फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, नवंबर 16, 2015

क्या भ्रुण-हत्या हत्या नही है??---चर्चा-अंक 2162...

जय माँ हाटेशवरी...

गर्भवती महिला डाक्टर के पास गयी | उसकी सास और पति बाहर बैठे हुए थे | अंदर केबिन ने डाक्टर के साथ एकांत पाकर वो अपनी मनोवेदना
रोक नहीं पायी – ‘ डाक्टर साहब मेरे घरवाले मेरा भ्रूण परीक्षण करवाना चाहते है जबकि मेरी अंतरात्मा इसके लिए तेयार नहीं है तो आप मेरी मदद कीजिये आप कोई युक्ति
बता दीजिये कि यह समस्या टल जाये | ‘
कुछ देर रुकने के बाद उसने डाक्टर से कहा – एक काम करिए मेरे पति और सास से कह दीजिये कि अगर आप भ्रूण चेक करवाते है तो मैं यह केस नहीं लूंगी और आप डिलीवरी
भी कंही और करवा लीजिये |
डाक्टर कहने लगी – वैसे तुम क्यों नहीं चाहती ? क्या बेटा नहीं चाहिए तुम्हे ? एक बेटी तो है तुम्हे फिर क्यों तुम खतरा मोल ले रही हो ?
महिला – खतरा ! वह चौंक पड़ी |
डाक्टर साहब ! आज मैं ही अगर ऐसा सोच ले तो माँ कौन बनेगी और सृष्टि कैसे चलेगी ?
--
--
अब पेश है...आज की चर्चा...
आप के प्यारे-प्यारे लिंकों के साथ...
--
s400/owl
अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ,
आज उसी वाटिका का, हर सुमन बिका हुआ,
गुल गुलाम बन गये, खार पर निखार है।
तन-बदन में आज तो, बुखार ही बुखार है।।
 (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
---------------
BhruN Hatya
गर्भपात से नारी का शरीर कमजोर होता है, वो अलग! एक अध्ययन के मुताबिक, हर साल देश में 67 लाख गर्भपात होते है और लगभग 20000 महिलाओं की गर्भपात संबंधी जटिलताओं
के कारण मृत्यू हो जाती है!!
अमेरिका में कूछ साल पहले एक डॉक्टर ने एक विडिओ फिल्म बनाई थी। जिसमें यह बताया गया था कि जब माँ-बाप बच्चे का गर्भपात करने की सिर्फ सोचते भर है, तभी से भ्रुण
पर क्या असर होता है। माँ के गर्भ में भी वह नन्हीं सी जान कितनी डरती है। माँ का गर्भ, दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह! लेकिन वहां पर भी वो नन्हीं सी जान डर
से कंपकंपाती है! उसके मस्तिक से जो डर वाली तरंगे निकलती है, वो देख कर पत्थर भी पिघलने लगे! और जब डॉक्टर गर्भपात करते है तब वो भ्रुण के कैसे टूकडे-टूकडे
कर उसे बाहर निकालते है, इसका उन्होंने विडिओ बनाया। वो दिल दहलाने वाला विडिओ यदि हम देख ले तो मैं विश्वास से कहती हूं कि हम सपने में भी भ्रुण-हत्या करने
की ना सोचे!!
---------------
pramod joshi
---------------
तब तक दीपावली कैसी, अजी यहाँ महिला मित्र हो या पुरुष मित्र, मनुहार की ऐसी बंदूके व मिठाई के अनार फूटते ही रहते हैं. खैर यह तो है दिवाली का सफाई अभियान
जो घर घर से लेकर फेसबुक तक कायम है,
            एक प्रश्न दिमाग में बिगड़े बल्ब की तरह बार बार बंद चालू हो रहा है. बम दिमाग में जैसे फटने को उतावले हो रहे थे. क्या कभी किसी ने सोचा कि हम धरती
के साथ साथ अम्बर में भी कितना कचरा जमा कर रहें है. आज धरती कचरे के बोझ तले मर रही है, नए नए गृह की खोज करने में नित्य मानव स्पेस में कचरा फेंकता है, चाहे
यह अंतरजाल, फेसबुक हो यह  ट्विटर, आखिर इसका कचरा सेटेलाइट में इतना ज्यादा जमा हो रहा है, उसे कैसे साफ़ करेंगे ?ध्वनि प्रदुषण, वायु प्रदुषण., खाद्य प्रदुषण.......वगैरह
shashi purwar
---------------
Randhir Singh Suman
---------------
 भुगतिए    तकरीर  पर    तकरीर  अब
ख़ामोख़्वाह  उनको  इशारा  कर  लिया
चांदनी   की     दिलनवाज़ी    देख   कर
हमने   ख़ुद   को   माहपारा  कर  लिया
  -सुरेश  स्वप्निल
---------------
                                                                           नवम्बर के नाते...
हमें नफरतों ने मारा तुम्हें वहशतों ने भूना
ये जंगे सियासत है, इसे सब झुठलाते हैं ।
पेरिस के शहीदों की रूह को चैन मिले
बेबस सी दुआओं के हम फूल चढ़ाते हैं ।।
रश्मि शर्मा
---------------
धर्म की कोई भी परंपरा बिना वैज्ञानिक दृष्टि से हो कर नहीं गुजरती और हाथ में मौली धागा बांधने के पीछे भी एक बड़ा वैज्ञानिक कारण है! दरअसल मौली का धागा कोई
ऐसा-वैसा धागा नहीं होता बल्कि, यह कच्चे सूत से तैयार किया जाता है और, यह कई रंगों जैसे लाल, काला, पीला अथवा केसरिया रंगों में होती है। मौली को साधारणतया
लोग हाथ की कलाई में बांधते हैं! और ऐसा माना जाता है कि  हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य को भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती
एवं सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।
kuldeep thakur
---------------
सत और असत में अब
भेद कोई बचा नहीं है
उनके अपराधों  की
कोई अब चर्चा नहीं है
तम सम आचरण को
पावन कहैं सुशासन बाबू

Neeraj Kumar Neer
---------------
Bharat Tiwari
---------------
ये तो अभी ट्रेलर देखा है देश ने ! ये असहिष्णुता ! ये दादरी ! ये सुनपेड ! ये बीफ ! ये सम्मान वापसी ! ये महंगाई ! ये साईं बाबा ! ये पूर्व सैनिकों का OROP आंदोलन
और अब ये टीपू सुल्तान आदि आदि जाने क्या क्या बिना सर पैर के मामले हैं जो छत्तीस सालों से देश में व्याप्त हैं लेकिन आज तक नहीं भड़के क्यों ?
शर्त लगा लो !
ये मोदी सरकार को पांच साल नहीं चलने देंगे !
देख लेना अगर... अगर ये केंद्र सरकार पूरे पांच साल चल जाये तो !
चल भी गयी तो ऐसे ही लंगडाते लड़खड़ाते हुए चलेगी आम जनता के मन मष्तिष्क पर कोई प्रभाव नहीं डाल पायेगी और दोबारा चुनाव लड़ने में मोदी जी को भी डर लगेगा, जीतना
मुश्किल हो जायेगा जैसे अटल सरकार के बाद हुआ था | इनके अपने ही इनको हराने वाले हो जायेंगे |
Shankar Dutt Fulara
---------------
आना हो न गर मुमकिन
जब दिल में मेरे
फिर क्या जीना तुम बिन
आँखों में समाए वो
अब क्या मैं देखूँ
आ कर भी न आए वो
आनन्द पाठक
जब बच्चे ऐसे है,
तो देश का भविष्य कैसा होगा,
फिर भीबच्चो,
तुम ही इस देश के भविष्य हो ||
Rushabh Shukla
---
फिर मिलेंगे...
धन्यवाद। 

4 टिप्‍पणियां:

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।