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शुक्रवार, अगस्त 01, 2014

"हिन्दी मेरी पहचान" (चर्चा मंच-1692)

अगस्त महीने के पहली चर्चा में मैं राजेन्द्र कुमार आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। 
माननीय शास्त्री जी के परम पूज्य पिताजी
 के आत्मा की शान्ति एवं सदगति के लिए
आज दिनांक 01-08 2014 को
प्रातः 10 बजे यज्ञ (हवन)
और 12 बजे से एक बजे तक
श्रद्धाञ्जलि का कार्यक्रम
आयोजित किया गया है।
ईश्वर महान आत्मा को 
शान्ति प्रदान करें। 
ॐ 
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आज राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 133वीं जयंती है। पुरूषोत्तम दास टंडन (१ अगस्त १८८२ - १ जुलाई, १९६२) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी थे। हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करवाने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। वे भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता तो थे ही, समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। हिन्दी को भारत की राजभाषा का स्थान दिलवाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान किया।वे हिन्दी को देश की आजादी के पहले आजादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आजादी मिलने के बाद आजादी को बनाये रखने का। टण्डन जी का राजनीति में प्रवेश हिन्दी प्रेम के कारण ही हुआ।महात्मा गांधी और नेहरू राष्ट्रभाषा के नाम पर हिंदी-उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा के पक्षधर थे, जिसे देवनागरी और फारसी दोनों लिपि में लिखा जा सके, लेकिन टंडन इस मामले में हिंदी और देवनागरी लिपि का समर्थन करते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में कामयाब रहे । मातृभाषा हिंदी के इस परम पक्षधर को उनकी जयन्ती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ ।
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राजीव कुमार झा
कोई मीठी सी धुन,कोई दिल को छू लेने वाला संगीत,कोई कथानक कब दिल के किसी कोने में बस जाता है,पता नहीं चलता.हमारे मस्तिष्क के असंख्य कोशों में न जाने कितनी यादें छुपी रहती हैं.यदा-कदा इन्हीं स्मृति कोशों से झांकती पुरानी यादें टीस भी दे जाती हैं तो सुखद अहसास भी करा जाती हैं.
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समीर लाल
दूर बहुत दूर
मगर मेरे दिल के आस पास
कई दरियाओं के पार
मेरी यादों में बसा
वो शहर रहता है..
जयकृष्ण राय तुषार
मन्दिर -
मस्जिद 
कब तक हमें लड़ायेंगे |
बोलो 
दिल्ली कब 
अच्छे दिन आयेंगे ?
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संध्या शर्मा
करती हूँ अभिनय 
आती हूँ रंगमंच पर प्रतिदिन
भूमिका पूरी नहीं होती
हर बार ओढ़ती हूँ नया चरित्र
सजाती, संवारती हूँ
गढ़ती हूँ खुद को
रम जाती हूँ रज कर
कि खो जाये "मुझमे"
"मैं" कहीं....
राजेश कुमारी 
वृक्ष पीपल का खड़ा है, आज भी उस गाँव में
बचपना मैंने गुजारा, था उसी की छाँव में 
तीज में झूला झुलाती,गुदगुदाती मस्तियाँ 
गीत सावन के सुनाती ,सरसराती पत्तियाँ
ज्योति देहलीवाल
दि. 30 जुलाई 14 को दैनिक भास्कर में एक बहुत, बहुत अच्छी खबर पढ़ी। इतनी अच्छी की मन कह रहा है सबको सुनाऊ। लेकिन क्या करू? मैं एक गृहिणी हूं, एक आम इंसान! मेरी आवाज कितने लोगों तक पहुंचेंगी? भला हो इंटरनेट का,
प्रतिभा कटियार 
ये कौन चित्रकार है जिसने समूची धरती को हरे रंग में रंग दिया है। चारों तरफ हरा ही हरा। कम हरा, ज्यादा हरा...गाढ़ा हरा, हल्का हर. बस कि हरा ही हरा... हरे दरवाजे...हरी खिड़कियां... हरी दीवारें...हरे रास्ते...हरी मुस्कुराहटें...
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देवमणि पाण्डेय 
नाच रही हैं छत पर बूँदें पुरवा ने दी ताल
सावन आया गाँव में सबका पूछ रहा है हाल 

मेढक मिलकर बिरहा गाते कोयल कजरी गाए
दुबक के बैठी है गोरैया कौवा शोर मचाए
दादी को लगती है बारिश अब जी का जंजाल
सावन आया गाँव में सबका पूछ रहा है हाल
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आशा सक्सेना 
मुडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की थाली सजाओ
किसी को आना ही है
मन मेरा कहता |
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ट्रैफिक नियम [दोहावली]

सरिता भाटिया 

दायें बायें देख के, खुद को कर तैयार 
राह सुरक्षित हो तभी, करना उसको पार ||

सड़क सुरक्षा के लिए, नियमों का कर ध्यान 
राह बनेगी तब सरल और मिलेगा मान ||
यशोदा अग्रवाल 
अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने
मैंने भी झूठ कह दिया झूठों के सामने 

एक पट्टी बाँध रक्खी है मुंसिफ ने आँख पर
चिल्लाते हुए गूंगे हैं बहरों के सामने
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अनीता जी  
जिसे इच्छा होती है, सुख-दुःख का अनुभव होता है, जो द्वेष करता है और सदा कुछ न कुछ पाने, करने या जानने के लिए प्रयत्नशील है वही मन है. जिसे कुछ पाना नहीं, जानना नहीं जो द्वेष से मुक्त है और सुख-दुःख से असंग है वही आत्मा है.
मिश्रा राहुल 
काफी पहले की बात है काफी छोटा था मैं। सुबह अभी-अभी जागी थी। चारो तरफ लोग मधुर बेला का मज़ा ले रहे थे। लोग व्यस्त थे अपने में ही। मैं अभी चाय की प्याली लेकर 
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सुरेश स्वप्निल 
दोस्ती में वफ़ा ज़रूरी है
ख़्वाहिशों की ख़ता ज़रूरी है

चोर दिल के हों या निगाहों के
मुजरिमों को सज़ा ज़रूरी है

मानी-ए-ज़िंदगी समझने को
मुफ़लिसी का मज़ा ज़रूरी है
हर्षवर्धन त्रिपाठी 
ये बड़े काबिल अधिकारी हैं। नाम है Srivats Krishna ये कर्नाटक कैडर के IAS अधिकारी हैं। 1995 बैच के टॉपर हैं। इनका मत है कि अंग्रेजी न जानने वाले को देश में आईएएस बनना ही नहीं चाहिए। अंग्रेजी का देश का सबसे बड़ा अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया इनकी इस सोच को संपादकीय में जगह देता है। ये हिन्दी वाले आईएएस जो जाने कितने सालों तक टॉपर रहे होंगे, काबिल भी होंगे। कहां मरे बैठे हैं। या फिर हिन्दी, अंग्रेजी का कोई अखबार हिन्दी के काबिल आईएएस अधिकारी का मत अपने संपादकीय पन्ने पर छापने से बचते हैं। श्रीवत्स कृष्ण अकसर टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए संपादकीय लिखते हैं।
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रेखा जोशी

चोका [सावन ]

घटायें काली
पानी बरसा जाती
बरखा आई
झूले पर सखियाँ
बोले पपीहा
छा गई हरियाली
मोर नाचता
भीगती चुनरिया
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9 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति व लिंक्स , आ. राजेन्द्र भाई , शास्त्री जी व मंच को धन्यवाद !
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  2. सुंदर संयोजन सूत्रों का |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |श्री शास्त्री जी के पूज्य पिता
    जी को नमन और श्रद्धांजलि |

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  3. सुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. राजेंद्र जी, सूत्रों का सुंदर संयोजन. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद | श्री शास्त्री जी के पूज्य पिता जी को नमन और श्रद्धांजलि |

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  5. आ० शास्त्री जी के पिता श्री को विनम्र श्रद्धांजली .

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  6. बढ़िया लिंक्स
    सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

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  7. हिंदी के पक्षधर राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की पुण्य स्मृति को नमन ! सुंदर चर्चा के लिए बधाई व आभार राजेन्द्र जी.

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  8. खूबसुरतसूत्रों का समूह ,सुन्दर

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  9. सुम्दर संयोजन के लिये धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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