फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, मार्च 27, 2015

"जीवन अगर सवाल है, मिलता यहीं जवाब" {चर्चा - 1930}

मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
सबसे पहले "चर्चा मंच" की सोमवार की नयी चर्चाकार
श्रीमती अनुषा जैन का चर्चा मंच परिवार की ओर से 
हार्दिक स्वागत करता हूँ।
सबसे पहले देखिए
इनकी एक पोस्ट
अभिव्यक्त
--

माँ महागौरी , माँ सिद्धिदात्री 

[दोहे] 

गुज़ारिश पर सरिता भाटिया 
--

एक ग़ज़ल ! 

--

अमृत को झरते देखा है 

--*** गीत***---  
गंगा सहज प्रवाह पावनी , 
अमृत को झरते देखा है । 
धवल और शीतल लहरों से, 
पुरखों को तरते देखा है... 
Naveen Mani Tripathi 
--

" रिश्ते ", 

नाम,परिभाषाएं पुरानी 

और " इच्छाएं " नईं !!  

पीताम्बर दत्त शर्मा 

(लेखक-विश्लेषक) 

--

खुद को नित पहचान 

श्रम जीवन की डोर तो, है पतंग इक ख्वाब। 
जीवन अगर सवाल है, मिलता यहीं जवाब... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
--

"जरुरी है" 

अँधेरे गर ना होंगे 
तो ये जुग्नू भी नहीं होंगे 
उजाले भी जरुरी है 
अँधेरे भी जरूरी है। 
अगर ये दिन जरूरी है 
तो रजनी भी जरूरी है... 
--

"लघुकथा-भूख" 

--

रेड लाइट पर रुक जाते है 

डर करके 

यमराज

Vikram Pratap singh 
--

बिन रस सब सून 

देहात पर राजीव कुमार झा 
--

माँ का आंगन 

बड़ी नगरिया मुझे दिखाने लेकर तुम आये बाबा
बड़ा समन्दर ऊँची बिल्डिंग भोजन का बढ़िया ढाबा
हाँ ये माना  इस नगरी में सुख सागर लहराता है
किन्तु गाँव के पोखर जैसा ना यह पास बुलाता है...
Vandana Ramasingh 
--

टिप्‍स  

नया लैपटॉप खरीदने से पहले 

इसे पढिये 

MyBigGuide पर 
Abhimanyu Bhardwaj 
--

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2011 

सबसे प्रभावी किन्तु विकलांगों की पकड़ से दूर 

--

हर पल 

Tere bin पर 
Dr.NISHA MAHARANA 
--

सपनों का घर 

सपनों के घर में 
करना चाहती कैद धूप को 
जगमगा उठे वहाँ कोना कोना 
रोशन हो जायें दीवारे जहाँ... 
Ocean of Bliss पर 
Rekha Joshi 
--

Tushar Raj Rastogi 

--

कुछ ख्याल...... 

अनजानी दिशाओं की ओर 
यात्रा पर निकले कुछ ख्याल 
कभी पा लेते हैं अपनी मंज़िल 
और कभी देहरी छूने से पहले ही 
हो जाते हैं गुमशुदा... 
--
Yashwant Yash 
--

गीत मैं रचती रहूँगी 

गीत मैं रचती रहूँगी, मीत, यदि तुम पास हो तो
मैं गजल कहती रहूँगी, गर सुरों में साथ दो तो

मैं नदी होकर भी प्यासी, आदि से हूँ आज दिन तक
रुख तुम्हारी ओर कर लूँ, तुम जलधि बनकर बहो तो... 
गज़ल संध्या पर कल्पना रामानी 
--

ग़ज़ल 

ये इक सिगरेट नहीं बुझती कभी से 

कहूँ क्या शोख़ कमसिन सी नदी से
तेरे अंदाज़ मिलते हैं किसी से
हमारे होंठ कुछ हैरान से हैं
तुम्हारे होंठ की इस पेशगी से... 
Ankit Joshi 

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर चर्चा सूत्र.
    'देहात' से मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. इस सुंदर चर्चा के लिए आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई और बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।