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बुधवार, दिसंबर 02, 2015

"कैसे उतरें पार?" (चर्चा अंक-2178)

मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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लगे क्यूँ मगर हम अकेले बहुत हैं 

अगर देखिएगा तो चेहरे बहुत हैं 
लगे क्यूँ मगर हम अकेले बहुत हैं 
चलो इश्क़ की राह में चलके 
हमको न मंज़िल मिली तो भी पाये बहुत हैं... 
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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तुम्हारे प्रताप से... !! 

आस की नैया बहुत चली है तूफ़ानों में 
ये अब है कि थकी हारी बैठी है... 
सुस्ता ले कुछ पल 
क्या पता फिर से चल पड़ेगी 
ये सहज होता जाता है... 
नाव का किनारों से भी कोई तो नाता है...  
हो सकता है ऐसा भी...  
अनुशील पर अनुपमा पाठक 
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मैं जिंदगी से वही इक दिन मांगता हूँ... 

आज यूँ ही जिंदगी के सफ़र पर, 
तुम्हे छोड़ कर जाते हुऐ.. 
ये दिल ना जाने क्यों सिर्फ, 
इक दिन जिंदगी से मांग रहा है... 
वही इक दिन जो मैं बरसो से, 
तुम्हारे साथ जीना चाहता था, 
वही इक दिन जिंदगी से मांगता हूँ... .
'आहुति' पर Sushma Verma  
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अपनी नजरें तुझे नजर कर दूँ 

तेरे हर गम को बेअसर कर दूँ 
अपने जज्बात की खबर कर दूँ 
नहीं मुमकिन है अब जुदा होना 
अपनी नजरें तुझे नजर कर दूँ... 
मनोरमा पर श्यामल सुमन 
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