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मंगलवार, सितंबर 30, 2014

आया पुन: नरेंद्र, विश्व को राह दिखाया; चर्चा मंच 1752


सदी रही उन्नीस की, रहा सितम्बर मास । 
प्रवचन दिया नरेंद्र ने, हिन्दु धर्म पर ख़ास। 

हिन्दु धर्म पर ख़ास, बदल जाती वह काया। 
आया पुन: नरेंद्र,  विश्व को राह दिखाया । 

करे राष्ट्र उत्थान, संभाली जबसे गद्दी । 
करता जाय विकास, मिटाता जाय त्रासदी । 

Asha Saxena 


 
yashoda agrawal 


shashi purwar 



SM 





Ravishankar Shrivastava 



shikha kaushik 


kuldeep thakur
jyoti khare


 

Kajal Kumar 



जन्मदिन पर मैं सतत् उपहार दूँगा।
प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।

साथ में रहते जमाना हो गया है,

“रूप” भी अब तो पुराना हो गया है,

मैं तुम्हें फिर भी नवल उद्गार दूँगा।

प्यार जितना है हृदय में, प्यार दूँगा।।

सोमवार, सितंबर 29, 2014

"आओ करें आराधना" (चर्चा मंच 1751)

मित्रों।
चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
सोमवार की चर्चा में 
मेरी पसन्द के कुछ लिंक देखिए।
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नन्दानन्द (NANDANAND)
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कन्या-पूजन 

कन्या-पूजन की महिमा से तो, दुनिया आनी-जानी है, फिर क्यों उसके संग दुष्कर्म करके, देश को, शरमोसार कराया जाता है फिर क्यों ऐसे देश में, कन्या-पूजन का उपहास उड़ाया जाता है? 
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आवारगी 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
लम्हों का सफ़र पर 
डॉ. जेन्नी शबनम
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खबर
उलूक टाइम्स
एक देता है कुछ
अनुदान दो को
दो कार्यक्रम बनाता है
फिर तीन को बताता है
तीन बहुत दूर से
चार को बुलाता है
अतिथि गृ्ह में ठहराता है
सलाद कटवाता है
गिलास धुलवाता है...

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इसकी उसकी करने का 
आज यहाँ मौसम नहीं हो रहा है 

उलूक टाइम्स
प्रस्तुतकर्ता 
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बालकतरुण-किशोर सबढूढ़ें काम-कु-भोग’ |
नन्हें भँवरे’, ‘कली केचाह रहे संयोग’ ||
इच्छाओं के गगन’  में, ‘दुराचार के  गिद्ध’ |
भोली  किसी  कबूतरी’, के शिकार’ में ‘सिद्ध’ ||
इस  पशुता’  से हम बचें,  करो कोई  तरकीब |
हम हैरत में पड़ गयेलगता बहुत ‘अजीब’ ||
साहित्य प्रसून
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पाथर–पंख 

चाहत तो दे दी उड़ने की इतनी कि ओर न छोरआकाश नाप डालूँपृथिवी की परिक्रमा कर डालूँहर फूलपत्ती से दोस्ती कर लूँदुनिया के हर रोते बच्चे को गले लगा कर उसके आँसू पोंछ दूँ.... आज तक धरती पर लिखीअनलिखी सारी
कविताएँ पढ़ डालूँ ....
त्रिवेणी
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प्रधानमंत्री के नाम, खुला पत्र 
9 साल तक किया वीसा के इनकार
अब हुआ अमेरिका को मोदी से प्यार... 

VMW Team

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रेगिस्तान दिल का ... 

ये रेगिस्तान दिल का, यां समंदर डूब जाते हैं  
हमीं हैं जो यहां तक भी गुलों को खींच लाते हैं.. 
Suresh Swapnil 
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अज़ीज़ जौनपुरी : बनारस 
ज्ञान  ध्यान  विज्ञान बनारस 
दुनियाँ  की  है  शान  बनारस

पग -  पग   पर  हैं  घाट  बिछे 
तुलसी का   है   मान बनारस ... 


Zindagi se muthbhed

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महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने 

हुआ सीधा संवाद 

संभागायुक्त श्री दीपक खांडेकर,आई.जी.
महिला सेल श्रीमति प्रग्यारिचा श्रीवास्तव के मार्गदर्शन में महिला सशक्तिकरण
विभाग एवम पुलिस विभाग के संयुक्त तत्वावधान में
सीधा :संवादकार्यक्रम का आयोजन किया गया... 
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"तेल कान में डाला क्यों?" 

गुम हो गया उजाला क्यों?
दर्पण काला-काला क्यों?

चन्दा गुम है, सूरज सोया
काट रहे, जो हमने बोया
तेल कान में डाला क्यों?

रविवार, सितंबर 28, 2014

"कुछ बोलती तस्वीरें" (चर्चा मंच 1750)

मित्रों।
रविवार की चर्चा में मेरी पसन्द के लिंक देखिए।
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हमसफ़र चाहता हूँ 

स्वयं शून्य पर राजीव उपाध्याय 
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तू है 

उड़ान पर Anusha Mishra 
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कुछ तो भरम रहेगा 

जिस्म के टाँके उधडने से पहले 
आओ उँडेल दूँ थोडा सा मोम 
कुछ तो भरम रहेगा.. 
vandana gupta
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फ़ुरसत में - शब्द 

मनोज पर मनोज कुमार 
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स्थिरता तो प्राप्य नहीं अब,
मन अशान्ति को स्वतः सुलभ है ।
धरो हाथ पर हाथ नहीं अब,
शान्ति प्रयत्नों का प्रतिफल है ।।१... 
प्रवीण पाण्डेय
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सोचें जरा (तांका) 

1. 
शरम हया
लड़की का श्रृंगार
लड़को का क्या
लोक मर्यादा नोचे
इसको कौन सोचे ... 
रमेशकुमार सिंह चौहान
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"राजीव उपाध्याय का गीत" 

राही हूँ मैं, चलना मेरा काम
चलते जाना, है मेरा अन्जाम।
राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥
दौड़ लगाना, फिर हाँफ जाना
रुकना नहीं, है मेरा ईनाम।
दरिया और मरु, सब बेगाने

ज़ोर लगाना, मेरा इन्तज़ाम

राही हूँ मैं, चलना मेरा काम॥
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झूठे शब्दों की विवशता .... 

तुम्हारे शब्दों में 
जब प्रतिध्वनित होता है झूठ 
तुम्हारे ही शब्दों की ओट में ! 
सच्चे दिखते शब्दों के झूठ को पढ़कर 
सोचने लगती हूँ मैं 
तुम्हारे झूठे शब्दों की विवशता ... 
गीत मेरे ........पर वाणी गीत 
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‘‘आशा के दीप जलाओ’’

जलने को परवाने आतुर, 
आशा के दीप जलाओ तो। 
कब से बैठे प्यासे चातुर, 
गगरी से जल छलकाओ तो।। 

मधुवन में महक समाई है, 
कलियों में यौवन सा छाया, 
मस्ती में दीवाना होकर, 
भँवरा उपवन में मँडराया, 
वह झूम रहा होकर व्याकुल, 
तुम पंखुरिया फैलाओ तो। 
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नेशनल दुनिया में मेरी बालकविता- 
गुब्बारे 
नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 
दैनिक समाचार पत्र "नेशनल दुनिया"
में मेरी बाल कविता
Photo: 24 सितंबर, 2014

"नेशनल दुनिया में मेरी बालकविता-गुब्बारे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले 
दैनिक समाचार पत्र "नेशनल दुनिया"
में मेरी बाल कविता

"गुब्बारे"

बच्चों को लगते जो प्यारे।
वो कहलाते हैं गुब्बारे।।
 
गलियों, बाजारों, ठेलों में।
गुब्बारे बिकते मेलों में।।
 
काले, लाल, बैंगनी, पीले।
कुछ हैं हरे, बसन्ती, नीले।।
 
पापा थैली भर कर लाते।
जन्म-दिवस पर इन्हें सजाते।।
 
फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।
हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।

सजे हुए हैं कुछ दुकान में।
कुछ उड़ते हैं आसमान में।।

मोहक छवि लगती है प्यारी।
गुब्बारों की महिमा न्यारी।।

http://nicenice-nice.blogspot.in/2014/09/blog-post.html
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सुनोसारे बच्चे
सारे माने, ऑल,
कम हियर,
यहाँ आओ,
यह बताओ, वाई,
आल ऑफ यू
आर टाकिंग इन इंग्लिश,
डोंट यू नो,
दिस ईज हिंदी पखवाड़ा,
आई मीन हिंदी फोर्टनाईट.
ड्यूरिग दिस फोर्टनाईट,
आल आर टू स्पीक इन हिंदी.
ओ के...अंडर्स्टेंड,
इफ यू चिल्ड्रेन डोंट स्पीक इन हिंदी,
हाउ यू थिंक हिंदी विल ग्रो,
टु बिकम अवर नेशनल लेंग्वेज.
स्टार्ट स्पीकिंग हिंदी,
राईट नाऊ,
फ्रम दिस इन्स्टेंट.
....
एम. आर अयंगर
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मित्रता का फल (काव्य-कथा) 

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"मैं तुमको समझाऊँ कैसे" 

पागल हो तुम मेरी प्रेयसी,
मैं तुमको समझाऊँ कैसे?
सुलग-सुलगकर मैं जलता हूँ,
यह तुमको बतलाऊँ कैसे?...