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मंगलवार, दिसंबर 23, 2014

खड़ा मुहाने पर जगत, विश्व-युद्ध आसन्न; चर्चा मंच 1836



अशोक सिंहल ने किया "विश्व हिन्दू परिषद - एक परिचय" का विमोचन

गोली बंदूकें उगा, नहीं जरूरी अन्न । 
खड़ा मुहाने पर जगत, विश्व-युद्ध आसन्न। 

विश्व-युद्ध आसन्न, तेल के कुँए लूट ले। 
कर भीषण विस्फोट, मार के तुरत फूट ले ।

हिन्दु देखता मौन, करे कम्युनिष्ट ठिठोली । 
दिखे उग्र इस्लाम, ईसाई देते गोली ॥ 

pramod joshi


त्रिवेणी



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कोहरे के शामियाने में रहते हैं
ओस का अलाव जलाते हैं
ठण्ड में ठिठुरते नहीं
तसल्ली की घूँट पी जाते हैं
गर्मियों की चिलचिलाती धूप ओढ़ते हैं
लू की सर्द हवा में लहराते हैं
सावन की बारिश में नहाते हैं
पतझड़ के तोलिये से जिस्म सुखाते हैं...

yashoda agrawal 



सुशील कुमार जोशी 



Admin Deep 


7 टिप्‍पणियां:

  1. आज की चर्चा में बहुत सुन्दर और पठनीय लिंक है।
    आपका आभार रविकर जी।

    जवाब देंहटाएं
  2. उप्रभात
    उम्दा सूत्र और संयोजन |

    जवाब देंहटाएं
  3. अतिसुन्दर लिँक संयोजन,
    शास्त्री जी, कुछ दिन पहले मेरे ब्लॉग पर एक पाठक ने टिप्पणी कि कोई ऐसा ब्लॉग हो तो बताये जो केवल फोटोग्रोफी पर ही लेख लिखते हैँ। मुझे तो नहीँ मिला आपको पता हो तो जरूर बताये गा ।
    आपका आभारी ।
    Reply

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन सुंदर मंगलवारीय चर्चा अंक । आभार 'उलूक' का 'खुद को ढूँढने के लिये खोना जरूरी है' को जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं

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