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गुरुवार, जून 04, 2015

"हम भारतीयों का डी एन ए - दिल का अजीब रिश्ता" (चर्चा अंक-1996)

मित्रों।
बृहस्पतिवार के चर्चाकार आदरणीय दिलबाग विर्क जी
आज किसी अपरिहार्य कार्य में व्यस्त होने के कारण
चर्चा नहीं लगा पा रहे हैं।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

"चालू शेरों पर ही अक्सर ज्यादा दाद मिला करती है" 

कई मित्र टिप्पणियाँ अक्सर, 
सब रचनाओं पर देते हैं।
सुन्दर-बढ़िया लिख करके

निज जान छुड़ा भर लेते हैं... 
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कहर गर्म मौसम का 

उफ ये गर्मी के लिए चित्र परिणाम
तपता सूरज
जलता तन वदन
लू के थपेड़े
करते उन्मन |
नहीं कहीं
 राहत मिलाती
 गर्म हवा के झोंकों से
मौसम की ज्यादती से |
बेचैनी बढ़ती जाती... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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दिल अज़ीज़ रिश्ता 

उसके सर पर गहरे घाव हैं
वो अब कुछ कुछ मुझे भूल गया है 
हथेलियां जख्मी हैं, 
उंगलियां टूटी हुई, लब चुप चुप से   
वो दामन पकड़ के रोकता है और 
न जाने की इज़ाजत देता है... 
कवर फ़ोटो
Lekhika 'Pari M Shlok' 
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कभी कभी ...... 

ऐसे ही होती है 
हर दिन की शुरुआत 
कभी कुछ चाहते हैं 
योजना बनाते हैं 
होता कुछ और है... 
जो मेरा मन कहे पर Yashwant Yash 
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परजीवी .... 

उन्नयन  पर udaya veer singh 
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वैदेही ... 

प्यार में देह के स्तर तक ही 

भटकते अटकते लोग क्या समझेंगे ? 

 फिर समझ तो राम भी नहीं सके थे ... 
रावण थोड़ा-थोड़ा समझा था ... 
कृष्ण भी समझे नहीं थे, 
राधा ने समझा दिया था 
और रुक्मणी रुक गयी थी 
देह की दहलीज पर ... 
Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI 
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लाला जी की लाल लंगोट 

(एक बाल कविता ) 
लाला जी की लाल लंगोट में 
खटमल था एक लाल 
काट काट कर लाला जी को 
उसने किया बेहाल... 
काव्य सुधा  पर Neeraj Kumar Neer 
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कुछ भी तो नहीं... 

स्पंदन  SPANDAN
वो खाली होती है हमेशा।
जब भी सवाल हो,क्या कर रही हो ?
जबाब आता है
कुछ भी तो नहीं... 
स्पंदन  पर shikha varshney 
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THE HOSTILE CITY CHENNAI 

हर शहर का एक मिजाज़ होता है उसके लोग, उसकी फितरत , उसके कूचे उसकी गलियां उसे एक पहचान देते हैं । जैसे दिल वालों की दिल्ली , सपनों की नगरी या कहें तो माया नगरी मुंबई , सिटी ऑफ जॉय कोलकाता इन तीन मैट्रों शहरों का ये नाम जमता भी है लेकिन चौथे मेट्रो शहर चैन्नई को क्या नाम दूं... 
रसबतिया पर - सर्जना शर्मा 
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पंचायतें और अँधा न्याय ! 

पंचायती राज का सपना जिस रूप में दशकों पूर्व देखा गया था , मुझे नहीं लगता कि वह साकार हो सका है। जिस रूप में उसको परिभाषित किया गया था वह अपने अस्तित्व को खो चुका है क्योंकि वहां भी तो सञ्चालन दबंगों की इच्छानुसार ही होता है। आज स्वतन्त्र भारत में पंचायतों की विकृत न्याय प्रणाली ने शर्मसार कर दिया है... 
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव 
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मुरझाये फूल ..... 

भी चाहतों के धागे से
लिखा था मुहब्बत का पहला गीत
इक हर्फ़ बदन से झड़ता
और इश्क़ की महक फ़ैल जाती हवाओं में
देह की इक-इक सतर गाने लगती
रंगों के मेले लगते
बादलों की दुनियाँ बारिशों के संग गुनगुनाने लगती
आस्मां दोनों हाथों से
आलिंगन में भर लेता धरती को …... 
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