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शनिवार, जुलाई 18, 2015

"कुछ नियमित लिंक और आ.श्यामल सुमन की पोस्ट का विश्लेषण" {चर्चा अंक - 2040}

मित्रों।
सबसे पहले अपने मुसलमान भाइयों को
ईद की दिली मुबारकबाद।
शनिवार की चर्चा में आप सबका हार्दिक स्वागत है।
आज की चर्चा में देखिए-
"कुछ नियमित लिंक और एक पोस्ट का विश्लेषण" 
चर्चाकार-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चाँद दूज का देखकर, जागी है उम्मीद।
गले मिलें सब प्यार से, कहें मुबारक ईद।।
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मौमिन को सन्देश ये, देते हैं रमजान।
नेकी और खुलूस का, मौला का फरमान।।
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जर्रे-जर्रे में बसा, राम और रहमान।
सिखलाते इंसानियत, पूजा और अजान... 
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खूब मने फिर ईद ! 

ज्योति-कलश पर ज्योति-कलश 
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जंगल का दोस्त 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 
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रथ निकला नन्द दुलारे का 

 धूम मची है झूम उठी है, 
धरती गगन सितारे भी . 
धर्म का रथ सज-धज कर निकला, 
अपने नन्द दुलारे का... 
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विचारणीय 

shakti ki shakti के लिए चित्र परिणाम
कई विचार मन में बसते
कुछ ही उकेरे  जाते
 केनवास पर
या कोरे कागज़ के पन्नों पर
बीज अनेक बोये जाते
पर वृक्ष कुछ ही उगते... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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दूब 

(घास पर 11 हाइकु) 

1.
बारहों मास 

देती बेशर्त प्यार  

दुलारी घास ! 

2.
नर्म-नर्म-सी 
हरी-हरी ओढ़नी  
भूमि ने ओढ़ी ! 


3... 
लम्हों का सफ़रपरडॉ. जेन्नी शबनम 
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द्रोण का शिष्यत्व -- 

एक अभिशाप 

द्रोण ----- ये नाम सुनते ही सामान्य रूप से एक ऐसे शिक्षक की छवि उभरती है जो अपने शिष्यों के प्रति पूर्णतया समर्पित व्यक्तित्व है .एक ऐसा गुरु जो अर्जुन को अधिक प्रतिभाशाली पा कर पूर्ण समर्पण के साथ अपना समस्त ज्ञान देने को प्रयासरत है ,यहां तक की इस प्रक्रिया में वो अपने पुत्र ,अश्वत्थामा की भी उपेक्षा कर जाता है... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
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कमजोर आदमी 

कमजोर आदमी के साथ तो अन्याय कल भी हुआ था होता रहा है सदा शकुनी हितेशी बनकर अन्याय की याद दिलाता रहता है उसे फिर कमजोर आदमी करता है वोही जो चाहता है शकुनी महाभारत के युद्ध का कारण न भिष्म की प्रतिज्ञा थी, न धृतराष्ट्र का पुत्र मोह न दुर्योधन की महत्वाकांक्षा न ही शकुनी का प्रतिशोध न द्रोपदी का हठ पांडव तो बिलकुल नहीं। मैं तो युद्ध का एकमात्र कारण विदुर निति को मानता हूं जिसने धृतराष्ट्र से राजमुकुट झीना... 
मन का मंथन  पर kuldeep thakur
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मित्रों आज मैं आपको
मनोरमा
"मनोरमा ब्लॉग" के स्वामी
आदरणीय श्यामल सुमन जी को एक पोस्ट से 
आपका परिचय कराऊँ, इससे पहले मैं आपको 
श्यामल सुमन जी अपने बारे में लिखते हैं
आदरणीय श्यामल सुमन जी उन कवियों में से हैं, जो छन्दबद्ध रचनाएँ करते हैं। मैं इनकी ग़ज़ल, कविताएँ और दोहे बड़े मनोयोग से तन्मय पढ़ता हूँ और इनका एक प्रशंसक भी हूँ। क्योंकि ये गति-यति और मात्राओं को ध्यान में रखकर अपनी रचनाएँ रचते हैं।
आप भी देखिए इनके कुछ दोहे-
खींचे वक्त लकीर 
अच्छे दिन तो आ गए, लोग बने खुशहाल। 
पता नहीँ क्यों खुदकुशी, करे कृषक बेहाल।।
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वक्त समझ लो वक्त पर, वक्त बने तकदीर ।
वक्त वक्त की बात है, खींचे वक्त लकीर । ।
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गांधी दिल से दूर अब, जाकर टंगे दिवार।

आए फिर वे नोट पर, रुका न भ्रष्टाचार।।
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बोझिल कुछ दिन जिन्दगी, प्रियजन होते दूर।

आंसू भी निकले नहीँ, रोने को मजबूर।।
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बेहतर तब संबंध जब, प्रीति हृदय में लोच।

प्यारे लगते लोग वे, जिनकी मिलती सोच।।
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सह लो खुद की वेदना, भले चुभे ज्यों काँट।

पर अपनी सम्वेदना, नित आपस में बाँट।।
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बेजुबान को दोष दे, बनते स्वयं महान।

खुद सुनते पर क्यूँ कहे, दीवारों के कान।।
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दीवारें गिरतीं वही, पड़ती जहाँ दरार।
रिश्ते में पड़ती जहाँ, खड़ी करे दीवार।। 

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