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शनिवार, जनवरी 24, 2015

"लगता है बसन्त आया है" (चर्चा-1868)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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खेतों में बालियाँ झूलतीं, 
लगता है बसन्त आया है! 

केसर की क्यारियाँ महकतीं, 
बेरों की झाड़ियाँ चहकती, 
लगता है बसन्त आया है!
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कभी कभी लगता है 

बहुत खडूस हूँ मैं ..

....अपनी आवारगी में दिल्लगी कर 
जाने क्या बताना चाहता है 
मैं शादीशुदा दो बच्चों की अम्मा 
वो अकेला चना बाजे घना 
कैसे समझ सकता है ये बात 
चाहत के लिए अमां यार 
मौसम तो दोनों तरफ का 
यकसां होना जरूरी है...
vandana gupta 
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जैसे किसी अमीर की दस्तार बिक गयी।
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सारा शहर दहशत की गुँजलक में कैद है
अफवाह हैं कि, ज़श्न मनाते नहीं थकते।

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बसंत ऋतु 

कभी तेरे सवाल तो, 
कभी तेरे जवाब आये 
कभी तेरे ख्याल तो , 
कभी तेरे ख़्वाब आये 
चाहा तैरकर नदियां पहुँच जाऊं पास तेरे
पर मुझे डुबाने तेरे हुस्न के सैलाब आये... 
तात्पर्य पर कवि किशोर कुमार खोरेन्द्र 
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तुमने फ़िराक को देखा था 

आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हमसरो
उनको जब ये मालूम होगा तुमने फ़िराक को देखा था

फ़िराक द्वारा खुद के बारे में कही गयी 
ये पंक्तियाँ कितनी बेलौस और बेबाकी से कही गयी लगती हैं.

यह भी एक अजीब इत्तिफाक है कि जो दिन ऊपरवाले ने मुक़र्रर किया हिंदी-उर्दू की अजीम शख्सियत को अपने पास बुलाने के लिए,उसी दिन मशहूर हास्य अभिनेता केश्टो मुखर्जी और बदनाम डाकू छविराम को भी अपने दरबार में बुलाया.जाहिरा तौर पर तीनों में कोई संबंध नहीं है.एक रुबाइयों की नाजुक भीनी बदली में लिपटी रूह है,दूसरी कहकहों की आवाज का लिबास पहने है तो तीसरी यमदूतों की बराबरी करने वाला काली लिबास में मुंह छिपाए है....
देहात पर राजीव कुमार झा 
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आवेदन भी है 

गीतों के श्री आँगन में प्रेम भी है
श्रिंगार भी हैवेदन भी है -
स्मृतियों के सुंदरवन स्नेह भी है
आभार भी है,संवेदन भी है ... 
उन्नयन  पर udaya veer singh
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मेरे देश में राजनीति होती है सत्ता की 

शोला हूँ भड़कने की गुजारिश नहीं करता, 
सच मुँह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता ....
बुलबुला पर Vikram Pratap singh 
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आलस्य का फल 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार
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दो तोते 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar
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हे विहंगिनी ! 


कुमुद रामानन्द बंसल
1
मधुर   स्वर,
धुन  है  पहचानी
हे  विहंगिनी!
तुझ-सा  ही आनन्द
पाएगा  मेरा  मन  ।... 
त्रिवेणी
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"छाई है बसन्त की लाली" 

पाई है कुन्दन कुसुमों ने
कुमुद-कमलिनी जैसी काया।
आकर सबसे पहले
सेमल ने ऋतुराज सजाया।
महावृक्ष है सेमल का यह,
खिली हुई है डाली-डाली।
हरे-हरे फूलों के मुँह पर,
छाई है बसन्त की लाली।।...

10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    उम्दा सार्थक लिंक्स

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर चर्चा सूत्र. वसंत पंचमी की शुभकामनाएं !
    'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र "खुले खेतों में शौच विज्ञापनों की सोच दूरदर्शन रेडियो और समाचार दोनो जगह दोनो की भरमार अपनी अपनी समझ अपने अपने व्यापार" को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छे लिंक्स के साथ सुन्दर प्रस्तुति। आपको वसन्त पंचमी एव निराला जयन्ती की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर चर्चा प्रस्तुति
    सभी को वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन लिंको के साथ बहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  7. वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं ! "अपनी मंजिल और आपकी तलाश" की मेरी रचना को शामिल किया...आपका आभारी हूँ!!

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर लिंक्स के साथ सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।आप सभी लोगों को बसंतपंचमी की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

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