फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, दिसंबर 07, 2015

छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे--चर्चा अंक 2183

जय मां हाटेश्वरी... 
--
राम बनवास से जब लौटकर घर में आये
याद जंगल बहुत आया जो नगर में आये
रक्से-दीवानगी आंगन में जो देखा होगा
छह दिसम्बर को श्रीराम ने सोचा होगा
इतने दीवाने कहां से मेरे घर में आये
धर्म क्या उनका है, क्या जात है ये जानता कौन
घर ना जलता तो उन्हें रात में पहचानता कौन
घर जलाने को मेरा, लोग जो घर में आये
शाकाहारी हैं मेरे दोस्त, तुम्हारे ख़ंजर
तुमने बाबर की तरफ़ फेंके थे सारे पत्थर
है मेरे सर की ख़ता, ज़ख़्म जो सर में आये
पाँव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे
कि नज़र आये वहाँ ख़ून के गहरे धब्बे
पाँव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे
राजधानी की फज़ा आई नहीं रास मुझे
छह दिसम्बर को मिला दूसरा बनवास मुझे 
-------------------------------
पर Kamla Singh 
बेवफ़ा  कौन  बनेगा यूँ  ही  चलते चलते
भीड़  में  ये भी  तो  पहचान नहीं होता है
शायरी यूँ  तो सभी  लोग किया  करते  हैं
हर  कोई  साहिबे  दीवान  नहीं  होता   है
हम तो हिम्मत से सफ़र करते हैं शहरों-शहरों
दूर   तक  रास्ता  सुनसान  नहीं   होता  है 
-------------
परआनन्द पाठक
अच्छा न बुरा जाना
दिल ने कहा जो भी
बस वो ही सही माना
वो आग लगाते है
अपना भी ईमां
हम आग बुझाते हैं
-------------
ram ram bhai 
पर Virendra Kumar Sharma 
चीफ जस्टिस आफ इंडिआ ,पी. एस. ठाकुर का बड़ा बयान -देश में अ-सहिष्णुता  का  भ्रम फैलाया गया। सियासी फायदे के  लिए माहौल बनाया गया। 
देश के हर नागरिक का अधिकार सुरक्षित।
देखा आपने एक संविधानिक पद   पर 
सुशोभित राष्ट्रप्रेमी कैसे सियासी भौपुओं का मुंह  बंद कर देता है 
एक सीधी सच्ची बात  कहके। 
आश्वस्त करता है उनका ये सामयिक
बयान जबकि एक पूरा देश गुस्से में था। 
कई लोग अवसाद की चपेट में भी आ गए थे। 
अच्छी बात यह रही जोसेफ गोयबल्स के 
सौ मर्तबा बोले गए झूठ को किसी ने भी सच नहीं माना।
-------------
पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
s400/IMG_2516
 बालक विद्यालय को जाते, 
कभी न मौसम से घबराते, 
 पढ़कर ही काबिल बन पाते, 
करो साधना सच्चे मन से, 
कहलाओगे ज्ञानी-ध्यानी। 
जाड़े पर छा गयी जवानी।। 
-------------
पर संतोष 
           इसके लिए सर्वप्रथम अपने कम्‍प्‍यूटर में माइक्रोफोन प्‍लग–इन करें। इसके साथ ही इन्‍टरनेट से कम्‍प्‍यूटर को कनेक्‍ट कर जी.मेल एकाउन्‍ट लॉग-इन
करें। अब गुगल क्रोम वेब ब्राउज़र को ओपन कर 
यू.आर.एल. में साइट एड्रेस के रूप मे  टाइप करें। 
ऐसा करते ही गुगल डॉक की साइट ओपन हो जाएगी। 
अब साइट पर मौजूद Go to Google Docs प्रेस बटन को 
माउस से क्लिक कर दें। अब आपका जी.मेल एकाउन्‍ट वाला
पर Jyoti Dehliwal 
shani signapur
हम सभी का इस संसार में होने का कुछ उद्देश है। 
जो चीज़ उस उद्देश के अनुकूल है उसे हम स्वीकार करते है 
और बाकी चीज़ों को छोड़ते चले जाते है। जो हम छोड़ते है, 
वो सब हमारे लिए अपवित्र है। 
लेकिन ईश्वर के लिए इस संसार का कोई उपयोग नहीं है। 
इसलिए ईश्वर को इस संसार को पकड़ने की 
या इस संसार को छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
इसलिए ईश्वर के लिए इस संसार की कोई भी चीज़ 
या कोई भी व्यक्ति अपवित्र नहीं हो सकती! 
चाहे वह नर हो या नारी!
-------------------------------
पर सुशील कुमार जोशी 
s320/toonvectors-9994-940
कुछ झल्लाया
कुछ खिसियाया
जिंदगी ने समझा
कुछ ‘उलूक’ के
उल्लूपन को
कुछ उल्लूपने ने
जिंदगी के बनते
बिगड़ते सूत्रों
का राज जिंदगी
को बेवकूफी
से ही सही
बहुत अच्छी
तरह से समझाया
-------------------------------
पर Onkar 
s400/pixabay%2Blamp-166490_960_720
 वह जवानी का उन्माद है;
जो बम की तरह फटे,
वह विरोध के ख़िलाफ़ विद्रोह है;
जो दिए की तरह जले,
वह जीवन-भर का प्यार है. 
-------------------------------
   अपनी आवश्यकताओं से अधिक को पाने की चाह रखना 
तथा देने की बजाए लेने पर ध्यान केंद्रित रखना बहुत सरल होता है। 
लेकिन इसका परिणाम होता है कि कुछ ही समय में
हमारी इच्छाएं हमें और हमारी आवश्यकताओं को 
नियंत्रित करने लग जाती हैं। 
-------------------------------
पर रश्मि शर्मा 
उसका मन फि‍र मचल रहा है
देख सुहाती सी धूप
रंग-बि‍रंगे फूल और
चटखती कलि‍यां
जंगली फूलों सा लड़की का मन
हरा-भरा है
हाथों में रंग भरकर घर के पीछे वाली
दीवार पर
भरी दोपहरी
चांद उगा आई है
-------------------------------
परSuresh Swapnil
क्या  उन्हें  घर  पर  बुलाना  ठीक  है
सीन:  में  जो  कोह  तक  पिघला  गए  !
नाम  उनका  पूछते  कैसे,   मियां
जो  वफ़ा  के  ज़िक्र  पर  ग़श  खा  गए  !
-------------------------------
 परसंजय भास्‍कर
तुम्हारे दिल को छोड़
अपनी दुनिया में वापस
या फिर तेरे दिल में ही रहने की
उम्र क़ैद मुझे मयस्सर होगी !!
 --
आज की चर्चा में...
धन्यवाद।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।