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शनिवार, जुलाई 19, 2014

"संस्कृत का विरोध संस्कृत के देश में" (चर्चा मंच-1679)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में मेरी पसंद के लिंक देखिए।
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स्कूल में धंधा

प्रेमपाल शर्मा
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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तेरा घर और मेरा जंगल 

भीगता है साथ-साथ 

साहेब सुबह कब की हो गयी 
आज का कॉलेजवा नहीं जावोगे।  
दूध वाला बाहर चिल्ला रहा था 
और मैं अभी तय नहीं कर पा रहा था कि 
जो देख सुन रहा वो ख्वाब है या जो देखा वो...
मेरा फोटो
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भारत दुर्दिन झेल, भाग्य का तू तो मारा- 

IIT-Ghandhi-Nagar के प्रवास पर,२८ को वापसी 
नारायणी दरिद्रता, अच्छे दिन की चाह ।
कंगाली कर बैठती, आटा गीला आह... 
"लिंक-लिक्खाड़"
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर -
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मेहरबाँ कैसे-कैसे 

“नमस्कार। फिर आइएगा।
(वे थोड़ी ही देर पहले गए हैं। कुछ काम से आए थे। मेरी टेबल पर रखे कागजों को उलटना-पलटना और खोद-खोद कर पूछताछ करना उनकी आदत है। इसी के चलते उन्हें एक सूची नजर आ गई। उसके बाद जो हुआ, वही आपने पढ़ा। इस चक्कर में वही काम भूल गए जिसके लिए आए थे।)
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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अज़ीज़ जौनपुरी : 

समझ हुजूम लोग मेरे साथ चलते क्यों है 

खौफ़  इस कदर  है तो  लोग घर से  निकलते क्यों है 
मैं  बेवफ़ा  ही सही  लोग आखिर  मुझपे मरते क्यों हैं 

 ज़ुल्म ढाया है  वक्त ने ,  के ता-उम्र मैं  तनहा ही रहा 
लोग  समझ  हुजूम  मुझको  मेरे साथ  चलते क्यों है ...
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वृष्टि 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar 
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सदियों से बिछुड़ी रूहें हम, 
जाने आज ये क्यूँ उदास हैं 
सागर सा रिश्ता था कभी, 
नदिया सा फिर क्यूँ बंट गया,
कोई ज़ख्म भी था मिला नहीं.. 

क्यूँ दर्द का अहसास है... 
MaiN Our Meri Tanhayii
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झरीं नीम की पत्तियाँ 
(दोहा-गीतों पर एक काव्य) 
(4) 
राष्ट्र-वन्दना 
(ख) 
तुम माता-तुम ही पिता ! 
सच कहता हूँ, नहीं है, मिथ्या इस में ‘लेश’ ! 
तुम ‘माता’,तुम ही ‘पिता’, हे मेरे ‘प्रिय देश’...

साहित्य प्रसून
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बरखा की रुत तुम भूल न जाना... 
 बरखा की रुत तुम भूल न जाना, सजना अब आ जाना,
आज बदरिया झूम के बरसी, संग सावन पींग झुलाना।।
बूंद बूंद से घट भर जाए
ताल तलैया भी हरसाए
जाग के नींद से कलियाँ
भँवरों को समीप बुलाएँ
बरखा रानी झम्मके बरसो, वन-उपवन का मन हरसाना,
उमड़ घुमड़ के ऐसे बरसो, धरती की तुम प्यास बुझाना... 
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अच्छा लगता है 
बनाम अच्छा नहीं लगता -  
 दोस्तो, आज पहली बार युग्म मे 
रचना प्रकाशित कर रहा हूँ , 
दोनों रचना एक ही सिक्के के दोनों पहलू है। 
आप अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से कृतार्थ करें...

मधुलेश पाण्डेय ‘निल्को’ -
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मन भटका  
पल में दानव बनता
पल मे देव बनता 
मानव शायद इंसान बनने की 
जद्दोजहद में लगा है......
        क्या सिर्फ मैं ही ऐसा सोचती हूँ!! 
पता नहीं आप क्या सोचते हैं...  
मन भटका
 जन्मी वहशी सोचें
राह मिले न । 
त्रिवेणी
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दरिंदे : एक नश्ल 

...क्या
तुमने कभी 
देखा है,
दो पैरों वाले 
बहशी जानवर को...
( जानवर शब्द के प्रयोग से  
जानवर जाति का अपमान है )
अन्तर्गगन पर धीरेन्द्र अस्थाना
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
‘‘अ‘’
‘‘अ‘’ से अल्पज्ञ सब, ओम् सर्वज्ञ है।
ओम् का जाप, सबसे बड़ा यज्ञ है।।
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‘‘आ’’
‘‘आ’’ से आदि न जिसका, कोई अन्त है।
सारी दुनिया का आराध्य, वह सन्त है...
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बहुत समय है फालतू का 

उसे ही ठिकाने लगा रहे हैं 

आप क्यों अपने
रोज ही रास्ते
बदल देते हो
आया जाया करो
देखा दिखाया करो
तबियत बहल जाती है... 
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी 
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"खोलो तो मुख का वातायन" 

वाणी से खिलता है उपवन
स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन
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शब्दों को मन में उपजाओ
फिर इनसे कुछ वाक्य बनो
सन्देशों से खिलता गुलशन
स्वर व्यञ्जन ही तो है जीवन...

15 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई मयंक जी
    संस्कृत की संस्कृति को नष्ट करने में
    हम सबका योगदान भी कम नहीं न है
    हम ही अपने बच्चों को संस्कृत का ज्ञान नही दे रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  2. चर्चा ने महका दिया,तन-मन जैसे इत्र।
    मुझको भी शामिल किया,धन्यवाद ऐ मित्र।।.

    जवाब देंहटाएं
  3. यशोदा जी की बात से सहमत । शनिवारीय सुंदर चर्चा । 'उलूक' के सूत्र 'बहुत समय है फालतू का
    उसे ही ठिकाने लगा रहे हैं' को स्थान देने के लिये आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया बेहतरीन प्रस्तुति व लिंक्स , आ. शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
    I.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

    जवाब देंहटाएं
  5. हमेशा की तरह बढ़िया चर्चा ... पठनीय लिंक मिले
    मेरे ब्लॉग समयचक्र की पोस्ट को शामिल करने के लिए आभारी हूँ

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक आज I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन प्रस्तुति, मेरे ब्लॉग की पोस्ट (अच्छा लगता है बनाम अच्छा नहीं लगता - मधुलेश पाण्डेय ‘निल्को’) को शामिल करने के लिए आभारी हूँ
    http://vmwteam.blogspot.in/2014/07/blog-post_15.html

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन लिंकों के साथ बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतिकरण, आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  9. सुन्दर चर्चा-
    आज अहमदाबाद निकल रहा हूँ-
    आभार आदरणीय-

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन लिंकों में मेरे भी रचना का समावेश ,आपको धन्यवाद सर

    जवाब देंहटाएं
  11. अति गंभीर विषयों पर आज की चर्चा सराहनीय ! मेरी रचना को इस में सम्मिलित करने हेतु धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं

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