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सोमवार, अगस्त 04, 2014

"आवाज़ मौन की तेरे लिए" { चर्चामंच - 1695 }

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नमस्कार प्रिय ब्लॉगर मित्रों , चर्चामंच के इस अंक में मैं आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ , व हम सबके लिए अच्छाई व सफल मार्ग के लिए ईश्वर से कामना करता हूँ , क्योंकि -
हर स्थिति को ईश्वर का वरदान तथा आशीर्वाद समझो , आने वाली हर स्तिथि ,तुम्हे शक्ति देने वाली बन जायेगी !

                                                 ~ दिव्य शक्ति माँ श्रद्धेया जी ~
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- अब बढ़ते हैं लिंक्स की ओर -
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आवाज़ मौन की - आ. कैलाश शर्मा जी की प्रस्तुति


जीवन के अकेलेपन में     
और भी गहन हो जाती
संवेदनशीलता,
होता कभी अहसास
घर के सूनेपन में
किसी के साथ होने का,
शायद होता हो अस्तित्व
सूनेपन का भी

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My Photo

माँ का रहा, दुलारा मन !
उन आँखों का तारा मन !

कितनी मायूसी में सोया 
उनके बिन बेचारा मन !

चंदा सूरज से लड़ आया
ऐसे कभी न हारा मन !

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यूँ तो सब रिश्ते
खुदा की दें हैं
एक दोस्त ही हम
अपने अनुरूप चुनते हैं

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प्रेम-पाती - श्री मधुरेश जी की प्रस्तुति 


मन की अवनि पर धूप खिला,
नव जीवन को आधार मिला,
बीता तम घन, बीती रातें,
जब प्रीत मिला, मनमीत मिला।

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मेरा फोटो

महाराष्ट्र में पुणे जिले के मालन गाँव में प्राकृतिक आपदा आई है | इस प्रलय में ७१ लोग मारे गए ,१०० से ज्यादा लोगों की मलवे में दबे होने की आशंका है | ८ लोगो को बचा लिया गया है| टी वी चनेलो में ,समाचार पत्रों में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह महादेव का प्रकोप है |

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मन की चाह - आ. श्री आशा सक्सेना जी की प्रस्तुति


मन क्या चाहता 
व्यक्त न कर पाता 
अपलक निहारता रहता 
क्रम सृष्टि का निश्चित
सुबह होते ही जीवन में रवानी
धीरे धीरे रफ्तार बढ़ना

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स्पृहा सदा सताती मन को
बढ़ जाता तब उर का स्पंदन,
सदानीरा सी मन की धारा
कभी न लेने देती रंजन !

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रिश्तों की बुनियाद पुरानी हो न हो
यादों की बुनियाद डालनी इनसे सीखो

महफिल में अपना कोई हो न हो
बातों से अपना बनाना इनसे सीखो

फूलों का गुलदस्ता हाथों में हो न हो
प्यार जताना इनसे सीखो

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हाँ मैं जिन्दगी हूँ...                                    
तुम्हे जीना सीखा दूंगी.....
घुल गयी जो..
तुम्हारी सांसो में तो....यक़ीनन..
तुम्हारी सांसो को महका दूंगी.....
हाँ मैं जिन्दगी हूँ.....
तुम्हे जीना सीखा दूंगी.....!

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भीगा सावन - श्री सुमन कपूर जी की प्रस्तुति



भीगा भीगा सा है मौसम
भीगी भीगी सी रुत बहार है
भीगा भीगा सा है 'मन' मेरा
भीगी भीगी सी सावन की फुहार है !!

~ अर्पित 'सुमन' ~
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तेरे लिए - श्री स्मिता सिंह जी की प्रस्तुति



तेरे साथ हमकदम थे, तेरे लिए सनम थे
तुझसे थी मेरी हस्ती, तेरे बिना ना हम थे

तेरे साथ ही चले हम, तेरे लिए ठहर गए
दिल में कसक लिए हम बेसाख्ता बिखर गए

कहते थे तेरा जाना जाएगा, जाएगा भूल दिल ये
तूं दूर हो भले ही, तेरी याद में संवर गए

~ बेपरवाह लहरें ~
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वक़्त को आज़मा के देखो तो ... - आ. श्री दिगंबर नसवा जी की प्रस्तुति

मेरा फोटो

दर्द में मुस्कुरा के देखो तो
गीत खुशियों के गा के देखो तो

जीत लोगे तमाम दुनिया तुम
दाव खुद पे लगा के देखो तो

हौंसला है तो साथ देता है
वक़्त को आज़मा के देखो तो

~ स्वप्न मेरे ~
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ब्लॉग पोस्ट में लिंक डाले जो अपने आप खुलेगा - श्री मोती जी की प्रस्तुति

http://www.semrush.com/blog/wp-content/uploads/2013/05/Anchor-text.jpg

आज हम आपको Anchor Text के बारे मे बताते है । Anchor Text उस highlite लिंक को कहते है जिसे हम किसी शब्द के पीछे छुपा देते है जिसे क्लिक करने से हम एक निर्धारित जगह पहुच जाते है ।

~ Hindi gk ~
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मेरा व हम सबका जानकारियों का ब्लॉग - I.A.S.I.H - ब्लॉग

Information and solutions in Hindi

वैसे मेरे तीन ब्लॉग हैं , लेकिन इस ब्लॉग की बात कुछ अलग है क्योंकि ये हिंदी जानकारी व समाधान को समर्पित है - आपसे भी अनुरोध है की हो सके तो इस ब्लॉग के सदस्य बनकर हिंदी जानकारियों के प्रसार में मेरी मदद करें , और अगर आप हमारे ब्लॉग की तरफ से हिंदी कहानियाँ व जानकारी आदि लिख सकते हैं तो आपका स्वागत है , आप सभी को बहुत-बहुत प्यार और धन्यवाद !

~ Information and solutions in Hindi ~
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फूँक-फूँक चलती न जवानी - श्री मधु सिंह जी की प्रस्तुति

मेरा फोटो

जब गिर- गिर दहाड़ते   शैल-श्रिंग  भूचाल  धरा पर आता है
पड़  गए   जिधर  दो   डग  पग  ज्वाल   विवर  फट  जाता है

फूँक-  फूँक  चलती  न  जवानी *  झंझा  तूफानों  से बचकर
जब   साहस  अपनी  ऊँगली   पर  पौरुष  का    भार उठता है

~ Benakab ~
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चित्र देख कर हाइकु ...... कितना सार्थक नहीं जानती - आ. श्री विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति



1

शिशु तोषित
मिली त्रासक मुक्ति
माँ से पोषित।

2

जी बेखटक
झूमे नाचे व गाये
माँ गोद मिले।

3

जी निष्कंटक
अमृत डोर बँधी
आँचल तले।

~ सोच का सृजन ~
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"पिता जी और मैं" संस्मरण शृंखला-1 ( आ. डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी की प्रस्तुति)

संस्मरण शृंखला भाग-1
"पिता जी और मैं"
बचपन मेरा खो गयाहुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझेकरने हैं सब काज।।
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जब तक मेरे शीश पररहा आपका हाथ।
लेकिन अब आशीष काछूट गया है साथ।।
--
       बात लगभग 50 वर्ष पुरानी है। मेरे मामा जी आर्य समाज के अनुयायी थे। उनके मन में एक ही लगन थी कि परिवार के सभी बच्चें पढ़-लिख जायें और उनमें आर्य समाज के संस्कार भी आ जायें। बिल्कुल यही विचारधारा मेरे पूज्य पिता जी की भी थी।
     मेरी माता जी अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और मैं अपने घर का तो इकलौता पुत्र था ही साथ ही ननिहाल का भी दुलारा था। इसलिए मामाजी का निशाना भी मैं ही बना। अतः उन्होंने मेरी माता जी और नानी जी अपनी बातों से सन्तुष्ट कर दिया और मुझको गुरूकुल महाविद्यालयज्वालापुर (हरद्वार) में दाखिल करा दिया गया।
       रूकुल का जीवन बिल्कुल भी अच्छा नही लगता था। मैं कक्षा में न जाने के लिए अक्सर नये-नये बहाने ढूँढ ही लेता था और गुरूकुल के संरक्षक से अवकाश माँग लेता था।
        उस समय मेरी बाल-बुद्धि थी और मुझे ज्यादा बीमारियों के नाम भी याद नही थे। एक दो बार तो गुरू जी से ज्वर आदि का बहाना बना कर छुट्टी ले ली। परन्तु हर रोज एक ही बहाना तो बनाया नही जा सकता था। अगले दिन भी कक्षा में जाने का मन नही हुआमैंने गुरू जी से कहा कि-‘‘गुरू जी मैं बीमार हूँमुझे प्रसूत रोग हुआ है।’’ गुरू जी चौंके - हँसे भी बहुत और मेरी जम कर मार लगाई।
         अब तो मैंने निश्चय कर ही लिया कि मुझे गुरूकुल में नही रहना है। अगले दिन रात के अन्तिम पहर में 4 बजे जैसे ही उठने की घण्टी लगी। मैंने शौच जाने के लिए अपना लोटा उठाया और रेल की पटरी-पटरी स्टेशन की ओर बढ़ने लगा। रास्ते में एक झाड़ी में लोटा भी छिपा दिया।
         3 कि.मी. तक पैदल चल कर ज्वालापुर स्टेशन पर पहँचा तो देखा कि रेलगाड़ी खड़ी है। मैं उसमें चढ़ गया। 2 घण्टे बाद जैसे ही नजीबाबाद स्टेशन आया मैं रेलगाड़ी से उतर गया और सुबह आठ बजे अपने घर आ गया। मुझे देखकर मेरी छोटी बहन बहुत खुश हुई। उस समय पिता जी कहीं गये हुए थे। एक घंटा बाद जब वो घर पहुँचे।
          पिता जी के घर आते ही माता जी ने कहा कि रूपचन्द कहाँ हैतो पिता जी ने कहा कि उसे तो गुरूकुल में छोड़ आया हूँ। मैं 2 घँटा उसके साथ भी रहा था। आश्रम के संरक्षक से भी बातें हुईं थीं और उन्होंने कहा था कि अब ब्रह्मचारी का मन एकाग्र हो गया है। अब वह गुरूकुल से नहीं भागेगा।
         इस बात को सुन कर माता जी हँसने लगीं और मुझे पिता जी के सामने पेश कर दिया। बस अब तो मेरी शामत आ गयी और पिता जी पतली सण्टी से मेरी पिटायी करने लगे। 2-3 सण्टी ही मुझे लगी थी कि माता जी ने मुझे बचा लिया। पिता जी ने तब मुझे पहली बार सजा दी थी। लेकिन इस सजा में भी उनका प्रेम ही झलकता था। क्योंकि मैं उनका इकलौता पुत्र था और वो मुझे योग्य बनाना चाहते थे।
         माता जी ने पिता जी के सामने तो मुझ पर बहुत गुस्सा किया। लेकिन बाद में मुझे बहुत प्यार किया।
यही थी मेरी गुरूकुल यात्रा।


~ उच्चारण ~
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अब आप सबसे आज्ञा _/\_ चाहता हूँ , ईश्वर की कृपा से अगर सही सलामत रहा तो अगले सोमवार , एक बार फिर से --- मंच पर मिलूंगा कुछ नवीन रचनाओं के साथ , तबतक के लिए मंच व मेरी तरफ से आप सबको धन्यवाद !

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    सुन्दर सूत्रों से सजा आज का चर्चा मंच
    मेरी रचना शामिल देख मन हुआ प्रसन्न |

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  2. आपका आभार आशीष भाई।
    --
    सुप्रभात मित्रों।
    --
    पूज्य पिता जी की अस्थियाँ आज हरिद्वार में गंगाजी में प्रवाहित कर दीं।
    1 अगस्त को शान्तियज्ञ पूर्ण हो गया था। रस्मपगड़ी और ब्रह्मभोज भी 1 अगस्त को ही सम्पन्न हो गया था।
    --
    मैं हरिद्वार में हूँ। मंगलवार और बुधवार की चर्चा आदरणीय रविकर जी प्रस्तुत करेंगे। उनका भी अग्रिम आभार।

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  3. सुन्दर सूत्र ! वृहद् चर्चा !

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  4. आज की चर्चा के सभी सूत्र लाजवाब ...
    आभार मेरी ग़ज़ल को स्थान देने का ...

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  5. बहुत बढ़िया लगे सभी लिंक्स ..कुछ नए ब्लोगेर्स को जानने का मौका मिला |
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार | :)

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  6. बहुत ख़ूबसूरत लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार..

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  7. उत्तम चर्चा..बहुत बहुत आभार !

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  8. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .......आभार!

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह ! बहुत ही बढ़िया चर्चा प्रस्तुति .......आभार!

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  10. बहुत ही बढ़िया चर्चा प्रस्तुति,सभी सूत्र लाजवाब,आभार!

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  11. बहुत ही खुबसूरत लिनक्स दिए है आपने....मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार

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