फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

रविवार, जनवरी 04, 2015

"एक और वर्ष बीत गया..." (चर्चा-1848)

मित्रों।
नववर्ष के प्रथम रविवार की चर्चा में 
आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन पोस्टों के लिंक।
--

एक और वर्ष बीत गया 

यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
--

कोहरे में गाँव 

कविताएँ पर Onkar
--

"दोहाष्टक-नूतन वर्षःअच्छे दिन...?" 

नभ पर छायी है घटा, ठिठुर रहा है गात।
नये साल के साथ में, आयी ये सौगात।१।
--
बारिश को होते हुए, भये तीन दिन बीत।
अच्छे दिन क्या आयेंगे? बरस रहा है शीत।२।...
--
--
--
--

मैं तो कही थी नही........!!! 

--
107-
कभी गुजरी थी जो इक शाम तुम्हारे साथ..
वो शाम तो गुजर गयी....
पर जिन्दगी उस शाम ठहर गयी थी....

108-
नही याद की चाय और कॉफ़ी का स्वाद क्या था...
सिर्फ ये याद रह गया....
कि उस शख्स की आखों में क्या-क्या था......
'आहुति' पर sushma 'आहुति' 
--

Happy New Year कहना था। 

मेरी, यह कविता सत्य घटना पर आधारित है। कल्पना का कोई सहारा नही लिया गया है। इसका किसी फेसबुक मित्र/Whatsaapमित्र या पूर्व प्रेमिका (वर्तमान में पतनी को छोडकर नही है) या किसी भी पुरुष/महिला से कोई भी सम्बन्ध किसी प्रकार का नही है। और न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचना मेरी कविता का उद्देश्य है। यह कविता मैंने, अपनी श्रीमती जी के लिए,.. लिखी है। जो मुझसे नाराज है। वे 28/12/14 से अपने मायके गयी हुई थी। मैंने 31/12/14 की रात को Happy New Year का SMS किया था। पर सुबह 1/1/15 को उठकर फोन नही कर सका और वे.... नाराज हो गयी... 
--
--
--

दखल 

माँ ने बहू बेटे को तैयार हो कर बाहर जाते देख कर पूछा --"सुबह सुबह तुम दोनो कहाँ जा रहे हो ?' "माँ अस्पताल जा रहे हैं।' "क्यों,किस की तबियत खराब है ?' बेटे ने सकपकाते हुए कहा --"माँ आपकी बहू फिर माँ बनने वाली है।हम टैस्ट करा कर देखना चाहते हैं कि गर्भ में लड़का है या लड़की ।' "क्या करोगे पता कर के ?' "करना क्या है माँ लड़की हुई तो सफाई करा देंगे।' "तू ये क्या कह रहा है ?... 
--

चन्द माहिया : क़िस्त 12 

:1:
दीदार न हो जब तक
यूँ ही रहे चढ़ता
उतरे न नशा तब तक
:2:
ये इश्क़ सदाकत है
खेल नहीं , साहिब !
इक राह-ए-इबादत है
:3:... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
--

आज की फ़िल्में और गाने मात्र बकवास 

 संगीत हमेशा से फिल्मों की जान रहा है .कितनी ही फ़िल्में संगीत के दम पर प्रसिद्धि का शिखर छूती रही है .मुगले आज़म हो या बैजू बावरा ,आवारा हो या श्री चार सौ बीस ,संगम आदि बहुत सी पुरानी फ़िल्में हो या कुछ अभी लगभग एक या दो दशक पुरानी हम आपके हैं कौन ,विवाह मैंने प्यार किया आदि फ़िल्में संगीत के मामले में बहुत ही उत्कृष्ट कोटि की फ़िल्में रही और इन फिल्मों के संगीत को वास्तव में संगीत कहा भी जा सकता है लेकिन आज की फ़िल्में और उनका संगीत ना तो फिल्म में वह बात है और न ही उनके गानों में और रेडियो चैनल जोर शोर से उनके संगीत को कभी मधुर कभी शानदार कह प्रचारित कर रहे हैं और बजा रहे है .सुन सुनकर वास्तव में कानों में दर्द होने लगता है ... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik 
--
--
--
--
--
--
--

कविता: डाकिया लौट आया 

ऑनलाइन शॉपिंग के चलन पर एक कविता के माध्यम से नाचीज सी टिप्पणी …

डाकिया लौट आया
ना पोस्टकार्ड
ना अन्तर्देशी
सैमसंग का नोट लाया
डाकिया लौट आया। ...
--

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा सूत्र और संयोजन
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स, मेरी पोस्ट को चर्चा शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सूत्र संयोजन.
    'यूँ ही कभी' से मेरे पोस्ट को शामिल करने और शीर्षक पोस्ट बनाने के लिए आभार ! आ. शास्त्री जी.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर और उम्दा लिंकों के साथ बेहतरीन प्रस्तुतिकरण, सादर आभार आदरणीय। सभी पाठकों को नए साल की हार्दिक शुभकामनाये।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर रविवारीय अंक । आभार 'उलूक' का सूत्र 'मजबूत बंधन के लिये गठबंधन की दरकार होती है' को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  7. sundar v sarthak links sanjoyen hain aapne .mere blog ko yahan sthan pradan karne hetu aabhar .aapki rachna 'janvani kee ravivani magazine''me prakashit hui .padhkar aanand kee anubhooti hui .badhai

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।