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बुधवार, नवंबर 12, 2014

"नानक दुखिया सब संसारा ,सुखिया सोई जो नाम अधारा " चर्चामंच-1795



एक दिन 
एक दिन
दोपहर बीते
आना!
नहीं शाम को,
नहीं,
तब तो मैं
होश में आ चुका होता हूँ।

"सच में!" पर कुश शर्मा 

क्यूं ? 

Akanksha पर 

akanksha-asha.blog spot.com



माँ 
Maheshwari kaneri 




अरुण चन्द्र रॉय 



मिट्टी की मूरतों में प्राण ही नहीं... 
पत्थरों के शहर में मिट्टी की मूरतें है। 
अग्नि सी आंधियां तेज़ाबी बरसातें है। 
ना जाने क्यों न पत्थर पिघलते हैं औ
र न ही मिट्टी की मूरतें भुरभुराती है... 
नयी उड़ान + पर Upasna Siag







प्रतिरोध 

My Expression पर 

Dr.NISHA MAHARANA

"कड़ुए दोहे" 
 
पड़ी बेड़ियाँ पाँव मेंहाथों में जंजीर।
सच्चाई की हो गयीअब खोटी तकदीर।।

आँगन-वन के वृक्ष अब, हुए सुखकर ठूठ।
सच्चाई दम तोड़ती, जिन्दा रहता झूठ।।..
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')उच्चारण

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया चर्चा मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चर्चा।बढ़िया सूत्र।

    जवाब देंहटाएं
  7. bahut sunder sutr.... sunder charcha....mere aalekh ko sthaaan dene k liye aabhar

    जवाब देंहटाएं
  8. चर्चामंच पर एक ही स्थान पर श्रेष्ठ रचनाकारों की रचनाएँ पढने को मिल जाती हैं.
    आज का लिंक संयोजन बढ़िया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. उपयोगी लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
    --
    आपका चर्चा लगाने का ढंग निराला है।
    आदरणीय रविकर जी!
    --
    आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बढ़िया चर्चा,मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार !!

    जवाब देंहटाएं

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