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मंगलवार, अप्रैल 28, 2015

'यथा राजा तथा प्रजा ' ये भूकम्प मोदी की करनी का फल है.......चर्चा मंच 1959


प्रवीण पाण्डेय 

गीत "कौन सुनेगा सरगम के सुर" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

मीठे सुर में गाकर कोयलक्यों तुम समय गँवाती हो?
कौन सुनेगा सरगम के सुरकिसको गीत सुनाती हो?

बाज और बगुलों ने सारे, घेर लिए हैं बाग अभी,
खारे सागर के पानी में, नहीं गलेगी दाल कभी,
पेड़ों की झुरमुट में बैठी, किसकी आस लगाती हो?
कौन सुनेगा सरगम के सुरकिसको गीत सुनाती हो... 

प्यार का आलम 

भूली-बिसरी यादें पर राजेंद्र कुमार


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