या लेखिका

    किशोर विवाह का समर्थन करतीं हैं जसोदा बहन की उम्र

    तब १७ बरस थी। गौना कभी हुआ ही नहीं न मेरिज

    कन्ज्यूमेट हुई।

    जसोदा बेन के तो अच्छे दिन आ ही गए !

    भारतीय नारी पर shikha kaushik

    जवाब देंहटाएं
  14. सुन्दर है सुशील कुमार जोशी भाई :

    ‘उलूक’ तेरी चादर
    के अंदर सिकौड़ कर
    मोड़ दिये गये पैरों पर
    किसी ने ध्यान
    नहीं देना है
    चादरें अब
    पुरानी हो चुकी हैं
    कभी मंदिर की तरफ
    मुँह अंधेरे निकलेगा
    तो ओढ़ लेना
    गाना भी बजाया
    जा सकता है
    उस समय
    मैली चादर वाला
    ऊपर वाले के पास
    फुरसत हुई तो
    देख ही लेगा
    एक तिरछी
    नजर मारकर
    तब तक बस
    वोट देने की
    तैयारी कर ।

    जवाब देंहटाएं
  15. सुन्दर प्रासंगिक बात कही है। बढ़िया रचना है। शब्दार्थ मुश्किल अल्फ़ाज़ों को देखा बड़ा भला किया है आपने हमारा।

    रफ्ता-रफ्ता नीलाम हशमत मुल्क की करते यहाँ .


    तानेज़नी पुरजोर है सियासत की गलियों में यहाँ ,
    ताना -रीरी कर रहे हैं सियासतदां बैठे यहाँ .

    इख़्तियार मिला इन्हें राज़ करें मुल्क पर ,
    ये सदन में बैठकर कर रहे सियाहत ही यहाँ .

    तल्खियाँ इनके दिलों की तलफ्फुज में शामिल हो रही ,
    तायफा बन गयी है देखो नेतागर्दी अब यहाँ .

    बना रसूम ये शबाहत रब की करने चल दिए ,
    इज़्तिराब फैला रहे ये बदजुबानी से यहाँ .

    शाईस्तगी को भूल ये सत्ता मद में चूर हैं ,
    रफ्ता-रफ्ता नीलाम हशमत मुल्क की करते यहाँ .

    जिम्मेवारी ताक पर रख फिरकेबंदी में खेलते ,
    इनकी फितरती ख़लिश से ज़ाया फ़राखी यहाँ .

    देखकर ये रहनुमाई ताज्जुब करे ''शालिनी''
    शास्त्री-गाँधी जी जैसे नेता थे कभी यहाँ .

    शब्दार्थ :-तानेजनी -व्यंग्य ,ताना रीरी -साधारण गाना ,नौसीखिए का गाना
    तलफ्फुज -उच्चारण ,सियाहत -पर्यटन ,तायफा -नाचने गाने आदि का व्यवसाय करने वाले लोगों का संघटित दल ,रसूम -कानून ,शबाहत -अनुरूपता ,इज़्तिराब-बैचनी ,व्याकुलता ,शाईस्तगी-शिष्ट तथा सभ्य होना ,हशमत -गौरव ,ज़ाया -नष्ट ,फ़राखी -खुशहाली

    जवाब देंहटाएं
  16. मैंने आज अपने दर्द की रवानी लिखी है..
    बड़ी मुश्किल से दिल की कहानी लिखी है..

    पानी को पानी की तासिर बताकर,
    आज अपनी मौत पर जिंदगानी लिखी है..

    चुराये है अक्सर मैंने आंसू तेरी आंखों से
    होठों पर तुम्हारे ही मैंने हंसी लिखी है..

    फुलों में ठनी थी कल हंसते तुम्हे देखकर
    आज फूलों की मैंने वो बेईमानी लिखी है..

    खुशनुमा वक्त था जब साथ तुम्हारा था
    तन्हाइयों में मैंने आलम की बेबसी लिखी है..
    ****************
    (निदा-ए-तन्वीर)
    *****************
    ग़ज़लकार - (c)... तरुण कु. सोनी तन्वीर
    ईमेल- tarunksoni.tanveer@gmail.com
    वेब ब्लॉग - http://nanhiudaan.blogspot.com
    बढ़िया ग़ज़ल कही है -आज फूलों की मैंने वो बे -ईमानी लिखी है।

    एक दीवार पे चाँद टंका था ,

    मैं ये समझा तुम बैठी हो ,

    उजले उजले फूल खिले थे ,

    जैसे तुम बाते करती हो।

    जवाब देंहटाएं

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