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मंगलवार, अप्रैल 15, 2014

"हालात समझ जाओ" (चर्चा मंच-1583)

मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में सभी पाठकों का स्वागत है।
देखिए मेरी पसंद के कुछ लिंक।
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बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की आज मीटिंग है। 
उनका अगले वर्ष के लिए चुनाव होगा । 
तुम्हें भी मीटिंग में चलना है । 
-मैं क्या करूंगी ? 
-तुम्हारा वोट बहुत कीमती है। 
इमरजेंसी में इसका प्रयोग होगा । 
मेरे विपक्षी को हराने के काम आएगा...
तूलिकासदन पर सुधाकल्प
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कथनी-करनी 

पहले हमें शिकायत रहती थी कि 
नेता अच्छी बातें बोलते हैं 
लेकिन उन पर आचरण नहीं करते। 
अब समस्या यह है कि 
वे अच्छी बातें बोलना भी भूल गये हैं....
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काश कुछ ऐसा हो 

हम जो कह न पायें वो बात समझ जाओ
हम जो लिख न पायें वो जज्बात समझ जाओ
और जब पिघले ये दूरी 
तुम वो रास्ता वो हालात समझ जाओ...
कविता मंच पर Pankaj Kumar
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सक्षम चिरंजीवी भव: 

हां याद आया सक्षम जी ने ढोलक बजाई.. फ़िर क्या हुआ... किस्सा गो... अरे भाई फ़िर क्या कुछ नहीं हम सब वापस आ गए ... अपने अपने घर मस्तीखोरी के होलसेल डीलर सक्षम से मिल के .. अभी तक उसकी शैतानियां याद आ रहीं हैं.. सक्षम मेरे भांजे अमित जोशी का बेटा है.. चिरंजीवी भव: ...
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चादर नहीं होती है अपडेट 

और कुछ बदल 

किसी को कहाँ 

जरूरत होती है 
अब एक चादर 

ओढ़ने के बाद 
बाहर निकलते हुऐ 
पैरों की लम्बाई 

देखकर उनको  
मोढ़ लेने की... 
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
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आज चली कुछ ऐसी बातें. 

आज चली कुछ ऎसी बातें, 
बातों पर हैं जाएँ बातें...
काव्यान्जलि पर धीरेन्द्र सिंह भदौरिया
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"जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए"

जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए, 
दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन! 
खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!! 
रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए। 
जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए...
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बदलाव का दौर 

जब महका करता था 
हर गली कूंचा फूलों की खुशबू से 
और उस खुशबू को अपने आगोश में ले कर 
सुबह और शाम की ठंडी हवा 
फैला दिया करती थी 
पूरे मोहल्ले में ..... 
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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एक लेखिका की संकीर्णता 
अरुन्धती राय भारत की अंग्रेज़ी लेखिका है । 
विदेशों में उन्हें लेखिका के रूप गिने चुने लोग जानते होंगे , 
परभारत में लेखिका से अधिक 
उन्हें एक सक्रिय राजनीतिक व्यक्ति के रूप में जाना जाता है । 
उन्हें भारत विरोधी प्रचार में बड़ी महारत हासिल है । 
उन के अनेक वक्तव्य संकीर्णता  के दर्पण हैं । 
कुछ जागरूकलोगों की उन के बारे मेँ 
ये टिप्पणियाँ देखिये 
जो फेसबुक से साभार ली गई हैंं...
---डा सुधेश 

Sahityayan. साहित्यायन
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मितभाषी क्षमाकर्ता जमीन पर
वो एक सुखद महकते संस्कारी
परिवार के बागवां कहलाते हैं...
आपका ब्लॉग
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दिल्ली विश्वविद्यालय का तानाशाही रवैया 
-दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को 
अपना तानाशाही रवैया छोड़ना होगा। 
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ कार्यालय सील करना 
प्रशासन के तानाशाही रवैये और .... 
अभिव्यक्ति
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इस महीने की किताब: अजाने मेलों में 

प्रमोद जी की भाषा में कहें 
या यों कह लें कि कहने की कोशिश करे 
तो बात कुछ यों होगी: 
कईसे एगो मुहाविरा जीवन में सच होते दिखता है .. 
नई बात.
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चैत के तीन दोहे.....सतुआन के संग 

पीत पुहुप कनेर फलें ऐ सखी इस मधुमास 
धवल भाल पर कर रही अब ‘रश्मि’ मधुहास...
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19 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सूत्रों के साथ सजी आई है आज की मंगलवारीय चर्चा । 'उलूक' का सूत्र 'चादर नहीं होती है अपडेट
    और कुछ बदल ' भी है । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय श्री शास्त्री साहब, अनेकानेक धन्यवाद और बहुत बहुत शुक्रिया ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर चर्चा
    खूबसूरत लिंक्स।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रस्तुति भी खूब , लिंक्स भी खूब , चर्चा बहुतखूब , आ. शाश्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  6. Thank you so much for adding my links and your compliment. Please visit on my other my blog, address of my blog is given below -

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/
    http://rishabhpoem.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  7. अच्छे लिंक्स
    खुद को पाकर खुशी हुई ..........

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत-बह त धन्‍यवाद ..बहुत सुंदर चर्चा लगाई है...

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर है सुशील कुमार जोशी भाई :

    ‘उलूक’ तेरी चादर
    के अंदर सिकौड़ कर
    मोड़ दिये गये पैरों पर
    किसी ने ध्यान
    नहीं देना है
    चादरें अब
    पुरानी हो चुकी हैं
    कभी मंदिर की तरफ
    मुँह अंधेरे निकलेगा
    तो ओढ़ लेना
    गाना भी बजाया
    जा सकता है
    उस समय
    मैली चादर वाला
    ऊपर वाले के पास
    फुरसत हुई तो
    देख ही लेगा
    एक तिरछी
    नजर मारकर
    तब तक बस
    वोट देने की

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर मानवीकरण हुआ इस भावप्रवण उद्बोधन में हमारी हवा पानी और मिट्टी का पारितंत्रों का :

    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए,
    दे रहे हैं हमें शुद्ध-शीतल पवन!
    खिलखिलाता इन्हीं की बदौलत सुमन!!
    रत्न अनमोल हैं ये हमारे लिए।
    जी रहे पेड़-पौधे हमारे लिए।।

    जवाब देंहटाएं
  11. पीत पुहुप कनेर के फले ऐ सखी इस मधुमास !
    धवल भाल पर कर रही अब ‘रश्मि’ मधुहास !१!

    ‘बिरह-जोगिया’ छंद में मन रचे गीत मल्हार !
    कच्ची अम्बियाँ संग अब सतवन के अभिसार !२!

    लोकभाषा की आंचलिक मिठास और स्वाद बेहतरीन दोहावली

    जवाब देंहटाएं
  12. ग़मों की ओड़कर चादर, बहारों को बुलाते हो
    बिना मौसम के धरती पर, नजारों को बुलाते हो

    गगन पर सूर्य का कब्जा, नहीं छायी कहीं बदली
    बड़े नादान हो दिन में, सितारों को बुलाते हो

    नहीं चिट्ठी-नहीं पत्री, नहीं मौसम सुहाना है
    बिना डोली सजाये ही, कहारों को बुलाते हो

    कब्र में पैर लटके हैं, हुए हैं ज़र्द सब पत्ते,
    पुरानी नाव लेकर क्यों, किनारों को बुलाते हो

    कली चटकी नहीं कोई, नहीं है “रूप” का गुलशन
    पड़ी वीरान महफिल में, अशआरों को बुलाते हो
    (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

    सुन्दर सांगीतिक भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  13. भारी पाला दिखा जिधर, उस ओर अचानक जा फिसले,
    माना था जिनको अपना, वो थाली के बैंगन निकले,
    मक्कारों की टोली में, मैदान बदलते देखे हैं।
    धनवानों की झोली में, सामान बदलते देखे हैं।।

    परिवेश प्रधान सशक्त रचना

    जवाब देंहटाएं
  14. bahut sundar sankalan hai ji ye gyaanvardhak bhi hai !! mujh pr to aapka sneh hameshaa hi rahta hai !! dhanywaad !!

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत ही उम्दा लिंक्स ...!
    मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार शास्त्री जी ....!

    RECENT POST - आज चली कुछ ऐसी बातें.

    जवाब देंहटाएं

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