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रविवार, मई 18, 2014

"पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1616)

मित्रों।
रविवार अवकाश का दिन है।
आप आराम से चाय की चुस्कियाँ लेते हुए
मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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भोंपू भाइयों को नमन !!! 

Vishaal Charchchitपरविशाल चर्चित
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माँ तुझे सलाम ! (५) 

   माँ हो वो शख्स होती है जो बच्चों को पहला शब्द बोलना सिखाती है।  जीवन में बड़े होने के साथ साथ जीवन के नैतिक मूल्यों और संस्कारों की नींव डालती है।  तभी तो हम जीवन में अपने व्यक्तित्व को एक अलग रूप दे पाते हैं। कुछ तो होता है उनकी सीख में , उनके समझने के तरीके में कि बच्चा हो   बड़ा उसको ठुकरा नहीं पाता है।  यही वो इंसान है जो सदैव नमनीय होता है।  आज अपनी माँ के साथ संस्मरण प्रस्तुत  कर  रही हैं -- गुंजन श्रीवास्तव 
मेरा सरोकारपर रेखा श्रीवास्तव
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अंततः - - 

तमाम रास्ते पहुँचते हैं वहीँ 
जहाँ से होता है जीवन का उद्भव...
अग्निशिखा :पर शांतनु सान्याल
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बता दो.. शून्य का विष्फ़ोट हूं..!! 

...चलना ही होगा तुमको 

कभी तेज़ कभी मंथर

सहना भी होगा तुमको 

कभी बाहर कभी अंदर

पर 
याद रखो
जो जीता वही तो है सिकंदर 
·        गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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cat
बिल्ली मौसी बिल्ली मौसी, 
क्यों इतना गुस्सा खाती हो। 
कान खड़ेकर बिना वजह ही,  
रूप भयानक दिखलाती हो।। 
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कु़दरत की मस्ती को कायम रहने दो. 
मत बांधो, सारी नदियों को बहने दो. 
आसमान को चाहो तो छू सकते हो 
धरती को अपनी धूरी पर रहने दो... 
मेरा फोटो
देवेन्द्र गौतम
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लोकतंत्र
ब शब्द, वाक्य, बयान, सब पीछे रह गए हैं, 
रह गया है एक सन्नाटा, ...
म्हारा हरियाणा
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हम भोपाली 

पान-गुटका-बीड़ी साथ हमारे
जुबां पर रहती हरदम गाली
         हमसे बढ़ती शान
हम कहलाते हैं भोपाली।
KAVITA RAWAT
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आज दिन चढ़्या..... 
कर्मनाशा
इस बीच ब्लॉग पर लंबा विराम खिंच गया। अब शुरू किया जाय लिखत - पढ़त और पसंदीदा साझेदारी का काम। चलिए , आज सुनते हैं हंसराज हंस की आवाज में शिव कुमार बटालवी का यह गीत......
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अमिया 

बात आम-अमिया की नहीं है, व्यवहार की है, 
अगर चतुरसिंह बड़ा आदमी है 
तो हम भी किसी से कम नहीं है. 
किसी का दिया नहीं खाते है. 
तू देखना अगले साल अपने पेड़ पर भी 
अमिया आ जायेंगी.
जाले

कर लो प्रारम्भ महाभारत, निष्कर्ष बताने बैठा हूँ

तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ। आवारापन मेरे मन का, कुछ और जमीनें पायेगा, 

मर्यादा की जो दरक रही, दीवार हटाने बैठा हूँ। 

सम्बन्धों के क्षण मैंने, हो उन्मादित निर्बाध जिये, 

निश्चिन्त रहो, अब आहुति बन, अस्तित्व लगाने बैठा हूँ। 

12 टिप्‍पणियां:

  1. व्यवस्था में अराजकता और भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों ने परिवर्तन के लिए अपनी आस्था 'कमल' पर भरपूर बताई है.एक नए युग की शुरुआत है.सभी कलमकारों को बधाई है. इस चर्चा में काजल कुमार का बोलता हुआ कार्टून से लेकर मोदी जी को माँ का आशीर्वाद तक सब सुन्दर संयोजन है. शास्त्री जी को अथक प्रयासों के लिए साधुवाद है.

    जवाब देंहटाएं
  2. बढिया सूत्रीय चर्चा , आदरणीय श्री शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सूत्रों की भरमार
    सुंदर चर्चा ले कर
    आया है रविवार
    'उलूक' के सूत्र
    'कुछ भी कह देने वाला कहाँ रुकता है
    उसे आज भी कुछ कहना है '
    को शामिल करने का
    दिल से है आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. चर्चा मंच अपने नित नए रूप में लिंक रहता है। इसके लिए ये बधाई तो बनती है। मेरा लिंक शामिल करने के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. एक बार पुनः सुन्दर संयोजन, सार्थक लेख और रचनाएँ। सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. bahut badhiya sankalan hai ji ye sabhi lekhak mitron ko shubhkaamnayen !!

    जवाब देंहटाएं
  7. जो भी खिला, बट बिना महिला के मकान हिला.....

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढिया रविवारीय चर्चा प्रस्तुति में मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  9. निस्संदेह आपके श्रम को नमन है जिस जीवटता के साथ आप चर्चा मंच को चला रहे हैं अनवरत वो काबिल-ए-तारीफ़ है हम जैसे कितने आये और गये ये आपकी लगन और श्रम ही है जो चर्चा मंच चल रहा है और उसकी अपनी एक पहचान है …………आभार

    जवाब देंहटाएं
  10. बड़िया लिंक्स....मुझे शामिल करने के लिए आभार..

    जवाब देंहटाएं

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