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शुक्रवार, अगस्त 08, 2014

"बेटी है अनमोल"(चर्चा मंच 1699)

आज के शुक्रवारीय चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है। 
शिक्षा और संपन्नता भले ही समाज के विकास के आधार माने जाते हों लेकिन पढ़े लिखे समाज में भी लिंग भेद को महत्व दिया जा रहा है। बेटियां बचाने के लिए आज जन आंदोलन की जरूरत है।लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या में और गिरावट आने पर कई प्रकार की समस्याएं पैदा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।जिस देश में नारी की पूजा करनी परंपरा हो उसी देश में महिलाओं की संख्या में गिरावट आए तो इसके लिए जन जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक हो ही जाता है। बेटियां कभी बोझ नहीं होती हैं और जो लोग ऐसा सोचते हैं वो गलत हैं, ऐसे लोगों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है और उन्हें लड़की को बोझ नहीं समझना चाहिए।

प्रस्तुत है शिल्पा भारतीय की कुछ पंक्तियाँ……
सदियों से बेटों की चाहत में 
कोख में ही मिटती रही है बेटियाँ 
धन-दौलत के लालच में 
दहेज की वेदियो पर जलती रही है बेटियाँ 
हवस की आग में अंधे गुनाह करते है दरिंदे 
और जमाने भर में दंड सहती रही है बेटियाँ 
रखती है वो दो कुलों का मान भी सम्मान भी 
और मान-सम्मान के नाम पर 
क़त्ल भी होती रही है बेटियाँ
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विजय लक्ष्मी 
"माँ सच कहना क्या बोझ हूँ मैं 
इस दुनिया की गंदी सोच हूँ मैं 
क्या मेरे मरने से दुनिया तर जाएगी 
सच कहना या मेरे आने ज्यादा भर जाएगी
क्यूँ साँसो का अधिकार मुझसे छीन रहे हो 
मुझको कंकर जैसे थाली का कोख से बीन रहे हो 
क्या मेरे आने से सब भूखो मर जायेंगे 
या दुनिया की हर दौलत हडप कर जायेंगे 
पूछ जरा पुरुष से ,
"उसके पौरुष की परिभाषा क्या है "
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राजीव कुमार झा 
किसी लेखक ने ठीक ही कहा है कि हम सभी दुनियां के रंगमंच पर अपनी भूमिका ही तो निभा रहे होते हैं,किसी की भूमिका अल्प तो किसी की दीर्घ होती है.
विश्वभारती में मेरा यह दूसरा साल था.ग्रीष्मावकाश में जर्मन की कक्षाओं के लिए मुझे भारतीय विद्या भवन की तरफ से भेजा गया था.शौकिया तौर पर जर्मन भाषा में किया स्नातकोत्तर डिप्लोमा मुझे विश्वभारती की ओर ले जाएगा,यह सोचा न था.अमूमन गर्मी की छुट्टियों में कैम्पस खाली हो जाता था
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
मुलायम सिंह के उत्तर प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा घट रहा है जो भारत राष्ट्र के लिए खतरनाक है ,उनके शासन काल में पिछले दिनों निरंतर हिदु -मुस्लिम दंगे हुए हैं। विशेषकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश इस समय नफरत की ज्वालाओं में जल रहा है। शासन अखिलेश यादव का और सिक्का नेताजी कहलाने वाले मुलायम सिंह का।
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अनीता जी 
हमारा तन वेदिका है. प्राणों को हम भोजन की आहुति देते हैं. प्राणाग्नि बनी रहे, देह दर्शनीय रहे, पवित्र रहे इसलिए सात्विक और अल्प आहार ही लेना है. इंद्र हाथ का देव है, सो कर्म भी ऐसे हों जो भाव को शुद्ध करें. मुख के देव अग्नि हैं, अतः वाणी भी शुभ हो. अतियों का निवारण ही योग है. योग से मन प्रसन्न रहता है और भीतर ऐसा प्रेम प्रकटता है जो शरण में ले जाता है. सन्त हमें जगाते हैं
मीना पाठक 
सावन (श्रावण) उत्सवों का माह है और इसी श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। ये भाई-बहनों के प्रेम को समर्पित त्यौहार है इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं पर इस त्यौहार का सम्बन्ध सिर्फ भाई-बहन से ही नहीं है | जो भी हमारी रक्षा करता है या कर सकता है उसे हम राखी बाँधते हैं जैसे अपने पिता, पड़ोसी, हमारे सैनिक भाई और किसी राजनेता को भी राखी बांध सकते हैं |
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
जिसमें हों व्यञ्जन भरे, वही व्यञ्जना मित्र।
बन जाते हैं इन्हीं से, शब्दों के कुछ चित्र।।
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दिल से निकले भाव ही, देते हैं उल्लास।
बेमन से उपजा स्रजन, बन जाता उपहास।।
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सावन में अच्छे लगें, छींटे औ’ बौछार।
लेकिन सर्दी में यही, देते कष्ट अपार।।
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रविकर जी 
लोटे जनता भूमि पर, हँसते दहशतगर्द |
देखे राह कराह के, बच्चे औरत मर्द |

बच्चे औरत मर्द, शर्तिया सर्द युद्ध है |
हैं जालिम बेदर्द, कालिका महाक्रुद्ध है |

भोगे भारत श्राप, कलेजा टोटे टोटे |
हर लोटे में मिर्च, शौच के रविकर लोटे ||
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मोनिका शर्मा 
कुछ समय पहले एक पढ़े लिखे प्रोफेसर साहब का अपनी पत्नी को सड़क पर घसीट कर मारना -पीटना समाचार चैनलों की सुर्ख़ियों में रहा । कारण था घर के भीतर बैठी प्रेमिका । कल एक और ऐसा ही समाचार इन चैनलों पर दिखा जिसमेँ एक पत्नी ने पति की प्रेमिका को भरे बाजार पीटा । इस मामले में पत्नी ने अपने पति से रिश्ता रखने वाली महिला को सज़ा दी । पहले वाले केस में पति ने दूसरा रिश्ता रखा और खुद ही पत्नी को इसकी सज़ा भी दे दी। दोनों परिस्थतियां कमोबेश एक सी हैं पर सज़ा महिला को ही मिली । इन दोनों ही मामलों में भरी भीड़ के सामने एक स्त्री की अस्मिता ही दाव पर लगी ।
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वन्दना गुप्ता 
ज़िन्दगी में किसी का भी अनावश्यक हस्तक्षेप नागवार गुजरता है , सबकी एक निजी ज़िन्दगी होती है जिसे वो अपने हिसाब से जीना चाहता है । संबंधों की जटिलता से हर कोई जूझता है तो क्या जरूरी है उसमें अनावश्यक हस्तक्षेप ?
कविता रावत 
हमारी भारतीय संस्कृति में अलग-अलग प्रकार के धर्म, जाति, रीति, पद्धति, बोली, पहनावा, रहन-सहन के लोगों के अपने-अपने उत्सव, पर्व, त्यौहार हैं, जिन्हें वर्ष भर बड़े धूमधाम से मनाये जाने की सुदीर्घ परम्परा है। ये उत्सव, त्यौहार, पर्वादि हमारी भारतीय संस्कृति की अनेकता में एकता की अनूठी पहचान कराते हैं। रथ यात्राएं हो या ताजिए या फिर किसी महापुरुष की जयंती, मन्दिर-दर्शन हो या कुंभ-अर्द्धकुम्भ या स्थानीय मेला या फिर कोई तीज-त्यौहार जैसे- रक्षाबंधन,
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प्रवीण मलिक 
" यही प्रण लेना और देना , 
राखी का मान-सम्मान बढ़ाना"
प्रेम के धागे 
शायद कच्चे हो गये 
या फिर अपना 
महत्व खोने लगे हैं
एक डोरी में बंधा 
प्रेम-विश्वास, दुआयें और सम्मान
कहीं न कहीं कमजोर हो रहा है
आधुनिक वैज्ञानिक यह मानते हैं कि सृष्टि की उत्पत्ति बिग-बैंग से हुई है। महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory) के अनुसार लगभग 14 अरब वर्ष पूर्व एक विचित्रबिंदु (सिंगुलैरिटी) के महाविस्फोट से अंतरिक्ष, ऊर्जा, मूलकण और हिग्स-बोसोन जैसे कणों की उत्पत्ति के साथ ब्रह्मांड का सृजन हुआ, जो आज तक फैल रहा है। लेकिन इसके विपरीत कुछ आलोचक हैं जो बराबर यह बात उठाते रहे हैं कि वैज्ञानिक पहले सिर्फ ये बताएं कि वो विचित्रबिंदु, जिसमें महाविस्‍फोट हुआ था, वह कहां से आया था और बिना अंतरिक्ष के वह कहां रहा था? इन्‍हीं आलोचकों में शामिल हैं फिरोजाबाद, उ.प्र. निवासी के.पी.सिंह, जिन्‍होंने अपनी पुस्‍तक .......
सुशील कुमार जोशी 
खुली खिड़कियों को 
बरसात के मौसम में 
यूँ ही खुला छोड़ कर 
चले जाने के बाद 
जब कोई लौट कर


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यशवंत यश 
जरूरी नहीं 
कि लिखा हो 
सब कुछ 
अपने मतलब का 
किसी किताब के 
हर पन्ने पर
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उदय वीर सिंह 
  
न बनो मेरी वेदना के स्वर
मुझे मौन रहने दो -
खामोशियों में तेरे शब्द गूंजते हैं
निहितार्थ सुनने दो -
तुम्हें जरुरत होगी अक्षय पियूष की
मुझे गरल पिने दो -
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रमा शर्मा 
नारी 
सब कुछ सहती है नारी
फिर भी है क्यों
ताडन की अधिकारी 
क्यूँ मर्दों को सब माफ़ है 
ये कहाँ का इन्साफ है
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सरिता भाटिया 
साथ हमेशा मेरे आता 
अंधकार से डर छुप जाता 
देखो उसकी अद्भुत माया
क्यों सखि साजन ?
ना सखि साया
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मिश्रा राहुल 
नींद आए तो उसको सपना कह दूँ, 
कोई चेहरा दो उसको अपना कह दूँ। 
अंधेरों में आँखें कड़ी नज़र रखती, 
साए बोले तो उसको अपना कह दूँ।
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा ! राजेंद्र जी.
    मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

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  2. सुन्दर चर्चा-
    आभार आपका आदरणीय-

    जवाब देंहटाएं
  3. सात समन्दर पार से आयी सुन्दर चर्चा।
    आपका आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति !
    मेरी ब्लॉग पोस्ट को शामिल करने हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर मंचचर्चा ! राजेंद्र सर जी.
    मेरे लेख को शामिल करने के लिए बहुत आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. विविध विषयों पर लिखे विचारोन्मूलक पोस्टस् से अवगत कराती सुंदर चर्चा...आभार !

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  7. बहुत सुन्दर चर्चा ...मेरी रचना को स्थान देने के लिए सादर आभार

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  8. खूबसूरत चर्चा खूबसूरत सूत्रों के साथ । हमेशा की तरह सुंदर । नेट काम नहीं करने के कारण देर से पहुँच रहा हूँ । 'उलूक' के सूत्र 'बारिशों का पानी भी कोई पानी है नालियों में बह कर खो जाता है' को जगह देने के लिये आभारी हूँ राजेंद्र जी।

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