फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, जुलाई 17, 2014

बिन बरसे जा रहा है सावन { चर्चा - 1677 }

आज की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है 

जुलाई का आधा महीना बीत गया है, धरती बारिश को तरस गई है । आँखें बादलों को देखते-देखते तक गई हैं लेकिन अभी तक कोई संभावना नहीं दिख रही, हाँ इधर-उधर से बारिश के समाचार आ रहे हैं लेकिन लगता नहीं कि  सावन आ चुका है , बिन बरसे जा रहा है सावन । 


13 टिप्‍पणियां:

  1. दिलबाग द्वारा सुंदर सूत्रों के साथ पेश आज की गुरुवारीय चर्चा । 'उलूक' आभारी है सूत्र 'ध्यान हटाना भी कभी जरूरी होता है' को स्थान देने पर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    पर्याप्त लिंक्स पढ़ने के लिए |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत इसमें चर्चाओं का है अम्बार।
    आपने शामिल किया मुझको अतः आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. आज दिलबाग विर्क जी का संकलन बहुत सामयिक लगा. “बिन बरसे जा रहा है सावन....” शीर्षक बहुत पसंद आया. साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  5. आभार आदरणीय दिलबाग सर।
    आपकी नियमितता कभी भंग नहीं होती है।
    कम से कम बुध और बृहस्तपतिवार का दिन तो ऐसा है कि मैं आराम से बाहर भी जा सकता हूँ और रात को वापिस आकर चैन की नींद सो सकता हूँ।
    --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय गुरु जी-
      छोटी बेटी स्वस्ति-मेधा का एडमिशन (M Tech IIT Gandhinagar ) हुआ है-
      १९ को गांधीनगर जा रहा हूँ-
      २८ तक की छुट्टी ली है ब्लॉग से भी -
      सादर

      हटाएं
  6. सुन्दर चर्चा-
    आभार भाई दिलबाग जी -

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया प्रस्तुति व सूत्र , आ. विर्क साहब , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .... आभार !

    जवाब देंहटाएं
  9. सर्वर्स संपन्न इस चर्चा के लिए साधुवाद ! मेरी रचना इस मँच पर प्रकाशनार्थ धन्यवाद !!

    जवाब देंहटाएं
  10. दिलबाग विर्क जी,बहुत बढ़िया चर्चा,मेरी रचना इस मँच पर आपने शामिल किया आभार, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।